तिरहुत सरकार राजा नरेंद्र सिंह करीब 500 साल पूर्व मिथिला क आर्थिक समृद्धि लेल पग-पग पोखरि माछ-मखान क नारा देने छलाह। कालातंर मे इ आर्थिक नारा सांस्कृतिक नारा भ गेल आ बाढि स बचबा लेल बनल पोखरि महज जल संग्रह क स्थान बनि गेल। सांस्कृतिक रूप स समाज मे माछ क विशेष स्थान त एखनो अछि, मुदा माछ संग आर्थिक संबंध बहुत पहिने खत्म भ गेल। जेकर असर भेल जे छोट-पैघ सब तरहक अवसर पर माछक लेन-देन अनिवार्य रूप स होइत रहल मुदा एकर खपत क तुलना मे उत्पादन लगातार कम होइत गेल। मिथिला सांस्कृतिक रूप स त धनि रहल मुदा आर्थिक रूप स गरीब होइत गेल। आइ स्थिति इ अछि जे मिथिला मे आंध्रप्रदेश आओर देश क अन्य भाग स माछ आयात कैल जा रहल अछि। एकरा प्रशासनिक असफलता कही या जनता क उदासीनता मुदा इ अछि मिथिला क दुर्भाग्य जे सब किछु रहैत इ क्षेत्र भीखमंगा बनल अछि। जखनकि माछ उत्पादन क मामला मे असगर दरभंगा प्रक्षेत्र पूरा बिहार कए आत्मनिर्भर बनेबा क क्षमता रखैत अछि। मुदा आइ दरभंगा प्रक्षेत्र अपन इलाका क उपभोक्ता क जरूरत पूरा करि पेबा मे असक्षम भ चुकल अछि। माछ आ पोखरिक संबंध पर प्रस्तुत अछि इसमाद क संपादक कुमुद सिंह आ पत्रकार आशीष झा क शोधपरक आलेख। – समदिया
20 हजार पोखरि मे स मात्र 6441 मे भ रहल अछि माछ क उत्पादन
7442.30 हेक्टेयर क्षेत्रफल मे बनल पोखरि स महज 33.15 हजार मीट्रिक टन उत्पादन
दरभंगा प्रक्षेत्र मे भ रहल अछि अनुमानित लक्ष्य क केवल 70 प्रतिशत उत्पादन
लगभग 58 प्रतिशत अपन उपभोक्ता क जरूरत पूरा करबा मे सक्षम अछि दरभंगा
उत्तर बिहार कए माछ क जीरा मे आत्मनिर्भर बना देने अछि दरभंगा प्रक्षेत्र
हाल मे भेल एकटा सर्वेक्षण क अनुसार, दरभंगा प्रक्षेत्र (मधुबनी, दरभंगा और समस्तीपुर)क अतर्गत लगभग बीस हजार पोखरि अछि। जाहि मे स फिलहाल केवल 6441 टा पोखरि मे माछ पोसल जा रहल अछि। जखन कि 13 हजार स बेसी पोखरि एखनो माछ क बाट ताकि रहल अछि। अगर एहि पोखरि सब मे माछक उत्पादन शुरू भ जाइत अछि त निश्चित रूप स प्रदेश माछ उत्पादन क मामला मे आत्मनिर्भर भ जाएत। आंकड़ा क अनुसार दरभंगा प्रक्षेत्र क 7442.30 हेक्टेयर क्षेत्रफल मे बनल पोखरि स 33.15 हजार मीट्रिक टन माछ क उत्पादन होइत अछि, जे आंध्र क मुकाबले त गप छोडू, राज्य सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य 46.24 हजार मीट्रिक टन स काफी कम अछि। फलस्वरूप अनुमानित लक्ष्य क केवल 70 प्रतिशत ह उत्पादन भ पाबि रहल अछि। जे लगभग 58 प्रतिशत उपभोक्ता क जरूरत पूरा करबा मे सक्षम अछि। सामान्य भाषा मे कही त एकटा त किछु पोखरि मे माछ उत्पादन भ रहल अछि आ जाहि मे भ रहल अछि ताहू मे ठीक मात्रा मे उत्पादन नहि भ रहल अछि। जखन कि मिथिला क पोखरि मे रेहु, कतला, निर्गल (नैनी), कॉमन कॉर्प, ग्रास कॉर्प आ सिल्वर कॉर्प सन माछ क नीक उत्पादन कैल जा सकैत अछि। आश्चर्य क गप इ जे माछ क उत्पादन तखन नहि भ रहल अछि जखन पोखरि संगहि माछ क बीज अर्थात जीरा क उत्पादन क मामला मे दरभंगा प्रक्षेत्र उत्तर बिहार कए आत्मनिर्भर बना देने अछि। एखन दरभंगा प्रक्षेत्र क अंतर्गत मत्स्य पालन केंद्र क संख्या पच्चीस क करीब अछि, जाहि स 128 मिलियन फ्राई (मछली जीरा) क उत्पादन होइत अछि।
एहन मे त लगैत अछि जे महादेवे तय करताह जे माछ उत्पादन क मामला मे प्रदेश कहिया धरि आत्मनिर्भर भ सकत। जानकारक कहब अछि जे पोखरि क संख्या मे लगातार आबि रहल कमी आ माछ खेनिहारक संख्या मे भ रहल वृद्धि क सापेक्ष मे माछ उत्पादन लेल निर्धारित नीतिक घोर अभाव अछि। नहि त खपत क अनुकूल राज्य सरकार द्वारा लक्ष्य निर्धारित कैल जाइत अछि आओर नहि पोखरि कए भरबा स बचेबा लेल ओकर अधिग्रहण भ रहल अछि। वर्तमान मे जाहि पोखरि मे माछ क उत्पादन कैल जा रहल अछि ओ पोखरि स जुडल किसान कए राज्य सरकार क विभिन्न योजना क अंतर्गत सुविधा तक नहि भेट रहल अछि। हुनकर समझ पोखरिक सफाई, माछ फसल बीमा क अभाव, उत्पादन क नव तकनीक क सुलभ जानकारी आदि पैघ समस्या अछि। सरकारी नीतिक अभाव एहन अछि जे माछ उत्पादन क प्रति किसान क उदासीनता बढ़ल जा रहल अछि आ किसान परंपरागत तकनीक स माछ क उत्पादन करबा लेल विवश छथि।
माछ उत्पादन क प्रति घटैत रुझान क पाछु पोखरिक बंदोबस्ती प्रक्रिया सेहो जिम्मेदार अछि। आंकडा पर गौर करि त दरभंगा प्रक्षेत्र मे नव बंदोबस्ती लागू भेलाक बाद स माछ क उत्पादन क दर क्षमता क लगभग आधा भ गेल अछि। उत्पादकता क दृष्टि स एहि पोखरि क उत्पादन क्षमता लगभग 60.5 हजार मीट्रिक टन हेआक चाहैत छल, आ एहि क्षेत्र मे लगभग 56 हजार मीट्रिक टन मछली क खपत अछि। एहन मे इ सहजता स बुझल जा सकैत अछि जे एतबो पोखरि मे अगर सही तरीका स माछ क उत्पादन कैल जाइत त कम स कम दरभंगा प्रक्षेत्र मे बाहर स माछ मंगेबाक मजबूरी नहि रहत। अगर शेष पोखरि मे माछ क उत्पादन सही तरीका स शुरू भ जाएत त मिथिला क इ क्षेत्र आर्थिक रूप स एतबा समृद्ध भ जाएत जेकर कल्पना मात्र रोमांचित क सकैत अछि। खाली पडल पोखरि आ निर्धारित लक्ष्य क अनुकूल माछ क उत्पादन नहि हेबा पर दरभंगा प्रक्षेत्र क मत्स्य प्रसार पदाधिकारी कहला जे क्षेत्र क किसान अर्ध सघन अथवा सघन उत्पादन क पद्धति कए नहि अपना सकलाह अछि। परंपरागत तकनीक क इस्तेमाल एहि ठाम एखनो भ रहल अछि, ताहि कारण स पैघ-पैघ पोखरि स समुचित उत्पादन नहि भ पाबि रहल अछि। एहन मे निर्धारित लक्ष्य कए प्राप्त करब कठिन अछि। उत्पादन मे आंध्र स मुकाबला करबा लेल वैज्ञानिक पद्धति कए अपनेबाक जरूरत अछि तखन जा कए ओ लक्ष्य हासिल भ सकैत अछि। ओना ओ सेहो मानलथि जे प्रदेश क विभिन्न क्षेत्र मे माछ क आपूर्ति करबाक इतिहास रखनिहार दरभंगा प्रक्षेत्र फिलहाल अपना खेबा लेल आंध्रप्रदेश समेत देश क अन्य प्रदेश क माछ पर आश्रित भ गेल अछि।
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