आजादी असलियत मे उतरल मिथिला मे
कि बलजुमरी थोपल गेल?
ओइ दिन पुछने रहथि जगदेव मंडल
गिदबास-निवासी हमर मित्र,
जिनकर गाम जुगजुग सं
गिद्ध बैसबाक कलंक ढोइत
मुदा, असल मे जे सब शास्त्रक भूर ढुकबा मे पारंगत
असल मे ओ
यादव जीक मैथिली लिखबा पर हनछिन क’ रहल छला
–क्यो नहि पसंद करै छनि हुनका
पीठ पिछू दैत रहै छनि बिखिन बिखिन गारि
–लिखै छथि रचि रचि कय, मुदा कैटा छनि पाठक?
जेहो अछि ताहि मे हुनकर कैटा अछि?
मैथिलिए पढ़त लोक तं अमर जी कें नै पढ़त
जे सेखुलर-बामी-पाकिस्तानी कें पढ़त?
बजैत बजैत ओ तं हमरे पर ढरि गेल छला–
–औ, हुनकर मानता अलग, अहां के अलग
भासा हुनकर तं जूतियो चलैत हुनके
अहां बें बें करबै से कते दिन करबै?
— मानल जनता अमर छै,
मुदा बें बें करब जनताक काज नहि थिक
ने भाउ लगा क’ कथा गढ़ब…
–कोन काज अछि अहां कें मैथिली मैथिली करबाक?
जिनकर छियनि तिनका तं अथिये मे गाछ
ओ लोकनि तं छाहरिये मे
आ सबटा फिकिर अहीं कें? छि:…
–कहू त, जेहन अहांक जीवन अछि, लोक-व्यवहार अछि
किए अहां कें गारि सुनबाक चाही?
अही सेहन्ता मे लालन-पालन केलनि माय-बाप?
पुरखा-पितर की अही गोत्रोच्चारण लेल रहला प्रतीक्षारत?
किए गारि सुनै छी औ बाबू तं मैथिली दुआरे
अही दुआरे ने जे मानू
हुनका सभक पुस्तैनी संपति लुटने जाइ छियनि
जे मैथिली लिखै छी…
–लिखबे करब तं प्रोजेक्ट लेल लिखू महराज,
सिनेमा लेल लिखू
कतय सं कतय पहुंचि जाएब, किछु अछि अंटकर?
मुदा, ई की तं मैथिली हमर माता थिकी
–औ, माता तं हुनकर गंगो छथिन
देखियनु जा क’ गंगाक हाल,
गाइयो छथिन, देखू चहुंदिस गाइयेक हाल
भारतो तं माते छथिन हुनके देखि लियनु…
बजैत बजैत ओ आक्रोश मे
हमरे हिला रहल छला
हिलि रहल छलहुं सरिपहुं हमहूं
जेना सरिपहुं मैथिले छलहुं