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पतिक दीर्घजीवनक मंगलकामना करवाक सब सँ विशिष्‍ट पर्व अछि मधुश्रावणी

July 29, 2013
in फीचर, समाचार
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मिथिला गौरवमयी संस्कृतिक इतिहास अपन इतिहास अपन आॅचर मे अनेको लोक पर्व के समेटने अनुपम लोक गाथाक सनेष दैत रहल अछि। एहि लोक पर्वक कड़ी मे श्रावण मास मे नव बिबाहित द्वारा मनाओल जाय बला पावनि अछि – ‘मधुश्रावणी’। ‘मधुश्रावाणी’ मुख्यतया मिथिलांचलक ब्राह्मण ओ कर्ण-कायस्थ परिवारक नव विवाहित स्त्री द्वारा अपन सुहागक रक्षा हेतु मनाओल जाइत अछि। ओना आब आनो वर्गक स्त्री लोकनि कँ एहि पावनि मे रूचि बढ़लनि अछि।
‘मधुश्रावणी’ श्रावण मासक कृश्ण पक्ष चतुर्थी कँ प्रारंभ होइत अछि आ शुक्ल पक्ष तृतीया कऽ समाप्त होइत अछि। मोटा-मोटीश्एक पक्ष धरि चलय वाला ई पावनिक मनोहारी वातावरणक परिचायक थिक। एहि पावनिक आकार्शक ओ व्यवहार अनुपम अछि। ई पावनि नवविवाहिता अपन नैहर मे मनबैत छैथि, लेकिन पावनिक अवधिक कपड़ा-लत्ता, भोजन ओ पूजा सामग्रीक प्रयोग सासुरेक कएल जाइत अछि। एहि हेतु नवविवाहिताक सासुर सँ भारक रूप मे सब वस्तु-जात हुनक नैहर पठाओल जाइत छन्हि। एहि अवसर पर मिथिला मे भार ओ भरियाक दृष्य मनोहारी लगैत अछि।
ओना तऽ ई पावनि विधिवत श्रावण कृश्ण पंचमी सँ प्रारंभ होइत परन्तु एकर विध चतुर्थीएँ सँ प्रारंभ भऽ जाइत। एहि दिन सँ नवविवाहिता लोकनि अरबा-अरबानि खाईत छथि। साँझ मे सजि-धजिकऽ सखी-बहिनपाक संग विभिन्न फूलबाड़ी सँ फल, फूल पात, जकरा ‘जूही-जाही’ कहल जाइत अछि, लोढ़ि कए अपन डाली मे सजा कऽ गीत गबैत अपन घर अबैत छथि। ई क्रम पूजा समाप्तिक एक दिन पहिने धरि चलैत अछि। पंचमी दिन सँ सासुर सँ पठाओल साड़ी-लहठी, गहना आदि पहिर व्रती पूजाक तैयारी करैत छथि। एहि पावनि मे मुख्य रूप सँ गौड़ (गौरी) एवं नागक पूजा होइत अछि।
एहि पूजाक लेल सबसँ पहिने एकटा कोबर बनाओल जाइत अछि अथवा घर मे विवाह मे कोबर रहैत ओतय पूजाक हेतु कलष पर अहिवातक वाती प्रज्वलित कएल जाइछ। सासुर सँ पठाओल हरिदिक गौड़ आ एकगोट नैहरक सुपारी, लग मे मैनाक पात पर धानक लावा राखि ओहि पर दूध चढ़ाओल जाइत अछि। बिसहारा जो गौड़ीक अतिरिक्त उज्जर फूलसँ चन्द्रमाक पमजा सेहो कएल जाइत अछि, मुदा गौरीक पूजा सिन्दुर ओ रंगक फूल सँ होइछ।
‘मधुश्रावणीक’ अरिपन मुख्यरूपें मैनाक दूटा पात पर लिखल जाइत अछि। जतय व्रती बैसिकऽ पूजा करैत छथि आ एहिक दूनू कात जमीन पर सेहो अरिपन बनाओल जाइत अछि। जमीन परहक अरिपन के उपर मैनाक पात राखल जाइत अछि। बायाँ कातक पात पर सिन्दूर आ काजर सँ एक आंगुरक सहारा लय एक सौ एक सर्पिणीक चित्र बनाओल जाइत अछि, जे ‘एक सौ एकन्त बहिन’ कहाबैत छथि। एहि मे ‘कुसुमावती’ नामक नागिनक पूजाक प्रधानता अछि। दायाँ कातक पात पिठार सँ एक सौ एक सर्पक चित्र सेहो एक्के आुगंर सँ बनाओल जाइत अछि, जकरा ‘एक सौ एकन्त भाई’ कहल जाइत अछि, एहि मे ‘वौरस’ नामक नागक पूजा मुख्यरूपें होइत अछि। एहि पावनि मे मैना पातक उपयोग एहि दुआरे कएल जाइत अछि, जे पुराण सब मे कहल गेल अछि कि हिनक पालन पोश्ण एहि मैनाक पातक बीच होइत छन्हि। संगहि मैना पातक रासायनिक गुणक कारणें एकता वषीकरण षक्तिक स्रोत सेहो मानल जाइत अछि। ताहिं मिथिला मे कईक मौका पर मैना पातक व्यवहार होइत अछि आ सुहागिन काजर आ सिंदूर धारण करैत छथि।
पूजाक अवधि मे षिव-पार्वतीक विभिन्न कथा सेहो कहल जाइत अछि। जाहि मे पुमुख अछि – ‘विहुला मनसा’, ‘मंगला गौड़ी’, ‘विश्हारा’, ‘पृथ्वी जन्म’, ‘सीता पतिव्रता’, ‘उमा पार्वती’, ‘गंगा-गौड़ी जन्म’, ‘कामदहन’, ‘लीली जन्म’, ‘बाल बसंत’ आओर ‘राजा श्री करक क कथा एहि तरहे सबदिन मोर मे पूजा होइछ, कथा होइत आओर साँझ कए जूही-जाही लोढ़वा मिथिला मे जतेक पर्वत संग लोक गीतक प्रमुख स्थान अछि तंे एहि पावनिक अवसर बिसहारा आ गौरी गीतक प्रचलन अछि।
श्रावण षुक्ला पक्ष तृतीया ताहि दिन मधुश्रावणी होइत अछि ओहि दिन वर पुनः नवविवाहिता के सिन्दूरदान करैत छथि, जकरा तेसर सिन्दूरदान कहल जाइत अछि। (एहिसं पहिने वियाहक राति पहिल बेर आ चार दिनक बाद चतुर्थीक मोर मे दोसर बेर सिन्दूरदान होइत छेक) तें ई तेसर सिन्दूरदानक पर्व मिथिलांचल नारी संस्कृतिक परिचालक थिक। पतिक दीर्घजीवनक मंगलकामना करवाक सब सँ विशिष्‍ट पर्व मधुश्रावणी मैथिल ललनाक समपिण एवं सहिष्‍णुता क कामना तथा निष्‍ठा एवं संस्कृतिक परपराक प्रति प्रेमक प्रतीक थिक।

गजेन्द्र ठाकुर
श्रावण मास कृष्ण-पक्षक पञ्चमीसँ शुक्लपक्ष तृतिया धरि नाग आऽ गौरीशंकरक अभ्यर्थना कएल जाइत अछि। मौना पञ्चमी-श्रावन मास कृष्णपक्ष पञ्चमीकेँ साँपक माए बिसहराक बर्थडे मनाओल जाइत अछि। नवविवाहिताक प्रथम वर्षक मधुश्रावणीक ई प्रथम दिन थिक । धुरखुरपर गोबरक नाग-नागिनपर सिन्दूर-पिठार लगाओल जाइत अछि आऽ पञ्चमीक माटिक थुम्हा घरमे साँप कटला उत्तर झाड़ा-फूकी लए राखि देल जाइत अछि। गोसाउनिकेँ खीर-घोरजाउड़क पातरि आऽ बिसहराकेँ नेबो,झौआ,नीमक पातरि देल जाइत अछि। गोसाउनिक, गौरीक आऽ बिसहराक गीत होइत अछि, पूजा-पाठक बाद पाँच बीनी (फकड़ा-कवित्त) तीन-तीन बेर सुनलाक बाद कथा सुनल जाइत अछि, ई सभदिन कथाक बाद दोहराओल सेहो जाइत अछि।

प्रथम दिनक कथा-

एकटा बूढ़ीकेँ धारमे नहाए काल पुरैनी पात पर पाँचटा जीव देखाइ पड़ैत छन्हि आऽ ओऽ हुनका मौना-पञ्चमीक मोन पाड़ि गाममे लोकसभकेँ पूजा करबाक लेल कहैत छन्हि। किछु गोटे गप मानैत छथि, मुदा किछु गोटे ओकरा फूसि-फटक मानैत छथि। जे सभ पूजा नञि कएलन्हि से रातियेमे मरि गेलाह। सभ दौड़ि कए पाँचो बहिन बिसहरा लग जाइ गेलाह, आऽ हुनका कहलासँ बचल खीर-घोड़जाउड़ मृतकेँ चटा देलन्हि, ओऽ सभ जीबि गेलाह आऽ मरड़ए नाम पड़लन्हि।
पाँचो बिसहरा महादेव सन्तान छलीह। साँपक पोआकेँ देखि एकदिन तमसा कए गौरी हिनकासभकेँ थकुचि देलखिन्ह।
साँझमे साँझक आऽ कोबरक गीत होइत अछि।

दोसर दिनक-कथा

मनसा महादेवक पुत्री छलीह जे जनमितहि युवती भए गेलीह आऽ लाजक रक्षाक हेतु साँप हुनका देहमे लपटाए गेल। गौरी तमसा गेलीह से हुनका कैलास छोड़ि जाए पड़लन्हि आऽ मृत्युलोकमे सभसँ पैघ व्यापारी चन्नू-चन्द्रधर हुनकर पूजा करन्हि से ओऽ इच्छा कएलन्हि, मुदा ओऽ छल महादेवक भक्त से ओऽ वाम हाथे पूजा करबाक गप कहलन्हि। ओकर छओ बेटाकेँ साँप डसि लेलक, मरि जाइ गेल। बुढारीमे चन्नूकेँ बेटा भेलन्हि मुदा ज्योतिषि कहलकन्हि जे हुनका विवाहक दिन कोबरघरमे साँप डसि लेतन्हि। ओहि बच्चाक नाम लक्ष्मीधर-बाला-लखन्दर राखल गेल, छहे-मासमे ओकर विवाह चिर-सोहागनि योगक कान्याँसँ होएब निश्चित भेल। पहाड़पर कोठामे बिज्जी आऽ बिढ़नीक पहराक बीच कान्याँ बिहुलासँ विवाह भेल। मुदा कोहबरमे साँप आयल आऽ हुनका डसि लेलक। बिहुला पतिकसंग केराक थम्हपर गंगाधारमे चलि पड़लीह आऽ प्रयाग पहुँचि गेलीह। ओतए एकटा धोबिनकेँ ओकर बच्चा तंग कए रहल छल, ओऽ ओकरा मारि नुआसँ झाँपि देलन्हि आऽ कपड़ा खीचलाक बाद ओकरा जिआ देलन्हि। दोसर दिन जखन ओऽ अएलीह तखन बिहुला हुनकासँ अपन व्यथा सुनओलन्हि। फेर हुनका संग इन्द्रक दरबार गेलीह आऽ बिसहराक पैर पकड़ि कहलन्हि जे यदि हुनकर पति आऽ छबो भैंसुर जीबि जएताह तखन ओऽ बिसहरा पूजा करबो करतीह आऽ मृत्युलोकमे ओकर प्रचार सेहो करतीह। सभ जीबि गेल आऽ बिसहराक पूजा शुरू भेल।

दोसरसमाचार

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बिसहरा कथा-कश्यप मुनिकेँ कद्रूसँ एक हजार साँप भेल आऽ कशप मुनि विष झारबाक मन्त्र बनओलन्हि, तपस्या कए मनसँ बिसहरा बनओलन्हि से भेलीह मनसा। ओऽ कैलास आऽ पुष्कर गेलीह फेर बूढ़ तपस्वीसँ हुनकर विवाह भेलन्हि, ताहिसँ आस्तीक नामक पुत्र भेलन्हि। राजा जनमेजयक सर्प-यज्ञमे जड़ल सर्पसभके आस्तीक बचा लेलन्हि। आषाढ़क संक्रान्तिसँ नाग-पंचमी धरि बिसहराक पूजा पसीझक डारिपर होइत अछि।
मंगला-गौरी कथा- श्रुतकीर्ति राजाकेँ बेटा नहि छलन्हि, भगवतीक उपासना कएल। भगवती कहलन्हि जे सर्वगुणी बेटा १६ वर्ष आयुक होएत आऽ महामूर्ख बेटा दीर्घायु होएत, से केहन वर चाही। राजा सर्वगुणी बेटाक वर मँगलन्हि।
मन्दिरक सोझाँक आमक गाछसँ आम तोड़ि ओऽ अपन पत्नीकेँ खुआ देलन्हि आऽ पुत्र जे प्राप्त भेल ओकर नाम चिरायु राखल। १६ वर्ष पूर्ण भेलापर रानीक भाए संगे राजकुमार चिरायु काशी चलि गेलाह। माम भागिन जे काशी लेल बिदा भेलाह तँ रस्तामे आनन्दनगर राज्यमे बीरसेन राजाक पुत्री मंगलागौरीक विवाह होमए बला छल। ओऽ सखी-बहिनपा संग फूल लोढ़ए लेल फुलवारीमे आयल छलीह तँ गपे-गपमे एकटा सखी हुनका राँड़ी कहि देलखिन्ह, तँ ओऽ कहलन्हि जे हम गौरकेँ तेना गोअहरने छी जे जाहि वरक माथपर हमर हाथक अक्षत पड़त से अल्पायु रहबो करत तँ दीर्घायु भए जाएत। ओहि राजकुमारेक विवाह बाह्लीक देशक राजा दृढ़वर्माक बेटा सुकेतुसँ हेबए बला रहए। ओही फुलबारीमे माम-भागिन रहथि, आऽ साँझमे बर-बरियाती सभ सेहो अएलाह। वर महामूर्ख आऽ बहीर छल से ओऽ लोकनि राति भरि लेल चिरायुकेँ वर बनबाक आग्रह कएलन्हि। चिरायु गौरी-शंकरक प्रतिमाक समक्ष सिन्दूर-दान कएलन्हि। कोहबरमे वर कनिआ अएलाह तँ ओही राति चिरायुक १६म वर्ष पुरि गेलन्हि आऽ तखने गहुमन साँप डसबाक लेल आबि गेल। राजकुमारी जगले छलीह आऽ ओऽ गहुमनक सोझाँ दूध राखि देलखिन्ह आऽ पतिकेँ नहि मारबाक आग्रह कएलन्हि। गहुमन दूध पीबि पुरहरमे पैसि गेल, राजकुमारी आँगीसँ पुरहरक मुँह बन्न कए देलन्हि। राजकुमारक निन्द खुजलन्हि तँ ओऽ किछु खाए लेल मँगलन्हि। राजकुमारी हुनका खीर-लड्डू देलन्हि, हाथ धोबाक काल राजकुमारक हाथसँ पञ्चरत्न औँठी खसि पड़लन्हि से राजकुमारी उठा लेलन्हि। वर पान-सुपारी खाए सुतलाह आऽ पुरहरिक साँप रत्नक हार बनि गेल आऽ से राजकुमारी गरामे पहिरि लेलन्हि। भोरमे माम भागिनकेँ लए गेलाह मुदा सुकेतुकेँ राजकुमारी कोबरमे नहि पैसए देलखिन्ह। साल भरिक बाद प्राय विन्ध्याचलसँ जे माम-भागिन घुरि रहल छलाह तँ राजकुमारी कोठापसँ हुनका चीन्हि गेलीह। धूमधामसँ सभ घर कनिआँ लए पहुँचलाह आऽ गौरी आऽ नाग पूजाक महत्व ज्ञात भेल।

तेसर दिनक कथा

पृथ्वीक जन्म- पापसँ पृथ्वी पाताल चलि गेलीह, तखन ब्रह्मा, विष्णु प्रार्थना कए हुनका ऊपर अनलन्हि, फेर ओऽ डगमगाइत छलीह, तखन विष्णु काछु बनि नीचाँ चलि गेलाह, अपन पीठपर राखि लेलन्हि, तैयो ओऽ जल-पर भँसैत छलीह, तखन आगस्त्यक जाँघ तरसँ माटि आनल गेल, विष्णु सेहो माछ बनि माटि अनलन्हि, तकर जोड़न दए पृथ्वीकेँ स्थिर कएल गेल, जे कमी छल से भगवान वराह बनि उत्तर माथसँ पृथ्वीकेँ ठोकि कए ठीक कए देलन्हि।

समुद्र-मन्थन- देवता-दानव सुमेरुपर एकत्र भए समुद्र-मन्थनक हेतु बासुकीनागकेँ मन्दार पर्वतमे लपटाए समुद्रमे उतारल।कूर्मराजकेँ आधार बनाए मूँह दिसनसँ दानव आऽ पुच्छी दिसनसँ देवता नागकेँ पकड़ि मन्दारक मथनीसँ मंथन शुरू कएलन्हि। रगरसँ पर्वतपर गाछ-वृक्षमे आगि लागि गेल। इन्द्र वर्षा कएलन्हि, समुद्रक नूनगर पानि दूध-घी भए गेल, लक्ष्मी, सुरा आऽ उच्चैःश्रवा घोड़ा निकलल से चन्द्रमा-लोकनि लए लेलन्हि। अमृत लेने धन्वन्तरि बहार भेलाह, विष निकलल से महादेव कण्डमे लेलन्हि। गौरी बिसहरा,साँप,बिढ़नी,चुट्टीक मदतिसँ विश महादेवक देहसँ निकाललन्हि। अमृत लेल झगड़ा बझल, विष्णु मोहिनी बनि गेलाह। दैत्य मोहित भए अमृत-कलश हुनकर हाथमे राखि देलन्हि आऽ देवतासँ लड़ए लगलाह। विष्णु सभ देवताकेँ अमृत पिआ देलन्हि। दैत्य राहु भेष बदलि अमृत पीबए चाहलक मुदा चन्द्रमा सूर्य हुनका चीन्हि गेलखिन्ह, अम्र्त मुँसँ कंठ धरि यावत जाइत तावत विष्णु ओकर गर्दने चक्रसँ काटि देलन्हि। मुदा अमृतक जे स्पर्श ओकरा भए गेल छल से ओऽ मरल नहि, मुण्ड भाग राहु आऽ शेष भाग केतु बनि गेल, एखनो कोनो अमावस्यामे सूर्यकेँ तँ कोनो पूर्णिमामे चन्द्रमाकेँ गीड़ैत अछि, मुदा कटल मुण्ड-धरक कारण दुनू गोटे किछु कालक बाद बहार भए जाइत छथि। बचल अमृत विश्वकर्माक रखबाड़िमे इन्द्रकेँ दए देल गेल।बासुकी नागकेँ माइक श्राप नहि लगबाक आऽ जनमेजयक यज्ञमे भागिन आस्तीक द्वारा सपरिवार प्राणरक्षा होएबाक वर भेटलन्हि।

चारिम दिनक कथा
सतीक कथा- ईश्वरकेँ विश्वक सृष्टि करबाक छलन्हि, से ओऽ पहिने विष्णु, फेर शिव आऽ तखन ब्रह्माक रूपमे अवतार लेलन्हि। ओऽ तखन देवता-ऋषि-मुनि, शतरूपास्त्री, स्वायंभुव मनु, दहिना आँखिसँ अत्रि, कान्हसँ मरीचि, दहिना पाँजरसँ दक्ष-प्रजापतिक रचना कएलन्हि। मरीचीसँकश्यप, अत्रिसँ चन्द्रमा, मनुक प्रियव्रत एवं उत्तानपाद बेटा आऽ आकृति, देवहूति आऽ प्रसूति बेटी भेलन्हि। प्रसूतिक विवाह दक्ष प्रजापतिसँ आऽ ताहिसँ साठि कन्या भेल। साठिमे आठक विवाह धर्म, एगारहक कश्यप, सत्ताइसक चन्द्रमा आऽ एक गोट जिनकर नाम सती छलन्हि हुनकर विवाह महादेवसँ भेलन्हि। चन्द्रमाकेँ जे सताइस टा पत्नी भेलन्हि ताहिमेसँ ओऽ रोहिणीकेँ सभसँ बेशी मानैत छलाह, से २६ टा बहिन अपन पिता दक्षकेँ कहलनि, ओऽ शाप देलकिन्ह आऽ चन्द्रमाक शरीर घटए लगलन्हि। तखन ओऽ महादेव लग गेलाह तँ ओऽ हुनका अपन कपार पर चढ़ा लेलन्हि। एहिसँ दक्ष महादेवकेँ बारि देलखिन्ह। फेर दक्ष एकटा यज्ञ कएलन्हि आऽ शंकरकेँ नोत नहि देलन्हि। सती नैहर जएबाक लेल जिद पकड़ि लेलन्हि तँ वीरभद्रक संग शिव हुनका पठा देलन्हि। सती चलि तँ गेलीह मुदा अपमान देखि यज्ञकुण्डमे कूदि पड़लीह। वीरभद्र ई देखि दक्षक गरदनि काटि लेलन्हि।महादेवकेँ तमसायल देखि कए देवता सभ प्रार्थना कएलन्हि जे बिना जिअओने यज्ञ पूर्ण नहि होएत से यज्ञक काटल छागरक मूरी दक्षक धरपर महादेव लगा देलन्हि, आऽ ओ जीबि कए बो-बो करए लगलाह, से माहादेव ई देखि प्रसन्न भेलाह। तहियेसँ महादेवक पूजाक अन्तमे बू कहल जाए लागल। महादेव सतीक मृत शरीर लए बताह भेल फिरथि से देखि विष्णु चक्रसँ सतीक टुकड़ा कए देलन्हि आऽ जतए-जतए ओऽ टुकड़ा खसल से सभटा सिद्धपीठ भए गेल। महादेव कैलाश छोड़ि जंगलमे तपस्या करए लगलाह।
पतिव्रताक कथा- एकटा राजा छालाह। हुनका दूटाबेटी छलन्हि- कुमरव्रता आऽ पतिव्रता। कुमरव्रता नन्दनवनमे कुटीमे रहए लगलीह आऽ पतिव्रता विवाह कए सासुर चलि गेलीह। एक दिन एकटा योगीक माथपर कौआ चटक कए देलकैक तँ ओऽ शाप दए ओकरा भसम कए देलक। नन्दनवनमे आगि लागल रहए। पतिव्रता अपन बहिन कुमरव्रताक कुटी बचेबाक लेल तुलसीक बेढ़ देलन्हि ताहिमे योगीकेँ भीख देबामे देरी भए गेलैक। योगी तमसाएल तँ पतिव्रता देरीक कारण कहलन्हि। योगी बोनमे गेल तँ देखलक जे सौँसे बोनमे आगि लागल अछि मुदा कुमरव्रताक कुटी बचल अछि। ओऽ कुमरव्रताकेँ एकर रहस्य बतेलक तँ ओहो निर्णय लेलन्हि जे हमहुँ विवाह कए पतिव्रता बनब। भोरमे एकटा कुष्ठरोगीकेँ ओऽ देखलन्हि तँ हुनकेसँ विवाह कए लेलन्हि। पति हुनका कहलखिन्ह जे हमरा तीर्थ कराए दिअ। ओऽ हुनका पथियामे लए बिदा भेलीह तँ रस्तामे जखन पथिया उतारि रहल छलीह तँ चोट लागि कए एक गोट सूली पर लटकल ऋषिकेँ चोट लागि गेलैक। ओऽ भोर होइते पतिक मृत्युक शाप हुनका दए देलन्हि। से सुनि बेचारी सूर्यक उपासना करए लगलीह से पति मृत्यु पाबि फेर जीबि उठलखिन्ह आऽ एहि बेर बिना रोग व्याधिक घुरि अएलन्हि। सती,सावित्री, अनुसूया आऽ बिहुला जेकाँ सतीक अनेक उदाहरण अछि।
पाँचम दिनक कथा

दक्षक पुनर्जन्म भेलन्हि हिमालयक रूपमे, आऽ एहि जन्ममे हुनका उमा, पार्वती, गंगा, गौरी आऽ सन्ध्या ई पाँचटा कन्या भेलन्हि। हिमालय आऽ मनाइनक बेटी उमा महादेवकेँ प्राप्त करबाक लेल तपस्या करए चलि गेलीह, माय उमा कए रोकलन्हि, से नाम उमा पड़ि गेलन्हि ओऽ वरक रूपमे महादेवकेँ प्राप्त कए लेलन्हि। दोसर पुत्री पार्वती एकदिन कनकशिखरपर गेलीह आऽ बसहापर चढ़ि हुनका संग चलि गेलीह। तेसर पुत्री गंगा रहथि। एक दिन महादेव भिक्षुक भेष धए अएलाह आऽ गंगाकेँ जटामे नुकाए चलि गेलाह।

छठम दिनक कथा

सगर राजाक पत्नी रहथि शैब्या आऽ हुनकासँ असमंजस नामक पुत्र भेलन्हि। दोसर पत्नी वैदर्भीसँ कोनो बच्चा नञि भेलन्हि। वैदर्भी महादेवक तपस्या केलन्हि तँ सए बरखक बाद एकटा लोथ जन्म लेलकन्हि। महादेव अएलाह आऽ लोथकेँ साठि हजार खण्डमे काटि ओतेक तौलामे राखि झाँपि देलनि। ई सभटा किछु दिनमे पुत्रक रूप लए लेलकन्हि। सगर राजाक सएम अश्वमेध यज्ञक इन्द्र व्रोधी भेलाह कारण तखन सगर शतक्रतु इन्द्र भए जएताह। इन्द्र यज्ञक घोड़ाकेँ लए भागि गेलाह आऽ कपिलक आश्रममे बान्हि देलखिन्ह। साठियो हजार पुत्र कपिलपर दौगलाह, ओ तपस्यालीन छलाह आऽ अपन क्रुद्ध आँखि खोलि सभकेँ जरा देलन्हि। वैकुण्डसँ गंगाकेँ अनबाक लेल असमंजस आऽ तकर बाद हुनकर पुत्र दिलीप आऽ तकर बाद तिनकर पुत्र अंशुमान तपस्या करैत-करैत मरि गेलाह। अंशुमानक पुत्र भगीरथक तपस्यासँ विष्णु प्रसन्न भेला आऽ गंगाकेँ मृत्युलोक लऽ जएबाक अनुमति दए देलन्हि। महादेव हिमालयपर जाए स्वर्गसँ उतरैत गंगाकेँ अपन जटामे राखि सम्हारि लेलन्हि, मुदा जे आगू बढ़लीह तँ जहु ऋषिक कुटी दहाए लागल। जहु ऋषि गंगाकेँ पीबि गेलाह। मुदा आग्रह कएलापर ओऽ गंगाकेँ छोड़ि देलन्हि आऽ तहियासँ गंगा हुनकर पुत्री जाह्नवीक रूपमे विख्यात भेलीह। आऽ फेर अन्तमे सगरक पुत्र लोकनि द्वारा, घोड़ाक खोजमे खुनल ओहि खाधिमे खसलीह जे आब सागर कहाबए लागल आऽ एहि तरहेँ सगरक पुत्रसभकेँ सद्गति भेटलन्हि।

गौरीक जन्म- सतीक मृत्युक बाद महादेवकेँ विरक्ति भए गेलन्हि। तखन ताड़कासुर ब्रह्माकेँ प्रसन्न कए महादेवक पुत्रक अतिरिक्त ककरो आनसँ नहि मरबाक वर लए लेलक, देवताकेँ स्वर्गसँ भगा देलकन्हि। तखन देवता लोकनि महामाया दुर्गाक आराधना कएलन्हि आऽ ओ हिमालयक घरमे जन्म लेलन्हि। ओऽ बड़ गोर-नार छलीह से हुनकर नाम पड़ल गौरी। नारद एकदिन हिमालयक ओहिठाम अएलाह आऽ गौरीक हाथ देखि कहलखिन्ह जे हिनकर विवाह महादेवसँ होएतन्हि। हिमालय गौरीकेँ दूटा सखीक संग महादेवक सेवामे पठा देलखिन्ह। देवतागण कामदेवकेँ मित्र वसन्त आऽ स्त्री रतिक संग ओतए पठेलन्हि। गौरी जखन पहुँचलीह तखन कामदेव वाण चलेलखिन्ह। महादेव आँखि खोलि गौरीकेँ देखल। गौरी पूजा कएलन्हि। महादेव हुन्का देखि उपमा देलन्हि,
मुँह चन्द्रसन, आँखि कमलसन, भोँह कामदेवक धणुषसन, ठोर पाकल तिलकोरसन, नाक सुग्गाक लोलसन, बोली कोइलीसन।
मुदा तखने हुनका होश अएलन्हि ओऽ झाँकुरमे कामदेवकेँ देखलन्हि तँ तेसर नेत्र क्रोधित भए खोलि देखल तँ ओऽ जरि गेलाह। रति मूर्छित भए गेलीह। रतिक विलाप देखि देवतागण अएलाह आऽ कहलन्हि जे ताड़कासुरक वध लेल ई सभटा रचल गेल। महादेव कहलन्हि जे रति समुद्रमे शम्बर दैत्य लग जाथि। कृष्णक पुत्र प्रद्युम्नकेँ ओऽ दैत्य उठा कए लए जायत। जखन प्रद्युम्न पैघ होएताह तखन ओऽ शम्बरकेँ मारि रतिकेँ बियाहि द्वारका लए जएताह। वैह प्रद्युम्न कामदेव होएताह।

सातम दिनुका कथा

गौरी कामदेवक दहन देखि डराए गेलीह। नारद गौरीकेँ तपस्या करए लेल कहलखिन्ह। तपस्याक लेल हिमालय अपन पत्नी मैनासँ पुछलन्हि। गौरी फेर पटोर खोलि देलन्हि आऽ कृष्णाजिन आऽ बल्फर पहिरि सखी संग गौरीशिखर चोटीपर चलि गेलीह। घोर तपस्या देखि ऋषि-मुनि संग नारद महादेव लग पहुँचलाह। महादेव गौरीक परीक्षा लेल भेष बनाए गौरीशिखर पहुँचलाह आऽ महादेवक ढेर-रास निन्दा कएलन्हि। गौरी तमसाए गेलीह तँ ओऽ सोझाँ आबि गेलाह आऽ विवाहक लेल तैयार भए गेलाह।

आठम दिनक कथा
काशीमे सप्तऋषि , वशिष्ठ आऽ वशिष्ठक स्त्री अरुन्धती अएलीह। महादेव हुनका लोकनिकेँ कथा लए हिमालयक ठाम पठओलन्हि। हिमालय आऽ मैनाक आँखिसँ खुशीसँ नोर झड़ए लगलन्हि। कथा स्थिर भए गेल। नारद देवता लोकनिकेँ हकार देलन्हि। चारिम दिन बरियाती लगल। गन्धर्वराजकेँ देखि मैनाकेँ नारदकेँ पुछलन्हि तँ ओऽ कहलन्हि जे ई तँ देवताक गबैया छी। फेर धर्मराज, इन्द्र सभ अएलाह। नारद सभक परिचए देलन्हि। मैना सोचलन्हि जे ई सभ एतेक सुन्दर अछि तँ महादेव कतेक सुन्दर होएताह। महादेव मैनाक मोनक गप बुझि किछु तमाशा कएलन्हि। महादेव, हुनकर गण, भूत-पिशाचकेँ देखि मैना बेहोश भए गेलीह।

नवम दिनक कथा

मैनाकेँ जखन होश अएलन्हि तँ ओऽ नारद-गौरी सभकेँ बहुत रास बात कहलन्हि आऽ विवाहसँ मना कए देलन्हि। सभ मनबए अएलन्हि तैयो नहि मानलीह। तखन महादेव अपन भव्यरूप देखेलन्हि, तँ मैना देखिते रहि गेलीह। विवाहक कार्य शुरू भेल। परिछनि, अठोंगर, गोत्राध्यायक बद कन्यादान सम्पन्न भेल आऽ ताड़कासुरकेँ मारबाक बाट सोझाँ प्रतीत भेल।
दशम दिनुका कथा

महादेव आऽ गौरीक संभोगसँ जे बच्चा होएत ओऽ पृथ्वीक नाश कए देत, ब्रह्माक ई वचन सुनि देवता लोकनि हल्ला मचा देलन्हि आऽ महादेवक अंश पृथ्वीपर खसि पड़ल। गौरी देवताकेँ सरापलन्हि जे आइ दिनसँ हुनका लोकनिकेँ सम्भोगसँ सन्तान नहि होएतन्हि। पृथ्वी अंशकेँ आगिमे आऽ आगि सरपतवनमे भार सहन नहि होएबाक कारण दए देलन्हि। ओतए छह मुँहबला बच्चा भेल, ओकरा कृत्तिकसभ पोसलन्हि तेँ नाम कार्तिकेय पड़ि गेलन्हि। गणेशक जन्मक बाद महादेव हुनका बजा लेलन्हि, देवतालोकनि हुनकर अभिषेक कए अपन सेनाध्यक्ष बना लेलन्हि। ओऽ ताड़कासुरकेँ मारि इन्द्रकेँ राज्य घुरा देलन्हि आऽ साठिसँ विवाह कएलन्हि।
गणेशक जन्म- माघसूदि त्रयोदशी सुपुष्य विष्णुव्रत एक मासमे समाप्त कए कैलाशमे गौरी-महादेव रमण करए लगलाह। विष्णु तपस्वीक भेष बनाए अएलाह आऽ भूखसँ प्राण रक्षाक गप कहलन्हि। ओछाओनपर अंश खसि पड़ल आऽ गणेशक जन्म भए गेल। समारोहमे सभ अएलाह, शनिकेँ गौरी देखए लेल कहलन्हि, मुदा हुनका देखलासँ गणेशक गरदनि कटि कए खसि पड़ल। विष्णु एकटा हाथीक गरदनि काटि लगा देलन्हि आऽ अमृत छींटि जिआ देलन्हि। गणेशक विवाह दक्षप्रजापतिक बेटी पुष्टिसँ भेलन्हि।

गौरीक नागदन्त कथा-हिमालयक आऽ मनाइनक चारिम बेटी गौरीक विवाह महादेवसँ भेल। महादेव भाभट पसारि फेर हटा लेलनि।बेटी-जमाएकेँ पुष्ट भार साँठि बिदा कएलन्हि, से सठबे नहि करन्हि। भड़कनि छुलाहि जखन धुरखुर सटि ठाढ़ भेल, तखन सभटा भार बिलाएल। एकबेर गौरी कहलन्हि जे सभक ननदि अबैत छैक, भागिन अबैत छैक। महादेव बहिन अशावरीकेँ बजेलन्हि। हुनका बेमाय फाटल छलन्हि, बेमायमे गौरीकेँ नुका लेलन्हि। गौरी कानथि तँ क्यो सुनबे नहि करन्हि। म्हादेव पुछाड़ि कएलन्हि तँ ओऽ पैर झाड़लन्हि। गौरी भटसँ खसलीह। तहिना ननदि लेल माँछ रान्हलन्हि। सभटा माँछ ननदि खाऽ गेलखिन्ह। गौरी अकछ भए ननदिकेँ बिदा कएलन्हि। गौरी गंगा जल भरए गेलीह तँ पुरबा आऽ पछबा दुनू भागिन जोरसँ बहए लागल। गौरी हाथ जोड़ि हँसी बन्न करए लेल कहलन्हि।

गौरी छिनारि/चोरनी- गौरी कहलन्हि जे छिनारिकेँ माथपर सिंह आऽ चोरनीकेँ नाङरि दए दिऔक। महादेव तथास्तु कहलन्हि। गौरी माछ आनए गेलीह तँ धारक कातमे महादेव भेष बदलि माँछ बेचबाक लेल ठाढ़ भए गेलाह। गौरीकेँ माँछ बेचबासँ मना कए देलन्हि, कहलन्हि जे हँसी-ठट्ठा करब तखने हम अहाँकेँ माँछ देब। गौरीकेँ महादेव लेल माँछ लेब जरूरी छलन्हि से ओऽ हँसी कए माछ आनि, रान्हि महादेवकेँ खोआबए बैसलीह तँ माथपर सिंघ उगि गेलन्हि। दोसर दिन महादेव गौरीकेँ जल्दीसँ खेनाइ बनाबए लेल कहलन्हि, तखने गौरीकेँ दीर्घशंका लागि गेलन्हि। ओऽ जखन दीर्घशंका कए ओकरा पथियासँ झाँपि देलखिन्ह। जखन महादेव ओम्हर अएलाह आऽ पुछलखिन्ह तँ ओऽ लजा गेलीह आऽ गप चोरा लेलन्हि। जखन महादेवकेँ ई कहलन्हि तँ हुनका नाङरि भए गेलन्हि। गौरी छिनारि आऽ चोरनीक चेन्ह मेटएबाक अनुरोध कएलन्हि। तहियासँ ई चेन्ह मेटा गेल।
एगारहम दिनुका कथा

गौरीसँ छोट आऽ हिमालयक पाँचम बेटी संध्यासँ विवाहक लेल महादेव चोरा कए चलि गेलाह। गौरीकँ दहो-बहो नोर चुबए लगलन्हि। घामे-पसीने भए गेलीह। देहसँ मैल छुटए लगलन्हि तकरा ओऽ जमा केलन्हि आऽ साँप बनाए पथपर छोड़ि देलन्हि। महादेव जखन संध्याक संग विवाह कए अएलाह तखन ओहि साँपमे प्राण दए देलन्हि। गौरीकेँ कहलन्हि जे ई साँप, लीली, अहाँक बेटी छी आऽ एकरासँ खेलएबाक लेल संध्याकेँ अनने छी। गौरी भभा कए हँसि देलन्हि।
नाहर राजा आऽ ताँती रनिक सए बेटामे सभसँ पैघ् बेटा बैरसी महादेव लग नोकरी करए लेल गेलाह। महादेव हुनका कहलखिन्ह जे लीलीकेँ धर्मकुण्डमे स्नान कराए दियौन्ह आऽ सोहागकुण्डमे औँठा डुबा दियौन्ह। मुदा ओऽ उलटा कए देलन्हि। सोहाकुण्डमे डुबलाक कारण सोहाग बड़ पैघ भेलन्हि। मुदा धर्मकुण्डमे मात्र औँठा डुबलन्हि से ओकर लेशमात्र रहलन्हि। से ओऽ बेरसीसँ विवाह करबाक गप कहलन्हि आऽ हुनकेसँ हुनकर विवाह भेल।

रवि दिनुका पतिव्रता सुकन्याक कथा
एकटा राजा- आऽ चरिटा हुनकर रानी छलन्हि। छोटकी रानीटासँ एकटा बचिया सुकन्या भेलन्हि। एक दिन राजा सुकन्या संगे टहलैत छलाह तँ सुकन्या एकटा दिबड़ाक भीड़ देखलन्हि। ओहिमे दूटा चमकैत वस्तु सेहो छल। ओऽ ओहिमे कटकीसँ भूड़ करए चाहलन्हि, तँ ओहिमेसँ शोनित बहार भए गेल आऽ चीत्कार उठल। एकटा मुनि तपस्या कए रहल छलाह आऽ हुनकर दुनू आँखि फूटि गेल छलन्हि। राजा हाथ जोड़ि क्षमा माँगलन्हि तँ ओऽ सुकन्याकेँ सेवाक लेल माँगि लेलन्हि। राजा कुमोनसँ सुकन्याक विवाह ओहि बूढ़ ऋषिसँ करबाए देलन्हि। फेर एक दिन अश्विनीकुमार सुकन्याकेँ भेटलखिन्ह आऽ हुनका लोकनिक संग पतिकेँ गंगा स्नान करेबाक लेल कहलखिन्ह। जखने तीनू गोटे स्नान कए निकललाह तँ एके रंग-रूपक युवा आँखि सहित बाहर आबि गेलाह। आब सुकन्या हुनका चिन्हतथि कोना। तखने ओऽ देखलन्हि जे दुनू देवताक पिपनी तँ खसिते नहि छन्हि से ओऽ अपन पतिकेँ चीन्हि गेलीह। राजा बेटी-जमाएक खुशीमे भोज देलखिन्ह। देवता सभ सेहो अएलाह मुदा देवता सभ श्वनेकुमारकेँ पाँतीमे बैसि कए खाए नहि देमए चाहैत छलाह मुदा राजाक कहलापर हुनका सभकेँ एके पाँतीमे बैसए देलखिन्ह।

बारहम दिनुका कथा

एकटा ब्राह्मणीक सात टा बेटा छलन्हि। छोटकी पुतोहु गरीब घरक छलीह से ससु-ससुर नहि मानैत छलन्हि। हुनका गर्भ भेलन्हि तँ खीर पूरी खएबाक इच्छा पतिकेँ कहलखिन्ह। पति कहलखिन्ह जे माय हम खेत जाइत छी हमर पनपिआइमे आइ खीर-पूरी कनिआक हाथे पठा दिअ। मायकें बुझेलन्हि जे हो नञि हो, ई अपन कनिआकेँ खीर-पूरी खुआओत। से ओऽ पुतोहुक जीहपर लिखि कहलन्हि, जे घुरि कए आबी तँ ई लिखल रहबाक चाही। पुतोहु खीर-पूरी लए खेत पहुँचलीह तँ पति आधा-आधा खाए लेल कहलखिन्ह। मुदा ऒऽ जीह देखा देलखिन्ह। तखन ओऽ पीपरक धोधरिमे खीर-पूरी राखि कहलन्हि जे जाऊ, मायकेँ जीह देखा कए घुर्रि आऊ। जखन ओऽ घुरलीह तँ ओहि धोधरिक बीहड़िमे रहएबला बासुकी साँपक कनिआ, जे गर्भवती छलीह से सभटा खीर-पूरी खाऽ गेल छलीह। ओहि सापिनकेँ बाल आऽ बसन्त दूटा पोआ भेलैक। एक दिन चरबाहा सभ ओकरासभकेँ मारए लेल दौगल तँ छोटकी पुतोहू ओकरा बचेलक। फेर एकर उत्तरमे बाल-बसन्त हुनका वर मँगबाक लेल कहलखिन्ह। पुतोहू वर मँगलन्हि जे एहन कए दिअ जे हमरो नैहरक आस रहए। सैह भेल। बाल-बसन्त विदागरी करेबाक लेल पहुंचि गेलाह मनुष्यरूप धारण कए। सासुरमे बाल-बसन्त रूपमे परिचए दए कहलन्हि जे हमरा सभक जन्म बहिनक द्विरागमनक बाद भेल छल। बिदागरी कराए रस्तामे बीहरिमे पैसि कए जे निकललाह तँ पैघ घर आबि गेल। बासुकीनि स्वागत कए साँझमे सुआसिनक काज साँझमे दीअठिपर दीप जरेनाइ अछि- से कहलन्हि। बासुकीनागक फनपर ओऽ दीप जरबथि तँ ओऽ खौँझाकए पत्नीकेँ कहलन्हि जे एकरा हम डसि लेब। पत्नी मना कएलन्हि जे अजश होएत से बिदा करए दिअ। ससुर चलि जाएत तँ जे मोन होए से करब। बसुकिनी नूआ-लहठी दए बिदा करैत काल धरि ई केलन्हि जे साँप रक्षकमंत्र कनिआकेँ सिखा कए बाल-बसन्तक संग बिदा कए देलन्हि। कहलन्हि जे ई मंत्र सूतएकाल पढ़ि सूतब।

दीप-दीपहरा आगू हरा मोती मानिक भरू धरा।
नाग बड़थु, नागिन बढ़थु, पाँचो बहिन, विषहरा बढ़थु।
बाल बसन्त भैय्या बढ़थु, डाढ़ि-खोढ़ि मौसी बढ़थु।
आशावरी पीसी बढ़थु, खोना-मोना मामा बढ़थु।
राही शब्द लए सुती, काँसा शब्द लए उठी।
होइत प्रात सोना कटोरामे दूध-भात खाइ।
साँझ सुती, प्रात उठी, पटोर पहिरी कचोर ओढ़ी।
ब्रह्माक देल कोदारि, विष्णुक चाँछल बाट।
भाग-भाग रे कीड़ा-मकोड़ा, ताहि बाटे आओत।
ईश्वर महादेव, पड़ए गरुड़केँ ठाठ।
आस्तीक, आस्तीक, आस्तीक।

बासुकी डसए लए आबथि मुदा ई मंत्र सुनि घुरि जाथि। चारिमदिन सासुकेँ डसि तीन बेर नाङरि पटकि घर सोना-चानीसँ भरि देलखिन्ह।

गोसाउनिक कथा- मधस्थ राजाक एकसए एक बेटीक विवाह नाहर राजाक एकसए एक बेटासँ भेलन्हि।सभसँ पैघ भाए बैरसीक विवाह सभसँ पैघ कान्या गोसाउनीसँ भेलन्हि।विवाहकालमे बैरसीक पागसँ पहिल कनिआ महादेवक पुत्री लीली खसि पड़लन्हि। लीली लाबा बिछि खए लागलि।गोसाउनिक पिता मधस्थ सरापलन्हि जे बैरसी डेग पाछाँ पानक बिड़िया खएताह आऽ कोश पाछाँ तिरियासँ गप करताह तँ जीताह नहि तँ मरि जएताह। मुदा बैरसी लीलीकेँ मानथि। सासुरमे गोसाउनि अपन व्यथा दिअर चनाइकेँ कहलन्हि। ओऽ भाइकेँ कहलन्हि जे बाहर घुमि फिरि आऊ। तँ बैरसी ससुरक सरापक कथा कहलन्हि। मुदा चनाइ सभटा व्यवस्था कए भौजीकेँ कहलन्हि जे हम पाँच्-पाँच कोसपर ठरबाक व्यवस्था करब अहाँ भायसँगे भेष बदलि रहू आऽ संगमे पासाक गोटी लए लिअ आऽ तकरा प्रमाण रूपमे गाड़ैत जाएब। सैह भेल। पाँच विश्रामक बाद जखन सभ घुरि अएलाह, तखन गोसाउनिकेँ ओधु, कछु, महानाग, श्रीनाग, आऽ नग्नश्री नमक पाँचटा पुत्र भेलन्हि। लीली बैरसीकेँ कहलन्हि जे ई चनाइक सन्तान छी। मुदा गोसाउनि पासाक गोटी देखेलन्हि। तखन बैरसी लीलीकेँ मालभोग चौर आऽ खेड़हीक दालि आऽ गोसाउनिकेँ लोहाक चाउर आऽ पाथरक दालि सिद्ध करए कहलन्हि। मुदा तैयो लीली बुते सिद्ध नञि कएल भेलन्हि, मुदा गोसाउनि सुसिद्ध कए देलन्हि। ई देखि कए गोसाउनिक शरीर गौरवे फाटि गेलन्हि।

तेरहम दिनुका कथा

राजा श्रीकरक कन्याक टीपणिमे छाती लात, झोँटा हाथ आऽ सौतिनक पोखड़िमे अढ़ाइ झाक माटि उघब लिखल छल। हुनकर मुइलाक बाद हुनकर बेटा चन्द्रकर जंगलमे एकटा सोन्हि बना कए एकटा चेरीसंगमे दए राजकुमारीकेँ ओतए राखि देलन्हि। जंगलमे सुवर्ण राजाकेँ ओऽ भेँट भेलीह तँ दुनू गोटे जाए लगलाह तँ राजकुमारी साओन सूदि तृतियाकेँ मधुश्रावणी पाबनिक लेल सासुरक अन्न खएबाक आऽ वस्त्र पहिरबाक प्रथाक मोन पाड़ि कहलन्हि जे ई दुनू वस्तु अवश्य पठायब। राजा राज्य जाए कारीगरकेँ वस्त्रलेल कहलन्हि तँ बड़की रानी सुनि लेलन्हि आऽ वस्त्रमे छाती-लात आऽ झोँटा हाथ लिखि देबाक लेल कहलन्हि। कौआकेँ जखन ई वस्त्र पहुँचेबाक भार राज देलन्हि तँ ओऽ रस्तामे कतहु भोज-भात खए लागल आऽ सनेस पहुँचेनाइ बिसरि गेल। राजा सेहो सभटा बिसरि गेलाह। मधुश्रावणी दिन राजकुमारी गौरीक पूजन उज्जर चानन-फूलसँ कएलन्हि आऽ कहलन्हि जे जहिया राजा भेँटा होथि तहिआ हम बौक भए जाइ। जखन चन्द्रकरकेँ पता चलल जे राजकुमारी विवाह कए लेलन्हि तँ ओऽ खरचा बन्द कए देलन्हि। आब दुनू गोटे राजकुमारी अऽ चेरी सुवर्ण राजाक बड़की रानी द्वारा खुनाओल जाए रहल पोखड़िमे माटि उघए लगलीह। सुवर्ण एक दिन हिनका लोकनिकेँ देखलखिन्ह तँ हुनका सभटा मोन पड़ि गेलन्हि। ओऽ हुनका राज्य लए अनलन्हि। मुदा राजकुमारी बजबे नहि करथि। चेरी सभटा गप बुझेलन्हि तँ राजा कहलन्हि जे ई कौआक गलती अछि। तखन रानी अगिला मधुश्रावणीमे लाल चाननसँ गौर पुजलन्हि आऽ हुनकर बकार घुरि गेलन्हि आऽ सुखसँ जीवन बिताबए लगलीह।
श्रीगणेशजी मधुश्रावणी दिन मए गौरीसँ कहलन्हि जे आइ हम सोहाग मथब आऽ बाँटब। धान-धन्य, काठक तामा, नीम बेल आऽ आमक काठीसँ ओऽ सोहाग मथि सभकेँ बँटलन्हि।
साभार: विदेह : मैथिलीक पहिल इ’ पत्रिका

Tags: मधुश्रावणी
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