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Home विचार

मैथिली, मैथिल संस्कृति आओर मिथिला राज्य-2

July 31, 2010
in विचार, समाचार
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दोसरसमाचार

मिथिला विकसित केलक एकटा आओर आमक प्रजाति, पातर छिलका, छोट सन गुठली आ स्वाद लाजबाव, नाम बुझबा लेल पढू समाचार

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मिथिलाक विकास पर लिखल गेल पत्रकार सुशांत झा क आखेख क दोसर भाग जाहि मे मुख्य रूप स मे मिथिलाक विकास मे मिथिला राज्स क भूमिका आ ओकर समग्रता पर विचार कैल गेल अछि।

सुशांत झा
एकटा प्रश्न मिथिला राज्य क निर्माण स सेहो जुड़ल अछि। मिथिला कए इलाका अप्पन दरिद्रता, विशालता, भाषाई विशिष्टता क वजह स राज्य कए दर्जा पाबै क पूरा हकदार अछि, मुदा की सिर्फ मिथिला राज्य बनि गेला स हमर भाषा क पूरा विकास भय पाओत? हम एतय राज्य बनि गेला कए बाद आर्थिक विकास कए उम्मीद त कय सकै छी, मुदा की भाषाई आ सांस्कृतिक विकास भय पाओत ? उत्तराखंड या छत्तीसगढ़ बनि गेला क बादो ओहि ठामक स्थानीय भाषा क की हाल अछि, ई एकटा शोध क विषय भ सकैत अछि। दोसक गप्प, मैथिली क एकरुपता स जुड़ल अछि। एतय मैथिल भाषी आ ओकर साहित्यकार खुद एकर जिम्मेवार छथि। दरभंगा-मधुबनी क मैथिली कए मानक बना कए हम केना पूरा मिथिला क ठेका उठबै क दावा कए सकैत छी ? एखनो दरभंगा-मधुबनी क भाषाई अहं, सहरसा-पूर्णिया आ मधेपुरा बला कए अहि आन्दोलन कए शंका क दृष्टि स देखै पर मजबूर कए रहल अछि। हमर ई माननाई अछि जे मैथिली कतौ क हुए, ओकर मूल रुप मे जाबे तक ओकरा स्वीकार नहि कयल जाएत, मिथिला आ मैथिली आन्दोलन क बहुत फायदा नहि हुअ बला।
दोसर गप फेर लिपि क अछि। की हम मिथिला राज्य बनि गेला क बादो मैथिली कए मिथिलाक्षर मे लिखि सकब ? की हम देवनागरी स मुक्त भ सकब ? की हम राष्ट्र कए मुख्यधारा स टकरेबाक साहस क सकब…आ दरभंगा-सहरसा क शहरी वर्ग क मैथिली बाजै आ लिखै कए लेल मना या प्रेरित कए सकब-ई लाख टका क प्रश्न। देखल जाए त सांस्कृतिक रुप स हमर मिथिला, बंगाल क बेसी नजदीक अछि, मुदा हमर राजनीतीक जुड़ाव हिंदी पट्टी स स्थापित कए देल गेल अछि। इतिहास क अहि आघात स मुक्ति कोना भेटत, राज्य निर्माण एकटा कदम त भ सकैत अछि, मुदा हिंदी क इन्फ्रास्ट्रक्चर हमर जनता क मजबूर कए देने अछि जे हम अपन लेखन या पाठन हिंदी में करी। हमरा ओकर लत लागि गेल अछि आ हमर भाषा सिर्फ बाजै कए भाषा बनि कय रहि गेल अछि। तखन उपाय की अछि ?
मैथिली क बारे मे किछु विज्ञ लोक स जखन चर्चा होईत अछि त कहैत छथि जे 50 या 60 क दशक मे जते मैथिली क आन्दोलन मजबूत छल ओते आब नहि। सर गंगानाथ झा, या अमरनाथ झा या उमेश मिश्र या हरिमोहन बाबू घनघोर मैथिलवादी छलाह। ओ या त अंग्रेजी मे संवाद करैत छलाह या फेर मैथिली मे। ओ हिंदी क भाषाई साम्राज्यवाद कए चीन्ह गेल छलाह- ओ उर्जा एखन कहां देखि रहल छी ?
हमर बहिन कैलिफोर्निया मे रहैत अछि। ओकरा ओतय कएटा मैथिल टकराईत छथिन्ह जे मैथिली मे गप्प करैत छथि। मुदा ई चेतना भारत मे कहां अछि ? एतय ओ हिंदी किएक बाजय लगैत छथि ? जे अपनापन ओ अमेरिका मे ताकय चाहैत छथि ओ भारत मे किएक नहि करैत छथि-एकर कोनो जवाब हमरा नहि सुझाईत अछि।
एम्हर किछु लोग बहुत एलिट भेला क बाद फेर स अपन रुट स जुड़ै क कोशिश कए रहल छथि। शायद ओ हॉलीवुड स्टार सबस प्रेरणा ल रहल होईथि। ओरकुट या फेसबुक पर मिथिला क गामक तस्वीर फेर स जागि रहल अछि। एकटा महत्वपूर्ण भूमिका मिथिला पेंटिंग क सेहो अछि। मुदा लेखन या पठन क स्तर पर एखनो लोक मैथिली स कहां जुड़ि पेला अछि? जाहि भाषा-भाषी क जनसंख्या नौ करोड़ स ऊपर हुए ओतय कोनो नीक अखबार या पत्रिका कहां देखि रहल छी। तखन त इंटरनेट के धन्यवाद देबाक चाही जे ओ एहि दिसा मे नीक काज कए रहल अछि-कारण जे अहि मे पूंजी कम लगैत छैक।
एकटा उम्मीद ऑडियो-विजुअल माध्म स अछि मुदा हमर भाषा ओहू मोर्चा पर भोजपुरी जका प्रदर्शन नहि कए रहल अछि। हालांकि भोजपुरी क विशाल आबादी आ अंतराष्ट्रीय बाजार ओकरा सहयोग कए रहल छैक, मुदा ओहू स बेसी महत्वपूर्ण हमरा जनैत ई जे हमर भाषा बेसी क्लासिकल होई क वजह स अहि मोर्चा पर पिछड़ि रहल अछि। मैथिली भाषा लेखन क परंपरा स विकसित भेल अछि आ बेसी मर्यादित अछि, जखन की भोजपुरी मे लेखन क परंपरा स बेसी बाचन क परंपरा छैक। ई क्लासिकल भेनाई हमर भाषा क पोपुलर कल्चर स काटि कए राखि देने अछि। मिथिला मे संभ्रान्त वर्ग क मैथिली अलग आ आम जन क मैथिली अलग भ गेल छैक। एकर अलावा लेखन क परंपरा होईके कारण एकर लोकगीत आ नाट्य मे एक प्रकारक अश्लीलता या बेवाकपन क बड्ड कमी छैक जे भोजपुरी मे प्रचुर रुप स छै। ताहि कारणें हमर भाषा मे हाहाकारी रुप स हिट लोकगीत क कैसेट या फिल्म नहि बनि पबैत अछि। परिणाम ई जे मैथिली क दर्शक भोजपुरिये गीत या फिल्म क आनंद बेसी लैत छथि-जे बाजार द्वारा हुनकर बेडरुम तक पहुंचा देल गेल अछि। लोक ‘महुआ’ चौनल त देखैत छथि, मुदा ‘सौभाग्य मिथिला’ क बारे मे कतेक लोक कए पता छन्हि ? मैथिली क बाजार नहि बनि पायल अछि। इहो प्रश्न विचारणीय।
तखन हमर भाषा कए उम्मीद कतय अछि ? की सिर्फ ‘विल पावर’ आ गार्जियन सबकए अतिशय जागरुकता हमर उम्मीद अछि जे ओ अप्पन बच्चा सबके कम स मैथिली जरुर सिखाबथु या आओर किछु ?
लगैये हम बेसी निराश भय रहल छी। शायद हमरा एतेक निराश नहि हेबाक चाही। जे भाषा हजार साल स लेखन आ वाचिक परंपरा स जीवित अछि ओ आगूओ जीवैत रहत। एकर स्रोता ओ किछु हजार या लाख लोग नहि छथि जे दरभंगा-पटना या दिल्ली मे आबि क कॉरपोरेट भ गेल छथि-बल्कि ई भाषा करोड़क करोड़ मैथिल भाषी क हृदय मे जीवित अछि जे एखनो कोसी क बाढ़ि आ जयनगर रेलवे लाईन क कात मे पसरल हजारो गाम मे रहैत छथि। हमर ई विवशता अछि जे हमर युवा आबादी, जवान होईते देरी दिल्ली-बंबै भागि जाईत अछि। अबै बला समय मे जखन आर्थिक गतिविधि हमरा इलाका मे पसरत त लोक क पलायन नहि हेतै, लोक अप्पन भाषा मे संवाद करैत रहत। अहि शुभेच्छा कए जियबैक लेल हमरा आर्थिक लड़ाई लड़य पड़त। दिल्ली आ पटना क सरकार स अप्पन हक मांगए पड़त, इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत करए पड़त। शायद मिथिला राज्य ओहि दिसा मे एकटा पैघ कदम साबित हुए। कम स कम मिथिला राज्य क निर्माण क अहि आधार पर जरूर समर्थन करक चाही। आ मैथिल बुद्धिजीवी सबकए एहि आन्दोलन मे अहम भूमिका क निर्वाह करैय पड़तन्हि।

Tags: मिथिला राज्यमैथिल संस्कृतिमैथिली
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Comments 3

  1. Dr. dhanakar Thakur says:
    13 years ago

    सुशांत झा के हमर बधाई जे किछु प्रश्न मिथिला राज्यक निर्माणस रखलाह. मिथिला राज्य बनि गेलास हमर भाषाक पूरा विकास भय पाओत वा नहीं बिहारमे ई त नाहीये भेल आ हिन्दिपत्तिमे हम आबी गेलंहु . छत्तीसगढ़ बनि गेला क बाद रायपुरमें ओहि ठामक स्थानीय भाषामें उद्घोषाना रैल्मे होइत अछि जखंकी छत्तीसगढ़ी संविधानक असतं अनुसूचिमे नहीं अछि जाही लेल हुनक मांग चली रहल छानी,

    मैथिलीक एकरुपता लेल मैथिलभाषी आ ओकर साहित्यकार खुद एकर जिम्मेवार छथि। दरभंगा-मधुबनी क मैथिली कए मानक बना कए हम केना पूरा मिथिला क ठेका उठबै क दावा कए सकैत छी ? से ठीक मुदा कोनो भाषक स्वरूपमे जे पहिने लिखलक तकरे चालित छैक जेना वर्ध्मंक शंतिपुरी बंगला में धकमे सेहो लिखल जीत छैक व वरनासिक हिंदी दिल्ली व भोपाल व पटनामे .

    दरभंगा-मधुबनी क भाषाई अहं कोनो साहित्यकारके भू सकित छैक मुदा सहरसा-पूर्णिया आ मधेपुरा बला ताहि लेल आन्दोलनमें नहीं एतः वा छठी ई निराधार अछि ओना ई त ठीक जे मैथिली कतौ क हुए, ओकर मूल रुप मे जाबे तक ओकरा स्वीकार कयल जाएत, लेकिन किताबी मैथिलिक एक स्वरुप त तय कराय परत जे मिथिला सरकारक नहीं साहित्यकारक काज छानी

    लिपि लेल मिथिलाक्षरक आग्रह हो दुराग्रह नहीं कारन देवनागरी संस्कृतक लिपि छैक आ मराठी आ नेपाली सेहो एहिमे लिखल जीत अछि जेना रोमनमें फ्रेंच व इटालियन सेहो,

    देवनागरीस मुक्त भ राष्ट्र कए मुख्यधारा स हत्बक जरुरत नहीं अची बल्कि विनोबक कथन अनुसरे भरक सब भाष देव्नाग्रैमे लिखल जय त नीक

    मिथिलाक भाषा मैथिलि आ संस्कृत रहत( उत्तराखंड अपन दोसर भाषा संस्कृत बना चौकल अछि) एहेन संस्कृत जे असं हो- द्वितीय वचांस मुक्त केवल चारी बिभक्ति आ तीन कल्रुप्क संस्कृत भारतक राष्ट्रभाषा सेहो भय सकित अछि हिंदी जंक ओकर दक्षिणमे विरोध बही हेतैक …

    जब्त मिथिला राज्य नहीं बनत एहिना दरभंगा-सहरसा क शहरी वर्ग क मैथिली बाजै आ लिखै स दूर हातात

    ओना मिथिला राज्यक निर्मंक अद्धर आब आर्थिक अधिक होयत बजे भाषायीक जाकर समय जे ५०-६०क दशक छालैल तही में आन्दोलन नहीं भेल ठीक स

    ठीक जे सांस्कृतिक रुप स हमर मिथिला, बंगाल क बेसी नजदीक अछि, मुदा हमर राजनीतीक जुड़ाव हिंदी पट्टी स स्थापित कए देल गेल अछि। इतिहास क अहि आघात स मुक्ति राज्य निर्माण.

    हिंदी क इन्फ्रास्ट्रक्चर हमर जनता क मजबूर कए देने अछि जे हम अपन लेखन या पाठन हिंदी में करी। मुदा ओहुस अधिक जोर गलत अंगरेजी बजाक नौकरीक लोभ्मे छैक t

    मैथिलीक जे समर्थक अंग्रेजीमे संवाद करैत छलाह हुनका बारेमे हमर सोच ई अछि जे ओ सब मैथिलीक भक्त होइतन्हु रस्त्रक विषद आयाम में एही लेल सोचलाह जे हुनका अपन अस्तित्वालोप क संकट छाल्ह्नी जाकर निराकरण मैथिलीक मान्यतालेल आर एस एस क सरसंघचालक सुदार्शंजीक २००० एस्वीमे गुरुमैताजीक संग वज्पयीस भेंट छलनी जखान ओ मान्यता लेल मासिक रुपे तैयार भेलाह आ एही में हिंदीक भाषाई साम्राज्यवाद के मन्य्बाला लोक मैथिलीक अपकार कराय बाला छथी

    देशक अमीर मैथिल मैथिली भानही छोड़ने होती गाममे लोक एकरा बजैत रहत आ राज्य निर्माण स एकरा बल भेटिक

    एम्हर किछु लोग बहुत एलिट भेला क बाद फेर स अपन रुट स जुड़ै क कोशिश कए रहल छथि। मुदा एही लेल अन्हाके अरविन्द घोष व शिवसागर रामगुलामक याद कियैक नहीं अबैत छथि ओ हॉलीवुड स्टार कियैक?

    ओरकुट या फेसबुक पर मिथिला क गामक तस्वीर फेर स जागि रहल अछि।

    एकटा महत्वपूर्ण भूमिका मिथिला पेंटिंग क सेहो अछि। मुदा मिथिल्क आनो चीजक विकास चाही जे बिहारमे नहीं भेल- आई आई टी दरभंगामे कियैक नहीं – नालान्फा विश्वविद्यालय हो से ठीक मुदा तखन सेंट्रल उनिवेर्सित्य सेहो पटनामे कियैक ?

    जब्त राज्य आ एही स सम्बंधित विज्ञापन आदिक महल नहीं बनत नीक अखबार या पत्रिका नहीं चलता

    तखन त इंटरनेट के धन्यवाद देबाक चाही जे ओ एहि दिसा मे नीक काज कए रहल अछि-कारण जे अहि मे पूंजी कम लगैत छैक।

    भोजपुरी जका प्रदर्शन के अश्लील चित्र मिथिलाक देखआयब सेहो उचित नहीं लोक ‘महुआ’ चौनल त देखैत छथि, मुदा ‘सौभाग्य मिथिला’ क बारे मे कतेक लोक कए पता छन्हि ? मैथिली क बाजार नहि बनि पायल अछि। इहो प्रश्न विचारणीय।
    गार्जियन सबकए अतिशय जागरुकता हमर उम्मीद अछि जे ओ अप्पन बच्चा सबके कम स मैथिली जरुर सिखाबथु या आओर किछु ?
    हम स्वयं अररियक फर्बिस्गंज्क हिंदी माहौल में जानमाल आ पला, पर्हल छी मुदा हमर घरमे मैथिलि चलिअत छल आ तहिना राजस्थानमे हमर कक्काक घरमे आब हुनको आ हमर पीटक पोता सभ हिंदी बजैत अछि कारन हुनक माईके मैथिलीस लाज लगोट छानी जखंके सब दरभंगे मधुबनिक छठी संभव हमर पोता सब स्वयं मैथिली किताब आणि सीखी लियी जेना हेब्रेव यहूदी सिख्लैथी मुदा ताहू लेल इस्रैल्क निर्माण पाहिले भेलैक..

    ठीकाणी “एतेक निराश नहि हेबाक चाही। जे भाषा हजार साल स लेखन आ वाचिक परंपरा स जीवित अछि ओ आगूओ जीवैत रहत। एकर स्रोता ओ किछु हजार या लाख लोग नहि छथि जे दरभंगा-पटना या दिल्ली मे आबि क कॉरपोरेट भ गेल छथि-बल्कि ई भाषा करोड़क करोड़ मैथिल भाषी क हृदय मे जीवित अछि जे एखनो कोसी क बाढ़ि आ जयनगर रेलवे लाईन क कात मे पसरल हजारो गाम मे रहैत छथि। हमर ई विवशता अछि जे हमर युवा आबादी, जवान होईते देरी दिल्ली-बंबै भागि जाईत अछि। अबै बला समय मे जखन आर्थिक गतिविधि हमरा इलाका मे पसरत त लोक क पलायन नहि हेतै, लोक अप्पन भाषा मे संवाद करैत रहत। अहि शुभेच्छा कए जियबैक लेल हमरा आर्थिक लड़ाई लड़य पड़त। दिल्ली आ पटना क सरकार स अप्पन हक मांगए पड़त, इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत करए पड़त।”

    मिथिला राज्य ओहि दिसा मे एकटा पैघ कदम साबित होयत । मिथिला राज्य क निर्माण क अहि आधार पर जरूर समर्थन करक चाही। आ मैथिल बुद्धिजीवी सबकए एहि आन्दोलन मे अहम भूमिका क निर्वाह करक चाही.

    डॉ. धनाकर ठाकुर

    Reply
  2. Jaynti Charan Jha says:
    13 years ago

    Shushant ji Apne t gap bahut satik kahliye ya. Muda baat aitham chhai jai ki kate prtishat wakti chhait je Mithila Rajya Ya Mithilanchal chahet chhait. Akhan jahan ekta nai chhain t ki ummid kel jaye saket aicch ki baad main ekta kayam bha saket aichh.

    Reply
  3. पंकज झा says:
    12 years ago

    उद्वोधन

    Reply

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