बिहारशरीफ (नालंदा)। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय क मुख्य द्वार। दुपहरिया क 12 बजैत अछि। एक टा थाई पर्यटक टूटल-फूटल हिंदी मे द्वारपाल स नालंदा विश्वविद्यालय क स्थापना काल पूछैत अछि। जवाब भेटल, भीतर जा कए देखू-बुझू, हमरा पता नहि अछि। आब पाछू चलू। सातवीं सदी क प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग नालंदा विश्वविद्यालय क शिक्षण प्रणाली कए देखबाक-बुझबाक आकांक्षा ल कए एहि ठाम आएल छलाह। हुनका सेहो विश्वविद्यायल मे प्रवेश क पहिने मुख्यद्वार पर तैनात द्वारपाल क कठिन प्रश्न क उत्तर दिए पड़ल छल। ह्वेनसांग नालंदा क इतिहास लिखबाक क्रम मे विश्वविद्यालय क एहि परंपरा क उल्लेख सेहो केने छथि। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण क आधिकारिक पुस्तक मे लिखल अछि जे शास्त्रार्थ मे शीघ्र ख्याति प्राप्त करबाक आ शंका क समाधान चाहबा लेल विद्वान नालंदा विश्वविद्यालय अबैत छलाह। सर्वप्रथम हुनकर सामना द्वारपाल क भूमिका मे ठार द्वारपंडित स होइत छल, जे हुनकर योग्यता परखबा लेल किछु कठिन प्रश्न करैत छल। प्रश्न क उत्तर नहि देनिहार विद्वान कए प्रवेश द्वार स लौटा देल जाइत छल। शैक्षणिक स्तर क अंदाजा एहि गप स लगाइल जा सकत अछि जे औसतन दस विद्यार्थी मे स दू-तीन टा कए विश्वविद्यालय मे अध्ययन क लेल प्रवेश भेटैत छल। ह्वेनसांग लिखैत छथि जे एहि विश्वविद्यालय मे बौद्ध धर्म क महायान आ हीनयान सम्प्रदाय क धार्मिक ग्रंथ, हेतु विद्या, शब्द विद्या आ चिकित्सा विद्या (आयुर्वेद) क पढ़ाई होइत छल। नालंदा विवि क अतीत आ वर्तमान क व्यवस्था क इ चित्रण वस्तुस्थिति दर्शेबा लेल काफी अछि। स्पष्ट अछि जे अतीत क प्रशासनिक व्यवस्था आई सेहो अनुकरणीय अछि। प्राचीन विवि परिसर मे जानकारी क संग सुरक्षा क सूत्र वाक्य लागू करबाक दरकार अछि। वर्तमान संदर्भ मे इ आओर प्रासंगिक भ गेल अछि। वैश्विक स्तर पर नालंदा विवि क पुनरप्रतिष्ठा क प्रयास कएल जा रहल अछि। नालंदा जिला कए पर्यटन क क्षेत्र मे अंतरराष्ट्रीय मानक क अनुरूप ढालबाक मुहिम कए आकार देबा लेल मुख्यमंत्री अपने राजगीर मे टेंट गाडऩे छथि। आई भेल कैबिनेट मे लेल फैसला स उम्मीद जगल अछि जे ओ दिन दूर नहि जखन नालंदा क द्वारपाल एक बेर फेर अपन विद्वता परिचय देबा लेल ठार भेटत। शुरुआत, शिक्षित आ जानकार द्वारपाल क नियुक्ति स भ सकैत अछि। अंगरेजी क एकटा प्रचलित कहावत अछि – फस्ट इंप्रेशन इज द लास्ट इम्प्रेशन।