“विकास क लेल स्ट्रैटजी (startege) क चिंतन तखन धरि उचित आ प्रभावकारी नहि भ सकैत अछि जखन धरि हम ह्रास क लक्षण, प्रवृति, समाज मे ओकर उत्पति आओर प्रभाव क कारण कए नहि बुझि लैत छी। ह्रासोन्मुखी प्रवृति पर काबू पेने बिना विकास क सबटा योजना निरर्थक भ जाइत अछि। ज्ञात हुए जे 1950 क दशक मे कोन स्वप्न क संग कम्यूनिटी डेवलपमेंट प्रोजेक्ट प्रारम्भ भेल छल। मुदा अहां सब जनैत छी जे 20 सालक भीतर ओकर की हश्र भेल। ह्रासोन्मुखी प्रवृति काबू पेबा लेल ओकरा बूझब पडत, विश्लेषण करए पडत, ओकर जड़ तक पहुंचए पडत – आओर इ काज केवल इतिहासकार करि सकैत छथि। हमर दृष्टि स इ बहुत उचित आओर तर्क संगत अछि। हम मानैत छी जे ह्रास प्रसंग शोध स विकास यात्रा कए सही दिशा भेटत।”
हेतुकर झा
ऐतिहासिकता (historicity), इतिहास बोध (sense of history) आ “आधुनिक इतिहास” लेखन (modern historiography) क प्रसंग पश्चिम क विद्वान क बीच चिन्तन 18म सदी स प्रारम्भ भेल।1 इनलाइटेन्मेंट (Enlightenment ) क मूल सिद्धान्त “ऐब्सट्रैक्ट लॉज” (abstract laws) जाहि मे सामाजिक विभिन्नता आओर ओकर इतिहास क उपेक्षा निहित छल2, क विरूद्ध जर्मनी क प्रसिद्ध चिन्तक जे.जी. हर्डर (J.G. Herder) 1774 ई. मे इतिहास क प्रासंगिकता आओर प्रधानता क पक्ष मे अपन पुस्तक – ए फिलासफी ऑफ हिस्टरी फॉर द एजुकेशन ऑफ ह्यूमैनिटी ( A Philosophy of History for the Education of Humanity) क जरिए तर्कपूर्ण विचार प्रस्तुत केलथि – एहि स इतिहास क पक्ष मे विद्वान सबहक सोच आगू बढ़ल। फेर रोमान्टिसिस्टस (Romanticists) विचार धारा बाला, उत्तरकालीन कान्ट क आदर्शवाद (post-Kantian idealism), आओर मध्य 19म सदी क डार्विनिज्म (Darwinism), सब, एक कए बाद दोसर, कए सम्मिलित प्रभाव स ऐतिहासिक दृष्टि क सामाजिक सत्यता प्रसंग औचित्य क, सार्थकता क पुष्टि होइत गेल आओर हिस्टोरिसिज्म (historicism), अर्थात् सामाजिक सत्यता क व्याख्या ऐतिहासिक आधार पर करबाक गप सामने आयल।3 19मं सदी क अन्त तक तीन प्रकार क हिस्टोरिसिज्म (historicism): नैचुरिलिस्टिक (naturalistic), मेटाफीजिकल (metaphysical) आओर एस्थेटिक (asthetic) हिस्टोरिसिज्म आ प्रसिद्ध ऐतिहासिक चिन्तक रैन्के (ranke) स प्रेरित ऑब्जेक्टिव (objective) इतिहास क धारासब दृष्टिगोचर छल। रैन्के क दृष्टि मे इतिहासकार क काज मात्र ऐतिहासिक ”फैक्ट्स“ (facts) क शोध, संचयन, संकलन तक सीमित छल – ओकर मूल्यांकन क नहि। 20म सदी क आरम्भिक काल मे समाजशास्त्र क दूटा प्रधान संस्थापक – मैक्स वेबर4 आओर दुरखाईम5 इतिहास आओर समाजषास्त्र क अन्योन्याश्रय सम्बन्ध दिस इशारा केलथि। मियेनेके आ क्रोचे सन इतिहास-चिन्तक वर्तमान क प्रश्न आ समस्या क सन्दर्भ मे इतिहास अन्वेषण, मूल्यांकन आ परीक्षण कए स्थापित केलथि – नैचुरलिस्टिक हिस्टोरिसिज्म क तहत इ सबटा झुकाव इतिहास आओर समाजशास्त्र कए एतबा लग आनि देलक जे 1920 कए दशक स जर्मनी मे हिस्टोरिकल सोशियोलोजी विकसित हुए लागल। एकर तहत टेलियोलौजिकल (teleological), इवोल्यूशनरी (evolutionary) आओर केवल कोनो एक आधार पर आश्रित इतिहास कए हिस्टोरिकल सोशियोलोजी या सोशियोलोजिकल हिस्टरी मे कोनो जगह नहि देल गेल।6 मुदा नाजी ताकत क वर्चस्व स 1930 क दशक मे इ जर्मनी मे समाप्त भ गेल।
फेर फ्रांस मे एहि दशक स मार्क ब्लॉच, फेब्रे आ फरनैंड ब्रॉडेल सन एन्नेल्स स्कूल क इतिहासकार – चिन्तक सब अपन विश्वविख्यात कृति स उपर्युक्त विचार कए परिपक्व कैल आ ओकरा विद्वद्जगत मे प्रतिष्ठा दियौलक। संगहि इंग्लैंड मे 1940 क दशक स उभरैत ”सोशल हिस्टरी“ हॉब्सबॉम आ ई. पी. टॉम्प्सन क बहुमूल्य प्रयास आ कृति स 1970 तक अबैत- अबैत प्रतिष्ठित भेल जे फ्रांस क एन्नेल्स स्कूल क अनुसार छल। ई. पी. टॉम्प्सन क तिरूवनन्तपुरम मे आयोजित 1976 क इन्डियन हिस्टरी कांग्रेस क अधिवेशन मे देल गेल भाषण स भारत क इतिहासकार सेहो बहुत प्रेरित भेलाह।7 एहि ठाम सेहो ”हिस्टरी फ्रॉम बिलो“, अर्थात् विभिन्न श्रेणी आओर पेशा क जन समुदाय (जेकर स्थान निम्न स्तर पर रहल आ जेकर इतिहास लेखन मे स्थान नहि रहल) एहन विशाल जन-समूह कए इतिहास लेखन मे स्थान देबाक प्रवृत्ति प्रारम्भ भेल।8 1980 क दशक स सबऑल्टर्न प्रोजेक्ट क शुरूआत भेल – अहां सब जानिते छी।
इतिहास लेखन क समानान्तर समाजशास्त्र मे सेहो ओकर अनुकूल परिवर्तन होइत रहल। 1960 क दशक तक त मुख्य रूप स इ इतिहास स दूर नैचुरल साइन्शेज क मॉडेल ओकर शोध-प्रणाली, ओकर बाट क अनुयायी बनल रहल।9 मुदा, कईटा प्रसिद्ध समाजशास्त्री एहि दौर मे सेहो ऐतिहासिक समाजशास्त्र क परम्परा कायम केलथि। सोरोकिन, बान्र्स आ बेकर, जार्ज होमन्स, इत्यादि एहि सन्दर्भ मे प्रमुख रहलाह। विख्यात ऐतिहासिक समाजशास्त्री, चाल्र्स टिल्ली, समाजषास्त्र क एहि परम्परा क विकास कए तीन तरंग (waves) मे व्याख्या प्रस्तुत केलथि अछि। पहिल तरंग त उपर्युक्त विद्वान क योगदान स प्रारम्भ भेल।10 दोसर तरंग 1970 क दशक स बहुत गम्भीर आओर व्यापक रूप स उभरल। आधुनिकीकरण, औद्योगीकरण क जे प्रोजेक्ट 18म सदी क इनलाइटेन्मेन्ट क तहत प्रारम्भ भेल छल पूरा विश्व क लेल (पश्चिम क विचारक क प्रेरणा स) ओकर सबटा स्वप्न आओर वादा 20म सदी क उत्तरार्ध तक अबैत-अबैत झूठ साबित भ गेल – विश्व क एकटा छोट भाग धनी स आओर धनी होइत गेल, बाँकी पैघ भाग गरीबी मे डूबैत गेल – अन्डर डेवलपमेंट एकटा पैघ प्रश्न बनि गेल, जेकर कारण आ स्वरूप क अध्ययन लेल कईटा समाजशास्त्री ऐतिहासिक खोज दिस मुड़लथि। मेक्रोहिस्टोरिकल सोशियोलोजी क विकास भेल आओर एहि क्रम मे वैल्लरस्टाइन, माईकेल मान सन शस्त्रकार क महत्वपूर्ण योगदान रहल। संगहि समाजशास्त्र आओर इतिहास क बीच क दूरी दूर करबाक गप फिलिप एब्रम्स11(1980), चाल्र्स टिल्ली12(1980), ’सोशल हिस्टरी’ क उत्थान13 (गिडेन्स: 1981) बोर्डियो14 (1990), इत्यादि क प्रभाव स 1980 क दशक स जोर पकड़ैत गेल; जेकर फलस्वरूप तेसर तरंग क उत्थान भेल, हिस्टोरिकल सोशियोलोजी क जर्नल क प्रकाशन प्रारम्भ भेल, हिस्टोरिकल सोशियोलोजी या सोशियोलौजिकल हिस्टरी कए अमेरिका क विश्वविद्याल मे प्रतिष्ठित स्थान देल गेल।15 आइ, इ एकटा बहुत सशक्त बौद्धिक धारा क रूप मे उभरैत जा रहल अछि, जेकर तहत प्रधान तौर पर आजुक समाज मे अनेकता (diversity), उपेक्षित परम्परा, उपेक्षित ज्ञान, सामाजिक आओर आर्थिक रूप स जे निम्न स्तर पर अछि ओकर स्थिति, अनुभव आ सांस्कृतिक परम्परा, इत्यादि क ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य मे शोध आ अध्ययन करब उचित मानल गेल अछि।16 एहि प्रसंग गुरूदेव रविन्द्रनाथ ठाकुर क 1930 क दशक मे कहल गेल गप क सहज स्मरण भ रहल अछि। शान्तिनिकेतन मे एकटा विधवा अपन कन्या क विवाह शास्त्रीय तरीका स करै चाहैत छल। पंडित एकर विरोध केलथि जे नान्दी श्राद्ध विधवा नहि करि सकतीह। गुरूदेव पं. हजारी प्रसाद द्विवेदी स कहला जे हजार साल क हमार इतिहास मे इ पहिल घटना त नहि होएत – ग्रन्थ क अवलोकन करि। पंडित जी सबटा तकलथि आ एकर पक्ष आ विपक्ष मे देल प्राचीन आचार्य सबहक बचन कए गुरूदेव क समक्ष प्रस्तुत केलथि आ संगहि इ सेहो कहलथि जे विपक्ष क वचन समाज मे मान्य रहए। गुरूदेव कहला जे की पक्ष मे देल वचन क आचार्यगण हमारा लेल कम पूज्य छथि, की विपक्ष क परम्परा परम्परा अछि, पक्ष क परम्परा जेकर उपेक्षा कैल गेल ओ सेहो त हमार परम्परा छी – आजुक प्रश्न जाहि परम्परा स सार्थक अछि ओकरा इतिहास बोध मे जगह भेटबाक चाही।17 क्रोचे आ आजुक चिन्तन कए गुरूदेव स्वतंत्र रूप स 70-75 वर्ष पहिने केतबा सहज भाव स व्यक्त केने छलाह।
एखन धरि जेतबा समय हम लेलहुं अछि ओ एहि लेल जे हम आग्रह करै चाहैत छी जे एहि विषय क दिस मिथिला क ऐतिहासिक धरातल पर ध्यान देबाक चेष्टा कैल जाए। उपेक्षित वर्ग, उपेक्षित लोक (उच्च वर्ग क व्यक्ति सेहो उपेक्षित होइत अछि जिनकर योगदान जे आजुक संदर्भ मे महत्वपूर्ण अछि बिसरल जा चुकल अछि या बिसरल जा रहल अछि), उपेक्षित विचार-धारा, परम्परा, इत्यादि जे आजुक समाज क विशाल जन-समूह स सम्बन्धित अछि, एहि सबकए इतिहास, जेकरा हम सामान्य जन क इतिहास (people’s history) कहि सकैत छी, तैयार भ सकैत अछि। अहां जनैत छी जे भारत क कईटा अन्य भू-भाग क तुलना मे एहि क्षेत्र पर शोध कम भेल अछि। आवश्यकता अछि जे शोध हुए आ ओहन शोध जे समाजशास्त्रीय आ ऐतिहासिक सम्पूर्णता (totality) क अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त शोध प्रणाली पर आधारित हुए जाहि स एहि ठामक सोशल रियलिटी (social reality) क सही ज्ञान पैदा भ सकए। हम मानैत छी जे अहां एहि गप स अवगत छी, एहि दिस प्रायः प्रयासरत सेहो होएब। मुदा, एहि दिस अहांक ध्यान बेसी स बेसी जाए ताहि लेल हम कथित सबटा शब्द स आह्वान केलहुं अछि।
आब हम अहांक ध्यान मिथिला मे 14म-15म सदी आओर ओकर बाद स उभरैत सामाजिक-सांस्कृतिक आ धार्मिक प्रवृति आ ओकर परिणाम क दिस ल जाए चाहैत छी। 14म सदी क चण्डेश्वर ठाकुर कृत राजनीति रत्नाकर क 1936 ई. मे बिहार आ ओडिशा रिसर्च सोशाईटी द्वारा प्रकाशन भेल, जेकर संपादक छलाह सर के.पी. जायसवाल। अपन ”इन्ट्रोडक्शन“ मे ओ बहुत रास गप क जिक्र केलथि। हुनकर अनुसार स भारत मे प्राचीन काल स चलि आबि रहल ”अर्थशास्त्र“ आओर ”दण्डनीति“ क परम्परा 11म सदी तक समाप्त प्राय भ गेल आओर धर्मशास्त्र क वर्चस्व बढ़ए लागल जाहि कारण स राजतन्त्र सम्बन्धित विषय क विवेचन सेहो आब धर्मशास्त्र क सिद्धान्त क आधार पर प्रारम्भ भेल।18 धीरे-धीरे मुस्लिम ताकत क अभ्युदय होइत गेल, जाहिक संक्रमण स प्रायः ओहि समय क बारे मे, जायसवाल लिखैत छथिं: “…. Important are the norms which obtained at the close of the Hindu and the beginning of the Muhammadan periods. Originality and force are on the decline……..”.19 महत्वपूर्ण गप इ अछि जे भारतीय समाज मे ब्राह्मणीय/वैदिक वर्चस्व बढ़ि रहल छल, उदारवादी दृष्टिकोण जाहि स समाज क विभिन्न सेकुलर (secular) गतिविधि, विधा आओर पेशा (occupation) कए बल भेटतहि ओ क्षीण भ रहल छल। अलबेरूनी 11म सदी मे भारत आयल छलाह; ओ सेहो इ महसूस केने छलाह जे एहि ठामक सामाजिक आओर राजनीतिक माहौल एहन भ गेल अछि जे धर्मशास्त्रीय विद्या क अतिरिक्त सेकुलर विद्या आ धारा नहि त ठहरि सकैत अछि आ नहि ये पननि सकैत अछि।20 स्पष्ट अछि जे अलबेरूनी सेहो ब्राह्मणिक/वैदिक धारा क उभरैत वर्चस्व आओर ओकर संभावित परिणाम कए अनदेखा नहि करि सकलाह। मुदा, आओर की गप भ रहल छल ओहि कालखण्ड मे एहि प्रसंगघ् हमरा एहि ठाम क विश्वविख्यात इतिहासकार रामशरण शर्मा क अनुसार उच्च वर्ण (खासकए क्षत्रिय) स नीच वर्ण क लोक सेहो विभिन्न क्षेत्र मे राजा/चीफ (प्रधान) बनि रहल छलाह, जेना जपला कऐ ”खयरवाल“ शासक, पाल राजकुल, वर्धन राजकुल इत्यादि21। एहन राजा कए समाज मे अपन राजा-पद क औचित्य (legitimacy) सिद्ध करबा लेल ब्राह्मण क सहारा लिए पडल, जे हुनका लेल एहन (झूठे) कुर्सीनामा तैयार केलथि जे हुनका प्राचीन काल क सूर्यवंशी या चंद्रवंशी प्रमाणित करैत छल।22 बी.डी. चट्टोपाध्याय क अनुसार एहन राजा ब्राह्मण क सहयोग पर निर्भर रहै लगलाह, जेकर बदला मे हुनका काफी भू-सम्पत्ति दान मे प्राप्त हुए लागल।23 एकटा दोसर प्रख्यात इतिहासविद्, डेविड शूलमन, ब्राह्मण क एहि उभरैत वर्चस्व क गप केलथि अछिं।24 प्रायः इ क्रम बढ़ैत गेल आओर के.पी. जायसवाल क अनुसार, 14म सदी तक अबैत-अबैत चण्डेश्वर इ महसूस केलथि जे एहि प्रवृत्ति क उभरला स जाति/वर्ण आ पॉलिटी क शास्त्रीय सम्बन्ध वास्तविकता मे मूलतः समाज मे विच्छिन्न भ चुकल अछि; राज्याभिषेक क गप निरर्थक अछि आओर प्रायः एहि लेल, एक तरह स क्रान्तिकारी व्यवस्था देल गेल जे राजा ओ जे प्रजा क रक्षा करए, चाहे ओ कोनो जाति या वर्ण क हुए।25 चण्डेश्वर ठाकुर अपन समय, 14म सदी क प्रख्यात विद्वान राजपुरूष (statesman) छलाह। पी.वी.काणे क अनुसार मिथिला आओर बंगाल क क्षेत्र मे चण्डेश्वर क देल गेल विचार आओर व्यवस्था क बहुत व्यापक प्रभाव पडत।26 एहि लेल शायद, आब ब्राह्मण द्वारा निर्मित झूठ कुर्सीनामा क कोनो प्रयोजन नहि रहल – एहन कुर्सीनामा कए बनेबाक कोनो उदाहरण बाद क दिन मे प्रकाश मे नहि आयल अछि- जहाँ धरि हमरा ज्ञात अछि। चण्डेश्वर क व्यवस्था कोनो जाति/वर्ण क राजा कए मान्यता प्रदान करैत गेल। बहुत विश्वासपूर्वक त नहि कहि सकैत छी, मुदा एहन प्रतीत होइत अछि जे चण्डेश्वर क एहि व्यवस्था क चलते बहुत रास जाति (जेकरा हम एखन निम्न या दलित वर्ग क मानैत छी) क लोक सेहो अलग-अलग इलाका मे राजा या चीफ (प्रधान) बनल छलाह, अपन शासन चलने छथि। 1883 ई. मे (उर्दू मे) प्रकाशित पुस्तक आईना-ए-तिरहुत मे लेखक बिहारी लाल ‘फितरत‘ अपन फील्ड सर्वे स प्राप्त सूचना क आधार पर निम्न लिखित गढ़ क अवशेष क जिक्र करैत छथि; मधुबनी जिला मे परगना हाटी आओर परगना जरैल मे राजा कठेश्वरी क गढ़ क अवषेष राजा गन्ध क गढ़ क अवशेष प. हाटी मे; राजा भर क गढ़ क अवशेष प. चखनी मे; आ परगना हावी मे दुसाध राजा क गढ़ क खण्डहर।27 1933 ई. मे प्रकाशित भागलपुर दर्पण (हिन्दी मे) मे लेखक झारखण्डी झा अपन फील्ड सर्वे क दौरान प्राप्त सूचना क आधार पर एहि जिला मे गंगा क उत्तर खासकए खेतौरी, कैवर्त आओर भर राजा/प्रधान के दुर्ग, महल आओर मन्दिर क अवशेश क जिक्र करैत छथि आ मौखिक परम्परा क चर्चा करैत छथि जेकर अनुसार खेतौरी राजा स पहिने दक्षिण भागलपुर मे नट आ दुसाध राजा क शासन छल।28 भर राजा क संग खण्डवला राज संस्थापक म.म. महेश ठाकुर क बालक अच्चुत ठाकुर कए (16म सदी मे) संघर्ष आ भर राज-परिवार क उन्मूलन क प्रसंग म.म. परमेश्वर झा लिखित मिथिला तत्व विमर्श मे एकटा विवरण अछि।29 मिथिला क इतिहासकार लेल इ एकटा आवश्यक विषय अछि जे एहन राजा/प्रधान क शासन क उत्पत्ति, ओकर व्यवस्था, ओकर प्रतिष्ठा, समाज क विभिन्न वर्ग क बीच सम्बन्ध, उत्पादन, पेशा इत्यादि क प्रसंग विस्तार स शोध करि। हम एहि ठाम मात्र एकरा समाज मे 13म-14म-15म सदी मे उभरैत उदारवाद क प्रवृत्ति क प्रमुख उदाहरण क रूप मे विवेचना करि रहल छी। पहिने जे जाति-वर्ण आधारित राजा हेबाक, अर्थात, राजसत्ता क परम्परा छल ओहि स राजनीतिक क्षेत्र (political sector) कए कोनो न कोनो हद तक स्वतंत्रता भेटल।
फेर 14म-15म सदी मे विद्यापति प्रेम क (राधा-कृष्ण क प्रेम क) गीत गौलाह, मैथिली मे इ स्थापित करैत जे देसिल बयना सब जन मिठठा। ”देसिल बयना“ मे बहुत पहिने स रचना भ रहल छल, जेना पाली मे बौद्ध ग्रन्थ क रचना भ चुकल छल, ज्ञानेश्वरी क रचना मराठी मे भ चुकल छल। मुदा, कखनो, कियो ”सब जन मिठठा“ क सैद्धान्तिक गुणवत्ता जाहिर नहि केने छलाह – प्रायः सोशियो-लिंग्विस्टिक्स (socio-linguistice) क इ प्रथम अवधारणा देनिहार विद्यापति छलाह, जे ”सब जन“ क रूचि क गप केलथि – ओकरा सिद्धान्त क रूप मे स्थापित केलथि, ”सब जन“ कए, लोक (people) कए, साहित्य क परिधि मे अनलथि। विद्यापति लोक पक्ष दिस झुकल छलाह। हुनका स पूर्व 14म सदी क पूर्वार्ध मे ज्योतिरीश्वर ठाकुर द्वारा वर्णरत्नाकर क रचना भ चुकल छल – मैथिली गद्य मे, जेकर महत्व इतिहास, समाजशास्त्र आ मानव विज्ञान क लेल बहुत विशिष्ट अछि – सोशल सर्वे क इ प्रथम कृति छी जे पूरा भारत मे (एहि प्रसंग हम अन्यत्र विवेचना करि चुकल छी।) मिथिला मे सेहो अन्य (किछु) क्षेत्र क भांति लोक भाषा/बोली बुद्धिजीवी क चिन्तन क माध्यम प्रायः सशक्त रूप स बनि चुकल छल। जाहि कारण स शायद लोक भाषा/बोली आ देव या बौद्धिक चिन्तन क भाषा संस्कृत क पक्षधर क बीच द्वन्द्व शुरू भेल। नामवर सिंह, पं. हजारी प्रसाद द्विवेदी, रामविलास शर्मा, इरफान हबीब आ जॉन इरविन क 1946 ई. क लेख ”द क्लास स्ट्रगल इन इंडियन हिस्टरी एण्ड कल्चर“ (द माडर्न क्वाटर्ली, जिल्द 1, सं. 2, लंदन) क आधार पर मानैत छी जे मध्य युग मे ब्राह्मणिक/वैदिक आ लोक मत क बीच संघर्ष या द्वन्द्व बहुत प्रखर भ गेल।30 पुराण मे वर्णित ब्राह्मण आ शूदª क लंबा संघर्ष, जेकर बारे मे रामशरण शर्मा अपन एक लेख (”द कलि एज, ए पिरियड ऑफ सोशल क्राइसिस“, अर्ली मेडिएवल इंडियन सोशाईटी, कोलकाताः ओरियन्ट लाँगमैन, 2001, पृ. 51) मे उल्लेख केने छथि, शायद एहि द्वन्द्व कए तीब्रता प्रदान केने होएत। एहि संघर्ष क दौरान संस्कृत विरोधी स्वर (ज्ञानेश्वरी क रचना प्रसंग महाराष्ट्र मे) आ भाषा विरोधी स्वर (तुलसीदास क भाषा मे लिखल रामायण प्रसंग जे मूलतः मौखिक परम्परा मे अछि) उभरल। एहन स्वर मे कोनो भाषा या विद्या क विरोध क गप नहि कैल जा सकैत अछि- गप छल भाषा या विद्या क कोनो एकटा वर्ग मे सीमित रहबा स ओहि आधार पर ओहि वर्ग क समाज मे अपन हित मे वर्चस्व बना कए रखबाक प्रयास आ ओहि वर्चस्व क दोसर वर्ग द्वारा विरोध/संघर्ष। एहि संघर्ष कए कहल गेल कतहु संस्कृत विरोधी आ कतहु भाषा विरोधी – मुदा ओकर अर्थ एहन वाक्य स नहि बल्कि ओहि मे निहित संदर्भ (वर्चस्व क राजनीति) स सही होइत अछि। वाक्य आ ओकर सही अर्थ निरूपण क प्रसंग विद्यापति अपन पुरूष परीक्षा मे (”शास्त्रविद्य कथा“ मे) बहुत सहज रूप स स्पष्ट केलथि अछि।31 इ संघर्ष नौलेज (knowledge) आ पावर (power) क संबन्ध क तहत छल। नौलेज (knowledge) आ पावर (power) क संबन्ध क इतिहास हमर ओहि ठाम अपर्याप्त अछि जाहि पर शोध अपेक्षित अछि आ जाहि स एहि प्रसंग द्वन्द्व आ संघर्ष क सही विवेचना भ सकत। नामवर सिंह जेकरा लोकमत कहैत छथि ओ लोकायत अछि। एकर परम्परा वैदिक युग स घटैत-बढै़त रहल अछि, जेकरा देवीप्रसाद चट्टोपाध्याय आ अन्य कईटा विद्वान वैदिक परम्परा क समानान्तर मानैत छथि, जाहि मे जाति-वर्ण विचार क कोनो स्थान नहि रहल, स्त्री-पुरूष क भेद सेहो नहि रहल, सबटा तंत्र परम्परा आ अन्य, (खासकए जाति-वर्ण व्यवस्था क विरूद्ध) जेतबा सेक्ट्स आ कल्ट्स छल, सबटा प्रायः एहि लोकायत परम्परा क तहत अबैत छल।32 तंत्र मार्ग क विकास विशाल जन-समूह क बीच विस्तार ल रहल छल आ बुद्धिज्म सेहो ओहि मे प्रवेश पाबि कए जन-समुदाय मे पहुँच गेल आओर फेर नाथ सम्प्रदाय क 8म-9म सदी स जे विकास भेल ओहि मे 14म सदी क पहिने तक करीब 125टा सिद्ध क नाम भेटैत अछि जाहि मे कईटा महिला छथि, खास कए जिनका हमसब आजुक दलित समूह मानैत छी ओहि जाति समूह क (द्विवेदी, हजारी प्रसाद, 1918 नाथ सम्प्रदाय, हजारी प्रसाद द्विवेदी ग्रन्थावली पौ.6, नई दिल्ली: राजकमल: 48), तेसर-चारिम सदी (ई.पू.) मे जखन उच्च वर्ण क महिला कए सेहो वैदिक परम्परा मे भागीदारी स हटा देल गेल त ओ सेहो कालक्रम स तांत्रिक परम्परा कए स्वीकार करैत गलीह। 14म-15म सदी तक अबैत-अबैत विभिन्न धार्मिक मत क संघर्ष (जे हिंसा पूर्ण नहि छल) बहुत प्रखर भ गेल। संगहि, 13म-14म सदी तक सब गोटे अपना कए ”हिन्दू“ कहै लागल, ‘हिन्दू‘ अस्मिता अपना लेलक आ पं. हजारी प्रसाद द्विवेदी क अनुसार पहिल बेर विभिन्न धार्मिक मत क माननिहार (बुद्धिज्म, जैनिज्म आ इस्लाम कए छोड़िकए) एकटा कॉमन ‘हिन्दू‘ अस्मिता स बन्धलाह – एतबा पैघ जन समूह क आधार ओहि स पूर्व कोनो एकटा, वैदिक या लोकायत परम्परा कए सेहो नहि भेटल छल।33 हिन्दुइज्म क आविर्भाव प्रसंग हम अन्यत्र विस्तार स विवेचना केलहुं अछि,34 एहि लेल एहि ठाम बेसी समय नहि लेब। केवल एतबा कहब चाहब आवश्यक अछि जे विद्यापति (हिन्दू) धर्म क व्याख्या जाति-वर्ण स ऊपर उठिकए केलथि आ ओहि व्यक्ति परक केलथि-हर व्यक्ति अपन कुल क परम्परा क निर्वाह यथा साध्य करए आ समाज मे साधारण धर्म अर्थात् हिंसा नहि करए, ककरो धन आ स्त्री स कोनो मतलब नहि राखए। विद्यापति क बाद नानक, कबीर, चैतन्य, सब सिद्धान्ततः एहि भावना क अनुसार वर्ण-जाति क विरूद्ध विचार कए प्रसार लेल चिन्हल जाइत रहलाह। उदारवादी प्रवृत्ति कए एहि तरह बल भेटैत रहल जे उच्च वर्ण क अतिरिक्त विषाल जन समूह मे पसरैत गेल।
मिथिला मे कबीर पन्थक इतिहास क गहन अध्ययन पुर्णेन्दु रंजन केलथि अछि आ ओ देखेलाह अछि जे कोना 17म सदी स एहि पन्थ कए उच्च वर्ण कए छाड़िकए अन्य निम्न आ दलित वर्ग क जन समूह अपन विचार धारा (ideology) क रूप मे स्वीकार करैत गेल।35 फ्रान्सिस बुकानन क पूर्णिया आ भागलपुर क रिपोर्ट्स (19म सदी क आरम्भ काल) मे कबीर पन्थ, नानक शाही, इत्यादि कए माननिहार क विशाल जनसंख्या (निम्न वर्ग क) क विवरण भेटैत अछि। 19म सदी क उत्तरार्ध मे रियाज-ए-तिरहुत (110 867) आ आईना-ए-तिरहुत (1883) क मोताबिक दरभंगा शहर मे प्रसिद्ध नानक शाही मठ छल। अन्य कई स्थल पर सेहो हिनकर मठ छल। इ जन समूह गाम मे अपन मुसलमान पड़ोसी क संग हिल-मिलकए रहैत छलाह, सब, सबहक पाबनि मे भाग लैत छलाह। महिला क बीच, उच्च वर्ण क महिला सेहो लोकायत क तहत विभिन्न तंत्र परम्परा कए सदी स अन्य वर्ण/जाति क महिला संग एकटा कॉमन (common) आईडियोलोजी (ideology) क निर्वाह करैत रहलीह, जाहि कारण स हुनकर बीच आपस मे बेसी जातिगत भेद-भाव नहि रहल। आइ सेहो अगर अहां कोनो उच्च वर्ण क घर क भीतर जाए त देखि सकैत छी जे हुनकर घर क महिला अन्य महिला क संग एकहि स्थान पर बिना कोनो विशेष दूरी कए अन्तरंग गप करैत छथि। 19म सदी क अन्तिम दशक मे प्रकाशित दरभंगा क भुवनेश्वर मिश्र लिखित बलवन्त भूमिहार पढ़बा स इ आओर स्पष्ट भ जाइत अछि। महिला मे विभिन्न तांत्रिक परम्परा क ज्ञान पुश्त-दर-पुश्त मौखिक परम्परा पर आधारित रहल, तांत्रिक यंत्र पर आधारित ‘अरिपन‘ क ज्ञान सेहो हिनकर बीच रहल-आहि स बेसी प्रभावित मिथिला पेंटिंग क सृजन महिला तक सीमित छल – पुरूष वर्ग मे एहि प्रसंग कोनो ज्ञान नहि छल – आब त बाजार बढबा स सब कियो एहि दिस आकर्षित भ गेलथि अछि। बहुत रास लोकगीत महिला क बीच रहल जेकरा सब वर्ण क महिला संग-संग विभिन्न अवसर पर गबैत छथि।
तात्पर्य इ अछि जे उदारवादी विचार लोकायत क अन्तर्गत विशाल जन समूह जे मुख्यतः निम्न वर्ण आओर दलित जाति समूह क छल, ओकर बीच बहुत हद तक फलैत-फूलैत गेल। एहि प्रसंग बहुत छानबीन आओर खोज क आवश्यकता अछि निश्चित तौर पर किछु कहबाक; तइयो हम यथा साध्य एहि प्रसंग जे ट्रेन्ड्स (trends) दृष्टिगोचर रहल अछि, ओकर उल्लेख केलहुं अछि। एकर विपरीत, मिथिला मे खासकए, उच्च वर्ण मे, विशेषकए ब्राह्मण मे, संकीर्ण भावना पनपैत रहल।
पहिने हम जिक्र करि चुकल छी जे के.पी. जायसवाल क अनुसार 11म सदी क बाद स धर्मशास्त्रीय पक्ष प्रबल होइत गेल। बुद्धिजीवी वर्ग जे वैदिक परम्परा क मुख्य पक्षधर छल, ओ 13म-14म सदी तक विद्या क ऊध्र्वाधर (vertical) वर्गीकरण करि देलक। समस्तरीय (horizantal) वर्गीकरण त प्राचीन काल स चलि आबि रहल छल, मुदा ओहि मे ककरो मुख्य या गौण हेबाक गप नहि छल। भारतीय परम्परा मे विद्या क वर्टीकल (vertical) वर्गीकरण क उभार क कारण, कन्डीशन्स आ परिणाम क प्रसंग हम अन्यत्र अपन एकटा लेख (श्भारतीय परम्परा मे ज्ञान क मूल्य अनुक्रमश्, आलोचना अंक – 39, अक्टूवर-दिसम्बर 2010: 40-44 ) मे विचार केने छी। एहि ठाम केवल इ कहए चाहैत छी जे कृषि आ अन्य सेकुलर (secular) वृत्ति क विद्या कए गौण स्थान देल गेल आ धर्मशास्त्र स संबन्धित विद्या कए बहुत प्रमुख मानल गेल। म.म. गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी मध्य युग क एकटा प्रचलित संस्कृत कहाबत क जिक्र करैत छथि; ”शास्त्रेषु नष्टाः कवयो भवन्ति, काव्येषु नष्टाष्च पुराण पथाः, तत्रापि नष्टाः कृषिमाश्रयन्ते; नष्टाः कृष्टेर्भागवत भवन्ति“; अर्थात्, शास्त्र (न्याय, धर्मशास्त्र, इत्यादि) क अध्ययन सर्वोपरि छल, एहि मे गौण छल काव्य शास्त्र, जाहि स गौण छल पुराण-प्रवचन; जे इ सेहो नहि करि सकैत छलाह हुनका लेल छल कृषि कार्य; आओर, जे किछु नहि करि सकैत छलाह ओ साधू भेष धारण कए घूमैत छलाह।36 ध्यान देबाक गप इ अछि जे कृषि पर पूरा समाज टिकल छल – बुद्धिजीवी वर्ग सेहो ओहि पर अपन जीवन निर्वाह करैत छलाह, मुदा एहि विद्या कए गौण बना देल गेल। हमर अनुमान अछि जे समाज एहि प्रकार स भीतर स कमजोर होइत गेल – उत्पादन पर असर भेल होएत; उत्पादन स जुड़ल वर्ग क सम्बन्ध सेहो प्रभावित भेल होएत। प्राचीन काल मे एहन गप नहि छल – सब वर्ग क लोक कृषि कार्य मे भाग लैत छलाह – जनक कए हल चलेबा (सीता जन्म प्रसंग) क जे लिजेन्ड (legend) अछि ओ ऐतिहासिक दृष्टि स सत्यता क झलक दैत अछि; कृषि विद्या क स्थान अन्य विद्या क समान छल। मुदा मध्य युग अबैत-अबैत ब्राह्मण हल छूअब पाप मानि लेलथि – कृषि विद्या उपेक्षित भ गेल। कृषि पराशर (प्रायः दसवीं सदी) क बाद कोनो पुस्तक नहि लिखल गेल। एकटा पोथी उपवन विनोद (संस्कृत मे) क प्रकाशन कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा 1984 ई. मे भेल, मुदा एकर लेखक आ हुनकर काल क विषय मे कोनो सूचना नहि अछि।
शास्त्र मे सेहो जे महत्वपूर्ण मानल गेल ओहि मे न्याय या नव्यन्याय क स्थान सर्वोपरि भ गेल। के.पी. जायसवाल क अनुसार, पहिने कहल गेल, (कि) मौलिक चिन्तन (original thinking ) क ह्रास 11म-12म सदी स प्रारम्भ भ चुकल छल- मिथिला मे इ किछु देर स भेल। भारतीय दर्शन क अन्तिम मौलिक कृति तत्व चिन्तामणि, दिनेश चंद्र भट्टाचार्य क अनुसार 14म सदी क गंगेश उपाध्याय क अछि – जाहि स कालक्रम मे मिथिला नहि, पूरा देश क बौद्धिक जगत आन्दोलित भ गेल। मुदा, ओकर बाद टीकाकार क युग आयल – पांडित्यपूर्ण टीका लिखल गेल। भट्टाचार्य क अनुसार गुरू-शिष्य क बीच लिखित बाद-विवाद क परम्परा प्रारम्भ भेल, जाहि स बहुत महत्वपूर्ण, स्वस्थ आओर ऐक्टिव (active) इन्टेलेक्चुअल (intellectual) माहौल क सृजन भेल, मुदा, 17म सदी तक अबैत-अबैत इ परम्परा विलीन भ गेल जाहि स मिथिला क बौद्धिक गरिमा करीब-करीब समाप्त भ गेल।37 बाद मे एहन पंडित क संख्या घटैत गेल। म.म. गंगानाथ झा क अनुसार 19म सदी क अन्त तक अबैत-अबैत जाहि मिथिला मे पहिने कहियो 1000 मीमांसक छलाह आब मात्र तीनटा रहि गेल छथि।38 शेल्डन पोलक संस्कृत साहित्य क इतिहास क अन्तरराष्ट्रीय ख्याति क विद्वान अछि, हिनकर अनुसार स 17म सदी क पंडितराज जगन्नाथ क बाद साहित्यिक चिन्तन (संस्कृत मे खासकए) पूरा भारत मे बहुत शिथिल भ गेल।39 हम एहि प्रसंग बेसी समय नहि लेब। अहां अन्य विद्या क इतिहास दिस झाँकब त इ पायब जे मौलिक चिन्तन क्रिया मन्द होइत गेल सब शास्त्र मे – बौद्धिक जगत ह्रास क ओर बढ़ैत गेल। संकीर्ण भावना क उदय भेला स समाज मे चलि आबि रहल बौद्धिक परम्परा सेहो 14म-15म सदी क बाद क्रमशः कमजोर (ह्रासोन्मुख) होइत गेल।
आब, कनि समाज दिस देखी। आचार्य रमानाथ झा द्वारा संपादित पुरूष-परीक्षा क इन्ट्रोडक्शन (introduction) मे लिखैत छथि जे इस्लाम क अनुयायी क आक्रमण आ प्रभुता कए देखैत अपन पारंपरिक स्वत्व आओर एक्झिस्टेंस (existence) कए अक्षुण रखबा लेल मिथिला कए 13म-14म सदी क पंडित वर्ग जन्म, संस्कार, विद्या, आदि कए ध्यान मे राखि कए निबन्ध क रचना करै लगलाह।40 जन्म शुद्धता (purity) जाति शुद्धता पर आधारित छल – एहि लेल 14म सदी क प्रारंभिक काल मे वंशावली क पंजी प्रबन्ध क आयोजन भेल। हम एहि ठाम पंजी प्रबन्ध क विशेष विवरण नहि द सकैत छी – मात्र एहि स प्रभावित सामाजिक ट्रेन्ड्स (trends) दिस अहांक ध्यान आकर्षित करए चाहब। रमानाथ झा प्रायः हमर दृष्टि स पहिने आओर अन्तिम आधुनिक विद्वान छलाह जे करीब 15 साल तक प्रख्यात पंजीकार मोदानन्द झा स पंजी पुस्तक क, पंजी क भाषा क अध्ययन केलथि, आओर जिनका पंजीकार द्वारा मान्यता सेहो भेटल। पंजी प्रसंग पर हिनके लेख क आधार पर एहि ठाम किछु गप कहि रहल छी।
एहि प्रसंग पहिल गप त इ प्रतीत होइत अछि जे जाहि मिथिला मे पहिने विद्या आओर व्यक्तित्व सबस पैघ मूल्य (value) छल, 14-15म सदी क बाद धीरे-धीरे जाति सेहो ओकर संग जुड़ैत गेल, एना सेहो कहि सकैत छी जे हावी होइत गेल। गंगेश, वर्धमान, अयाची, इत्यादि क परिचय मे ओहि समय क लेख मे मैथिल अस्मिता क उल्लेख त अछि, मुदा मैथिल ब्राह्मण क भीतर क जाति-भावना क गप नहि अछि। मुदा 17म सदी स प्रारम्भ होइत-होइत 18म सदी तक आबि कए मैथिल ब्राह्मण क अन्तर्गत श्रोत्रिय, योग्य, पंजीवद्ध आ जयवार वर्ग क वर्टिकल (vertical) वर्गीकरण सुनिश्चित भ गेल।41 श्रोत्रिय पहिने सेहो छलाह, मुदा ओ व्यक्ति विशेष होइत छलाह – कोनो जाति या वर्ग नहि, आब जातीय आधार पर भेद-भाव, जेना, विवाह, खान-पान, इत्यादि मे बढ़ए लागल। जाति स विशुद्धता (purity) क डिग्री जुड़ल छल (धर्मशास्त्रीय आधार पर) आओर धीरे-धीरे मिथिला या मैथिल हेबाक अस्मिता (identity) क पंजी मुख्य स्तम्भ या आधार भ गेल – रमानाथ झा क अनुसार।42 चूँकि मिथिला क कर्ण कायस्थ मे सेहो पंजी व्यवस्था प्रारम्भ स रहल, एहि लेल हुनका सेहो मैथिल अस्मिता मे जगह भेटल, अन्य सब वर्ग एहि आइडिन्टिटी (identity) स वंचित भ गेलाह। पंजी व्यवस्था स कर्ण कायस्थ समाज सेहो 8 श्रेणी मे बँटि गेल।43 एहि प्रकार स ब्राह्मण आओर कायस्थ क समाज क भीतर स ख्ण्ड-पखण्ड भ गेल – सामूहिक कम्युनिटी (community) क भावना शिथिल होइत गेल – अपन-अपन श्रेणी क महत्व, अहंकार सर्वोपरि भ गेल। मिथिला क प्राचीन काल स चलि आबि रहल सबटा सांस्कृतिक-बौद्धिक पूंजी एकर समक्ष मानू नतमस्तक भ गेल। एहि ठाम इ कहब आवश्यक अछि जे पंजी-पुस्तक क महत्व मिथिला क इतिहास लेल बहुत महत्वपूर्ण अछि, ओहि देल गेल ब्योरा हमारा लेल असन्दिग्ध मूल्य क श्रोत अछि। हम त सिर्फ ओकरा संग उपयोग या दुरूपयोग भेल, ओकर किछु विवरण देलहुं अछि। समाज मे इन्टर पर्सनल आओर इन्टर ग्रुप इन्टरऐक्षन्स मे धार्मिक विशुद्धता (purity) क आधार पर विभिन्न वर्टिकल (vertical) श्रेणी क प्रभाव त प्रायः अवश्य पड़ल – जेकर साक्ष्य (evidence) विभिन्न उपन्यास आ कथा मे सेहो भेट सकैत अछि। बिकौआ सन वीभत्स प्रथा 19म सदी मे कोन तरहक जाति, कुल, श्रेणी क मर्यादित मूल्य स फलल-फूलल सब जानैत छी। क्षणिक स्वार्थ पूर्ति, बिना उद्यम केने सुख क आकांक्षा, कुल आओर श्रेणी कए (विद्या और व्यक्तित्व नहि रहबा पर सेहो) बड़प्पन क आयाम मानब, पाखंड क बोलबाला, इत्यादि, अहां ओहि समय क प्रचलित शब्द, कहाबत मे ताकि सकैत छी।
एबते नहि – भौगोलिक क्षेत्र क सेहो वर्टिकल श्रेणी भ गेल। पंचकोसी क अवधारणा आबि गेल। 1915 ई. मे रास बिहारी लाल दास अपन पुस्तक मिथिला दर्पण मे एहि प्रसंग लिखैत छथि जे आब ”केवल दरभंगा जिला मिथिला क बोधक अछि, ओहि मे सेहो मधुबनी सबडिविजनान्तर्गत थाना मधुबनी, खजौली आ बेनीपट्टी टा मिथिला क परिचय विशेष रूप स दैत अछि, एहि समय मिथिला क केन्दª मधुबनी मानल जाइत अछि“।44 अन्य सबटा इलाका गौण भ गेल, प्रायः भदेस मानल जा रहल अछि।
जे लोक गंगा नदी दिस बसलाह ओ दछिनाहा कहए जाए लगलाह। एहि प्रसंग उल्लेखनीय अछि जे 1972 ई. मे प्रकाशित बड़हिया गाम (गंगा क दक्षिण तट स्थित) क ऐतिहासिक अध्ययन, मेरा गाँव, मेरे लोग क लेखक विश्वनाथ सिंह पृ. 21 पर लिखैत छथि जे बड़हिया क पुरान भूमिहार ब्राह्मण परिवार सब दिघवै मूल क शांडिल्य गोत्रीय मैथिल ब्राह्मण क सन्तान छथि। हाल मे बिहट (बरौनी) क चंद्र प्रकाश नारायण सिंह क संस्मरण (घर-आंगन और गाँव, पटना, ए. एम. एस. पब्लिकेशन्स) 2010 मे प्रकाश मे आयल। एहि मे ओ अपन वंशावली देने छथि (पृ.186-पृ.208), जेकर अनुसार स ओ वत्स गोत्र आ जलैवार मूल क छथि, हिनकर पूर्वज राको ठाकुर 16म-17म सदी मे जाले स आबि कए गंगा क निकट बसि गेल छलाह। एहि प्रकार स बेलौंचे आ अन्य मूल क मैथिल ब्राह्मण परिवार एहि कात बसैत गेल – जाहि मे बहुत त भूमिहार ब्राह्मण क अस्मिता ल लेलक आओर जे रहि गेल – मुंगेर, भागलपुर तक ओ ”दछिनाहा“ याने निम्न श्रेणी क मैथिल ब्राह्मण मानल जाए लगलाह। इतिहासकार लेल इ एकटा चुनौती अछि जे ओ अस्मिता बदलबाक परिक्रिया, कारण आओर कन्डीशन्स क शोध करथि – कोना मैथिल ब्राह्मण क किछु परिवार भूमिहार ब्राह्मण बनि गेल,
मुख्य रूप स एहि विवेचना द्वारा हम इ मानैत छी जे मिथिला मे 14म-15म सदी क बाद उच्च जाति – खासकए ब्राह्मण वर्ग मे संकीर्णता क भावना बढै़त रहल जेकर फलस्वरूप इ वर्ग जे बहुत महत्वपूर्ण वर्ग रहल – ह्रासोन्मुख (decadent) होइत गेल। मौलिक चिन्तन शिथिल होइत गेल, भीतर स खण्ड-पखण्ड होइत गेल, जातीय विशुद्धता, क्षेत्रीय विशुद्धता सांस्कृतिक आ बौद्धिक विरासत आओर चेतना पर हावी होइत गेल, क्रियेटिव पोटेन्शियल (creative potential) बहुत कमजोर होइत गेल।
एकर विपरीत समाज क अन्य निम्न वर्ग मे उदारवादी विचार धारा क प्रभाव बढ़ैत गेल – बेसी स बेसी लोक एहि दिस झुकैत गेल -मिथिला क समाज एहि दूटा विपरीत धारा स ग्रसित भ गेल, जाहि कारण स एलिट (elite) आओर मासेज (masses) मे विरोधात्मक संबन्ध बनैत गेल। अन्यत्र, हम अपन लेख ”एलिट-मास कन्ट्रैडिक्शन इन मिथिला इन हिस्टोरिकल पर्सपेक्टिव“ (सच्चिदानन्द एवं लाल, ए.के. सं.1980 एलिट एण्ड डेवलपमेंट, नई दिल्ली; कन्शेप्ट पब्लिशिंग कम्पनी, 187-206) मे एहि संबन्ध क बारे मे लिखने छी। मुदा, इ सबटा गप खास प्रवत्ति क बारे मे इशारा करैत अछि। काल खण्ड (14-15 सदी आओर ओकर बाद) काफी लम्बा अछि; सामग्री छिडियाइल अछि – आवश्यकता अछि जे गम्भीर रूप स बहुत रास इतिहासकार समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण स (intensively) इन्टेन्सिवली शोध करथि आओर अपन अध्ययन स सुनिश्चित तथ्य कए प्रकाश मे आनथि।
अहांक मन मे इ प्रश्न उठि रहल होएत जे की मिथिला क इतिहास मे विकास क कोनो लक्षण 14म-15म सदी क बाद नहि अछि, एहन गन नहि अछि – ह्रास केतबो तीब्र हुए विकास कोनो न कोनो डिग्री मे समाज क कोनो न कोनो सेक्टर मे किछु त हेबे करत। प्रश्न उठैत अछि कोन ट्रेन्ड (ह्रास क या विकास क) बेसी मुखर या सशक्त आ दृष्टिगोचर रहल अछि, दोसर गप इ जे हम केकरा विकास कहैत छी आओर केकरा ह्रास, विकास प्रसंग बहुत विद्वान (दुनिया भरि क) चिन्तन मे लागल छथि – हुनकर गप अहां तक पहुँच रहल अछि। ह्रास क प्रवृति कए हम संकुचित हेबाक प्रवृति मानैत छी जे उदारवादी दृष्टि क विपरीत अछि। संकुचित हेबाक प्रवृति स मानववादी मूल्य क उपेक्षा होइत अछि, छुदª स्वार्थ पूर्ति क मानसिकता प्रबल होइत अछि, अल्पकालिक सोच (दूरगामी दृष्टि क विपरीत) प्रभावकारी भ जाइत अछि, अपन वर्ग/जाति क सीमा चिन्तन क क्षितिज रहि जाइत अछि, इत्यादि। फेर, अहां सोचि सकैत छीं जे आइ जखन विकास क गप भ रहल अछि, विकास क मन्त्र ताकल जा रहल अछि, तखन की उचित अछि जे इतिहासकार वर्ग ह्रास (decadence) पर शोध करथि – एहि प्रसंग अपन सबटा शक्ति लगा दथि, प्रश्न बहुत उचित अछि – एहि मे कोनो सन्देह नहि। मुदा, एहि प्रसंग हम उल्लेख करए चाहैत छी जेनेट अबू-लुगहोड सन इतिहासकार क विचार। वैल्लस्र्टाइन (Wallerstein) 1974 ई. स वल्र्ड सिस्टम क विकास क प्रसंग अपन प्रोजेक्ट शुरू केलथि। हिनकर अध्ययन स अहां पूर्व परिचित छी। एकर अतिरिक्त, वल्र्ड सिस्टम पर जेनेट अबू-लुगहोड क 1989 ई. मे बिफोर यूरोपियन हेजिमोनी, द वल्र्ड सिस्टम ए.डी. 1250-1350, (ऑक्सफोर्ड यु. प्रेस, न्यूयोर्क) प्रकाशित भेल, जाहि मे ओ मध्य युग मे वल्र्ड सिस्टम ट्रेडिंग जोन जे चीन स शुरू भ कए इंडोनेशिया, भारत, अरब वल्र्ड स होइत यूरोपियन क्षेत्र तक फइलल छल क इतिहास क विवेचना केलथि। एहि अध्ययन क दौरान ओ एकटा बहुत महत्वपूर्ण इश्सू (issue) उठेलाह जे पश्चिम क विकास क्रम पर शोध करबा स बेसी महत्वपूर्ण आओर उपयुक्त अछि पूर्व (east) क ह्रास पर शोध करब। रैन्डल कॉलिन्स सन समाजशास्त्री सेहो एकरा अहम मानैत छथि।45 विकास क लेल स्ट्रैटजी (startege) क चिंतन तखन धरि उचित आ प्रभावकारी नहि भ सकैत अछि जखन धरि हम ह्रास क लक्षण, प्रवृति, समाज मे ओकर उत्पति आओर प्रभाव क कारण कए नहि बुझि लैत छी। ह्रासोन्मुखी प्रवृति पर काबू पेने बिना विकास क सबटा योजना निरर्थक भ जाइत अछि। ज्ञात हुए जे 1950 क दशक मे कोन स्वप्न क संग कम्यूनिटी डेवलपमेंट प्रोजेक्ट प्रारम्भ भेल छल। मुदा अहां सब जनैत छी जे 20 सालक भीतर ओकर की हश्र भेल। ह्रासोन्मुखी प्रवृति काबू पेबा लेल ओकरा बूझब पडत, विश्लेषण करए पडत, ओकर जड़ तक पहुंचए पडत – आओर इ काज केवल इतिहासकार करि सकैत छथि। हमर दृष्टि स इ बहुत उचित आओर तर्क संगत अछि। हम मानैत छी जे अहांक ह्रास प्रसंग शोध स विकास यात्रा कए सही दिशा भेटत।
पद टिप्पणियाँ
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भट्टाचार्य, दिनेशचन्दª 1958 हिस्टरी ऑफ नव्य न्याय इन मिथिला, दरभंगा: मिथिला इन्स्टिच्यूट ऑफ पोस्ट ग्रैजुएट स्टडीज एंड रिसर्च इन संस्कृत लर्निंग: 122-123
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पोलक, शेल्डन 2001 ”द डेथ ऑफ संस्कृत“, कम्पेरेटिव स्टडीज इन सोशाईटी एण्ड हिस्टरी, वौ. 43, सं. 2, अप्रिल: 404-405
झा, रमानाथ सं. 1960 ”इन्ट्रोडक्शन“ पू.उ.: 19
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झा, हेतुकर सं. 2005 तिरहुत इन अर्ली ट्वेन्टिन्थ सेंचुरी: मिथिला दर्पण ऑफ रास बिहारी लाल दास, कामेश्वर सिंह बिहार हेरिटेज सिरिज – 8, महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फाउण्डेशन, दरभंगा: 226
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कॉलिन्स, रैन्डल 1999 मेक्रोहिस्टरी, एस्सेज इन द सोशियोलोजी ऑफ द लौंग रन, कैलिफोर्नियाँ स्टैनफोर्ड यु. प्रेस: 5
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द्वितीय द्विवार्षिक राष्ट्रीय सम्मेलन, मिथिला इतिहास संस्थान, दरभंगा में “चैदहवीं – पन्द्रहवीं सदी और उसके बाद मिथिला की सामाजिक स्थिति: एक समाजषास्त्रीय अवलोकन” विषय पर मूल रूप स हिंदी मे देल गेल अध्यक्षीय भाषण क मैथिली मे अनुवाद करबाक क्रम मे किछु गलती रहि सकैत अछि ताहि लेल एकर संपादित अंश आगू दैत रहब- समदिया।
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Bahut gyanak aalekh, bahumulya aalekh