मंचित होएत चन्द्रनाथ निर्देशित जानकी परिणय
नई दिल्ली । 6 फरवरी क सांझ 6 बजे जखन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय क सभागार क परदा उठत त मैथिली क इतिहास मे एकटा स्वर्णीम पन्ना जुड़ि जाएत । जी हाँ, 6 फरवरी क सॉंझ मैथिली फेर से एकटा नव इतिहास लिखत । पहिल बेर भारतीय रंग महोत्सव मे कोनो मैथिली नाटक क मंचन होएत । मैलोरंग निर्देशक आ मैथिली एक्टीविस्ट ‘प्रकाश झा’ क अथक प्रयास आखिर सफल भेल आ मैथिली कए भारंगम मे जगह भेटल । एहि महोत्सव मे मैथिली नाटक ”जानकी परिणय” क मंचन होएत जे मुख्य रूप से सीता राम विवाहक कथा प्रसंग अछि जेकरा कला रूप मे प्रस्तुति कैल जाएत ।
मैथिली लोक रंग क स्थापना सन् 2005 भेल छल एकर मूल उद्येश्य मिथिला क्षेत्र मे व्याप्त अमूर्त सांस्कृतिक विरासत आ विविध सांस्कृतिक परम्परा ( जेना – कथासंकीर्तन, नटुआनाच, रसनचौकी, पमरिया, कीर्तनिया, विदापत, जटजटिन आदि ), मिथिला चित्रकला, नाट्यकला; आ एहने विधा स जुड़ल शिल्प आदि कए अनुशंधान, संरक्षण, संवर्धन, प्रशिक्षण, प्रसारण आ हुनकर प्रलेखण अछि । मिथिलाक अमूर्तकला आ सांस्कृतिक उपक्रम कए आधुनिकताक अंधानुकरण से सुरक्षित रखिकए विश्व फलक पर एकर उपस्थिति कए अंकित करबाक लेल प्रतिबद्ध प्रतिष्ठाण अछि । विगत साल मे मैथिली लोक रंग भारत क विभिन्न शहर आ महत्वपूर्ण महोत्सव मे अपन गरिमामयी उपस्थिति त दर्ज करेने अछि संगे पड़ोसी देश नेपाल मे सेहो समय समय पर भागिदारी दैत रहल अछि । वरीष्ठ रंगकर्मी श्री प्रकाश झा क मार्गदर्शन मे मैथिली लोक रंग अपन कार्य पद्धति वा सक्रियता स किछुए साल मे राष्ट्रीय छवि स्थापित कए चुकल अछि ।
जानकी परिणय प्रस्तुति मे मुख्य रूप से सीता राम विवाह प्रसंग कए कथा संकीर्तन कलारूप मे प्रस्तुत कैल जाएत अछि । मिथिला मे कथा संकीर्तन क परम्परा आदिकाल से चलल आबि रहल अछि । संस्कृत नाटकक अवसानक बाद संस्कृत भाषा कए मैथिली मे चलल आबि रहल कथा संकीर्तन क परम्परा कए संग समावेशित कैल गेल । एहि दुनू क समंवय से मिथिला क समृद्ध नाट्य परम्परा कीर्तनिया नाट्यक जन्म भेल छल । कीर्तनिया नाट्य शैली मे संवाद प्राय: संस्कृत भाषा मे आ संगीत मैथिली भाषा मे वा प्रस्तुति कथा संकीर्तन क रूप मे शुरु भेल । मिथिला मे इ प्रयोग एतेक सशक्त भेल कि कीर्तनिया नाट्य परम्परा अखैन धरि अपन मजबूत उपस्थिति बनेने अछि । ओना आइयो प्राय: सभटा जनपद मे कथा गाबय क परम्परा कोनो – न – कोनो रूप में विद्यमान अछि । मुदा, सभ क्षेत्र मे इ अपन – अलग रूप अख्तियार केने छल । मुदा, मिथिला मे कथा संकीर्तन क परम्परा एकरा स भिन्न अछि ।
कथा संकीर्तन शैली मे प्राय: कोनो पौराणिक कथा कए मूल कथ्य क रूप में लेल जाएत अछि । अभिनेता अपन सभटा संवाद अपने कवित्त रूप मे नृत्य करैत गाबैत अछि, फेर ओकरे संवादो मे बाजैत अछि । इ एकटा मोहक आ उर्जावान प्रस्तुति होएत अछि । एकरा मे मूल गायक व्यास से संज्ञापित होएत अछि । व्यास क किछु सहायक होएत अछि, जे मूल गायकक संग संवाद क रूप मे गायन करैत अछि । गायक क संग वाद्ययंत्रवादक क मण्डली होएत अछि । किछु अभिनेता होएत अछि, जे स्वरूप कहाबैत अछि, जेकर काज व्यास क गायन कए दृश्यबंद रूप मे प्रस्तुत करब होएत अछि । सखी क रूप मे अभिनेता गायन क संगे अभिनय सेहो करैत अछि ।
मिथिला कथा संकीर्तन मे कैक तरहक विशेषता अछि । एहि मे अभिनेता अपन तीनू कलाक प्रदर्शन करैत अछि – अभिनय, गायन आ नृत्य । रंगप्रशिक्षण क लेल इ एकटा अप्रतिम विधा अछि ।
एहि कथा संकीर्तन क निर्देशक छथि गौसनगर निवासी मुख्य कथा व्यास चन्द्रनाथ चौधरी । श्री चौधरी सत्तर क उम्र मे सेहो अपन गायकी कए लए ओतने उर्जावान अछि, जतेक अपन युवाकाल मे छल । गायन मे हुनका रूचि बचपने से छल । बिहारक मधुबनी जिला अंतर्गत खिरहर ग्राम निवासी पण्डित हरिदास महात्मा जी से ओ कथा गायन क प्रशिक्षण लेलथि । लगभग बीस साल तक पं. हरिदास महात्मा जी क संग कथा संकीर्तन क बारिकी कए बुझलथि, फेर महावीर मानस मण्डली नाम स स्वतंत्र संगठन सेहो स्थापित केलथि । पं. चन्द्रनाथ चौधरी जी कैकटा युवा कए कथा संकीर्तन विधा से जोड़लथि । रवीन्द्र चौधरी हिनकर प्रिय शिष्यों मे से एक छथि । हिनकर पुत्र सुनील चौधरी जी सेहो एहि विधा मे लागल छथि । सम्पूर्ण मिथिला क्षेत्रक विभिन्न ग्रामांचल मे अपन प्रस्तुति तो ओ देने छथि संगे दरभंगा, जनकपुर (नेपाल), जामनगर, महाराष्ट्र, गुजरात आदि शहर मे सेहो कथा संकीर्तन क प्रस्तुति देने छथि । मिथिला समाज मे संत परम्परा क प्रचारक रहल पं. चन्द्रनाथ चौधरी लगातार नौ दिन / पन्द्रह दिन तक नवाह आयोजन करैत रहैत छथि । अपन मातृभूमि मिथिला वा कथा संकीर्तन विधा क प्रति श्री चौधरी आत्म समर्पित छथि ।
जानकी परिणय ( कथा संकीर्तन ) पात्र परिचय एना अछि
व्यास : पं. चन्द्रनाथ चौधरी
अभिनय दिग्दर्शन : मुकेश झा
गायन सहायक : सीताराम चौधरी, देवेन्द्र चौधरी, मुनमुन ठाकुर, दिनेश मिश्र राजीव रंजन, दीपक ठाकुर, पुष्पा झा, रानी आ ज्योति झा.
सखि : रवीन्द्र चौधरी, कृष्णचन्द्र चौधरी, संतोष कुमार, मनोज पाण्डेय, ऋतुराज, संजीव, नितीश आ अमित
स्वरुप : अमरजीत राय, निखिल कुमार, प्रवीण कुमार आ अनिल मिश्रा.
वाद्य यंत्र : हारमोनियम : चन्द्रेश्वर चौधरी. नाल : रामशंकर चौधरी, कृष्णचन्द्र चौधरी. ऑर्गेन : कृष्णचन्द्र चौधरी. तबला : रामशंकर चौधरी.
प्रकाश व्यवस्था : श्याम साहनी
प्रचार – प्रसार : दीपक यात्री, आ संजीव ‘बिट्टू’.
मंच सज्जा : अमरजी राय, आ दीपक ठाकुर.
वस्त्र विन्यास : अमरजी राय, बिन्दु चौहान आ नीरा कुमारी.
मुख सज्जा : सत्या मिश्रा, मुकेश झा आ पुष्पा.
नृत्य संयोजन : रमण कुमार आ पूजा प्रियदर्शनी.
प्रस्तुति नियंत्रण : मुकेश झा आ कौशल कुमार
मंच प्रबंधन : मनोज पाण्डेय, आ मायानंद झा,
प्रस्तुति नियंत्रण सहायक : दीपक यात्री, ज्योति झा, आ रमण कुमार.
प्रस्तुति पर्वेक्षक : डॉ. कमल मोहन चुन्नू आ अनुराधा झा.
प्रस्तुति संयोजन : प्रकाश चन्द्र झा.