नई दिल्ली : लगभग छह सौ साल पहिने लिखल विद्यापति रचित नाटक मणिमंजरी क पहिल मंचन क मैलोरंग अपन बढैत डेग साबित करबा मे सफल रहल। किर्तनिया शैली मे लिखल प्रथम श्रेणी प्राप्त एहि नाटक क मंचन एहि स पहिने कतहूँ भेल छल तकर प्रमाण अखैन धरि सोझा नहि आयल अछि, ताहि लेल मैलोरंग लेल इ गौरव क गप अछि जे ओ एहि नाटक कए दिल्ली क प्रेक्षागृह स जन मानस लग अनलक अछि। उक्त गप काल्हि साँझ नाटक मणिमंजरी क मंचन स पूर्व मैलोरंग क निर्देशक प्रकाश झा कहलथि।
मणिमंजरी नामक वैश्य जाति क कन्या क अभूतपूर्व सुन्दरता देखि राजा चन्द्रसेन पहिल नजरिर मे हुनका स प्रेम कए बैसैत छथि। राजा क प्रति प्रेम वा अनुनय देखि मणिमंजरी सेहो हुनक वियोग मे अपना कए बिसरा दैत छथि। पटरानी पद्मावती क इ गप नहि रुचैत अछि। पहिने त ओ रुष्ट भ राजा कए एहि आदेश कए ठुकरा दैत छथि, मुदा राजा कए विषादग्रस्त देखि आ मित्र माकन्दक वा सेविका कल्कंठिका क बुद्धिमता स पटरानी कए पश्चाताप होएत अछि आ ओ अपन भावना क अंतस्थल मे दबा कए राजा संग क्षमा याचना करैत छथि आ राजा चन्द्रसेन कए मणिमंजरी अपन छोट बहिन क रूप मे समर्पित कए दैत छथि। विरह, वियोग आ काम मदान्धता क बादो नाटक क अंत सुखांत अछि।
प्रकाश झा क निर्देशन आ सतोष झाक सह निर्देशन मे मंचित भेल नाटक मणिमंजरी दर्शक पर अपन छाप छोड़बा मे कामयाब रहल। ज्ञात हो जे मणिमंजरी नाटक कए आजुक समय स छह सौ साल पहिने कविवर विद्यापति लिखने छथि। जे मूल रूप स संस्कृत मे लिखल गेल छल। नाटक भाषा लालित्य स परिपूर्ण आ श्रृंगार रस मे डूबल अछि। कठिनता स उद्भाषित शब्द कए पुनर्लेखन कए एकरा मैथिली मे अनुदित केलथि अछि डा चंद्रधर झा आ उच्चारण दिग्दर्शन केलथि अछि अनिल मिश्रा। बहुत रास कठिनता स भरल शब्द क उच्चारण स परिपूर्ण एहि नाटक क एतेक नीक प्रस्तुति मैलोरंग ग्रुप छोडि आन कोनो ग्रुप लेल एखन संभव नहि छल। अभिनेता क पूर्वाभ्यास सेहो साफ नजरि आबि रहल छल। मणिमंजरी बनल प्रियदर्शनी पूजा क अभिनय लाजवाब छल। अपन पहिल प्रस्तुति मे ओ दर्शक क ह्रदय मे बसि गेलथि। राजा चंद्रसेन आ रानी पद्मावती बनल मुकेश आ ज्योति सेहो अपन अभिनय स दर्शक कए मंत्रमुग्ध क देलथि। ओतहि प्रियवद कंचुकी क परिहास स दर्शक लोट-पोट भ गेल। सब कलाकार क अभिनय जबरदस्त छल। अनिल मिश्रा आ प्रेमलता क वस्त्र विन्यास सेहो गजब छल, संगहि राजीव रंजन क मुख्य स्वर ओतबहि नीक। कुल मिला कए एकटा अद्भुत नाटक क एकटा अद्भुत मंचन मैलोरंग क मंच स देखार भेल। संगीतमय नाटक क संगीतमय प्रस्तुति देखि दर्शक धन्य भेलाह। भरतनाट्यम शैली, वस्त्र विन्यास आ श्रृंगार रस क चंचलता नाटक क जीवंत कए देलक। अभिनेता आ अभिनेत्री क हाव-भाव आ भंगिमा एक छण में दर्शक कए तेरहवीं सदी मे ल कए चलि गेल।
कर्यक्रम क अंत मे मुख्य अतिथि क रूप मे आयल अजीत दुबे , उपाध्यक्ष मैथिली भोजपुरी अकादमी, नयी दिल्ली मातृभाषा क प्रति अनुराग कए मैथिली शरण गुप्त कए कविता ये मेरी माँ हैं इससे नाता कभी ना तोडूंगा कहि कए देखेलथि। भोजपुरी मे कहल अपन संक्षिप्त भाषण मे ओ कहलथि जे हम दिल स आभारी बानी, प्रकाश झा आ उनकी टीम को दिल से शुभकामना।
तकर बाद एसके झा, महाप्रबंधक ओएनजीसी कहलथि जे नाहं वसामि बैकुंठे, योगिनां हृदये न च, मद्भक्ता यत्र गायन्ति, तत्र तिष्ठामि नारद। ओ कहलथि जे इ हमरा लेल घटा होइत, ज्योंं हम आजुक दिन एहि नाटक क मंचन नहि देखि सकितहुं। कार्यक्रम क समापन गंगेश गुंजन केलथि। ओ प्रकाश, मैलोरंग आ सब आयल व्यक्ति कए अभिवादन केलथि आ शुभकामना संग कार्यक्रम समाप्ति क घोषणा केलथि।
एहि अवसर पर मैलोरंग अपन दू टा पुरस्कार क घोषणा सेहो केलक। एहि बेरक क ज्योतिरीश्वर सम्मान लेल भंगिमा क निर्देशक कुनाल कए चुनल गेल, संगहि संतोष कुमार कए रंगकर्म श्रीकान्त मंडल सम्मान स सम्मानित करबा क घोषणा कैल गेल।
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bahut sundar sameeksha
Mailorang sa agrah je apan prastuti ke New Delhi tak simeet nahi rakhaith. Hamra san darshak sabh vanchit rahi jait chhi.