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मैथिली मे रसायनशास्‍त्र क आर किताब लिखब : डॉ प्रेम मोहन

December 24, 2011
in समाचार, साक्षात्‍कार
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22 दिसंबर कए मैथिली कए अष्टम सूची में एना आठ पूरा केलक। एहि आठ साल मे मैथिली एकटा भाषा क रूप मे बहुत विकास केलक। साहित्‍य आ अनुवाद स आगू मैथिली पहिल बेर विज्ञान क दलान पर पहुंचल। मैथिली म विज्ञान क पाठ्य पुस्तक क शून्‍यता खटकैत छल। मैथिली मे प्राथमिक शिक्षा क मांग क बीच इ सवाल उठैत छल जे मैथिली मे सब विषयक पुस्‍तक कहां अछि। एहि सवालक उत्‍तर सेहो भेट गेल। ललित नारायण मिश्रा विश्वविद्यालय क विद्वत परिषदक सदस्य आओर एसोसिएशन आफ केमेस्ट्री टीचर्स क जोनल सेकेट्ररी डा. प्रेम मोहन मिश्रा क लिखल रसायन शात्रक किताब आइ लोकक हाथ मे अछि। प्रस्तुत अछि समदिया नीलू कुमारी आ सुनील कुमार झा स प्रेममोहन जी गपशपक किछु खास अंश…
प्रश्न – सबस पहिने ई कालजयी किताब लेल अहाँ कए बहुत बहुत बधाई।
उत्तर – अहुं कए, इ सब अहि सब हक आशीर्वाद आ सहयोगक नतीजा अछि।

प्रश्न – मैथिली मे विज्ञानक पुस्तक लिखबाक विचार कोना आयल।
उत्तर – मैथिली मे विज्ञान क पुस्तक लिखबाक योजना हमर सपना छल। 1985-86 में मैथिली क एकटा पत्रिका “बसात” नाम स शुरू केने रही जे प्रकाशक क आभाव मे बंद भ गेल। करीब दू साल पहिने मैसूर स नेशनल ट्रांसलेशन मिशन क किछु सदस्य दरभंगा आयल छलाह। हुनकर कहब छल जे मैथिली मे जखन पाठ्यपुस्तक उपलब्‍ध नहि अछि त एकर पढाई कोना होएत। एहि क्रम मे हम हुनका आश्वाशन देलहुं जे हम मैथिली मे पाठ्यपुस्तक लिखब आ आइ किताब अहांक हाथ मे अछि।

प्रश्न – रसायनक भाषा क मैथिली मे अनुवाद करबा मे केहन प्रकारक दिक्कत आयल।
उत्तर – दिक्कत त बहुत भेल। रसायनशास्त्रक भाषा मैथिली मे लिखब मुश्किल त नहि मुदा कठिन बड़ अछि। एहि मे हम कोशिश केलहुं जे मैथिलीक खांटी भाषाक प्रयोग नहि करि कए सरल भाषाक प्रयोग कैल जाए। जेना रसायनशास्त्र मे फ्लेम एकटा शब्द अछि जेकर मैथिली मे कहि त शुद्ध अनुवाद धधरा होइत अछि। मुदा धधरा शब्द सटीक नहि लागल आ विद्यार्थी कए इ बुझबा मे सेहो सही तरह स नहि आबि सकैत छल ताहि लेल हम एहि शब्‍द कए प्रयोग नहि केने छी। हमर प्रयास रहल जे बेसी स बेसी विद्यार्थी एकरा बुझि सकथि।

प्रश्न – मैथिलीक पाठ्य पुस्तक क लिखलाक बाद अहां मैथिली क शिक्षा कए कोना देखैत छी।
उत्तर – निश्चित रूप स एहि किताब स मैथिली माध्‍यम स शिक्षा पर एकटा नव सोच तैयार भ रहल अछि। एहि किताब स एकटा नव आयाम भेटत आ एकदिन ई अनिवार्य भाषाक रूप म मैथिली स्वीकार्य होएत। ओना हम कोशिश मे लागल छी जे मैथिली मे रसायन शास्त्रक एकटा सीरिज बना दी, आ अठमा स ल कए स्नातक तक मैथिली मे रसायनशास्त्रक किताब उपलब्‍ध करा दी। इ हमर एकटा लक्ष्य अछि। अखन मैथिल मे “मैथिली अकार्बनिक गुणात्मक विश्लेषण” नाम स एकटा किताब निकालने छी। नौवां कक्षाक किताब मैथिली रसायन त हम तैयार क लेने छी आ दसमो लेल लिखब शुरू क देने छी। अगिला साल तक दूनू किताब अहां सबहक हाथ मे आबि जाएत।

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प्रश्न – मैथिल ललना लेल किछु समाद।
उत्तर – जरूर, मैथिली अपन मातृभाषा छी, अहाँ सब एकरा स दूर नहि जाउ। जतेक मैथिली लिखब आ पढ़ब ततेक मैथिली आगाँ बढ़त। संगहि प्रबुद्ध जन स हम आग्रह करब जे अहाँ मैथिली मे किताब लिखबाक लेल किछु समय निकालू। इ कहब अनुचित अछि जे मैथिली मे आधुनिक विषय या विज्ञान सन विषय पर किताब नहि लिखल जा सकैत अछि। सब किछु पर किताब लिखल जाएत तखने मैथिली आगाँ बढ़त। हरेक आदमी कनि कनि योगदान दथि त मिथिलाक प्रगति, विकास आ उन्नति कियो नहि रोकि सकैत अछि।
मनोरजन झाक एकटा पांति याद आबि रहल अछि…
भाषाक पानि जखन जडि मे ढरेतै
त’ मैथिली के झंडा आकाश मे फ़हरेतै…

प्रश्न – इसमाद स गप करबाक लेल अहाँक बहुत बहुत धन्यवाद।
उत्तर – अहूँ दूनू गोटे कए धन्यवाद।

Tags: Bihardarbhangamaithili

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Comments 13

  1. Dr Archana says:
    13 years ago

    मैथिली में पहिल पाठ्य पुस्तक लिखबा लेल डॉ प्रेम मोहन मिश्र धन्यवाद के पात्र छथि और इसमाद परिवार अहि बात के दुनिया के समक्ष आनि के मैथिली के सेवा कैलक अछि. अहि प्रचार प्रसार स औरो बुद्धिजीवी मैथिली लेखन में आगू औता . इसमाद के पुनः धन्यवाद .

    Reply
  2. MithilaVasi says:
    13 years ago

    Prem Mohan Mishra Rocks… Sir hum sab mithilavasi ahan ke abhari chhi aur rahab

    Reply
  3. Dr. Shashidhar Kumar says:
    13 years ago

    डा. प्रेम मोहन मिश्रा जी केँ बहुत बहुत धन्यवाद ।

    एहिना हरेक मैथिल – जे जाहि क्षेत्र सँ सम्बद्ध छथि – मैथिली साहित्य व मिथिलाक लेल मात्र थोड़बो – थोड़बो योगदान करथि तऽ मिथिला आ मैथिलीक विकास केँ केओ रोकि नञि सकैछ ।

    संगहि धन्यवाद इसमाद सँ सम्बद्ध समस्त प्रत्यक्ष ओ अप्रत्यक्ष लोकनिक जे मिथिला मैथिली सँ जुड़ल समाद मैथिली मे हमरा लोकनि तक पहुँचाबैत छथि ।

    Reply
  4. atuleshwar jha says:
    13 years ago

    धन्यवाद सर, अपनेक काज एहि अंग्रेजीवादी समय मे बहुत पैघ अछि संगहि मैथिली समाजक बुद्धिजीवीकें ई एकटा नव दिशा देलक जे भाषा आ समाजक सेवा कोना कयल जाइत अछि। आशा अछि मैथिली भाषा अपनेसँ आओर बेशी आशा करत आ संगहि नव पीढ़ी अपनेक मार्गदर्शनक लेल सेहो आशा राखत।

    Reply
  5. Arun Kumar Singh says:
    13 years ago

    डा. प्रेम मोहन मिश्रा जी अहाँ धन्यवादक पात्रे नहि अपितु अधिकारी छी। मैसूरमे जखन अहाँसँ भेंट भेल छल तखने अहाँक मातृभाषानुराग देखने छलहुँ से एहि विज्ञानक पोथीक प्रकाशनक संगे प्रमाणित भ रहल अछि। मातृभाषाक उज्ज्वल भविष्य देखार द रहल अछि।

    Reply
  6. Prakash Kr. Jha says:
    13 years ago

    Dr. Mishra ke dhanyabaad a badhaai.

    Reply
  7. Vidhukanta Mishra says:
    13 years ago

    Dr. Prem Mohan Mishrajee ke Maithili mein Vigyank pustak likhbak lel lel hardik badhai kona uplabhad hoet? kripya soochit kari. – Vidhukanta Mishra

    Reply
  8. vidhan jha says:
    13 years ago

    Great effort towwrds maithil culture development.
    Our best wishes with Esammad team always
    I will request esammad team to share this on facebook so everone will get aware with the same.

    Vidhan jha

    Reply
  9. Bijendra Jha says:
    13 years ago

    A great thanks to Dr Mishra for a great effort towards our culture…………

    Reply
  10. Ashutosh Kumar Jha says:
    13 years ago

    sir dhanyawad….. badhai seho

    Reply
  11. Dr. Kishan Kaigar says:
    13 years ago

    Matribhasha men Rasyanshastra ke pustak chhatra loknik hetu upoygi hoyat.. ehi san vigyan lekhan evam chintan ke star seho bhadhat…Dr. prem mohan mishra ke ehi kaaj lel asesh naman.

    Reply
  12. बिनोद says:
    13 years ago

    रोचक कार्य | विज्ञान कतेको भाषा ओढने अछि |रसायन शास्त्र के अंतर्गत ‘फ्लेम’ के लेल धधराक प्रयोग सामाजिक आ सांस्कृतिक स्वीकार्यता स जुड़ल विषय अछि |स्वीकार्यताक आधार अनेक कारण स समय-समय पर बदलैत रहैत छैक | विज्ञान जेहन गहन सैद्धान्तिक विषय में मैथिली भाषाक स्वीकार्यता हेतु डॉक्टर प्रेम मोहन मिश्र विशेष काज क’रहल छथि |एकर प्रशंसा हैबाक चाही |

    Reply
  13. Abhay Kumar says:
    12 years ago

    First of all congratulations and thanks to Dr. Prem Mohan Mishra for coming forward and doing such a wonderful job. I also want to thank esamaad for publishing this interview. All I want say is persons like those don’t live in Bihar because their parents are having jobs outside Bihar have very hard time in learning maithili , so I just want to if anyone of you can publish a book of maithili grammar and language online it will definitely going to help us a lot. In the I am grateful to all of you who are trying to keep maithili alive.

    Reply

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