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सन्तानक दीर्घायुक लेल व्रत अछि जितिया

September 15, 2014
in फीचर, समाचार
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दोसरसमाचार

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साहित्य समाद – समटल प्रकाश

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December 26, 2020

जितिया पावनि के व्रत आशिन कृष्ण पक्ष अष्टमी कऽ हो‌इत अछि । अपन-अपन सन्तानक दीर्घायुक लेल ई व्रत क‌एल जा‌ईछ । 2019 में इ तिथि‍ 21 सितंबर कए शुरू होएत आ 22 कए दुपहरिया 3:17 क बाद पारण अछि। मरूआ माछ 20 कए होएत।

ई व्रत अ‌ईहव आ वीधव सभ करैत छथि । वीधव सभ सप्तमी दिन नहाके अरबा-अरबा‌ईन खा‌ई छथि। अष्टमी दिन निराहार रहिक ई व्रत हो‌ईत अछि । एहि मे फलहार के कोन बात एक बून्द पानियो तक कंठ तर नहि जेबाक चाही । व्रत केनिहारि सब ओहि दिन कोनो नदी या पोखरि मे नहाथि । ओहि दिन असगर नहि नहेबाक विधान अछि । पाँच-सात गोटेक संग मील कऽ नेहेबाक चाही । व्रत केनिहारि नेहेलाक बाद झिमनिक पात पर ख‌ईर आ सरिसो के तेल जितवाहन के चढ़वैत छथि । खीरा, केरा, अँकुरी, अक्षत, पान-सुपारी, मखान, मधूर लऽ कऽ नवेद दैत छथि आ धूप-दीप जरबैत छथि । अपना पुत्रक दीर्घायु आ सब मनोरथ पूरा करबाक वरदान मंगैत छथि । कथा सुनलाक बाद सब अपन-अपन घर अबैत छथि । नवमी दिन फ़ेर ओही तरहें पूजा पाठ कऽ कऽ खीरा, अंकुरी, अक्षत, पान-सुपारी नवेद दऽ धूप=दीप जराकऽ विसरजन करैत छथि । जिनका लोकनिक संतान लग मे रहैत छथि से माय पहिने संतान के जीतबाहनक प्रसादी दऽ कऽ तखन अपने पारन करैत छथि । जिनकर संतान परदेश रहैत छथिन्ह या कतहु बाहर पढ़बा-लिखवा लेल गेल छथिन्ह तऽ हुनकर माय अपना बेटाक लेल जीतवाहनक चढ़ा‌ओल अकुरी आ सुपारी राखी लैत छथि तकर बादे पारन करैत छथि ।

जितिया व्रत कथा एहि प्रकारे अछि –
एक दिन कैलाशक अति रमणीय शिखरपर बैसि पार्वती शंकर जी सँ प्रश्न कयलनि जे कोन व्रत वा तपस्या छैक जकरा कयला सँ सौभाग्यवती स्त्रीक सन्तान जीवित रहतैक । तकर उत्तर शंकर जी देलनि- आसीन कृष्ण अष्टमी तिथि कऽ यदि स्त्रीगण लोकनि पुत्रक कामनासँ शालिवाहन राजाक पुत्र जिमूतवाहनक कुशक प्रतिमा बना कलशक जल मे स्थापना क‌ए तकरा खूब सुसज्जित कऽ नजदीक मे एक खाधि खुनि पोखरि निर्माण कऽ ओकर मोहार पर एक गोट पाकड़िक ठाढ़ि रोपि, ठाढ़िक ऊपर मे गोबर माटिक चिल्होड़िक निर्माण कऽ राखथि आ नीचा मे गीदरनीक आकृति बनाय राखि देथि । दुनूक माथ पर सिन्दूर पिठार लगाय फूल माला सँ युक्त भऽ धूप-दीप नैवेद्य लऽ बाँसक पात पर पूजा कयलासँ पुत्रक जतेक जे ग्रह चक्र रहैब अछि ताहि सँ मुक्ति भेटैत छैक आ ओकर बंशक वृद्धि हो‌इत छैक आ संग-संग सब मनोरथ पूरा हो‌इत छैक ।
एहि पृथ्वी पर समुद्रक किनार पर नर्मदाक किनार पर दक्षिण दिशा मे कनकावती नामक एकटा गाम अछि, जाहिठाम सब तरहक सेना सँ सुसज्जित मलयकेतु नामक राजा राज्य करैत छलाह । हुनके राज्य मे बहुलूटा नामक मरूभूमि छैक जकरा बिचे बाटे नर्मदा नदी बहैत छथि । ओकरे किनार पर एक गोट अति विशाल पाकड़ि गाछ छल । ओहि पाकड़िक धोधरि मे एकटा गिदरनी निवास करैत छलीह आ ठाढ़ि पर एक गोट चिल्होरनी निवास करैत छलीह । बहुत दिन एक संग निवास करबाक कारणे दुनू मे बड़ गाढ़ दोस्ती छल । ओहि नगरक निवास कयनिहारि महिला लोकनि ओहिगाछ लग आ‌इ आसीन कृष्ण अष्टमी तिथि कऽ जिमूतवाहनक पूजा कऽ कथावाचक सँ कथा सूनि अपन-अपन घर गेलीह । गिदरनी आ चिल्होरनी सेहो व्रत केने छलीह । ओहो लोकनि घर गेलीह ।
ओहि दिन संध्या समय मे ओहिनगर के जे नामी सेठ तकर एकमात्र पुत्रक मृत्यु भऽ गेलैक। ओकर परिजन नर्मदा कातमे आबि संस्कार दऽ घर जा‌इत गेलाह । ओहि अष्टमी रातिमे टपाटप मेघ लागल छल । हाथ-हाथ नै सुझै । ओहि भयंकर अन्हार मे कखनो-कखनो बिजलौका लोकैत छलैक तकर इजोत मे ओहि मृतकक मांस देखि दिनभरिक उपासल गिदरनी तिनका धैर्य नहि राखल गेलनि। ओ गाछपर जे निवास कयनिहरि चिल्होरनी तिनका सँ प्रश्न कयलनि कि हे बहिना जागल छह । अनेक बेर गिदरनी द्वारा जिज्ञासा कयला पर चिल्हो कोनो जवाब नहि देल । तहन गिदरनी सोचलनि बहिना शायद सुति रहली । कैक बेर गिदरनी द्वारा जिज्ञासा क‌एलो पर जवाब नहीं भेटला पर ओ अपन धोधरि सँ निकलि नदी किनार पर जा ओहिठाम सँ अपन मुँहमे पानि आनि-आनि चिताके जे अग्नि तकरा मिझा‌ओल ।
तखन चितामे अवशेष मांसक टुकड़ी तकरा खण्ड-खण्ड कऽ पेट भरि खेबो कयलनि आ अपन धोधरि मे आनि कय रखबो कयलनि । गाछ पर बैसल चिल्हो हिनकर समस्त करतूत देखैत छलीह । प्रातः काल गिदरनी चिल्हो सँ कहलनि सखी पारणाक चर्चा कियैक नहि करैत छी । रातुक बातके जानय वला चिल्होड़ि उदास हो‌इत उत्तर देलनि हे सखी ! पारणा करू गऽ पारणा के बेर भऽ गेल । हम स्त्रीगण लोकनि द्वारा देल गेल अक्षत अंकुरीक नैवेद्य लऽ कऽ पारणा करैत छी । अहूँ करु गऽ ।
तहन कालक्रममे प्रयागमे कुंभ लगलै । संयोगसँ चिल्हो आ गिदरनी दुनू गोटे ओतय गेलीह । ओहिठाम एक संग दुनूक मृत्यु भऽ गेल । कुंभक मृत्युक कारण दुनू गोटेक जन्म वेदक ज्ञाता जे भास्कर नामक ब्राह्मण तिनका घरमे भेलनि । दुनू गोटे जौँआं जन्म लेल । दुनू के नामकरण भेल । चिल्हो जे छलीह से जेठ भेलीह हुनकर नाम शीलावती राखल गेल । आ गिदरनी छोट भेलीह । हुनकर नाम कर्पूरावती राखल गेल । दुनू गोटे जखन नमहर भेलीह कन्यादान योग्य तहन दुनू के कन्यादान भेल । पैघ जे शीलावती तिनक विवाह महामत्त नामक जे धनी-मानी लोक तकरा संग ओ छोटक विवाह मलयकेतु नामक महाराज तिनका संग ।
कालक्रमे कर्पूरावती गर्भवती भेलीह । बच्चा जन्म लेलकनि लेकिन नहि बचलनि मरि गेलनि । एहि तरहें कर्पूरावती के सात गोट पुत्र जन्म लेलकनि आ सातो मरि गेलनि । ओ लोकनि परम दुःखी रहैत छलीह ।
जेठ जे कन्या शीलावती हुनको सात टा पुत्र जन्म लेलकनि आ सातो जीवित छलनि । शीलावती के सेहो कर्पूरावतीक सातो पुत्रक मृत्यु के देखि बड़ संताप हो‌इत छलनि ।
एहि दुःख सँ कर्पूरावती जिमूतवाहन व्रतक दिन खाट पर सुतल छलीह । राजा जहन गृहवासमे उपस्थित भेलाह तँ जिज्ञासा कयलनि – रानी कत‌ए? तहन रानी के लगमे रहय वाली खबासीन से रानी के जाकऽ कहलक जे महाराज अहाँके तकैत छथि । रानी खबासीन द्वारा सम्वाद देलनि जे कहुन गऽ जे शयनागार मे छथि । तहन राजा आबि जिज्ञासा कयलनि “प्रिये ! एना कि‌ऐक सुतल छी” तहन ओ जवाब देलनि “सुखे सुतल छी” । राजा कहलनि “प्रिये उठू !” ताहि पर कर्पूरावती कहलखिन “अहाँ यदि हमरा संग सत्त करब तँ उठब नहि तँ नहि उठब” राजा कहलनि “अवश्य करब” । तहन रानी राजा सँ तीन बेर सत्त कराबौलनि ।
सत्त कयलापर कर्पूरावती ओछा‌ओन सँ उठलीह आ कहलनि जे हमर जे बहिन शीलावती तकर सातो पुत्रक गरदनि कटा हमरा मँगा दिय । तखन राजा पृथ्वीके ठोकैत कान धरैत कहैत छथि “पापिन एहन बात अहाँ कियक बजलहुँ” एहि तरहें बेर-बेर कहलो पर हुनकर कोनो प्रत्युत्तर नहि सुनि हुनकर आज्ञा के स्वीकारि लेल । तहन राजा कहलनि काल्हि अहाँ के सातोटा सिर अनाकऽ द’ देब । कर्पूरावती हुनकर वचन के सत्य मानि जिमूतवाहनक पूजा क‌एल ।
तहन राजा अपन सत्यक रक्षा हेतु चण्डाल के बजाय आदेश देल “महामत्तक जे सातोटा पुत्र तकर गरदनि काटि कर्पूरावती के आनि दहुन ।” ओ प्रातः काल सातोटा मूरी आनि क‌ए द‌ए देलक । ओकरा देखि कर्पूरावती अति प्रसन्न भेलीह ।
कर्पूरावती ओ सातो मूड़ी के सात गो डाली मे पीयर कपड़ा मे बान्हि सातो पुतहुक पारणा लेल शीलावतीक ओतय पठा देलनि ।
शीलावती द्वारा निष्ठापूर्वक जिमूतवाहनक पूजाक ओ सातो डाली मुँहक जे मुण्ड से ताड़क फल भऽ गेल आ सातो बालक जीवित भऽ गेलाह । ओ सातो अपन घोड़ा पर चढ़ि अपन घर अ‌एलाह । सातो भाय स्नान-ध्यान कऽ अपन -अपन पत्नी लग पहुँचलाह तँ सातो पुतहु अपन-अपन स्वामी के मौसी द्वारा पठा‌ओल ताड़क फल देखय देलक आ कहलक जे अहाँक मौसी पारणा लेल पठौलनि अछि ।
ओम्हर कर्पूरावती शीलावतीक सातो पुत्रक वधक शोकाकुल कानब सुनक जे आनन्द तकर प्रतिक्षा मे बैसल छलीह । जहन कानब नहि सुनलनि तखन जिज्ञासा लेल पुनः दासी के पठा‌ओल । दासी ओहिठाम सँ आबि सब समाचार सुनेलक । समाचार बुझि अति दुःखी भेलीह । तखन राजासँ जिज्ञासा कयलनि “हे महाराज ! काल्हि जे अहाँ शीलावतीक सातो बालकक सिर आनि कऽ देने रहि से ककरो दोसरक छलैक ?”
राजा उत्तर देल-“प्रिय ! अहाँक सोझामे ओ सातो मुण्ड राखल छल तहन एहन प्रश्न कि‌एक करैत छी ”
रानी ताहि पर कहलनि “हमहूँ ओकरा सब के देखलियै तँ आश्चर्य भेल । ओ सब कोना जीवित भेल ?”
ताहिपर राजा कहलनि “हे प्रिये ! अहाँक बहिन पूर्व जन्म मे सत-व्रतक पालन कयने छथि जकर प्रभावसँ हुनकर सातो पुत्र जीवित भय गेलनि आ अहाँ ओहन व्रतक पालन नहि क‌एने छलहुँ जाहिसँ अहाँक पुत्र सब मरि-मरि गेल आ अहाँ दुःखी हो‌ईत गेलहुँ ।
राजाक मुँहसँ ई बात सुनि कर्पूरावती गुम भऽ ठाढ़ि रहलीह । अगिला बर्ष जिमूतवाहन जाहि दिन छलैक ओहिदिन अपना दासी के पठेलखिन महामत्तक जे स्त्री शीलावती तिनका ओहिठाम । ओ जाकऽ हुनका कहलनि जे रानी कहलनि अछि जे इ जे आ‌इ दुनू गोटे एके संग पूजा करब आ कथा सूनब ।
तकर उत्तर शीलावती देलनि जे कर्पूरावती महारानी छथि हुनका सँ ई पूजा करब आ कथा सूनब संभव नहि छनि ।
दासी ओहिठाम आबि रानी के कहलनि । ताहि पर कर्पूरावती कहलखीन हुनका सातटा बालक छनि तकर गुमान छनि । प्रातः काल संग-संग पारणा करक लेल दासीकेँ पठेलनि । दासी पुनः आबि कहलकनि “ओ कहलनि जे हम दुनू गोटे एक संग पारणा नहि क‌ए सकैत छी ।
ई सुनि जेना रानी के देहमे आगि लागि गेलनि । ओ खरखरिया मंगा पारणा के जावन्तो समान लय शीलावतीक ओहिठाम पहुँचलीह । ओहिठाम पहुँचलापर ओ पानि ल‌ए पैर धो‌आ आसन पर बैसा तखन पुछलखिन “अहाँ एहिठाम कोना पहुँचलहुँ ?” तकर उत्तर कर्पूरावती देलनि हम अहाँ संग मिलि कऽ पारणा करब ।
तकर जवाब शीलावती देलनि “हम अहाँ संग एकठाम पारण नहि करब । अहाँ राजाक जे राजभोग से करू आ आबो दुष्टताक त्याग करू”
कर्पूरावती तैयो थेथर जकाँ कहलथिन-“आ‌इ हम अहाँ संग मिलिये कऽ पारण करब ।”
शीलावती ई सुनि जे आब ई मानयवाली नहीं अछि, पारणाक ओरि‌आ‌ओन मे लागि गेलीह आ कहलनि जे आब अहाँ हमरा संग मिलि अवश्य पारण करू ।
तखन शीलावती कर्पूरावती के कहलनि जे पहिने अहाँ हमरा संग नर्मदा तट पर चलू । दुनू गोटे ओहिठामसँ जा नर्मदा मे स्नान कयलनि । स्नानोपरांत शीलावती कर्पूरावतीसँ प्रश्न कयलनि “कि अहाँ के पूर्वजन्मक बात किछु स्मरण अछि ।” कर्पूरावती नहि कहलनि तहन शीलावती कहय लगलखिन- “यैह नर्मदा नदी अछि । यैह बाहुलुटा मरुभूमि अछि । आ यैह विशाल पाकड़िक गाछ अछि । पूर्व जन्म मे हम चिल्होरि छलहुँ अहाँ गिदरनी । एहि पाकरिक धोधरीमे अहाँ निवास करैत छलहुँ आ डारिपर हम । एहिठामक नगर निवासिनी महिला लोकनि जिमूतवाहनक व्रत क‌एने छलीह । एतय आबि ओ लोकनि पूजा कयलनि आ कथा सुनलनि । हम अहाँ दुनू गोटे व्रत क‌एने रहि । हमहुँ दुनू गोटे हुनके सभ लग मे कथा सुनलहुँ । कथा सुनि अपन-अपन निवास स्थान मे चलि गेलहुँ । ओहि दिन एहि नगर के जे सेठ तकर एकमात्र पुत्रक देहावसान भय गेलैक । ओ बन्धु बान्धव संग आबि चिता रचि संस्कार दय चल जा‌ईत गेल । मध्य रात्रिमे अहाँ हमरा जिज्ञासा क‌एलहुँ । प्रिय चिल्हो ! जागल छी कि सुतल ? अहाँ थोर-थोर कालपर कैक बेर जिज्ञासा कयल हम जवाब दैत गेलहुँ । परन्तु अहाँ हमर बात नहि सुनलहुँ । तखन अहाँ जिज्ञासा के देखि देखि हम चुप्पी लगा देलहुँ । तहन अहाँ हमरा सुतल बुझि अपन धोधरि सँ निकलि मुँह सँ नदी सँ पानि आनि चिताके आगि मिझा पहिने भरि पेट माँस खयलहुँ आ तखन किछु आनि प्रातः कालक पारणा लेल सेहो राखि लेल ।
प्रातः भेने जहन अहाँ हमरा पारणा लेल कहलहुँ तँ रातुक जे वृतांत हम अहाँ के देखने रहीं तँ उदास मन हम कहलहुँ – अहाँ करु हम कयलहुँ । तखन हम ग्रामीण महिला लोकनि द्वारा देल गेल अक्षत आ अंकुरी ल‌ए पारणा कयलहुँ आ अहाँ जे रातुक नर माँस रखने रही से ल‌ए पारणा कयलहुँ ।
ई सब बात हमरा बुझल अछि आबिकऽ देखि लिय । ई कहि कर्पूरावतीक हाथ ध‌ए शीलावती ओहि पाकरीक धोधरि मे लय जा नर माँस आ हड्डी आ शेष मांस देखेलनि ।
तखन कर्पूरावती के शीलावती कहलखिन “व्रत भंगक दोष सँ अहाँक पुत्र सब मरैत गेल आ अहाँ दुःखी हो‌ईत गेलहुँ । हम नियमपूर्वक व्रतक पालन कयलहुँ तकर फलस्वरूप हमर सब पुत्र जीवित अछि आ हम प्रसन्न छी । तें हमरा अहाँमे विरोधाभासो अछि ।
कर्पूरावती पूर्वजन्मक वृतांत शीलावती सँ सुनि ओहिठाम अपन शरीरक त्याग क‌ए देल । शीलावती ओहिठाम सँ धूमि घर एलीह । राजा अपन पत्नीक श्राद्ध कर्म क‌ए निश्चिंत भऽ राज चलावय लगलाह । ओ‌एह जिमूतवाहनक पूजा आ‌ई तक मृत्यु भवनमे लोक अपन सन्तानक दिर्घायुक कामनासँ करैत आबि रहल छथि । एहि व्रत के नियमानुसार करय वाली सब तरहें भरल-पूरल रहैत छथि । ई कथा सुनि कर्पूरक दीप जरा आरती कऽ पूजित देवताक विसर्जन करा दियनि । ईति ।
साभार – छठ पूजा डाट काम

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Comments 3

  1. Dr. Shashidhar Kumar says:
    14 years ago

    जितिया तऽ आयल पर चौरचनक खबरि नञि ?

    Reply
  2. SUNIL says:
    13 years ago

    सर चौरचनक खबैर सहो अछि, एही लिंक पर देखल जाओ
    http://www.esamaad.com/regular/2012/09/8924/

    Reply
  3. Satish says:
    12 years ago

    बहुत निक संवाद

    Reply

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