पटना। मैथिली मे एकटा लोकप्रिय गजल अछि- कोनो टोना भेलैय या छू मंतर, लाश अर्थी चढल जीया देलियई, जानि ने कि कते पिया देलियई। बिहार मे निगम कए उठैत देखि किछु एहने प्रश्न करबाक इच्छा भ रहल अछि। इ लगभग सब मानि चुकल छल जे अर्थी पर सुतल निगम कए आब महादेव टा बचा सकैत छथि। भोलेनाथ चाहता त इ चमत्कार भ सकैत अछि। संयोग देखू चमत्कार भ गेल। प्रत्यय देखा देलथि आ बता देलथि जे अगर सरकार मे इच्छाशक्ति हए, ओ सकारात्मक सोच क संग काज करे, त कोनो संस्थान कोना बुलंदी हासिल करि सकैत अछि। आइ पूरा बिहार इ बुझबा लेल आतुर अछि जे दोसर प्रत्यय कए हुए जा रहल अछि आ अगिला निगम कौन अछि जे पुनर्जिवित हेबा लेल प्रयासरत अछि। प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह पिछला मास प्रत्यय अमृत कए प्राइम मिनिस्टर्स एक्सीलेंस एवार्ड फार पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन पुरस्कार देलथि। हुनका इ सम्मान बिहार राज्य पुल निर्माण निगम कए पुनर्जिवित करबा लेल भेटल अछि। राबड़ी देवी क सरकार एहि निगम कए 2003 मे बंद करि देने छल। निगम कए पुनर्जिवित करबा मे लगाल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार क मानब अछि जे बिहार राज्य पथ परिवहन निगम सेहो पुल निर्माण निगम क भांति पुनर्जीवित भ सकैत अछि। मुदा इ तखन संभव अछि जखन निगम क अधिकारी आ कर्मचारी सेहो अपन सोच आ तरीका मे बदलाव आनथि आ निगम कए घाटा स निकालि कए फायदा मे अनबा लेल प्रयास करथि। ओ कहैत छथि जे सार्वजनिक आओर निजी क्षेत्र क सेवा मे स्पर्धा हेबाक चाही।
इ समाद विभिन्न पत्र पत्रिका मे छपल रिपोर्ट क आधार पर इ बुझलक अछि जे पुलिस भवन निर्माण निगम पुनर्जिवित हेबाक बाट पर अछि। सरकार कए लाभांश देबाक स्थिति मे आबि गेल अछि। सवाल अछि जे एहन कोना भ रहल अछि? इ कौन चमत्कार अछि? पूर्ववर्ती सरकार कए एहन कोनो उपाय किया नहि सूझल छल? की ओ सब एहि बारे मे एहने सोच रखैत छलाह? बहरहाल, पुल निर्माण निगम आओर पुलिस भवन निर्माण निगम क बेहतरी क हवाला बाकी बोर्ड- निगम क कर्मी क स्वाभाविक सवाल अछि जे आखिर हुनकर तकदीर किया नहि बदलि रहल अछि? मौजूदा राजग सरकार उक्त दूनू निगम निगम क अलावा जल मल वाहित बोर्ड आ बीज निगम कए पुनर्जीवित केलक अछि। मार्केटिंग बोर्ड बंद भेल, त एकर कर्मी क दोसर विभाग मे सामंजन भेल। सामंजन क दोसर उदाहरण सेहो अछि। औद्योगिक विकास निगम, वन विकास निगम, पंचायती राज वित्त निगम, निर्माण निगम आ इलेक्ट्रानिक्स विकास निगम फेर स जिंदा हेबाक बाट पर अछि। हालांकि एकर रफ्तार मे तेजी नहि अछि। इ सब बुझैत अछि जे एकरा मुकाम देब हंसी-खेल नहि अछि आ सरकार कए कोनो जादू क छडी सेहो हाथ नहि लागल अछि।
अधिकारीक मानि त पूर्ववर्ती सरकार एहि निगम सब कए काज नहि करै देलक। वजह, कमीशनखोरी क चक्कर। ठेकेदार कए काज देब, खासी कमीशन क गुंजाइश रखैत अछि। बोर्ड-निगम त पांच प्रतिशत कमीशन (मुनाफा) पर काज करैत रहल अछि। पूर्ववर्ती सरकार बोर्ड-निगम क संग हद करि देने छल। एकर कथा काफी लंबा अछि। सरकार एहि उपक्रम कए सीधा बंद करबा लेल कोर्ट मे याचिका दाखिल करि देलक। कर्मी क वेतन या अन्य बकाया क भुगतान क बारे मे हुनका लेल किछु नहि केलक। नतीजतन, कोर्ट कईटा परिसमापन याचिका खारिज करि देलक। वन विकास निगम आ वित्तीय निगम क कर्मी पिछला सरकार स इ कहैत रहलाह अछि जे निगम कए बंद करब आत्मघाती होएत। निगम हरदम मुनाफा मे रहल अछि। मुदा सरकार नहि मानलक। वित्तीय निगम क बंदी क फैसला तखन लेल गेल छल, जखन निगम क 1835 करोड़ दोसर पर बकाया था। ओहि दौरान निगम क देनदारी केवल 213.84 करोड़ बचल छल। आइ इ निगम चलि पडल अछि। सबटा उपक्रम क बदहाली या बंदी क लगभग एखने पृष्ठभूमि अछि। अगर एकर इतिहास पर गौर करि त एतबा दिन भ गेल जे बहुत लोक बिसरि गेल जे पटना हाईकोर्ट क तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रवि स्वरूप धवन आ न्यायाधीश शशांक कुमार सिंह क खंडपीठ राजकीय लोक उपक्रम क जांच सीबीआई स करेबाक गप कहने छलाह। तखन प्रदेश मे राजद क सरकार छल। जांच नहि भेल। कारण ज्ञात नहि अछि? एकर आधिकारिक जवाब नहि भेटल। मुदा तथ्य क हिसाब स एकर एक मात्र वजह मानल गेल-लूट क जिम्मेदार नेता आ नौकरशाह कए फंसबा से बचाउल जाए। वाकई, इ उपक्रम बंद भेल नहि जबरन बंद कैल गेल छल। मौजूदा सरकार, एहि पुरान पाप क बोझ उठेबाक मे परेशान नहि अछि। सीबीआई जांच क जरूरत क क्रम मे खुद हाईकोर्ट क धारणा छल-भारी लूट कम्पनी कए दिवालिया बना देलक। मुदा एकरा लेल जिम्मेदार लोक पर कार्रवाई नहि भेल। रवि स्वरूप धवन आ शशांक कुमार सिंह क खंडपीठ क टिप्पणी लगभग सब किछु खोलि दैत अछि-कर्मचारी भूख स मरि रहल अछि। कम्पनी दिवालिया भ रहल अछि, मुदा कखनो वास्तविक दोषी क विरुद्ध दण्डात्मक कार्रवाई नहि कैल गेल। एहन प्रतीत होइत अछि जे केन्द्र, राज्य सरकार आ कम्पनी क अधिकारी जमकए लूटखसोट केलथि अछि। कोर्ट एहि उपक्रम क अद्यतन अंकेक्षण रिपोर्ट आ बोर्ड आफ डायरेक्टर्स क ब्योरा सेहो मंगने छल। मुदा नहि देल गेल। गप एहि ठाम नहि रूकल। कोर्ट लोक उद्यम ब्यूरो क तत्कालीन अध्यक्ष जीएस कंग कए सुनवाई क अवरोधक मानैत नोटिस देलक आ पूछलक जे किया ने अहां कए दंडित कैल जाए? कंग साहब मजे मे रिटायर भ गेलाह आ बिहार छोडि कए चल गेलाह। आओर बहुत गप अछि मुदा आब ओकरा गिजला स कोनो फायदा नहि। घाटा क जिम्मेदार बेफिक्र रहलाह, हुनकर कारनामा दबल रहि गेल। एहि अराजक स्थिति क ढेर कारण अछि। असल मे पूर्ववर्ती सरकार उपक्रम कए अपन राजनीतिक तुष्टि क जरिया बनेने छल। मंत्री नहि भेला पर लोक एहि ठाम सेट भ जाइत छल। मुदा उम्मीद अछि जे एक एक करि सबटा निगम एहि अन्हार गुफा स बाहर आउत आ बिहार क विकास मे अपन योगदान देत।
हालात : राजद बनाम राजग
सरकार राबड़ी सरकार 2003 मे जाहि उपक्रम कए बंद करबाक फैसला लेलथि-
1. बिहार राज्य औद्योगिक विकास विकास निगम
2. चर्मोद्योग विकास निगम
3. इलेक्ट्रोनिक्स विकास निगम
4. चीनी निगम
5. औषधि एवं रसायन विकास निगम
6. फल एवं सब्जी विकास निगम
7. कृषि उद्योग विकास निगम
8. वस्त्र निगम
9. लघु उद्योग निगम
10. हस्तकरघा एवं हस्तशिल्प
11. वन विकास निगम
12. निर्यात विकास निगम
13. निर्माण निगम
14. पुल निर्माण निगम
15. पुलिस भवन निर्माण निगम
16. जल एवं मलवाही बोर्ड
17. पंचायती राज वित्त निगम
18. फिल्म विकास व वित्त निगम (एकरा लेल पटना हाईकोर्ट मे परिसमापन याचिका दाखिल कैल गेल अछि। एकर कर्मी क वेतन आ अन्य भुगतान क बारे मे कोनो व्यवस्था नहि कैल गेल अछि।)
मौजूदा राजग सरकार एहि मे स पुलिस भवन निर्माण निगम, पुल निर्माण निगम, जल एवं मलवाही बोर्ड आ इलेक्ट्रानिक डेवलपमेंट कारपोरेशन कए पुनर्जीवित केलक। तीनटा आओर निगम (औद्योगिक विकास निगम, फिल्म विकास निगम, वन विकास निगम) कए जिंदा करबाक प्रस्ताव अछि। राजग सरकार हाईकोर्ट स चीनी निगम क किछु यूनिट कए पुनर्जीवित करबा लेल परिसमापन याचिका वापस लेलक अछि।
कारनामा पूर्ववर्त्ती सरकार क
क्रम सं. निगम क नाम वेतन बंदी क अवधि
1. कृषि उद्योग निगम मई 1993 स
2. रसायन निगम अगस्त 1993 स
3. हस्तकरघा-हस्तशिल्प निगम मई 1993 स
4. लघु उद्योग निगम अप्रैल 1993 स
5. चीनी निगम इकाई 1992 स
6. चर्मोद्योग निगम मार्च 1993 स
7. फिनिश्ड लेदर मार्च 1993 स
8. औद्योगिक निगम इकाई मे 1993 स
9. इलेक्ट्रानिक्स निगम इकाई मे 1998 स
10. वस्त्र निगम नवम्बर 1996 स
11. फिल्म निगम अगस्त 2002 स
12. फल-सब्जी निगम अगस्त 1994 स
13. बीज निगम मई 1999 स
14. मत्स्य निगम फरवरी 97 स
15. पंचायती वित्त निगम मार्च 1996 स
16. निर्माण निगम जनवरी 1992 स
17. निर्यात निगम अक्टूबर 2003 स
18. वन निगम दिसंबर 2001 स
19. सालवेंट-केमिकल लि. मार्च 1996 स
20. टैनिन एक्स्ट्रैक्ट सितंबर 1997 स
21. पथ परिवहन निगम जनवरी 1992 स
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राजकीय लोक उपक्रम, असामयिक मौत क कारक अछि। एकर कर्मी क आत्महत्या क कारण बुझबा लेल मनोवैज्ञानिक विश्लेषण क जरूरत नहि अछि। इ सीधा भूख क मसला अछि। जे कर्मी जीबैत छथि, ओ लाशक भांति भ चुकल छथि। अजीब विडंबना अछि। व्यवस्था चलेनिहार बीच-बीच मे हिनका सब कए बेहतरी क आस सेहो देखा दैत छथि। मुदा ओ दिन पता नहि अहिया आउत जखन इ सब सेहो आदमी मानल जेताह ..
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सुप्रीम कोर्ट क भुगतान संबंधी आदेश, सपरिवार भूख स मरैत कर्मी लेल जिनगीक नव आस छल। इ सब विजय जुलूस निकालने छलाह। मुदा ..! जस्टिस उदय सिन्हा कमेटी क अनुसार एक सितम्बर, 2006 तक बकाया क स्थिति छल :- नवंबर 03 तक वेतन भुगतान क लेल 200 करोड़ टका चाही ।
2003 स 2006 तक वेतन भुगतान पर 150 करोड़ खर्च होएत। सेवानिवृति लाभ वास्ते 500 करोड़ चाही।
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तस्वीर
* सुप्रीम कोर्ट क आदेश स 9 मई 2003 कए 50 करोड़ आ 13 जनवरी 2005 कए 75 करोड़ टका क भुगतान भेल।
* जनवरी 2011 तक 14टा निगम क कर्मी क कर्मी कए 11861417313 टका बकाया छल। 1621098528 क भुगतान भेल। एखनो 10240318785 टका बकाया अछि।
* 9 अगस्त 2010 कए सुप्रीम कोर्ट एहि मामला कए हाईकोर्ट कए सुपुर्द करि देलक। हाईकोर्ट क स्तर स बकाया क भुगतान क बारे मे किछु नहि भेल अछि। जिंदा लाश क मुकदमा लडि रहलाह अछि अश्विनी कुमार। ओ कहला जे एहि बारे मे हाईकोर्ट मे लोकहित याचिका दाखिल भेल। ओ खारिज भ गेल। कोर्ट क निर्देश भेल जे एहि बारे मे संबंधित लोग व्यक्तिगत स्तर पर याचिका दाखिल करथि। कुमार एहि फैसला क खिलाफ सुप्रीम कोर्ट मे एसएलपी (1026/11) दाखिल केने छथि।
* लघु उद्योग निगम क कर्मी अपन वेतन भुगतान क लेल 1997 मे पटना हाईकोर्ट गेलथि। याचिका संख्या-2737 पर लंबा सुनवाई चलल। एहि पर 26 अक्टूबर 2010 कए फैसला आयल। एहि मे वेतन भुगतान करबाक गप अछि। सरकार एकर खिलाफ 2011 मे एलपीए मे गेल। 30 मार्च 2011 कए फैसला आयल। एलपीए खारिज करि देल गेल। मुदा एखन धरि वेतन भुगतान क सुगबुगाहट नहि अछि।