आइ बिहार 101 सालक भ गेल । बिहारक जन्म दिवस क जश्न सब बिहारी पर देखा रहल अछि। पटना क सडक सोनू निगम आ राजन मिश्र सन अनेक कलाकार क पोस्टर स पटल अछि। होली क रंग सेहो कतहु नहि कतहु एहि उत्सव मे झपा गेल अछि। लोग उत्साहित छथि आ जोश मे सेहो, मुदा देखल जाए त एखनो बिहारी बंगाल स अलग हेबाक ओहि कारण स परिचित नहि भ सकल अछि जाहि स इ उत्सव अपन मूल उद्देश्य स दूर देखा रहल अछि। एहन मे इ उत्सव महज एकटा सरकारी आयोजन जेकां लगैत अछि जाहि मे आत्मीयता क घोर अभाव अछि। बिहार दिवस क मौका पर हेरायल बिहारियत कए तकबाक उद्देश्य स लिखल गेल इ आलेख मे पत्रकार सुनील कुमार झा आ नीलू कुमारी किछु बिहार आ किछु बिहारियत कए तकबाक प्रयास केलथि अछि – समदिया
बिहार शब्द सौ साल पुरान जरूर अछि मुदा 1765 में जखन ईस्ट इंडिया कम्पनी कए एकर दीवानी भेटल छल तखन स एहि इलाका क प्रशासनिक पहचान खत्म हुए लागल छल। एकर बाद बिहार क इ इलाका महज एकटा भौगोलिक इकाई बनि कए रहि गेल, अगिला सौ सवा सौ साल मे बिहारी एकटा सांस्कृतिक पहचान क रूप मे त रहल मुदा एकर बिहार क प्रांतीय या प्रशासनिक पहचान मिटा गेल।
बिहार क इतिहास संभवतः सच्चिदानन्द सिन्हा स शुरू होइत अछि। किया कि राजनीतिक स्तर पर सबस पहिने श्री सिन्हा बिहार क गप उठेलथि। कहल जाइत अछि जे सिन्हा जखन वकालत पास क इंग्लैंड स लौटलथि त हुनका स एकटा पंजाबी वकील पूछने छल जे मिस्टर सिन्हा अहां कोन प्रान्त क रहनिहार छी। डा. सिन्हा जखन बिहार क नाम लेलथि त ओ पंजाबी वकील आश्चर्य मे पडि गेल। किया त बिहार नाम क कोनो प्रांत देश मे नहि छल। ओ कहलक जे बिहार नाम क त कोनो प्रांत अछि नहि फेर अहां बिहारी कोना छी। डा. सिन्हा कहला जे नहि अछि मुदा जल्द बनत। इ घटना फरवरी, 1893 क छी। ओकर बाद बहुत रास घटना घटल जे बिहारी अस्मिता कए झंकझोर कए राखि देलक। ओ एकटा एहन समय छल जखन बिहारी युवा (पुलिस) क शरीर पर ‘बंगाल पुलिस’ क बिल्ला लटका देल जाइत छल। ओहि कालखंड मे बिहार क आवाज बुलंद करबा लेल चंद लोक सामने छलाह, जाहि मे महेश नारायण, अनुग्रह नारायण सिंह, नंदकिशोर लाल, राय बहादुर आ कृष्ण सहाय क नाम प्रमुख अछि। बिहार स तखन कोनो अखबार नहि छल, कोनो प्रत्रिका सेहो बिहार स नहि निकलैत छल। बाद मे बिहार स प्रकशित भेल एक मात्र अखबार ‘द बिहार हेराल्ड’ जे बिहारी क हित लेल गप करैत छल। तमाम बंगाली अखबार बिहार पृथक्करण क विरोध करैत छल, किछु बिहारी पत्रकार बिहार हित क गप त करैत छलाह मुदा अलग बिहार क मुद्दा पर एकदम अलग राय रखैत छलाह।
बिहार कए अलग करबा लेल जनमत तैयार करबाक उद्देश्य स 1894 मे डॉ. सिन्हा ‘द बिहार टाइम्स’ अंग्रेज़ी साप्ताहिक क प्रकाशन शुरू केलथि। बाद मे ‘बिहार क्रानिकल्स’ सेहो बिहार अलग प्रांत क आन्दोलन क समर्थन करबा लेल आगू आयल । 1907 मे महेश नारायण क मृत्यु क बाद डॉ. सिन्हा असगर भ गेलाह । एकर बावजूद ओ अपन मुहिम कए जारी रखलथि आ 1911 मे अपन मित्र सर अली इमाम कए केन्द्रीय विधान परिषद मे बिहार क मामला रखबा लेल उत्साहित केलथि। 12 दिसम्बर, 1911 कए ब्रिटिश सरकार बिहार आ उड़ीसा लेल एकटा लेफ्टिनेंट गवर्नर इन कौंसिल क घोषणा क देलक। धीरे धीरे मुहीम रंग अनलक आ 22 मार्च, 1912 कए बिहार बंगाल स अलग भ स्वतंत्र राज्य भ गेल।
1911 मे बिहार क बंगाल स अलग भेला आइ 101 साल भ गेल। मुदा एखनो बिहारियत अपन बाल अवस्था मे अछि। इतिहास क एहि दस्तावेज कए आम लोक एखनो पढबा या बुझबा मे समर्थ नहि छथि। आखिर की कारण छल जे बिहार कए बंगाल स अलग करबाक निर्णय ब्रिटिश सरकार लेने छल … एहि प्रश्न क एकटा उत्तर इ देल जाइत अछि जे ब्रिटिश सरकार बंगाल क टुकडा करि कए उभरैत राष्ट्रवाद कए कमजोर करबाक प्रयास केलक। पहिने ओ बंग-विभाजन करबाक कोशिश केलक मुदा बाद मे बंगाल स बिहार आ उडीसा कए अलग करबा मे सफल भ गेल। ओना बंग विभाजन सन कोनो विरोध बिहार विभाजन क समय नहि भेल, इ लगभग स्वाभाविक छल किया त बिहार कए पृथक राज्य बनेबाक आन्दोलन क पाछु सच्चिदानंद सिन्हा आ महेश नाराय़ण समेत अन्य आधुनिक बुद्धिजीवि क नेतृत्व छल।
“बिहार बिहारी लेल” क विचार सर्वप्रथम मुंगेर क एकटा उर्दू अखबार मुर्घ -इ- सुलेमान छपने छल। एकटा अन्य पत्र कासिद सेहो एहि तरहक वक्तव्य प्रकाशित केने छल। एहि कालखंड क बिहार क प्रथम हिन्दी पत्र- बिहार बन्धु जेकर संपादक केशवराम भट्ट छलाह सेहो एहन विचार रखैत रहलाह । बिहार क अलग हेबाक बहुत कारण मे स कईटा कारण आंदोलनक मुख्य मुद्दा बनैत रहल। बिहार क प्रशासन आ शिक्षा क क्षेत्र मे बंगाली क वर्चस्व। एल. एस. एस ओ मैली स ल कए वी सी पी चौधरी तक इ आरोप लगेने छथि जे अंग्रेज़ बिहार क प्रति लापरवाह छल आ बिहार लगातार उद्योग धंधा स लकए शिक्षा, व्यवसाय आ सामाजिक क्षेत्र मे पिछउैत जा रहल छल। चूँकि बिहार मे बर्धमान क राजा या कासिमबाजार क जमींदार जेकां कियो पैघ जमींदार नहि छल जाहि लेल एहि ठाम क एलिट सेहो उपेक्षित रहलाह। दरभंगा महाराज कए छोडि कए बिहार क कोनो पैघ जमींदार कए अंग्रेज महत्त्व नहि दैत छल। एहन मे दरभंगा महाराज सेहो मानैत छलाह जे बंगाल क अंग क रूप मे रहिकए विकास समुचित संभव नहि भ रहल अछि। एहि स निष्कर्ष निकलब स्वाभाविक छल जे बिहार कए बंगाल क भीतर रहि कए प्रगति लेल सोचना असंभव छल।
बिहार कए बंगाल प्रेसिडेंसी स अलग करि एकटा अलग राज्य क निर्माण करबाक काज 1870 स शुरू भ गेल छल । बिहारी कए इ आभास भ गेल छल जे स्कूल, कॉलेज स लकए अदालत आ सरकारी दफ्तर क नौकरी मे बंगाली क वर्चस्व अनैतिक रूप स बढल जा रहल अछि। बिहार क प्रथम समाचार पत्र बिहार बन्धु मे एहि आशय क लेख प्रकाशित भेल। सरकारी मत एहि स सहमत नहि छल। ओकर कहब छल जे बंगाली क अंग्रेजी ज्ञान बिहारी स नीक अछि।
1872 मे , बिहार क तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर जॉर्जे कैम्पबेल लिखने छथि जे चूंकि बिहार क शासन बंगाल स बंगाली अधिकारी द्वारा नियंत्रित कैल् जाइत अछि ताहि लेल सब मामला मे अंग्रेजी मे पारंगत बंगाली क तुलना मे बिहारी लेल असुविधाजनक स्थिति बनैत अछि। कलकत्ता स प्रकशित एक पत्र क सम्पादकीय मे एकर विश्लेषण खास तौर कैल गेल जे बिहार क लगभग सबटा सरकारी नौकरी बंगाली क हाथ मे अछि। जिलावार विश्लेषण क पत्र मे लिखल गेल जे भागलपुर, दरभंगा, गया, मुजफ्फरपुर, सारन, शाहाबाद आ चम्पारन जिला क कुल 25 डिप्टी मजिस्ट्रेट आ कलक्टर मे स 20टा बंगाली अछि। कमिश्नर क दूटा सहायक सेहो बंगाली अछि। पटना क 7टा मुंसिफ ( भारतीय जज) मे स 6टा बंगाली अछि आ एहने स्थिति सारन क सेहो अछि। इ स्थिति सिर्फ जिला मुख्यालय मे नहि, सब-डिवीजन स्तर पर सेहो छल । सम्पादकीय क निष्कर्ष छल जे बिहार क नौकरी कए बंगाली आकांक्षा क सेवा मे लगा देल गेल अछि।
बंगाली स पूर्व बिहार मे नौकरी पर कुलीन मुसलमान आ कायस्थ क कब्ज़ा छल। स्वाभाविक छल जे बंगाली क खिलाफ सबस मुखर मुसलमान आ कायस्थ छल। यैह सब ‘बिहार बिहारी लेल ‘ क नारा उठेलथि, पहिने कुलीन मुसलमान एकरा मुद्दा बनेलथि फेर कायस्थ एकरा आगू बढेलथि।
अंग्रेज़ी शिक्षा क क्षेत्र मे बिहार बहुत कम तरक्की केने छल, सबकिछु कलकत्ता स तय होइत छल एहि लेल बिहार मे कॉलेज सेहो कम खोलल गेल। इ बहुत प्रचारित नहि अछि जे जखन कॉलेज खोलबाक निर्णय कैल गेल त ब्रिटिश कम्पनी सरकार तय केलक जे बंगाल प्रेसिडेंसी मे दूटा कॉलेज खोलल जाएं- एकटा अंग्रेजी शिक्षा लेल कलकत्ता मे आ एकटा संस्कृत शिक्षा लेल तिरहुत अंचल मे किया कि पारम्परिक संस्कृत शिक्षा केन्द्र क रूप मे तिरहुत प्रसिद्ध छल। इ बंगाल क प्रसिद्ध लोक कए नीक नहि लागल आ संस्कृत कॉलेज सेहो कलकत्ता मे खोलल गेल। बिहार मे पैघ कॉलेज क रूप मे पटना कॉलेज छल जेकर स्थापना 1862-63 मे कैल गेल छल। एहि कॉलेज मे बंगाली वर्चस्व एतबा बेसी छल जे 1872 मे जॉर्ज कैम्पबेल इ निर्णय लेलथि जे एकरा बंद क देल जाए। ओ एहि स क्षुब्ध थेछलाह जे 16 मार्च 1872 कए कलकत्ता विश्वविद्यालय क दीक्षांत समारोह मे उपस्थित ‘बिहार’ क सबटा छात्र बंगाली छलाह! इ सरकारी रिपोर्ट मे उद्धृत कैल गेल अछि जे “हम बिहार मे कॉलेज केवल प्रवासी बंगाली क शिक्षा लेल खुलबाक पक्षधर नहि छी”। हुनक एहि निर्णय क विरोध बिहार क प्रबुद्ध लोक केलथि, हुनकर सबहक कहब छल जे कॉलेज कए बन्द नहि कैल जाए किया त बिहार मे इ एकमात्र शिक्षा केन्द्र अछि जाहि ठाम बिहार क छात्र डिग्री क पढाई क सकैत छथि।
बिहार क सरकारी नौकरी मे बंगाली वर्चस्व पर कईटा सरकारी रिपोर्ट मे प्रमुखता स लिखल गेल अछि जे बिहारी ;बंगाली क रहमोकरम पर छथ्रि, जे नौकरी वो नहि सवीकार करैत छथि ओ बिहारी कए भेट जाइत अछि। इ रिपोर्ट तहलका मचा देलक। अंतत: सरकार जगल आ आदेश देलक जे रिक्त स्थान पर बिहारी कए नौकरी पर राखल जाए। एहि प्रकार स सरकारी विज्ञापन सेहो समाचार पत्र में छापल गेल जे “बंगाली बाबु आवेदन नहि करू”. बिहार मे सेहो 1870 आ 1880 क दशक मे कईटा सरकारी आदेश अछि जाहि मे एहि प्रकारक निर्देश क उल्लेख अछि जे नौकरी मे बिहारी कए नियुक्त कैल जाए।
एहि मे कोनो संदेह नहि जे बंगाली क प्रति अंग्रेज क विद्वेष क पाछु केवल बिहारी क प्रति हुनकर कोनो लगाव छल। विभिन्न कारण स बंगाल मे चलि रहल गतिविधि स जुडबाक कारण बिहार मे सेहो बंगाली समाज सामाजिक आ राजनैतिक रूप स सजग छल। हुनकर प्रभाव स शांत रहल प्रदेश बिहार सेहो अंग्रेज़ विरोधी राष्ट्रवादी आन्दोलन स जुडबा लेल तैयार भ रहल छल। कईटा इतिहासकार क मत अछि जे बंगाली क प्रति बिहारी क मन मे विद्वेष पैदा करब अंग्रेज सरकार क एकटा साजिश चाल छल। ओ नहि चाहैत छल जे राष्ट्रीय आ क्रांतिकारी विचार क जोर बिहार मे बढै।
एहि मे संदेह नहि जे बिहार मे बंगाली नवजागरण क प्रभाव पडल छल। इ नहि बिसरल जा सकैत अछि जे भूदेव मुखर्जी सन बंगाली बुद्धिजीवी-अधिकारी क कारण हिन्दी कए बिहार मे प्रशासन आ शिक्षा क माध्यम क रूप मे स्वीकृति भेट सकल। बिहार मे प्रेस क क्षेत्र मे क्रांतिकारी भूमिका प्रदान करनिहार महापुरूष- केशवराम भट्ट आ रामदीन सिंह कए आइ सब बिसरि गेल। एकर सबहक बावजूद इ सच अछि जे बिहार क बहुतरास शिक्षित लोक कए इ लगैत छल जे बंगाल क संग भेला स आ प्रशासन क कलकत्ता स नियंत्रण हेबाक स बिहारी क प्रति सरकार न्याय नहि क पाबि रहल अछि। आ यैह एकटा खास वजह छल जे बिहार कए अलग करबा मे खास भूमिका निभेलक।
1890 क दशक मे बिहार क पत्र पत्रिका मे (खासकर बिहार टाइम्स मे ) लिखल गेल जे बिहार क आबादी 2 करोड 90 लाख अछि आ पूरा बंगाल क एक तिहाई राजस्व बिहार दैत अछि आ बिहारक प्रति इ व्यवहार अनुचित अछि। एहन अनेक कारण छल जे बिहार क क्षेत्र मे बिहारी क उपेक्षा कए देखा रहल छल, जेना – बंगाल प्रांतीय शिक्षा सेवा मे 103टा अधिकारी मे केवल 3टा बिहारी छल, मेडिकल आ इंजीनियरिंग शिक्षा क छात्रवृत्ति केवल बंगाली कए भेट रहल छल, कॉलेज शिक्षा लेल आवंटित 3.9 लाख मे स 33 हजार टका बिहार क हिस्सा मे अबैत छल, बंगाल प्रांत क 39टा कॉलेज (जाहिमें 11 सरकारी कॉलेज छल) मे बिहार मे सिर्फ 1टा छल, कल-कारखाना क नाम पर जमालपुर रेलवे वर्कशॉप छल (जतए नौकरी बंगाली करैत छल) , 1906 तक बिहार मे एकटा इंजीनियर नहि छल आ मेडिकल डॉक्टर क संख्या 5 छल।
एहन मे बिहार कए पृथक राज्य बनेबाक समर्थन बढैत गेल। कांग्रेस 1908 क अपन प्रांतीय अधिवेशन मे बिहार कए अलग प्रांत बनेबाक समर्थन केलक। कुछ प्रमुख मुस्लिम नेतागण सेहो सामने एलाह। एहि स अंग्रेज शासन लेल बिहार कए अलग राज्य क दर्जा देबा क मार्ग सुगम भ गेल। अंतत: ओ घडी आयल आ 12 दिसंबर 1911 कए बिहार कए अलग राज्य क दर्जा देबाक फैसला ल लेल गेल आ आखिरकार 145 बर्ष बाद बिहार कए ओकर सम्मान प्राप्त भ गेल।
बिहार क इतिहास मे 12 दिसंबर 1911 क दिन मील क पाथर साबित भेल। एहि दिन ब्रिटिश सरकार भारत क राजधानी कलकत्ता स स्थानांतरित क दिल्ली ल जेबाक घोषणा केलक । बिहार कए बंगाल स अलग क गर्वनर इन काउंसिल क शासन वाला राज्य घोषित क देलक। एकर बाद 22 मार्च 1912 कए कैल गेल उद्घोषणा क द्वारा बंगाल स अलग क बिहार कए नव राज्य क दर्ज भेट गेल । जाहि मे भागलपुर, मुंगेर, पूर्णिया आ भागलपुर प्रमंडल कए संथाल परगना क संग -संग पटना, तिरहुत, आ छोटानागपुर कए शामिल कैल गेल। सर चाल्र्स स्टूबर्स बेले, के.सी.एस.आई. राज्य क प्रथम राज्यपाल आ उपराज्यपाल नियुक्त कैल गेलाह। 29 दिसंबर, 1920 कए बिहार राज्य कए राज्यपाल वाला प्रांत बनबाक गौरव प्राप्त भेल। महामहिम रायपुर वासी सत्येन्द्र प्रसन्नो सिन्हा राज्य क प्रथम भारतीय राज्यपाल नियुक्त कैल गेलाह। मार्च 1920 मे लेजिस्लेटिव काउंसिल भवन क स्थापना कैल गेल। सात फरवरी 1921 कए सर मुडी क अध्यक्षता मे प्रथम बैसार आयोजित कैल गेल जे आइ बिहार विधानसभा कहबैत अछि। बिहार क अंतिम राज्यपाल सर जेम्स डेविड सिफटॉन भेलाह। वर्ष 1935 मे बिहार विधान परिषद भवन क निर्माण शुरू कैल गेल। गर्वमेंट आफ इंडिया एक्ट 1935 मे निहित प्रावधान क अनुसार एक अप्रैल 1937 कए प्रांतीय स्वायत्ता क श्रीगणोश भेल। जेकर तहत द्विसदनीय व्यवस्था क शुरूआत भेल। एकर तहत बिहार विधानसभा आ विधान परिषद प्रस्थापित कैल गेल। एकर तहत 22-29 जनवरी 1937 क अवधि मे बिहार विधानसभा क चुनाव संपन्न भेल। 20 जुलाई 1937 कए डा. श्रीकृष्ण सिंह क नेतृत्व मे प्रथम सरकार क गठन भेल । हुनका बिहार क प्रधानमंत्री क रूप मे चुनल गेल । 22 जुलाई, 1937 कए विधानमंडल क प्रथम अधिवेशन भेल । स्वाधीनता क बाद 15 अगस्त 1947 कए श्री जयरामदास दौलत राम प्रथम राज्यपाल नियुक्त कैल गेलाह। पुन: बिहार विधानसभा क चुनाव क बाद 29 अप्रैल 1952 कए श्रीकृष्ण सिंह बिहार क पहिल मुख्यमंत्री क रूप मे चुनल गेलाह।
एहि ठाम एकटा रोचक तथ्स इइ अछि जे “बंगाल स अलग भेलाक बाद जखन पटना कए बिहार क राजधानी बनेबाक फैसला लेल गेल त एहि शहर मे आधारभूत संरचना क घोर अभाव छल। एकरा तैयार करबा मे समय चाहैत छल, जखनकि सरकार पटना स चलबाक छल। एहन मे कटक बिहार क राजधानी बनबा लेल प्रयासरत भ गेल छल। मुदा दरभंगा क महाराजा रामेश्वर सिंह पटना क छज्जू बाग कए एक सप्ताह मे कीन ओहि मे भवन निर्माण शुरू करबा देलथि आ अस्थायी तौर पर विधानपरिषद और सचिवालय क निर्माण करा सरकार कए सौंप देलथि। रामेश्वर सिंह अगर इ त्वरित कार्रवाई नहि केने रहितथि त बिहार-उडीसा क संयुक्त राजधानी पटना क बदला मे कटक भ सकैत छल। ओना बाद मे उडीसा क राजधानी भुवनेश्वर बनल। ओहि अस्थाई भवन मे विधानपरिषद ता धरि चलल जा धरि नव भवन तैयार नहि भ गेल। ओहि अस्थाई विधान भवन मे आइ पटना उच्च न्यायालय क प्रधान न्यायधीश क आवास अछि।” आइ जखन बिहार बदलि रहल अछि आ बिहारी अपन पहचान लेल एक बेर फेर जागरूक भ रहल अछि एहन मे इ दुख क गप जे पटनाक गांधी मैदान मे आम जनता कए सचिदा बाबू या रामेश्वर सिंह क कोनो तथ्य देखबा लेल नहि भेटत। दुख एहि गप क जरूर जे बिहार क सपना देखनिहार सचिदा बाबू आ पटना कए राजधानी योग्य बनेनिहार रामेश्वर सिंह कए सौ साल बितलाक बाद नहि त बिहार स्मरण करैत अछि आ नहि राजधानी पटना हुनका कतहु देखार क रहल अछि । एहन मे इ भ्रम जरूर होइत अछि जे बिहार 101 साल क बूढ अछि बा 101 साल क जवान, किया त बिहारियत त एखनो अंगुठा चूसी रहल अछि।
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एतेक रास कथन के मात्र आलेख माइन लेने उचित नै हैत…सुनील जी के ह्रदय के कोन भाग सौ धन्यवाद कही से नै जैन…मोन आंदोलित भ रहल अइछ किछु करबाक लेल…की कय सकब से अखन किछ स्पष्ट नै..मुदा किछ अवश्य करब उपरोक्त कथा व्यथा के सन्दर्भ में…!!!
आइयो वहए परिस्थ्ती अछि…
मिथिलाक पुलिस युवक के ‘बिहार पुलिस’क बिल्ला पहिनाओल जायछै.
बिहारक मिडिया… संगहिं मिथिलाक मिडिया सेहो मिथिला विरोधी भऽ गेल अछि.
चरित्र बदलि गेल अछि…. कथा वहए पुरनके छी..
बंगालक स्थान बिहार लऽ लेलक आ बिहार स्थान मिथिला लऽ लेलक…
ओना एकटा महत्त्वपूर्ण “चीज” छुटि गेल..
बिहार विधान सभा में बिहारक विलाय केर प्रस्ताव सेहो आनल गेल छल… बिहारक १०१ सालक इतिहास मेम ओहों आबैत अछि..