फेसबुक पर मैथिलानी पर गौरव आ पराते विद्यापति भवन मे बेइज्जती
समदिया
पटना । मैथिली महिला संघ क बैनर तर मंगलदिन भेल जानकी अवतरण दिवस समारोह मे पद्मश्री उषा किरण खान कए अपमानित कैल गेल। विद्यापति भवन मे भेल एहि सार्वजनिक कार्यक्रम मे चेतना समितिक पूर्व अध्यक्ष आ जदयू नेता विजय कुमार मिश्रक नेतृत्व मे मिथिलाक बेटीक जानकी नवमी दिन बहिष्कार कयल गेल। जानकारी अनुसार मिनाक्षी झा बनर्जी, जे एहि मंच संचालन कए रहल छलीह जहिना जय-जय भैरवी गानक उपरांत उषा किरण खान कें मंच पर बजाओल सभागार मे उपस्थित किछु खास लोक हॉल स बहार भए गेलाह। जाहि मे चेतना समितिक पूर्व अध्यक्ष आ विधान पार्षद विजय कुमार मिश्र, चेतना समितिक सचिव उमेश मिश्र, कथाकार अशोक, कवि आ रंग निर्देशक कुणाल, भंगिमाक अध्यक्ष कुमार गगन, मैथिली साहित्य संस्थानक भैरव लाल दास आ शिव कुमार मिश्र, अरिपनक कोषाध्यक्ष ललित कुमार झा, रवींद्र बिहारी राजू, कमलेंद्र झा, कवि गणेश झा, जयदेव मिश्र, भंगिमा सचिव आशुतोष मिश्र, रघुनाथ मुखिया आदि प्रमुख छलाह।
उल्लेखनीय अछि जे एहि ठाम बहुत दिन पहिने अजीत आजाद एहिना एकटा विरोध प्रदर्शन केने छलाह मुदा ताहि समय मे हुनका लग ओकर ठोस कारण छल। उषा किरण खानक बहिष्कारक पर एक मत नहि बनल। युवा पत्रकार रौशन कुमार मैथिल एकर विरोध केलथि अछि। ओ लिखलथि अछि जे विरोध आ बहिष्कार किया। उषा किरण खान संवादी कार्यक्रम मे शामिल नहि भेलीह। दोसर दिस विजय मिश्र सहित तमाम मैथिली जन प्रतिनिध अपने निपत्ता रहला। एकटा बात आर जे अजीत अंजुम, गीताश्री, गिरिन्द्र नाथ झाकें चेतना समिति मैथिल नहि मानैत अछि। की हिनका सबहक सेहो विरोध हेतैक कहियौ।
ओ आगू लिखलथि जे जखन अजीत आजाद संघर्ष क रहल छलाह तखन चेतना समितिक एकहुटा नेता अंदर नहि छलाह। ओहि आंदोलन में सब अपन अपन हिस्सेदारी निभा रहल छलाह। बाबा बले फौदारी किएक। ई केहन लोकतंत्र जे बिना बात सुनने आ बुझने ककरो कटघरा मे ठाढ कयल गेल आ सजा सेहो सुना देल गेल। हमरा जनैत ई मैच्योर लोकतंत्र नहि भेल। संवाद कोनो स्थिति मे हेबाक चाही। जानकी नवमी पर आई पुन: एकटा सीताक भेल अपमान।
उषाकिरण खान क बहिष्कार करनिहार मैथिली साहित्य संस्थानक भैरव लाल दास बहिष्कार करबा स करीब 22 घंटा पूर्व अपन फेसबुक वाल पर लिखैत छथि जे ‘संवादी विवाद मे एहने ‘हिट विकेट बुझा रहल अछि। आयोजक छल अखबार, सेशन फिक्स केलक अखबार, अतिथि केँ निमंत्रण (वा नहि निमंत्रण) देलक अखबार। मुदा हमरा लोकनि की सब केलौं। पहिने बहिष्कारक निर्णय। जे नहि मानलक से हमर दुश्मन। आ सोचबाक लेल समय नहि। अखबार प्रबंधन सँ के गप्प क रहल छी, केकर गप्प सुनि रहल अछि, केओ नहि। आ डिक्टेशन पर डिक्टेशन। बहिष्कार करू, करू, जल्दी करू, नहि करब त दुश्मन। हम बाडि़ देब। आहां भाषाक दुश्मन, संस्कृतिक दुश्मन, आहांक लेल पाई महत्वपूर्ण, भाषा नहि। गारि-सराप, घोंघौज, डोमघौंज। नीक नहि लागल। एकदम नहि। पोती सिखाबए बूढ़दादी के। साहित्य मे तालिबानी फरमान। गारि पढ़बा लेल समय चाही। जँ आंहॉंक आग्रह नहि मानय, तखन ने गारि। दबावक राजनीति। जिनका सँ भाषा गर्व करैत अछि, हुनका लेल अपशब्द। भामती आ सीताकेँ विवादमे आनब। ई कोन संस्कृति भेल। विरोध त अखबारक हेबाक चाही। दॉंत त हुनकर उखाड़क चाही जिनका दॉंत मे दर्द छन्हि। ओ अपन लोक छथि, खॉंटी। जखन अपन टी.आर.पी. बढ़ेबाक होए त सम्मान, आदर, फोटो सेशन आ छोट-छीन बात पर मचान सँ लात मारि नीचा ओंघरा देब। साहित्यक आदर जतेक जरूरी ओतहि जरूरी अपन पुरुखाक आदर। देवता आ पितर, दूनू आदरणीय, पूजनीय। इएह हमर संस्कृति। एतेक अविश्वास किएक। जे अपना भाषाक समृद्धिक लेल अपन जिनगी लगाओल, ओ एहन छोट-छीन बात पर किएक खराब निर्णय लेत। कहीं एहि विवादक जडि़ मुम्बईक फिल्मी जगतक मंच पर बैसल फोटो त नहि। कहीं दिल्लीक ‘मुक्तांगण त नहि। तहिया त दू टा मैथिलानी पर गौरव भ रहल छल आ पराते बेइज्जती। साहित्य आ संस्कृति मे रचबाक-बसबाक लेल धैर्य चाही। कोनो साहित्यकार गलती क सकैत अछि, कोनो मत सँ विमति हेबाक संभावना भ सकैत अछि, मुदा ई ‘डेमोक्रेटिक संरचना मे होए त सोना मे सुगंध। साहित्य आ संस्कृतिक रक्षाक लेल एकजुटता सेहो आवश्यक, मुदा एहि पर विमर्श होए त कोन क्षति। ई ‘डिक्टेशन आ ‘तालिबानी संस्कृति सँ जतेक दूर रही, ततेक नीक। केओ पैघ संगठनकत्र्ता बनि सकैत छथि, केओ पैघ क्रांतिकारी आ पैघ नेता सेहो। मुदा सबहक अपन विशेषता छैक। तुलसी पात जेहने छोट तेहने पैघ, दुनू पवित्र।