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मिथिला चित्रकला : अर्थक अधिकता आ सार्थकता

October 11, 2009
in फीचर
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दोसरसमाचार

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1960 क दशक मे मिथिला चित्रकला कए दीवार स कागज पर उतारबाक प्रयास शुरू भेल छल आ तहिए स शुरू भ गेल एहि चित्र मे नव-नव प्रयोग। तहिए स शुरू भेल एकर अर्थक नव संसार जे मिथिलाक सोच आ संस्कृति स पूरा भिन्न अछि। नव प्रयोग आ पुरान अर्थक एहन मिश्रण भेल जे कलाक पूरा स्वरूप आ अर्थ क औचित्य पर सवाल उठा देलक। एहन मे मिथिला चित्रकला मे अर्थक अधिकता आ चित्रक सार्थकताक ऊपर विचार करबा लेल प्रस्तुत अछि छवि झा आ कुमुद सिंह क इ शोधपरक आलेख

सब कलाकृतिक एकटा अर्थ होइत छैक। जेकर कलाकृति स घनिष्टï संबंध होइत अछि। कलाकृति आ ओकर अर्थ ओ कृतिक सार्थकता कए सिद्घ करैत अछि। मिथिला चित्रकलाक संबंध मे जखन विचार करैत छी त कर्ठटा गप सामने अबैत अछि, मुदा एकटा गप स्पस्ट होइत अछि जे मिथिला आ भारतक विद्घान एहि कलाक प्रति आइ धरि अपन नजरिया नहि बना सकलथि अछि। पिछला पांच दशक मे विदेशी विद्वान जे एहि कलाक प्रति नजरिया स्थापित केलथि अछि, देशक विद्वान ओकरे आधार मानि कए आगू बढैत रहलथि अछि। च पूछु त देशी विद्वान कहियो अपन नजरिया प्रस्तुत करबाक प्रयास तक नहि केलथि। मिथिला चित्रकलाक एहि गुप्त आ जटिल वास्तविकता कए धुंध स निकालबाक पहिल प्रयास सेहो अमरीका मे कैल गेल। 1984 मे अमरीका स प्रकाशित मानव शास्त्र पर आधारित पत्रिका मे पहिल बेर एहि गप कए रोचक आ गंभीरतापूर्वक उठाउल गेल जे अर्थक अधिकता स केना एहि कलाक सार्थकता खत्म भ रहल अछि।
उत्तर बिहार आ नेपालक तराई मे पसरल मिथिला क महिला द्वारा अपन घरक दीवार आ आंगना मे बनाउल जाइवाला एहि चित्रक संबंध मे एखन धरि कई बेर लिखन जा चुकल अछि आ कई ठाम कहल जा चुकल अछि। एतबे नहि कई टा अंतरराष्टï्र्रीय मंच पर एकर प्रस्तुति सेहो भ चुकल अछि। मुदा एकर संबंध मे लिखल साक्ष्य बेसी पुरान नहि अछि। 1949 मे पहिल बेर एहि पुरातन कलाक संबंध मे कागज पर किछु लिखल गेल। डब्ल्यू जी आरचर अपन किताब मे एहि चित्रकला कए अद्भुत आ आश्र्चयजनक कहने छथि। मुदा 1962 मे प्रकाशित लक्ष्मीनााि झाक पुस्तक मिथिला की सांस्कृतिक लोकचित्रकला सही मायने मे एहि चित्रकला पर पहिल आधिकारिक दस्तावेज अछि। देसी नजरियाक संग-संग एकर भाषा मे सेहो हिंदी आ मैथिलीक मिश्रण अछि, जाहि स अर्थक भाव अंगरेजी स बेसी साफ बुझबा मे अबैत अछि। देशी नजरियावाला एहन पुस्तक कए पाठक तक नहि पहुंचब एहि कलाक अर्थक अधिकताक मूल कारण कहल जा सकैत अछि।
मिथिला चित्रकलाक अर्थक संबंध मे समय-समय पुस्तक क प्रकाशन होइत रहल अछि। 1952 मे ब्राउन आ लेन्यूइस, 1966 मे माथुर, 1977 मे इब्स विको (वैक्यूवाद) आ 1990 मे जयकर एहि कलाक अर्थक संबंध मे बहुत किछु लिखलथि। अविश्वसनीय मुदा सत्य अछि जे एहि किताब सब मे जे किछु लिखल गेल अछि ओ मिथिला मे प्रचलित अर्थक स सर्वथा भिन्न अछि। एहि संबंध मे अमरीकाक चीको विश्वविद्यालयक कैरोलिन ब्राउन लिखैत छथि जे मिथिला चित्रकलाक अर्थ कए हरदम गलत आ भ्रमक तरीका स विश्वक समक्ष राखल गेल अछि। एकर मुख्य कारण इ रहल जे एहि पर देशी खास कए मिथिलाक विद्वान गंभीर काज नहि केलथि, जे काज भेल ओ विदेशी विद्वानक शोध स भेल। मिथिलाक अंगना मे बनाउल गेल एहि चित्रक संबंध मे पुख्ता जानकारी लेब कोनो विदेशी लेल हरदम एकटा चुनौती रहल अछि। लोककला कए बुझलाक बाद ओकर सही अर्थ बुझब आ फेर ओकरा सही रूप मे परिभाषित करि अभिव्यक्त करब कोनो विदेशी शोधकर्ता लेल राई क पहाड़ सन काज अछि। 1986 मे एसैड, वैल, मारकस आ फिसर, 1988 मे क्लिवाड आ 1992 मे वूल्फ क आलेख स बुझबा मे अबैत अछि जे ओ किछु एहने सच्चाई स सामना केने हेताह। कैरोलिन ब्राउन एहि संबंध मे साफ तौर पर लिखैत छथि- हम पश्चिम कए लोक एहि चित्रकला कए परिभाषित नहि करि सकैत छी, ताहि कारण हम सब एहि अद्भुत विषय कए तोडि़-मरोड़ी कए पेश करैत रहलहुं अछि। हालांकि एहि मे कोनो संदेह नहि अछि जे एकटा समाज मे भिन्न-भिन्न लोकक अगल-अलग नजरिया भ सकैत अछि, ओ एकटा चित्रक भिन्न-भिन्न अर्थ कहि सकैत छथि, मुदा विभिन्न अर्थक बीच मे एकटा समानता होइत अछि, जे अर्थ कए कतहु ने कतहु जोड़ैत अछि। उदहारण लेल मिथिला मे पुरुख कर्मकांड, न्यायशास्त्र सन शास्त्रीय विधा मे नीक पकड़ रहैत छथि आ ओहि स जुड़ल पावैन-तिहार क व्याख्या नीक जेका करि लैत छथि, ओतहि मौगी घरेलू पावैन-तिहार पर नीक पकड़ी रखैत छथि आ ओकर अपन अनुसारे व्याख्या सेहो करैत छथि। एहि लेल कुलदेवीक पूजा या गौरी पूजा मे पुरुखक योगदान कम देखबा मे अबैत अछि।
एकर पाछु कारण इ अछि जे अत्यंत गूढ़ संसार आ अत्यधिक विकसित समाजक सबटा गपक ज्ञान राखब असंभव अछि। ओना मिथिला समाज कए अत्यंत विकसित समाज बहुत कम विद्वान मानने छथि। जेना कि 1991 मे दरिदा आ 1994 मे वाल साफ तौर पर लिखने छथि जे एहि चित्रकलाक सही अर्थ मिथिला मे आब गिनल-चुनल लोक बता सकैत अछि। वेल क कहब अछि जे मिथिला मे जे चित्रक अर्थ कहि सकैत छथि ओ चुप रहय चाहैत छथि, जखन कि अर्थ नहि जननिहार लोक कए चुप राखब एकटा कठिन काज अछि। ओना एहि संबंध मे ब्राउनक मत किछु अलग अछि। ब्राउन कहैत छथि, ‘इ सच अछि जे आम मैथिल एहि कलाक संबंध में कम जानकारी रखैत छथि, मुदा बहुत विद्वान लेल इ कोनो महत्व नहि रखैत अछि जे मैथिल एहि संबंध में कतेक बुझैत अछि आ की कहैत अछि। अधिकतर विद्वान मैथिलक भावना कए अपन शोध मे तोडि़-मरोडि़ कए प्रस्तुत करबा स पाछु नहि हटला अछि। दुर्भाग्य अछि जे एखन तक कोनो देशी विद्वान एहि तथ्य कए रेखांकित नहि केलाह अछि, मुदा ब्राउन अपन मिथिला प्रवासक दौरान किछु एहने महसूस केलीह।
असल मे सबस पैघ गप इ अछि जे पाश्चात्य संस्कृति, व्यवहार आ शिक्षा हमरा लोकनि क सोच कए दबा देलक अछि या इ कहू जे सीमित करि देलक अछि। एकर अलावा हमरा लोकनि मे अनुवाद करबाक क्षमता सेहो कम भ चुकल अछि। आब सवाल उठैत अछि जे एतेक जटिल आ गुप्त तथ्यक कोनो एक व्यक्ति द्वारा कैल अनुवाद कए सर्वोच्च मानल जा सकैत अछि? एहि ठाम इ कहब जरूरी अछि जे एकटा चित्रक कई टा अर्थ भ सकैत अछि, मुदा ओकर सूत्र दूटा नहि भ सकैत अछि। वैह एकटा सूत्र ओकरा आन स भिन्न करैत अछि। एहि सूत्रक चारुआत ओकर अर्थ घुमैत रहैत छैक। एहन सूत्र मिथिला मे एखनो किछु महिला कए बुझल छैन, मुदा ओ निश्चित रूप स व्यावसायिक नहि छथि। ताहि लेल हुनका स ओ सूत्र बुझब कोनो देशी विद्वान लेल कठिन काज अछि, एहन मे विदेशी विद्वानक गप करब बेकार अछि। दरअसल मिथिलाक मौगी एहि सूत्र कए अपन शरीरआ आत्मा मे बसा रखने छथि आ नव पीड़ी कए थोड़े-थोड़े करि कए बुझाउल जाइत रहल अछि। एहन मे अल्प ज्ञानी स जानकारी लेलाक बाद विदेशी विद्वान मिथिलाक सूत्र जनिनिहार महिला कए नजरअंदाज करि दैत छथि।
मिथिला चित्रकला क सबस प्रचलित चित्र कोहबरक पुरैन कए ल कए सबस बेसी भ्रमक स्थिति अछि। अधिकतर विद्वान एकरा कोहबर नाम स परिभाषित केलन्हि अछि, जखन कि पुरैन कोहबरक अनेक चित्रगुच्छक एकटा सदस्य मात्र अछि। आइ जे पुरैनक स्वरूप देखबा मे आबि रहल अछि, ओ जानकार महिला मे भ्रम पैदा करि रहल अछि। हालांकि एतबा अवश्य अछि जे एकटा गोलाकार आकृतिक चारुआत छह टा मौगिक मुंह बनाउल गेल अछि, जेकर बीच मे सातम मुंह सेहो अछि जे छह टा मुंह स कनि पैघ आकारक अछि। एहि चित्र कए रेखाचित्रक रूप मे बनाउल गेल अछि। पुरैनक सूत्र पर बनाउल गेल एहि रेखाचित्र स भ्रण हेबाक कईटा कारण अछि। मिथिला मे पुरैन रेखाचित्र नहि, बल्कि भित्तिचित्र अछि आ पांचटा रंग स बनाउल जाइत अछि। हालांकि आइ अधिकतर कागज पर एहन चित्र बनाउल जा रहल अछि, लेकिन एहि चित्रक विशेष मे साफ तौर पर कहल गेल अछि जे एकरा दीवार पर बनाउल जाइत अछि। मिथिला मे रेखाचित्र कए अरिपन कहल जाइत छैक आ ओ जमीन पर बनाउल जाइत अछि। ओनाओ मिथिला मे पुरैनक दू टा सूत्र अछि। एकटा ब्राह्मïण आ दोसर कर्णकायस्त लोकनिक पुरैन। दूनू मे सूत्रक अंतर अछि। मुदा एहि चित्र मे एकर प्रारूपक कोनो चर्च नहि अछि। सातटा मौगिक मुंहक संग सांप, कछुआ, माछ आदिक चित्रक औचित्य जखन मिथिलाक लोक लेल बुझब कठिन अछि तखन विदेशी की बुझत? विदेशी विद्वान लेल इ मात्र एकटा भीड़वाला चित्र अछि, जाहि मे संदेशक कोनो स्थान नहि अछि। बहुत रास विदेशी विद्वान त एकरा जादू-टोना आ भूत-प्रेत लेल बनाउल गेल चित्र कहलथि अछि। मुदा ब्राउनक कहब अछि जे इ पुरैनक नव रूप अछि आ कायस्त प्रारूप स मिलैत-जुलैत अछि।
मिथिला मे पुरैन कमलक लत्ती कए कहल जाइत अछि। ब्राह्मïण प्रारूप मे नौ आ कायस्थ प्रारूप मे सातटा कमलक पात दर्शाउल जाइत अछि। चूंकि कमलक लत्ती पाइन मे होइत अछि, ताहि लेल एकर संग-संग पाइन मे रहैवाला वस्तु आ जीवक चित्र बनाउल जाइत अछि। लक्ष्मीनाथ झा एहि संबंध मे लिखैत छथि जे पुरैन मुख्य रूप स वंश वृद्घिक लेल नव दंपति स सांकेतिक अनुरोध अछि। जेना कमलक एकटा लत्ती पोखरि कए कहियो कमल विहीन नहि हुए दैत अछि, तहिना नव दंपति कए घर कए कहियो वंश विहीन नहि हुए देबाक कर्तव्य निभेबाक चाही। एतबा त जरूर अछि जे 20वीं शताब्दी मे पश्चिम मे पलल-बढ़ल कोनो व्यक्ति एहि स्त्रीत्व कए(स्त्री कए हृदय मे वास करैयवाला भावना) घेरा नहि बुझि पाउत। आइ जखन बियाह एकटा अलग अर्थ ल चुकल अछि, एहन मे पुरैनक औचित्य जरूर प्रासंगिक भ गेल अछि।
1960 क दशक मे एहि चित्र कए कागज पर उतारबाक प्रयास शुरू भेल छल आ तहिए स शुरू भेल एहि चित्र मे नव-नव प्रयोग। तहिये स शुरू भेल एकर अर्थक नव संसार जे मिथिलाक सोच आ संस्कृति स पूरा भिन्न अछि। नव प्रयोग आ पुरान अर्थक एहन मिश्रण भेल जे कलाक पूरा स्वरूप आ अर्थ क औचित्य पर सवाल उठा देलक। सच कहल जाए त मिथिलाक महिलाक एहि विलक्षण प्रतिभा कए परिभाषित करबा मे एखन धरि कोनो विद्वान सफलता नहि पाबि सकलथि अछि। समस्त मिथिला मे बनाउल जाइवाला एहि चित्र कए किछु चारि-पांच टा गाम मे समेट देबाक अलावा इ विद्वान लोकनि एहि चित्र कए कएटा अनपढ़-गवांर मौकी द्वारा बनाउल गेल चित्र स बेसी किछु नहि साबित कए सकलथि अछि। मिथिला मे एखनो कई टा महिला अपन फाटल पुरान कॉपी निकालि देखबैत छथि, जाहि मे कईटा विदेशी विद्वानक लिखल वाक्य अछि। दुख आ तामस तखन होइत अछि जखन कॉपी पर लिखल वाक्य पढ़ैत छी, जाहि मे लिखल रहैत छैक जे इ चित्र एकटा पिछड़ल समाजक गवांर, अनपढ़ आ मूर्ख महिला द्वारा बनाउल गेल अछि। विदेशी विद्वान मे इ सोच अचानक नहि आबि गेल अछि। हुनका कई प्रकार स इ बतेबाक बेर-बेर प्रयास भेल अछि। दुनिया मे इ धारण कए स्थापित करबाक श्रेय इब्स विको कए अछि। विको स बेसी शायद कोनो विद्वान एहि चित्रकला पर काज नहि केलथि अछि, मुदा ओ जतेक एहि चित्रक करीब अबैक कोशिश केलाह, एकर अर्थ स ओ ओतेक दूर होइत गेलाह। विको राय औवेन्स क संग एकटा फिल्म सेहो बनौलथि, जेकर नाम ‘मुन्नीÓ अछि। ओ एकटा फ्रंच फिल्म सेहो बनउलथि, मुदा चित्रक अर्थ बुझबा आ बुझेबा मे सब बेर असफल भेलथि। विको तखनो हार नहि मानलथि, ओ 1994 मे एकटा विडियो फिल्म ‘मिथिला पेंटरस…Ó बनौलथि, मुदा नव किछु नहि कहि पैउलथि। आइ स्थिति एहन भ चुकल अछि जे समाजक सब लोक इ बुझबा मे लागल अछि जे आखिर इ परंपराक कौन वस्तु बारे मे थिक।
एहि चित्रकलाक संबंध मे सबसे लोकप्रिय स्रोत विकोक 1977 मे छपल किताब’ द वीमेंस पेंटर ऑफ मिथिला…Ó अछि। जखन कियो एहि पुस्तकक एक-एक टा चित्र कए गौर स देखैत अछि आ ओकर रूपरेखा कए पढ़ैत अछि त ओकर सामना एकटा आश्र्चजनक, अद्भुत आओर लगभग असंभव सन प्रतीत होइवाला संसार स होइत अछि।
विको लिखैत छथि जे मिथिला समाज मे मुख्यपात्र महिला छथि आ एहि ठाम पुरुषक भरमार अछि। एहि ठाम युवती हमउम्र युवक स विवाह करबा लेल तरह-तरह स प्रयास करैत छथि।(1977, पृष्ठ- 17)।
विको एहि गप कए बाजारू आओर रोचक बनबैत आगू लिखने अछि जे मिथिला मे एकटा युवती अपना लेल सुयोग्य युवक कए चुनैत अछि आ विवाहक प्रस्ताव स्वरूप ओकर सामने कोहबर रखैत अछि ।(1977, पृष्ठ- 17)। ओ लोक जे मिथिला कए नीक जेका नहि चिन्हाल अछि, हुनको इ वाक्य पढ़लाक बाद आश्र्चय हेतेन जे विको केना मिथिला समाज कए अतेक चरित्रहीन बना देलथि। इ अद्भुत मुदा सत्य सन आलेख कए पढ़लाक बाद एहन प्रतीत होइत अछि जे विको कए एहन अनुवादक भेटलन्हि जेकरा मिथिला समाज, संस्कृति आ सभ्यता स कोनो वास्ता नहि रहैन, संगहि हुनका मिथिलाक रिति-रिवाज आ लोकाचार तक कए ज्ञान नहि रहैन। सच पूछु त अनुवादकलेल विको मात्र टका देनिहार विदेशी छलाह। ओना देखल जाए त विको क इ किताब एहि विषय पर लिखल गेल पहिल अथवा आखिरी किताब नहि थिक। इ पुस्तक एहि लेल महत्वपूर्ण भ गेल अछि, किया कि मिथिला चित्रकला पर शोध केनिहार अधिकतर विद्वान एहि पुस्तक स प्रभावित छथि। एतबा धरि कि भारतीय विद्वान उपेंद्र ठाकुर तक अपन किताब मे विको क नजरिया कए नजरअंदाज नहि केलथि अछि। विको क एहि किताब क महत्व पर ब्राउनक कहब अछि जे पश्चिमक विद्वान जखन कोनो विषय पर काज शुरू करैत छथि तखन ओहि विषय पर लिखल गेल पूर्वक किताब स काफी प्रभावित होइत छथि। मिथिला चित्रकलाक संग सेहो किछु एहने भेल। अधिकतर विद्वान विकोक रूप-रेखा स प्रेरणा लेलथि, किछु त हुनकर नकल तक कैलथि। ताहि लेल इ अन्य पुस्तक बेसी महत्वपूर्ण भ जाइत अछि। दोसर इ जे विको बहुत दिन धरि एहि विषय पर काज केलथि अछि आ कई प्रकार स एकरा दुनियाक समक्ष अनलथि अछि, एहन मे विदेशी विद्वान लेल हुनका नजरअंदाज करब कठिन रहल अछि। एहि प्रकारे विको भ्रमक आओर सर्वथा गलत तरीका स अनुवाद करि झूठ कए एकटा सत्य स बेसी सत्य रूप मे स्थापित केलथि अछि।
ओना अधिकतर विदेशी विद्वानक कहब अछि जे मिथिला समाज विश्वक सबस चरित्रवान समाज मे स एक अछि। एकर संस्कृतिक संबंध मे प्राख्यात चिकित्सक डॉ कैमेल क कहब अछि जे आइ ‘जीनÓ(अणु)क संबंध मे दुनिया भरि मे शोध भ रहल अछि, जखनकि मिथिला मे पंजी व्यवस्था ओकरे एकटा रूप अछि। मिथिलाक ब्राह्मïण आ कर्णकायस्थ लग एखनो बीस-बीस पीढि़क जानकारी उपलब्ध अछि।
विको कए शायद इ नहि बताउल गेल कि मिथिला मे युवतिक विवाह पंजीकारक राय स तय कैल जाइत अछि। युवतिक इच्छा एहि ठाम कोनो मायने नहि रखैत अछि। एहि तथ्य कए ब्राउन बहुत साफ तौर पर रखने छथि। ब्राउन कहैत छथि जे ओ मिथिला प्रवासक दौरान पंजीक विधिवत शिक्षा ल चुकल छथि। ओ एहि गप कए सेहो साफ करबाक प्रयास केलथि अछि जे मिथिला मे कहियो युवति कए पति चुनबाक अधिकार नहि रहल अछि। सीताक संबंध मे सेहो ब्राउनक मत स्पष्टï अछि। ओ कहैत छथि जे सीताक स्वयंवर नहि छल ओ एकटा सशर्त विवाह छल। इ सच अछि जे ओहि विवाह मे पंजीक कोनो व्यवस्था नहि छल, मुदा धणुष रामक बदला मे रावण उठा लैत त कि सीताक इच्छा रहितो राम स विवाह संभव छल? सीताक इच्छा हुनक विवाह मे कोनो मायने नहि रखैत छल। ब्राउल इ तर्क देलाक बाद आखिरी फैसला मिथिलाक लोक पर छोड़ैत कहैत छथि जे मेरे एहि मत स शायद मिथिलाक लोक सहमत नहि हेताह।
वैकसेनेलक शब्द मे कहल जा सकैत अछि जे मिथिला चित्रकला एकटा आंखिक भांति अछि जे समयक संग-संग अपना कए बदलैत रहल अछि, मुदा अपन मूल सिद्घांत स कखनो समझौता नहि केलक अछि। इ कला जगतक एकटा अद्भुत औजार अछि जेकरा स कलाकार अपन समाजक संग-संग पूरा विश्वक गुढ़ गप आ रिति-रिवाज कए चित्रक माध्यम स प्रस्तुत करैत आइल अछि। (1972,पृष्ठ-38) जे किछु हुए एतबा त अवश्य भेल अछि जे मिथिलाक संस्कृति कए दुनियाक सामने सर्वथा गलत तरीका स परिभाषित केल गेल अछि। आइ मिथिला चित्रकला अधिकतर एहन चित्र बनाउल जा रहल अछि, जेकर एतुका संस्कृति स कोनो लेनादेना नहि अछि। आवश्यकता अछि एहि चित्र क गंभीरता स शोध करबाक आ एकर अर्थक अधिकता कए समाप्त करबाक, नहि त इ चित्र हरदम लेल हमरा लोकनिक अज्ञानताक द्योतक बनल रहत।

लेखिका छवि झा पिछला तीस वर्ष स मिथिला चित्रकला कए अर्थ पर काज कए रहल छथि। संप्रति ओ ‘स्नेह छवि मिथिला स्कूल ऑफ आर्टÓ, दरभंगा क निदेशक छथि आ एकरा परिभाषित करबा मे लागल छथि। (इ आलेख पिछला साल मैथिलिक प्रथम ई-पत्रिका विदेह मे छपि चुकल अछि)

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