डॉ प्रवीण झा
एक बेर हम अमरीका के अर्बाना नामक स्थान पर ‘क्रैनर्ट हॉल’ में विद्यार्थी हिसाबे महग टिकट कीनि पं. रविशंकर के सितार सुनइ लेल गेलहुँ। आब पंडित जी आएल छलाह तs कोना नहि जयतहुँ? ओहि समय में संगीतक प्रति एतबय आबेस रहय कि कोनो कलाकार सभ जँ अबथि, तs हुनका लय कुर्सी लगेनाइ, चद्दरि बिछउनाइ बा रिसीव करइ लय जेनाइ। रविशंकर के तs खैर अप्पन ताम-झाम रहनि, अप्पन व्यवस्था। मुदा जँ छोट-मोट कलाकार आबथि तs हमही सभ करियइ। ओही में कतेक खिस्सा सभ सूनी। आ खिस्से सुनि सुनि संगीत में रुचि जागल गेल। तs आहि द्रोण-एकलव्य के एकटा खिस्सा सुनबइत छी।
पं. रविशंकर में एकटा अजबे सम्मोहन छनि। आब समय भेल आ हम विलायत ख़ान आ निखिल बनर्जी के बेसी सुनइत छी, मुदा जँ सोझाँ बैस के सुनइ के अवसर भेटय, तs हम रबि बाबू के सुनबइन। सितार के ट्यूनिंग करइत जे हुनकर मुस्की रहैन, ताहि सँ पूरा हॉल सम्मोहित भs जाइ। गत बजउलनि आ तुरत झाला में आबि गेला। आब इलेक्ट्रिक गिटार बला देस में तs तहिना करामात सभ देखबय पड़इत छहि। अमरीकी सभ ओकरा ‘ट्विस्ट’ कहइ आ मीड के कहइ ‘ग्लाइड’। तs ई ट्विस्ट आ ग्लाइड के उस्ताद छलाह पं. रविशंकर। लंबा-लंबा झोटा बला सभ हुनकर झाला के झण्कार संगे केश झमारि के झूमि रहल अछि। जेना सितार नहि रॉक-शो भय रहल होइ। मुदा ई गुण रविशंकर में अएलनि कतs सँ?
हम जखनि अमेरिका सँ अएलहुँ तs एकर खोज में ओहि ठाम पहुँचलहुँ, जतय नवयुवक पं. रविशंकर एक दिन केश मुंडन करा के ठार छलाह। ओहि मैहर के अंगना में पहुँचि के जेना सभटा दृश्य आँखिक सोझाँ आबि गेल। बाबा अलाउद्दीन ख़ान अपन पुबरिया कोठली में सरोद लय के बैसल छथि आ दुआरि पर एकटा ब्राह्मण युवक ठार। ओना अहि युवक के बेली-बॉटम पहिरने, केश बढ़ेने सिगरेट पीबइत शंकरक ट्रूप में यूरोप में देखने छलखिन। मुदा आहि उज्जर कुर्ता-पजामा में केश कटेने देखि चिन्हइ में किछु भ्रम भेलनि। कने काल तकइत रहला आ फेर अप्पन सरोद छोड़ि आह्वादित बहरयला, “रोबि एशेन। आमार रोबि एशेन!”
अलाउद्दीन ख़ान जखनि हुनका सितार सिखउनाइ प्रारंभ केलखिन, तs एकटा समय बाद हुनका लगलनि जे ई दोसर तरहक शिष्य अछि। शिष्य निखिल बनर्जी सेहो छलखिन, मुदा ओ पारंपरिक सिद्धांत बला शिष्य। आ रविशंकर छलखिन अभिजात्य आ नव युगक शिष्य। नीक गुरु ई अंतर बूझि जाइत छैक जे कोन शिष्य कोन तरहक अछि। आ ओहि हिसाब सँ सिखबति छथिन। मुदा एक समय बाद अलाउद्दीन ख़ान कहलखिन जे आब अहाँके जे ज्ञान चाही, से भारतवर्ष में एक्कहि ठाम भेटत। रविशंकर अकचकेला जे अलाउद्दीन ख़ान सँ पैघ गुरु के छथि? भरिसक इटावा लs के जेता? ओतय के इमदादख़ानी बाज के बड्ड नाम छहि। अलाउद्दीन ख़ान मुदा हुनका कतहु आन ठाम लs जा रहल छलखिन- दरभंगा!
ओहि समय में संगीतक दू टा स्थान में सभ दिसक गवैया आ बजौनिहार सभ जमा होथि। एकटा रामपुर आ दोसर दरभंगा। लखनऊ के नवाब के अंग्रेज सभ कलकत्ता मटियाबुर्ज पठा देने रहनि। ग्वालियर में माधवराव सिंधिया सात-आठ बरख के नेन बालक छला तs संगीत बन्न भs गेलहि। बड़ौदा सेहो तहिना घटि रहल छल। दरभंगा में ‘बैंड-स्टैंड’ (अजुका मनोकामना मंदिरक अगुलका चबुतरा) पर खुजल अकास में कार्यक्रम होइ। आ दरबार में तs उचिते। ओही में एकटा घनगर मोंछ बला पंडित सितारिया छला- पं. रामेश्वर पाठक। आब हुनका तकबइन तs नहि भेटता। प्रेमकुमार मल्लिक’क लिखल दरभंगा घराना पर पोथी में एकटा फ़ोटो भेटत। यू-ट्यूब पर एकटा तीन मिनटक ‘बिहाग’ में रिकॉर्डिंग भेटत। आ भेटत पं. रविशंकर’क अप्पन हाथ सँ लिखल जीवन-संस्मरण में!
पं. रविशंकर लिखइ छथिन जे हुनक सितार पर दू गोटाक प्रभाव रहलनि। एकटा गुरु अलाउद्दीन ख़ान, आ दोसर दरभंगाक रामेश्वर पाठक। आब ई कतेक पैघ गप्प छैक जे विश्व में जिनक संगीत दिग्विजय केलकनि, तिनक एकटा गुरु (?) दरभंगा में रहथिन। गुरु में प्रश्नचिह्न हम अहि दुआरे लगौलहुँ जे पं. रामेश्वर पाठक हुनका गंडा बन्हइ लय तैयार नहि भेलखिन। आ रविशंकर एकलव्य बनि के रहि गेला। आब ओतय से की सिखलनि, कोन गुन सिखलनि, से कहनाइ कठिन। मुदा एतेक अवश्य जे मैहर सँ भिन्न जे रविशंकर के झण्कार छनि, ओ कतहु से अयलनि। दरभंगा से?
हम ओहिना नहि कहइ छी। ई गति के गप्प छहि। पं. रामेश्वर पाठक बाद में रामचतुर मल्लिक के ध्रुपद शिक्षा देलखिन। आ रामचतुर मल्लिक के एकटा मुख्य विशेषता छनि- तेज गति में झमारि के गाउल ध्रुपद। एकरे यूरोप के पीटर पान्के ‘फ़ास्ट-पेस्ड’ ध्रुपद कहइत छथिन। ई दरभंगाक ध्रुपद के गुण छहि। आ एकर सृजन में अवश्य रामेश्वर पाठक के योगदान छनि।
हमरा मुदा संतुष्टि नहि भेल। हम रामेश्वर पाठक के आगू ताकय लगलहुँ। कतेक दिन एम्हर-ओम्हर बौएलहुँ। एतेक बूझा गेल जे हिनक एकटा भाय कासिमपुर (बंगाल) चल गेल छलखिन, आ भातिज बलराम पाठक अद्भुत् सितार बजबइत छलखिन। अंत में तकइत तकइत हम एम्सटरडम पहुँचलहुँ। ओतय अशोक पाठक जी अखनो सितार बजा रहल छथि आ कतेक गोटा के सिखा रहल छथि। वैह रक्त छहि, ओहिना शैली। आ पं. रविशंकर के जे गुण कखनो अमेरिका में देखलियनि, आब एम्स्टरडम में। मुदा एकर मूल कतs? दरभंगाक पं. रामेश्वर पाठक में। आब अहाँ भरि दरभंगा में दसो गोटा ताकि लियs जे हुनका चिन्हथि होइन। पं. रविशंकर’क ई गुन हम नहि बिसरबनि, जे ओ अपन द्रोण के नहि बिसरला आ लिखि के चल गला। आब हमर सभक कर्तव्य कि हुनक गुरु के हरायल-भोतियायल गरिमा के स्थापित कयल जाय। मल्लिक घराना’क संग-संग पाठक घराना सेहो स्मरण में रहय। रामेश्वर बाबू के बेटा नारायण जी के बियाह मल्लिक परिवार के सविन्दा दाई से भेलनि। आ हुनक संतान सभ तबला-पखावज बजा रहल छथिन। मुदा आब स्थिति केहन की, से नहि कहब। अखनि जे स्मारिका लय लेखक गप्प भेल, तs हठात् एतेक गप्प मोन पड़ि गेल आ लिखि देलहुँ। अहि मदे आब रामेश्वर पाठक’क नाम कम सँ कम एकटा आउर पोथी में आबि गेल।
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(नॉर्वे निवासी डॉ प्रवीण झाक इ आलेख गुजरात स प्रकाशित एकटा स्मारिका मे छपल अछि)