छठि क मौका पर समस्त बिहारक एक प्रकार स संस्कार बदलि जाइत अछि। दू दिनक इ बदलल संस्कार अगर स्थायी भ जाए त बिहार दुनिया क सबस संस्कारी समाज भ जाएत, मुदा इ संभव नहि भ सकल अछि। समाजशास्त्री लोकनि कए कहब अछि जे हर पर्वक एकटा विशेषता होइत अछि आ छठि क विशेषता अछि जे इ लोकक संस्कार बदलि दैत अछि। जेना होली क हुड़दंग देखि गंभीर लोक सेहो ओहि मे शामिल भ जाइत छथि, तहिना छठि क मौका पर असंस्कारी सेहो संस्कारी भ जाइत अछि। छठ महापर्व पर माहौल बिना कोनो पहल केने पवित्र भ जाइत अछि। घरक चिनवार स ल कए पोखरिक घाट तक सूचिताक एहन प्रमाण आन दिन भेटब सपना अछि। जाहि सडक पर आन दिन गंदगीक अंबार रहैत अछि, ओहि सडक कए साफ करबा लेल एक दोसर स प्रतियोगिता होइत रहैत अछि। सेवा भाव अपने मुखर भ जाइत अछि आ लोक अधिकार स बेसी कर्तव्य दिस ध्यान दैत चल जाइत अछि। पूजा समिति क कार्यकर्ता होएथि या सरकारी अधिकारी एहि दू दिन हिनक विनम्रता देख हृदय गदगद भ जाइत अछि। आम जन मे उत्पन्न जिम्मेदारी क बोध पूरा समाज कए स्वरूप बदलि दैत अछि। इ बदलल स्वरूप देखि इच्छा प्रबल होइत अछि जे एकरा स्थायित्व प्रदान कैल जाए। छठ पर प्रशासन चैतन्य रहैत अछि, आम जन क व्यवहार आदर्श भ जाइत अछि आ पूजा समिति क कार्यकर्ता क दमदार भूमिका हुनक उपयोगिता कए प्रमाणित करैत अछि। आम लोक क सोच एतबा बदलि जाइत अछि जे बिना कोनो कानून आ निर्देश कए ओ अपन भूमिका मे बदलाव करि लैत छथि। जे लोक छठि व्रत नहि होइत छथि ओ व्रति लेल बाट छोडि दैत छथि। इ ओ लोक छथि जे आन दिन मरैत मरीज कए ल जाइ वाला एंबुलेंस लेल सेहो बाट छोडबा लेल तैयार नहि होइत छथि। अपन सामाजिक जिम्मेदारी कए पूरा करबा लेल लोक अपन बच्चा क संग दोसर बच्चा कए सेहो पटाखा स बचबाक आ एम्हर-ओम्हर नहि जेबाक नसीहत दैत रहैत छथि। बिना कोनो सूचना पट देखने लोक स्वत: जूता, चप्पल उतारि घाट पर जाइत अछि। बिना कोनो अनुरोध क घाट पर बालू मे फंसल गाडी कए धक्का देबा लेल सामने अबैत छथि। आखिर लोकक व्यवहार मे एतबा विनम्रता कोना अबैत अछि। आम जन आओर समिति क कार्यकर्ता क संग प्रशासनिक अधिकारीक एहन आदर्श व्यवहार कोना भ जाइत अछि। अगर इ छठि मैया क प्रभाव छी त नीक होएत जे इ संस्कृति स्थायी भ जाए।
बहुत मत्वपूर्ण सवाल अछि ई जे धार्मिक उत्सव ओ त्यौहार क’ इस्तेमाल सामाजिक समस्याक प्रति जनजागृति के लेल केना कैल जाय? एहि लेल ज़रूरी अछि जे एकता सुचिंतित परियोजना पर धीरतापूर्वक कार्य कैल जाय।