रंजीत कुमार
बिहार क कोसी अंचल कए जूट क खेती लेल जानल जाइत अछि। उत्पादन क लिहाज स इ इलाका पश्चिम बंगाल आ असम क बाद देश क तेसर सबस पैघ जूट उत्पादन केंद्र रहल अछि। कोसी अंचल क पूर्णिया, कटिहार, मधेपुरा, सुपौल, अररिया आ किशनगंज क कई लाख किसान लेल जूट नकदी आमदनी क प्रमुख स्रोत रहल अछि। सच त इ अछि जे कोसी क किसान लेल जूट (जेकरा स्थानीय लोक पटुआ बा पाट कहैत छथि) महज एकटा फसल मात्र नहि अछि, बल्कि जिनगी आ संस्कृति क हिस्सा अछि। एहि ठाम पटुआ क दर्जन भरि कहावत आ अनगिनत किस्सा प्रचलित अछि। एकटा कहावत क उल्लेख प्रासंगिक होएत,”ज उपजतो पाट तें देखिअ ठाठ। यैह कारण अछि जे तमाम मुश्किल आ विपरीत हालात क बावजूद इलाका क कई लाख खेतिहर आइ सेहो जूट क खेती जारी रखने छथि।
मुदा विडंबना इ अछि जे पिछला किछु साल स स्थिति लगातार जूट खेती क प्रतिकूल होइत जा रहल अछि। अगर हालात एहने रहल त ओ दिन दूर नहि जखन जूट क खेती सेहो मड़ुआ, जौ, काउन, अल्हुआ, भदई धान (जेकर कोसी अंचल मे इ खूब उत्पादन होइत छल) क जेकां कोसी क किस्सा बनि जाएत। एकर कईटा कारण अछि। सबस पैघ कारण सरकार क जूट नीति अछि, जे धीरे-धीरे किसान क रीढ़ तोडि देलक । हाल मे केंद्रीय इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा कहला अछि जे हुनका महंगाई स खुशी होइत अछि, किया त एहि स किसान कए फसल क बेसी दाम भेट रहल अछि। ओना त वर्मा क इ बयान देखबैत अछि जे हमर मंत्री जमीनी हकीकत स पूर्णत: नावाकिफ छथि। मुदा जूट क मूल्य क हालिया इतिहास क मद्देनजर देखि त वर्मा क बयान कोनो जहर-सिक्त तीर क जेका चूभैत अछि। 1984 मे देश मे जूट क मूल्य 1400 टका क्विंटल छल। आइ 2012 मे यानी 28 साल बाद इ घटकए 1200 टका प्रति क्विंटल पर आबि गेल अछि। पिछला 28 साल मे टका मे भेल अवमूल्यन पर अगर ध्यान नहि दी तखनो कोनो व्यक्ति जूट उत्पादक किसान क दर्द क अंदाजा लगा सकैत अछि आ जूट क मूर्छित खेती क मर्ज आसानी स बुझल जा सकैत अछि।
दर्द क हद स गुजरब त एखन बाकी अछि किया त समर्थन मूल्य नामक मिसाइल क मार तक इ सीमित नहि अछि। सच त इ अछि जे पिछला चारि दशक मे जूट उत्पादक कए तरह-तरह क हथियार स पीटल गेल अछि। सबस घातक वार छल, बेलगाम प्लास्टिक नीति। गौरतलब अछि जे जूट क किसान सब कए बचेबा लेल एक जमाना मे सरकार लग संरक्षण नीति छल। तखन चीनी, चावल, सीमेंट समेत तमाम कारखाना लेल कम-स-कम तीस प्रतिशत जूट क बोरी क इस्तेमाल अनिवार्य छल। मुदा उदारीकरण क आंधी मे इ नीति तिनका जेका उधिया गेल आ ककरो किसानक चीख तक नहि सुनाई देलक। प्लास्टिक क बोरी सस्त छल (एखनो अछि), एहि लेल उत्पादक जूट बोरी क इस्तेमाल बंद क देलक। जाहि स देसी बाजार मे जूट क मांग कम होइत गेल। तकनीक क बल पर वस्त्र उद्योग एतबा आगू चल गेल जे जूट स बनल मोट कपडा गरीब त पहिरब छोडि देलक। दरिद्रता क प्रतीक भ चुकल जूट स बनल पहनाबा सदा क लेल समाप्त भ गेल। इ गप आओर अछि जे आब इ प्लास्टिक धरती पर सेहो भारी असर द रहल अछि। कहबाक जरूरत नहि जे प्लास्टिक क अत्यधिक इस्तेमाल पर्यावरण आओर पारिस्थितिकी कए गंभीर रूप स बिगाडि देलक अछि, जेकरा मात्र पर्यावरण-प्रिय जूट ठीक क सकैत अछि। जूट क खेती कए तेसर मारि जूट रिसर्च इंस्टिट्यूट स पडल, जे जानलेवा साबित भेल। इ संस्था पुरान नस्ल कए खत्म क देलक आ उन्नत नस्ल क नाम पर जे बीज तैयार केलक ओहि स पैदावार बढबाक बदला मे घटैत चल गेल।
जलवायु परिवर्तन सेहो जूट क खेती पर कहर बरपा रहल अछि। गौरतलब अछि जे जूट मौसम क प्रति अत्याधिक संवेदनशील पौधा अछि। मौसम क कनि प्रतिकूलता एकरा चौपट क दैत अछि। मुदा हाल क किछु साल स मौसम चक्र लगातार असंतुलित भ रहल अछि, जाहि स परिणामस्वरूप जूट क पैदावार मारल जा रहल अछि। जलाशय क कमी सेहो जूट क खेती कए प्रभावित क रहल अछि। जूट स रेशा निकालबा लेल एकरा स्थिर पाइन मे सडेबाक प्रयोजन होइत अछि, मुदा स्थिर पाइन क परंपरागत स्रोत मसलन झील, ताल,चौर, पोखर आदि तेजी स भरल जा रहल अछि।
संक्षेप मे कही त आइ जूट क खेती केवल किसान क जिद आ देसी उपयोगिता क बल पर जीवित अछि। ओ युग बीत गेल जखन किसान एकरा “हरा नोट” कहैत छल। ओहि दौर मे जूट कोसी अंचल क किसान लेल दुर्गापूजा, दीपावली, मुहर्रम क सौगात ल कए अबैत छल। सितंबर मे एकर रेशा तैयार होइत छल। सब किसान कए पाबनि लेल नीक नकदी भेट जाइत छल। आब त लोक जूट क डंठल (सोंठी) आ रस्सी लेल जूट उपजा रहल छथि। कोसीक लोक आइ सेहो जूट क डंठल स घर क टाट बना रहल छथि। सोंठी एहि ठाम क लोक लेल जलावन क महत्वपूर्ण स्रोत सेहो अछि।
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Bahut nik..Gaam ghar me patua ke bahut mahatwa chai. Ek kahawat to chai ki patuwa ke paisa batuwa me.