बैशाली। बिहार मे आयोजित भ रहल विभिन्न महोत्सव स बिहारक ग्रामीण आ पुरातन कला कए नव जीवन भेट रहल अछि। पिछला कई दशक स आधुनिकता क नाम पर बिहार क पुरातन कला लगभग मृत्यप्राय भ गेल छल। मुदा बिहारक विभिन्न अंचल मे शुरू भेल महोत्सवक आयोजन एक बेर फेर लोक कए अपन माटि क सुगंध स परिचित करा रहल अछि। सच पूछल जाए त एहि प्रकारक महोत्सव आयोजनक सफलता सेहो एहि पर निर्भर करत जे आयोजन स लोक कला आ पुरातन कला कए केतबा जीवन भेटल। केसरिया महोत्सव मे ओना त झिंझिया, कजरी, सोहर क सेहो मनोहारी प्रस्तुति भेल, मुदा नाटयकला केन्द्र क कलाकार ग्रामीण परिवेश स लुप्त हो रहल आल्हा- उदल क एहन दिलकश प्रस्तुति देलथि जे लोक वीर रस क गायन कए समुद्र मे गोता लगेबा स अपना कए नहि रोकि सकलथि। आल्हा-उदल बिहारक एकटा एहन कला विधा अछि जे आधुनिकता क एहि युग मे लुप्त भ गेल अछि। आल्हा-उदल क प्रस्तुति स केसरिया महोत्सव अपन अमिट छाप छोडबा मे सफल रहल। ओना एहि महोत्सव क दौरान जेना जेना सांझ बितल आ राति चढल तहिना तहिना गीत-संगीत क एक स एक मनोहारी प्रस्तुति सामने आबैत गेल। होली गीत क एहन शानदार प्रस्तुति भेल जे लोक चैती बिसरि होली क रंग मे सराबोर भ गेल। नृत्य नाटिका बोध गया पिंडदान, वैशाली क नगरवधू आ प्रख्यात नृत्यांगना क दर्द, ग्रामीण क्षेत्र क पारंपरिक सती- बिहुला क प्रस्तुति यादगार बनि गेल। बिहार क पावन पर्व छठ गीत पूरा माहौल कए भक्तिमय बना देलक। एकर अलावा विमल शाहाबादी केन्द्र विहिया भोजपुर क कलाकार सब सेहो अपन नृत्य आ गीत स समारोह मे वाहवाही बरोरलथि।