मैथिली रंगमंच कहबा लेल बहुत पुरान अछि आ समय समय पर अपन उपस्थिति दर्ज करैत रहल अछि। मुदा भोजपुरी स जेना फिल्म क क्षेत्र मे मैथिली बहुत पाछु भ गेल, तहिना नाटक क क्षेत्र में जे भोजपुरी कए मैथिली स बहुत पाछु क देलक आ मैथिली नाटक कए भारतीय रंगमंच क समतुल्य पहुंचा देलक ओ छथि मैथिली क सबस लोकप्रिय निर्देशक प्रकाश झा। प्रकाश झा मैथिली नाटक देखबाक लोक मे आदत लगा देलथि अछि आ हुनक नव नव प्रयोग मैथिली नाटक कए जीवंत केलक अछि। हुनक संस्था मैलोरंग आइ मैथिली नाटक कए नव जीवन टा नहि देलक बल्कि ओकरा आधुनिकता सेहो प्रदान केलक अछि। एहि मास प्रस्तावित मलंगिया नाट़य महोत्सव समेत कईटा विषय पर इ’समाद लेल निदेर्शक प्रकाश झा स विस्तार स गप केलथि सुनील कुमार झा। प्रस्तुत अछि ओहि गपशप क किछु खास अंश:
अहाँ मैथिली क एकटा योग्य निर्देशक छी, मुदा रंगमंच तक सीमित रहबाक कोनो खास कारण ।
उत्तर – रंगमंच मे एखन बहुत किछु करब बाकी अछि आ जहाँ तक सिनेमाक सवाल अछि त हमरा बुझने सिनेमा रंगमंच स बहुत आसन अछि। आ हमरा कठिन काज कारबा मे बड्ड मन लगैत अछि। हमरा बुझने कियो सिनेमा क निर्देशन क सकैत अछि, कोनो पूर्वाभ्यास क झंझट नहि, जतेक मोन ततेक रिटेक ल सकैत छी, रंगमंच मे एहन संभव नहि अछि। 45 दिन पहिने स अभ्यास, रिटेक क कोनो गुन्जाईस नहि ताहि लेल एखन धरि हम रंगमंच छोडि क सिनेमा दिस जेबाक कोनो प्लान नहि बनेने छी। 2013 मे हमर योजना दू टा नाटक क मंचन करबाक अछि, पहिल विद्यापति क मणि मंजरी आ दोसर सेक्सपियर क रोमियो जूलियट।
आइ अहां क चर्च मलंगिया महोत्सव लेल भ रहल अछि, एकर कल्पना कोना आयल।
उत्तर – सत् कहि त 2006 मे एहि आयोजन क कल्पना श्री कुमार शैलेन्द्र केने छलाह, जे मलंगिया जी पर एकटा महोत्सव क आयोजन होए, ओहि दिन स हमर मोन मे इ योजना गुण-धुन, गुण-धुन करैत रहे। आ आब जा कए एहि योजना क मूर्त रूप द सकलहुं। जेना बुझल अछि एहि आयोजन मे 5 दिन लगातार महेंद्र मलंगिया लिखित पाँच टा नाटक क मंचन होएत जे पूरा देश-विदेश क मैथिल टीम द्वारा कैल जाएत। कर्यक्रम एना अछि-
आयोजन :
स्थान : श्रीराम सेंटर, मण्डी हाउस, दिल्ली
समय : सायं 06.30 बजे से.
26 दिसम्बर, 2012 : उद्घाटन समारोह
26 दिसम्बर, 2012 : पंचकोसी, सहरसा
गाम नै सुतै यै
निर्देशक : उत्पल झा
27 दिसम्बर, 2012 : मिथिलांगन, दिल्ली की नाट्य प्रस्तुति
छुतहा घैल
निर्देशक : संजय चौधरी
28 दिसम्बर, 2012 : मिनाप, जनकपुर (नेपाल) की प्रस्तुति
ओकरा आँगनक बारहमासा
निर्देशक : रमेश रंजन
29 दिसम्बर, 2012 : मिथिला विकास परिषद, कोलकाता
जुआयल कनकनी
निर्देशक : अशोक झा
30 दिसम्बर, 2012 : मैलोरंग रेपर्टरी, दिल्ली
ओरिजनल काम
निर्देशक : प्रकाश झा
आन कोनो भाषा मे एहि तरहक कोनो आयोजन भेल छल की।
उत्तर – क्षेत्रीय भाषा मे त नहि मुदा हिंदी, अंग्रेजी आ संस्कृत मे पहिने एहन कईटा नाटक क आयोजन भेल अछि, मोहन राजे क तीनटा नाटक, हबीब तनवीर नाटक फेस्टिवल आदि, मुदा एहि आयोजन मे एकटा चीज़ अलग अछि, एखन धरि भिन्न-भिन्न संस्था द्वारा एक्के नाटककार क एहन विस्तृत रूप मे मंचन नहि भेल अछि, जेना मोहन राजे क तीनटा नाटक एक्के टीम केलक जे खाली मोहन राजे क नाटक करैत छल। मुदा इ महोत्सव अपना आप मे ख़ास अछि किया त देश विदेश क टीम एहि आयोजन में आबि रहल अछि।
मैथिली रंगमंच क एहि स की फायदा होएत।
उत्तर – मैथिली रंगमंच मे एखन धरि सार्वभौमिकता क अभाव अछि, हमर विचार सहो ज्यों एहिना सब टीम एक मंच पर एकटा नाटकार क मंचन करैत त हुनका मे समूह भावना आउत। आ ओ राग द्वेष छोडि कए मैथिली रंगमंच कए समृद्ध करबा मे जी जान स जुटत। दोसर एक संग एला स एक दोसरक अनुभव साझा भ सकत जाहि स हुनकर अभिनय कए आर बारीकी सिखबाक मौका भेटत।
एहन आयोजन लेल आर कोनो संस्था संपर्क केलक अछि बा नहि
उत्तर – एखन धरि कोनो मैथिली संस्था त आगाँ नहि आयल अछि मुदा हमरा लगैत अछि जे भविष्य मे एहि तरहक आर आयोजन होएत। मिथिलाक लोक देखांउस करै मे बड आगाँ रहैत अछि त खाली देखैत रहू भविष्य मे एहन आयोजन रास होएत।
रंगमंचक अभिनेता सिनेमा दिस जा रहल छथि, एकरा कोन रूप म अहाँ लेत छी।
उत्तर – अहाँ एकटा गप कहू स्कूल स निकललाक बाद बच्चा कॉलेजे नहि जेते, तहिना रंगमंच अभिनेता लेल एकटा स्कूल अछि, जेकरा बाद ओ सिनेमा दिस जाइत छैक, एहि मे कोनो चिंता क गप नहि अछि, किया त रंगमंच मे हुनकर आर्थिक समस्या हल नहि होइत अछि ताहि लेल ओ सिनेमा दिस बा विज्ञापन दिस रुख करैत छथि। मुदा हुनका सबकए एकटा गप सदिखन याद रखबाक चाहि जे कॉलेज जा कए स्कूल कए नहि बिसरबाक चाहि। संगहि अभिनेता सब स इ आग्रह सेहो करब जे ओ सिनेमा दिस जाइ स पहिने अभिनय क एबीसी जरुर सीख लथि, आ बेस तैयार भेला क बाद सिनेमा दिस रुख करथि।
मैथिली रंगमंच मे अखनो व्यावसायिकता क अभाव अछि। इ स्थिति कोना सुधरत?
उत्तर – देखियो मैथिलिये टा नहि अपितु अंतरराष्ट्रीय स्तर क मंच सेहो एखन व्यावसायिकता क रंग मे नहि रंगल अछि, आ अभिनेता क जे मेहनताना भेटबाक चाहि ओ नहि भेटैत अछि। ताहि कारण स निश्चित रूप स अभिनेता आ अभिनेत्री सिनेमा दिस जा रहल छथि। एहि मे कोनो दू राय नहि, मुदा इ कोनो गलत गप नहि अछि। ओ टका लेल फिल्म दिस नहि जेताह त केम्हर जेताह। आ इ नीक गप अछि जे सिनेमा आब रंगमंच क अभिनेता कए बेसी महत्व द रहल अछि।
मैलोरंग कए दर्शक क अभाव नहि रहल, मुदा आनका लेल इ समस्या अछि, मैथिली रंगमंच कए दर्शक कोना भेटत, एहि लेल कोनो सुझाव।
उत्तर – यौ श्रीमान, हमरा विचार स त मैथिली कए कहियो दर्शक क अभाव नहि रहल अछि। मैथिली रंगमंच दर्शक क मामला मे काफी भरल पुरल अछि। हां, मैथिल लोक आर्थिक रूप स ओते संपन्न नहि छथि जाहि स ओ रंगमंच दिस बेसी आकर्षित नहि भ पाबि रहल छथि। आ जे आर्थिक रूप स धनि छथि ओ मैथिली दिस एते नहि छथि हुनका लेल हिंदी आ अंग्रेजी नाटक सब किछु अछि। हमरा विचार स पहिने लोक कए मैथिली नाटक देखबाक आदत लगेबाक चाही तखन जा कए हुनका समक्ष मैथिली क विभिन्न रूप क प्रस्तुत करबाक चाही ताकि आमिर गरीब सब लेल इ आकर्षित करबा योग्य भ सकए। ओना देखल जाए त मैथिली मे एखन धरि खाली नाटक टा होइत अछि, एखन धरि मैथिली ओतेक समृद्ध नहि भेल अछि जे हुनका नाटकक विभिन्न रूप स अवगत कराउल जा सकै। मुदा समय क संग सब किछु बदल आ मैथिल क नाटक लेल इन्तेजार नहि करै पडत हुनका लग च्वाइस रहित आ चुनबाक स्वतंत्रता सेहो।
आखिर सवाल प्रकाश कोना बनल जाए।
उत्तर – कनि हंसैंत, सबस पहिने त हम अभिवावक सब स आग्रह करै चाहब जे ओ नैना सबकए कला क प्रति रुझान बढेबा मे मदद करथि। हुनकर कला कए चिन्ह हुनकर भीतरक प्रतिभा कए निखरबा मे हुनकर मदद करथि। हुनका कला क प्रति कनि स्वतंत्रता दथि। संगे नवयुवक सब स कहै चाहब जे पहिने रंगमंच क व्याकरण बुझबाक कोशिश करू फेर अहाँ अपना आप कए फन्ने खा बुझु। एखन अहाँ देखब जे नवतुरिया सब एकटा फिल्म में छोट सनक रोल भेट गेल स अपना आपकए फन्ने खा बुझय लागैत छथि जे गलत अछि। हुनका सब स आग्रह करब जे पहिने एकर बारीकी सिखू तखन अभिनय दिस जाउ।
गप करबाक लेल, बहुत बहुत धन्यवाद, संगहि मलंगिया महोत्सव क सफल आयोजन लेल शुभकामना।
उत्तर – अहुंक बहुत बहुत धन्यवाद। मलंगिया महोत्सव मे अहां सब गोटे आउ, एकरे कामना अछि।
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निःसंदेह प्रकाश जी रंगमंच के निक निर्देशक छैथ..मुदा हुनकर ई कथन स हम असहमत छी जे सिनेमा विधा रंग मंच विधा सौ आसान अछि…अहाँ के कठिन कार्य करबा में आनंद भेटैत अछि से बहुत निक गप्प..हेबाको चाही..मुदा सिनेमा विधा के अंतिम प्रस्तुति तक प्रेषित करबाक लेल कतेक कठिन स्तर सब सौ साकांक्ष होब’ पारित छैक से एकता सिनेमा बनौनिहारे टा बुझी सकैत छथि…रंगमंच के सीमा अ कठिनाई स हमहू परिचित छी…कठिन छै..अवश्य कठिन छै रंगमंच..मुदा एही विधा के तुलनात्मक विवेचना नहीं होबाक चाही…कलात्मक अभिव्यक्ति के सब विधा अपना अपना जगह पर अति कठिन होइत छैक.अस्तु.