बिहार आ खास कए मिथिलाक विकासक चिंता करनिहार लोकक कमी नहि अछि। मुदा किछु लोक एकरा लेल गंभीर चिंतन टा नहि करैत छथि, बल्कि एकर निराकरण लेल सतत काज करि रहल अछि। ओहने लोक मे स छथि पत्रकार सुशांत झा। बिना संपादित प्रस्तुत अछि हुनकर मिथिला राज्य, मैथिल संस्कृति आ मैथिली पर केंद्रीत इ आखेख जे ओ समादक विशेष आग्रह पर मैथिली मे लिखलथि अछि।
सुशांत झा
समाद पर मिथिला आ बिहार स संबंधित लेख पढि कए ओतए चलै बला विकासपरक गतिविधि के अंदाज लागि पाबैये। इम्हर हमर एहेन मैथिल मित्र क संख्या मे बड तेजी स बृद्धि भेलए जे बिहार या मिथिला क विकास क बारे मे जानए त चाहैत छथि, मुदा जखन समाद पर मैथिली मे लेख पढ़य कहबनि त दिक्कत भय जाय छन्हि। हुनका मैथिली बाजय त अबै छन्हि, लेकिन पढ़य नहि आबै छन्हि। ओ हिंदी बड आराम स पढ़ लैत छथि, मुदा मैथिली पढ़य मे दिक्कत क वजह स ओ मैथिली साईट पढ़िते नहि छथि। ई बड्ड पैघ समस्या अछि।
देखल जाए त अमूमन जे कोनो भाषा के अपन लिपि जीवित छैक ओकरा पढ़ैबला कए कोनो दिक्कत नहि होईत छैक-कारण जे ओ बच्चे स ओहि भाषा कए ओहि लिपि मे पढ़ै कए अभ्यस्त होईत अछि। जेना तमिल, तमिल मे लिखल जाईत अछि, त एकटा औसत अंग्रेजीदां तमिलभाषीयो के ओकरा पढ़ै में कोनो दिक्कत नहि होईत छैक। मुदा कल्पना करु जे अगर तमिल कए देवनागरी मे लिखल जाई त की होएत ? ओ आदमी तमिल त बाजि लेत-चूंकि ओ ओकरा अपन माय या परिवार क अन्य सदस्य कए मुंह स सूनि कए सिखलक अछि-मुदा ओकरा पढ़ै मे बड्ड दिक्कत हेतैक। ओकरा देवनागरी लिपि सेहो सिखय पड़तै। हमर भाषा संगे येह दिक्कत अछि। मैथिली क अपन लिपि त छैक, मुदा ओ देवनागरी मे लिखल जा रहल अछि-जाहि लिपि मे हम सब सिर्फ हिंदी पढ़ै क आदी छी। अधिकांश मैथिली बजै बला कए मैथिली त आबै छन्हि-कियेक त ओ सुनि कय सिखने छथि लेकिन ओ पढ़ि नै सकै छथि, कियेक त पढ़ैके आदत हुनका हिंदी क छन्हि।
ई गप स्वीकार करए मे हमरा कोनो संकोच नहि जे हमर भाषा हिंदी क भाषाई साम्राज्यवाद क शिकार भेल अछि। ई संकट मैथिले टा संग नहि, बल्कि हिंदी क्षेत्र क तमाम भाषा जेना अवधी, भोजपुरी, ब्रज, राजस्थानी सबहक संगे छै। देखल जाए त भोजपुरी कनी नीक अवस्था मे अछि कारण जे एकरा बाजार सेहो सहयता कए रहल छैक। मुदा जेना-जेना शहरीकरण बढ़ि रहल अछि देश मे छोट-छोट भाषा आ बोली क स्पेश खत्म भ रहल अछि। देश क एकात्मक स्वरुप क विकास क लेल हिंदी आ अंग्रेजी अनिवार्य बनल जा रहल अछि। हालांकि दक्षिण क प्रांत आ उत्तर मे बंगाल आ उड़ीसा अहि स बहुत हद तक मुक्त अछि-ओना संकट ओतहु कम नहि। हमर भाषा मैथिली जनसंख्या क आकार, भौगोलिक स्थिति, प्राचीनता आ व्याकरण क दृष्टिकोण स कोनो भाषा स कम नहि, मुदा तइयो हम सब असहाय किए छी-ई एकटा विचारणीय प्रश्न अछि।
हमर दोस्त सब जिनकर जन्म पटना या दिल्ली मे भेलन्हि ओ हिंदी मे गप करैत छथि। हालांकि ओ अपन मां-बाबूजी स मैथिली बाजि लैत छथि, मुदा अन्य मैथिल भाषी स ओ हिंदी मे संवाद करैत छथि। एकर पाछू कोन मानसिकता अछि, कोन कारक एकरा प्रभावित कए रहल अछि, ताहि पर विवेचना आवश्यक।
दोसर गप हीन मानसिकता क सेहो। हम सब अपन संस्कृति कए जेना बिसरि गेलहुं अछि। हमरा सब ज्ञान क मतलब अंग्रेजी क जानकारी मानि लेने छी, आ संस्कारित होई क मतलब हिंदी क नीक ज्ञान यानी खड़ी हिंदी क दिल्ली या टीवी क टोन मे बाजै क ज्ञान मानि लेने छी। हमरा अपन प्राचीन परंपरा क ज्ञान स या त वंचित कएल जा रहल अछि या हम सब खुद अनभिज्ञ भेल जा रहल छी या कएकटा आर्थिक वजह हमरा सबस अमूल्य समय छीन रहल अछि जे हम सब अपन भाषा या संस्कृति क बारे मे सोची। हमर कइटा मैथिल मित्र कए ई ज्ञान नहि छन्हि जे सर गंगानाथ झा या अमर नाथ झा कए छलाह। हुनका उमेश मिश्र क बारे मे नहि बूझल छन्हि। हुनका सरिसव पाही या बनगाम महिसी क भौगोलिक जानकारी तक नहि छन्हि। हुनका मंडन मिश्र या जनक या मिथिला क प्राचीन विद्रोही परंपरा क बारे मे बिल्कुले पता नहि छन्हि। लोरिक या सलहेस एखन तक यादव या दुसाध क देवता किएक छथि ? आ मैथिल क मतलब मैथिल ब्राह्मण किएक होईत छैक ? की हम एकात्म मैथिल क रुप मे कोनो प्रश्न कए सोचैत छी? अहू सवाल स टकरेनाई आवश्यक। इंटरनेट अहि दिसा मे नीक काज कए रहल अछि। एम्हर कइटा वेबसाईट पर मैथिली या मिथिला क बारे मे नीक जानकारी आबि रहल अछि। मुदा की एतबा काफी अछि ?
आखेल जारी अछि
सुशांत जी !
नमस्कार !
अहाँक एहि आलेख स’ हम सहमत छी । मुदा, इहो लगैत अछि जे सभटा दोष अपन ओई मित्र मण्डल के नै छनि जिनका मैथिली पढ़ब बा लिखबा मे कठिनाई होइत छनि । एकर प्रमुख कारण अछि पढ़बा योग्य सामग्रीहक अभाव । अहाँ त’ पढ़ैत रहैत छी मुदा मोन पाडू जे सबस’ पहिने कहिया मैथिली पढ़ने रही । निश्चित ध्यान आओत जे वयस्क भेला बाद । हमरा सबहक बच्चाक लेल कोनो सामग्रीहे नै अछि । पढ़बाक अभ्यास कोना हेतैक ? आब किछु प्रकाशक लोकनि शुरू केलाह अछि । जेना श्रुति प्रकाशन, मैलोरंग प्रकाशन । बच्चाक लेल चित्रात्मक कथा/कॉमीक्स प्रकाशित क’ क’ ।
एकटा बात आर अछि जे कोनो भी समुदायक सभ व्यक्ति अपन भाषाक प्रति एक समान सचेत नहि होइत छथि। हाँ जिनका मे ई सचेचता छनि हुनके सभकेँ आगू आब’ परतैन ।
अपन जैड़ि स’ काज शुरू क’र’ परतैनि । ई दिल्ली, हैदराबाद, चएन्नै, मुम्बई मे बैसार क’ क’ की हेतैक । मिथिलाक सभ शहरक दोकानदार आ रिक्शा बला आब हिन्दी मे जबाब दैत अछि । अहाँ लाख हुनका संग मैथिली बाजू । ……
खैर …आगू फेर कहियो ।
prakashji ahank baat sa ham sahmat chhi…ekar nidan hamare sab ke sochay padat.