पद्मश्री गजेंद्र नारायण सिंह केलथि पुरातन ताल आ लय मे तैयार बेर कालक गीत क सीडीक लोकार्पण
प्रितिलता मल्लिक
पटना । बिहार मे संगीत क इतिहास बिना बनैली राजघराना क जिक्र केने नहि लिखल जा सकैैछ। महान ख्याल गायक कुमार श्यामानंद सिंह जरुर आब अपना लोकनिक ख्याल मे जा बसलाह अछि, मुदा जाहि प्रकार स शुक्रदिन पटना मे इ राजघराना कतेको साल बाद अपन प्रस्तुति देलक, ओहि स इ कहब गलत नहि जे बिना बनैली राजघराना क जिक्र केने बिहार मे संगीत क वर्तमान आओर भविष्य सेहो देखब संभव नहि। बनैली राजघराना क उदयीमान गायिका शौली सिंह क गायकी स पटना यूथ हॉस्टल प्रांगण मे बैसल लोक मानू कोनो मंदिर में पहुंच गेल।
एहि स पूर्व पुरातन ताल आ लय तकबाक उपरांत तैयार कैल गेल मैथिली बेर कालक गीत क सीडी गीत नाद क लोकार्पण भेल। सीडी क लोकार्पण करैत पद्मश्री गजेंद्र नारायण सिंह एहि घरानाक विस्तार स परिचय देलथि। श्री सिंह कहला जे आब राजपरिवार सब और सरकार दूनू संगीत क संरक्षण लेल ओहन प्रयास नहि क रहल अछि, जेहन पहिने करैत छल। राज परिवार आर्थिक कमजोर भ गेल आ राज्य सरकार त एहि दिस कहियो गंभीर नहि भ सकल। मिथिलाक गौरवशाली संगीत क लगातार उपेक्षा भेल। कुमार श्यामानंद सिंह आ रामचतुर मल्लिक क विशेष रूप स उल्लेख करैत श्री सिंह कहला जे मिथिलाक एहि दूनू रत्न कए मिथिला मे उचित सम्मान नहि भेटल, जखनकि संगीत क दुनिया मे हिनकर सम्मान ओतबा अछि जेतबा बहुत कम लोक कए भेटल अछि।
एकर बाद गायिका शैली सिंह क गायन शुरु भेल। शैली क गायन एतबा क्लिष्ट ताल मे तालबद्ध छल, जे लोकगीत क शास्त्रीय परंपरा जीवंत भ उठल। एहन एहन ताल मे, जे आजुक शास्त्रीय संगीत मे सेहो कम प्रयुक्त होइत अछि। रूद्र ताल, तेवड़ा, आड़ा-चौताला इत्यादि ताल मे निबद्ध इ गीत अपन ओहि मौलिक रूप मे सामने आयल जे कतहु सुनबा लेल नहि भेटैत अछि। पटनाक कला प्रेमी क इ सौभाग्य जे एकटा मिशन क रूप मे पिछला दस साल स एहि पर शोध क रहलाह बनैली-चम्पानगर ड्योढी क कुमार गिरजानंद सिंह क प्रयास कए बुझबा आ सुनबाक पहिल मौक़ा भेटल। अपन शोध आ ओकर प्रस्तुति पर प्रकाश दैत श्री सिंह कहला जे इ गीत हमरा स्त्रीगण स प्राप्त भेल। ओ कहला जे आइ जाहि रूप मे हमसब मिथिला क संस्कार गीत सुनैत छी, ओ एकर मूल रूप नहि अछि। दरअसल इ गीत हमरा मौखिक परम्परा स प्राप्त भेल, आओर चाहे-अनचाहे एहि मे तरह-तरह क तब्दीली होइत रहल। विभिन्न मांगलिक आ सामयिक अवसर पर हम आइ जेे गीत गबैत या सुनैत छी आ रिकाड्र्स बजबैत छी, ओ मूल सुर आ ताल मे नहि अछि। एहि गीत सबहक सुर आ ताल पर कहियो कोनो शोध नहि भेल, दरअसल इ गीत मूल रूप स कोन ताल मे निबद्ध छल, सेहो स्पष्ट नहि भ पाबि रहल छल। एहि कारण शोध मे समय लागल। एहि गीत कए संगीत प्रदान करब बेहद क्लिष्ट आ कठिन रहल, जेकरा पूरा करबा मे गुरूजी श्री अमर नाथ झाजी योगदान रहल। शैली सिंह क रूप मे एकटा सधल आवाज भेटल।
श्री सिंह क मानब अछि जे मिथिला क संस्कार गीत क अपन अलग अस्तित्व अछि। एकर अपन परम्परा अछि। अपन इतिहास अछि। अपन लोक शास्त्रीय भाव अछि। इ परंपरा कहिया स शुरु भेल इ त ज्ञात नहि अछि मुदा महाकवि विद्यापति क काल मे इ संपूर्ण रूप स समृद्ध आ विकसित भ गेल छल। मुख्यत: स्त्रिगण इ गबैत छलीह आ अगिला पीढ़ी कए दैत छलीह। श्रुति क आधार पर जेना प्राचीन वेद स हम अवगत छी, किछु ओहिना इ गीत क साहित्य हमरा धरोहर क रूप मे प्राप्त भेल। नहि त एकर स्वरलिपि पर काज भेल आ नहि पांडुलिपि कतहु उपलब्ध अछि। इ हमर पूर्व क देन अछि जे हमर घर मे इ गीत एखनो बचल अछि। मुदा एकरा गेबाक अंदाज़ मे लगातार परिवर्तन होइत रहल। आइ एकरा सुनि कए इ अंदाजा तक लगौनाइ मुश्किल होइत अछि जे कहियो इ एहिना गाउल जाइत छल।