सावित्री कुमारी /प्रितिलता मल्लिक /कुमुद सिंह
दरभंगा । 80क दशक मे इंग्लैंड क सत्ता कए एकटा लडकी हिला देने छल, रातोराति प्रधानमंत्रीक पद पर दावा ठोंस देने छल। पूरा इंग्लैंड स्तब्ध भ गेल छल, ओना सत्ता स्थिर रहल आ प्रधानमंत्रीक पद सेहो सुरक्षित रहल। पिछला दू दिन स बिहार मे एकटा विज्ञापन राजनीतिक दलान पर तुफान मचेने अछि। सोशल मीडिया पर त मानू भूकंप आयल अछि। सब ठाम एकहि चर्च अछि जे पुष्पम प्रिया चौधरी आखिर छथि की। एक संग बिहार क तमाम पैघ अखबार मे जैकेट विज्ञापन देनाई खेल बात नहि छी। ताहू पर दावा इ जे अपना कए अगिला सीएम उम्मीदवार घोषित कर देनाई। स्वाभाविक अछि एतबा पाई कियो एहन हवाबाजी लेल त नहि खर्च करत। सीएम सन पद कोनो जमीन मकान त छी नहि जे मात्र टाका स खरीद लेल जा सकैत अछि। एतबा गप त लदनिया क फुलबाक कनिया सेहो बुझैत अछि फेर लंदन स पढ़ल लिखल, बोल्ड, ग्लैमरस पुष्पम कए कोना नहि बुझल होएत। राजनतिक विज्ञान मे एमए क डिग्री लेनिहारी पुष्पम हायाघाटक पुरान नेता उमाकांत चौधरीक पोती, पूर्व विधान पार्षद आ समाजशास्त्र क प्रोफेसर विनोद चौधरी बेटी आ जदयू दरभंगा क जिला अध्यक्ष अजय चौधरीक भतीजी छथि। कहबाक मतलब जे सीएम पद आ राजनीति दूनू हिनका कोनो सामान्य जन से बेसी बुझल छैन। तखन एहि तरहक विज्ञापनक मतलब की। बिना पार्टी रजिस्टर करवेने, बिना राज्य मे घूमने, सीधा सीएम क पोस्ट पर दावा करब ककरो लेल कोनो हैरानी स कम नहि होएत। जे पुष्पम कए नहि जनैत अछि ओ हुनका मूर्ख धनकुबेर कहि कए हंसी उडा रहल अछि, हुनकर राजनीतिक सोच पर मजाक क रहल अछि, मुदा जेकर दादा बेर बेर कईटा चुनाव जीवन मे हारल हो, जेकर बाप जीवन में मात्र एक बेर विधान परिषद क चुनाव जीतल हो, जेकर चाचा चुनाव हारल हो, ओ एतबा विज्ञापन खर्च क सीधा सीएम पद क उम्मीदवार घोषित अगर क रहल अछि त एकर पाछु लंबा, गंभीर आ सुनियोजित रणनीति बुझना जा रहल अछि।
चुनावी राजनीति पर नजर रखनिहार एहि विज्ञापन कए कटन रेजर कहि रहल छथि। इसमाद एहि संबंध में पुष्पम क परिवारक कईटा सदस्य स गप केलक अछि आ मामलाक तह तक जेबाक प्रयास केलक अछि। पुष्पमक परिवारक आधिकारिक बयान त कोनो रणनीतिक खुलासा नहि करैत अछि, मुदा पारिवारिक सूत्रक कहब अछि जे पुष्पम बिहारक नौकरशाहक गुडिया छथि। एक दू टा नहि बल्कि 20 स 25टा नौकरशाह स हुनकर संबंध अछि। बिहारक नौकरशाही में पुष्पमक ताकत क अंदाजा हुनकर पिता विनोद चौधरी कए सेहो नहि छैन। पुष्पम कखन भारत आ कखन लंदन मे रहैत छथि, से कियो नहि जनैत अछि। सीधा सीएम पद आ पार्टीक अजीब सन नाम रखबाक पाछु क कारण पूछला पर सूत्रक दावा अछि जे विज्ञापन त बस एकटा नमूना अछि, आगू बहुत किछु सामने आउत एखन कोनो पार्टीक नाम तय नहि भेलैये, एखन त बस एकटा माहौल तैयार कैल जा रहल छै। त की इ मुहिम आ पार्टी नौकरशाह सबहक छै, ताहि पर पारिवारिक सूत्र चुप भ जाइत छथि आ गप कए बदलैत कहैत छथि जे केजरवाल जेकां बुझल जाये।
देखल जाये त 1893 मे जखन भारत मे पहिल बेर चुनाव लेल मतदान भेल त जमींदार आ वकील क बीच मुकाबला रहल। संयोग स 1893क मुकाबला बिहारक जमीन पर भेल छल आ एक पक्ष दरभंगा क छल। ओना ओहि मुकाबला मे जमींदार चुनाव जीत गेलाह, लेकिन वकील कए सत्ता क चाबी भेट गेल। 1922 मे आबि कए वकील क समूह बिहारक जमीन पर पहिल प्रयोग सेहो केलक। सच्चिदांनद सिन्हा जमींदार क खिलाफ लामबंदी केलथि आ ओकर जगह पर वकील कए डोमिनेटेड पावर बना देलथि, जे राजनीति, चुनाव आ सत्ता मे केवल दखल नहि बल्कि हिस्सेदारी तय करै लागल। संयोग स एहि ठाक सेहो एक पक्ष दरभंगा छल।
सच्चिदानंद सिन्हाक प्रयोग करीब सौ साल तक वकील कए भारतीय राजनीति मे आवश्यक प्रभावी तत्व बना कए रखलक। सौ साल बाद बिहार मे फेर ओहने प्रयोग हुए जा रहल अछि। संयोग स एहि बेर सेहो दरभंगा क चर्च अछि। एहि विधानसभा चुनाव मे वकील क जगह पर नौकरशाह कए डोमिनेटेड पावर बना देबाक कोशिश भ रहल अछि, जे राजनीति, चुनाव आ सत्ता मे केवल दखल नहि, बल्कि हिस्सेदारी तय करत। बिहारक राजनीति मे सौ साल स चलि आबि रहल डोमिनेटेड पावर एहि बेर बदलत बा नहि इ देखक दिलचस्प होएत।
जानकारक कहब अछि जे भारत आब पहिने सन व्यवस्था मे नहि अछि। भारतीय राजनीति मे वकीलक दबदबा समाजवादी आंदोलन क कारण प्रभावहीन होइत गेल। संपूर्ण क्रांतिक बाद त सत्ता पर जातिक दबदबा भ गेल। एहन मे बूथ कब्जा केनिहार जातिगत कार्यकर्ता सत्ताक केंद्र मे अपना कए आनि लेलक। मंडल आ कमंडल राजनीति मे वकील क काज महज किछु मसला तक प्रभाव देखौलक। धर्म आ जातिक राजनीति मे पैघ वकीलक नव पीढी लेल जगह नहि बनल। 1990 मे उदारवाद बहुत रास राजनीतिक परिवर्तन केलक जाहि मे एकटा परिवर्तन इ सेहो भेल जे शासन सत्ता मे नौकरशाही न्यायालय से बेसी ताकतवर भेल जा रहल अछि। बाहुबल, जाति, धर्म, राष्ट्रवाद क राजनीतिक प्रयोग क बाद एक बेर फेर जनताक लामबंदी लेल नव ताकत ताकल जा रहल अछि। वकील जगत लग ओ ताकत नहि अछि जे पहिने जेकां ओ सत्ता कए नियंत्रित क लेत। ताहि कारण स सदन मे सेहो वकील क जगह धीरे धीरे नौकरशाह लेने जा रहल अछि। राजनीतिक दल आ सरकार दूनू ठाम वकील क जगह नौकरशाह अपन दावा पेश क रहल अछि। राजनीतिक जानकार इ मानैत छथि जे एखनो चुनाव मे करीब 10 फीसदी वोट नौकरशाह अपन दम पर मैनेज करैत अछि, जेकर प्रतिशत चुनाव दर चुनाव बढल जा रहल अछि। एहन मे नौकरशाह आब जाति, धर्म आ राष्ट्रवाद क नाम पर कोनो नेता कए चुनाव जीतेबाक बदला मे अपने चुनाव जीतबाक सोच बना रहल छथि। इ ओहने परिवर्तन अछि जेकर वकील जमींदार लेल, जातिवादी नेता वकील लेल आ बाहुबलि जातिवादी नेता लेल कहियो सोचने छल।
एतबे नहि आजादी स पूर्व जेना वकील क पेशा मे सबस बेसी आमदनी छल, तहिना आजुक तारीख मे नौकरशाह लग अकूत संपत्ति अछि। उदारवादी भारत मे नौकरशाह क कमाई मे कियो नहि सकत। बिहारक नौकरशाह क घर मकान तक इटली आ फ्रांस मे अछि। भारत मे फार्म हाउस त खैर छोट छीन निवेश भेल। कहबाक अर्थ इ जे भारतीय राजनीति मे जमींदार, वकील क बाद आब नौकरशाह तेसर शिक्षित वर्ग स डोमिनेटेड पावर बनि गेल अछि, जे राजनीति, चुनाव आ सत्ता मे केवल दखल नहि बल्कि हिस्सेदारी तय क रहल अछि। एहि विधानसभा चुनाव मे इ प्रयोग होएत।
एहन प्रयोग छोट स्तर पर पहिनो होइत रहल अछि। मुदा सामान्य तौर पर मानल जाइत छल जे नौकरशाह चुनावी राजनीति मे नहि अबैत अछि। केजरीवाल एकटा पायलट प्रोजेक्ट जेना रहल। सफल सेहो भेल। उदारवाद एलाक बाद सबसे बेसी नौकरशाह नौकरी स त्यागपत्र द कए राजनीति मे एलाह अछि। ठीक अहिना जेना कहियो वकील अपना पेशा छोडि कए राजनीति मे अबैत छल। बाद मे ओकरा लेल वोट जोगार केनिहार जातिगत कार्यकर्ता चुनौती बनल। ओकरा लेल बूथ कब्जा केनिहार बाहुबली चुनौती बनल। एहन मे सत्ताक केंद्र में मूर्ख चल गेल। पढल लिखल लोक राजनीति स दूर होइत गेल।
पत्रकार पुष्यमित्र अपन एकटा पोस्ट मे एहने एकटा प्रयोगक जिक्र करैत छथि, मुदा अक्षय वर्मा आ पुष्पम मे ओहने अंतर अछि जेहन निर्दलीय चुनाव मे ढार जमींदार आ युनाइटेड पार्टी मे अंतर छल। अक्षय राजनीतिक खोल मे अपना कए फिट करैत रहि गेलाह, मुदा पुष्पम अपना जोकर राजनीतिक खोल तैयार करबा मे लागल छथि। मतलब अक्षय विधायक या सांसद बनबा लेल प्रयासरत छलाह, मुदा पुष्पम नौकरशाह क एकटा पार्टी ढार क रहल छथि। जे सीएम बनाउत। हुनकर संदेश अछि जे नौकरशाह अगिला सीएम तय करत। आ अपना कए ओ एकटा बिम्ब बना सीएम उम्मीदवार घोषित क देलथि। इ विज्ञापन नहि आम वोटर लेल छै आ नहि एकर संदेश आम लोक लेल छै। दरअसल जे ताकत नीति निर्धारक अछि, जे ताकत वोटरक लामबंदी करैत अछि दरअसल इ विज्ञापन आ इ संदेश ओकरा लेल अछि।
1893 आ 1922 मे जे प्रयोग भेल संयोग स ओहि मे सेहो एक पक्ष दरभंगा क छलाह। अक्षय वर्मा संयोग स दरभंगा क छथि। पुष्पम प्रिया चौधरी सेहो दरभंगा क छथि। अक्षय आ पुष्पम दूनू लंदन रिटर्न छथि। ऑक्सफ़ोर्ड आ लंदन स्कूल आफ इकोनामिक्स क छात्र छथि। अक्षय 28 साल में बिहार कए बदलबा लेल लौट एलाह, पुष्पम अबैत जाइत रहैत छथि। पुष्पमक पिता शिक्षक आ राजनतिक परिवार स छथि त अक्षय क पिता अमिताभ वर्मा बिहार क ब्यूरोक्रेट रहल छथि। एहन मे अक्षय नौकरशाही क फायदा ल राजनीति करबाक प्रयास केलथि आ नाकाम रहलथि, देखबाक चाही जे पुष्पम नौकरशाही कए राजनीति मे अनबा मे सफल होइत छथि बा नहि.
पुष्पम क कथा आ अक्षय क कहानी एक शहर (दरभंगा) क भेलाक बावजूद अलग अछि। अक्षय वर्मा 2014 क लोकसभा चुनाव मे भाग्य अजमेला, मुदा हुनकर रास्ता नव नहि छल। पैघ पैघ टीवी चैनल पर इंटरव्यू भेल, मुदा ओहि स वोट केकरा भेटैत छै। राजनीति कए बदलबा लेल चुनाव लडबाक तरीका बदलब जरुरी होइत छै। पुष्पम दरअसल चुनाव सिस्टम मे बदलावक संकेत द रहल छथि। वोटक लामबंदी क एकटा नव फामूला ल कए आबि रहल छथि। अक्षय मुजफ्फरपुर स नव पार्टी बना चुनाव लडबा लेल मैदान मे एलाह, एहि स सिस्टम मे कोन बदलाव आयल। अक्षय वोटक लामबंदी लेल वैह घसल पिटल फार्मूला उपयोग केलथि। यैह कारण रहल जे हुनका सिर्फ 7500 वोट भेटल।