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नीतीश क मीडिया या मीडिया क नीतीश

March 11, 2013
in विचार, समाचार
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IMG_0149.jpg aअनन्त 

प्रेस कांउसिल अपन जांच रिपोर्ट मे खुलासा केलक अछि जे  बिहार क प्रमुख हिन्दी दैनिक पत्र प्रभात खबर, दैनिक जागरण आ हिन्दुस्तान नीतीश सरकार क माउथपीस बनल अछि । सरकार पर सवाल ढार करैवाला खबर कए भीतरक पन्‍ना पर प्रकाशित कैल जाइत अछि या फेर ओकरा प्रकाशित  नहि कैल जाइत अछि। विपक्षी दल कए अखबार मे समुचित स्थान नहि देल जाइत अछि। आम पत्रकार भय क माहौल मे घुटन महसूस क रहल अछि। पूरा राज्‍य मे मीडिया पर अघोषित सेंसरशिप अछि। रिपोर्ट क अनुसार बिहार औद्योगिक रूप स एकटा पिछड़ा प्रदेश अछि। ताहि लेल एहि ठाम कामर्शियल विज्ञापन नहि भेटैत अछि, फलतः मीडिया घराना कए विज्ञापन लेल बिहार सरकार पर निर्भर रहब मजबूरी अछि। सरकारी विज्ञापन क अर्थशास्त्र गढ़निहार जांचकर्ता प्रख्यात पत्रकार अरूण सिन्हा द्वारा लिखल गेल पुस्तक ‘‘ नीतीश कुमार- द राइज ऑफ बिहार’’ जेकां ’इंटीमेसी आ इंटीग्रिटी’ क द्वन्द्व क बीच इंटीग्रिटी स दूर हटैत देखाई पडैत अछि। एहि रिपोर्ट कए सार्वजनिक भेला क बाद राज्‍य मे  इ बहस तेज भ गेल अछि जे आखिर इ मीडिया  नीतिश क विज्ञापन क आगू नतमस्तक अछि  या नीतीश बिहार क विशिष्ट सामाजिक राजनीतिक कारण स मीडिया क चहेता बनल छथि।

बता दी जे प्रेस कांउसिल ऑफ इंडिया क अध्यक्ष जस्टिस मार्कडेय काटजू विगत 24 फरवरी, 2012 कए बिहार क मीडिया पर तीन सदस्यीय जांच कमेटी क गठन भारतीय प्रेस क धारा 13 क तहत केने छलाह । राजीव रंजन नाग क अध्यक्षता मे गठित जांच कमेटी मे अरूण कुमार आ कल्‍याण बारूह कए सदस्य बनाउल गेल छल। लगभग साल भरि क जांच-पड़ताल क बाद उपयुर्क्त निष्कर्ष सामने आयल अछि।

प्रेस कांउसिल क इ रिपोर्ट भारतीय मीडिया पर महत्वपूर्ण शोध करनिहार राबिन जैफ्री क निष्कर्ष कए नकारैत अछि। ज्ञात हो जे रॉबिन जैफ्री 1977 स 1999 क काल खंड क भारतीय मीडिया पर शोध केने छलाह। ओ वर्नाकुलर प्रेस क कार्मशियल विज्ञापन मे बढैत हिस्सेदारी आ स्थानीय उभरैत गैरसरकारी विज्ञापन स्रोत क वर्णन अपन पुस्तक मे केने छलाह। भूमंडलीकरण क एहि दौर मे भारतीय अर्थव्यवस्था एकीकृत भ गेल अछि। विश्व बाजार क उत्पाद छोट-छोट जगह मे सेहो तेजी स पहुंच रहल अछि। 10 करोड़ क आबादी वाला बिहार कारपोरेट उत्पाद क एकटा पैघ बाजार अछि। बिहार मे आईटी आ ऑटोमोबाईल बाजार  केतबा तेजी स पसरल अछि तेकर अंदाजा सब कए अछि।  अखिल भारतीय स्तर पर आटोमोबाइल क बिक्री मे मंदी क बरक्स बिहार मे एकर बिक्री मे उछाल दर्ज भेल अछि। बिहार क अखबार मे कारपोरेट उत्पाद क ताबरतोड़ विज्ञापन एकर पुष्टि करैत अछि जे दिल्ली आ मुम्बई मे बैसल कारपोरेट बाजार क रणनीतिकार कए बखूबी बुझल अछि जे उत्पाद क बिक्री क लिहाज स बिहार केतबा संभावनापूर्ण अछि ? प्रेस कांउसिल 50 साल पुरान पद्धति ‘औद्योगिक पिछड़ापन’ क सिद्धांत क रट लगा रहल अछि, जखनकिजमाना केतबा आगू निकलि चुकल अछि जे  विज्ञापन क प्रभाव पर एहि स कोनो फर्क नहि पडैत अछि जे उत्पाद क मालिक पटना मे बैसैत अछि बा पेरिस मे । एकर अलावा विज्ञापन क स्थानीय स्रोत क रूप मे बिहार मे तेजी स उभरैत शैक्षणिक आ कोचिंग संस्थान कए चिन्हित कैल जा सकैत अछि। बिहार क राजधानी पटना समेत भागलपुर, पूर्णिय , मुजफफरपुर सन शहर शैक्षिक संस्थान क संग-संग कोचिंग हब क रूप मे विकसित भेल अछि ,जेकर बाजारी रणनीति कारपोरेट घराना जेकां  आक्रामक विज्ञपन पर टिकल अछि।

उल्लेखनीय अछि जे प्रेस कांउसिल क रिपोर्ट अपन द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत क पक्ष मे कोनो तथ्य या आंकड़ा प्रस्तुत नहि करैत अछि जे कोना कारपोरेट विज्ञापन नहि बल्कि राज्य सरकार क विज्ञापन स्थानीय अखबार क राजस्व क मुख्य स्रोत अछि। इ’समाद क समदिया जखन उपरोक्त प्रस्थापना क पड़ताल लेल  प्रभात खबर , दैनिक जागरण आ हिन्दुस्तान मे प्रकाशित विज्ञापन क एकटा रैण्डम सैंपल सर्वे केलक त एहि  सर्वे क मुख्य नतीजा एहि प्रकार स अछि :-

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सर्वेक्षण मे जे निष्कर्ष सामने आएल अछि, ओ प्रेस कांउसिल क जांच रिपोर्ट क बिलकुल विपरीत ढार अछि। प्रभात खबर मे प्रकाशित कुल विज्ञापन क लगभग 55 फीसदी कामर्शियल विज्ञापन क हिस्सेदारी होइत अछि। जाहि मे  40फीसदी प्रतिशत कलर आ 15 प्रतिशत श्वेत श्याम होइत अछि। भारत सरकार आ बिहार सरकार क विज्ञापन  लगभग 44 प्रतिशत होइत अछि , जाहि मे लगभग 6 प्रतिशत कलर आ 38 प्रतिशत श्वेत श्याम । भारत सरकार आ ओकर अन्य उपक्रम क विज्ञापन लगभग 12 प्रतिशत होइत अछि, जाहि मे लगभग 4 प्रतिशत कलर आ 8 प्रतिशत श्वेत श्याम विज्ञापनका शेयर रहैत अछि। जखन कि बिहार सरकार क हिस्सेदारी लगभग 32 प्रतिशत होइत अछि, जाहि मे 2 प्रतिशत कलर आ 30 प्रतिशत श्वेत श्याम ।

एहिना दैनिक जागरण मे प्रतिदन लगभग 53 प्रतिशत कलर आ 47 प्रतिशत श्वेत श्याम विज्ञापन प्रकाशित होइत अछि। जाहि मे 64 प्रतिशत कामर्शियल विज्ञापन क शेयर होइत अछि। प्रकाशित कामर्शियल विज्ञापन मे लगभग 49 प्रतिशत कलर आ 15 प्रतिशत श्वेत श्याम अछि। भारत सरकार आ बिहार सरकार क कुल विज्ञापन महज 36 प्रतिशत क आसपास अछि। जाहि मे 32 प्रतिशत श्वेत श्याम आ 4 प्रतिशत कलर अछि। भारत सरकार जतए औसतन 9 प्रतिशत विज्ञापन दैत अछि जाहि मे 2 प्रतिशत कलर आ 7 प्रतिशत क आसपास श्वेत श्याम विज्ञापन क अंश होइत अछि। ओतहि बिहार सरकार दैनिक जागरण कए प्रकाशित कुल विज्ञापन मे 27 प्रतिशत क योगदान दैत अछि, जाहि मे लगभग 26प्रतिशत श्वेत श्याम आ 1 प्रतिशत क आसपास कलर विज्ञापन क अंश अछि।

एहि प्रकार स हिन्दुस्तान औसतन 50 प्रतिशत कलर आ 50 प्रतिशत श्वेत श्याम विज्ञापन प्रकाशित करैत अछि। जाहि मे कामर्शियल विज्ञापन क हिस्सेदारी लगभग 57 प्रतिशत क आसपास होइत अछि, जाहि मे 44 प्रतिशत कलर आ लगभग 13 प्रतिशत श्वेत श्याम विज्ञापन अछि। बिहार सरकार आ केन्द्र सरकार क विज्ञापन क हिस्सेदारी लगभग 43 प्रतिशत अछि, जाहि मे 6 प्रतिशत कलर आ 37 प्रतिशत श्वेत श्याम होइत अछि। भारत सरकार लगभग 10 प्रतिशत क योगदान दैत अछि, जाहि मे 3 प्रतिशत कलर आ 7 प्रतिशत श्वेत श्याम क अंश अछि। ओतहि बिहार सरकार राज्‍यक  नंबर वन अखबार मे प्रकाशित कुल प्रकाशित विज्ञापन मे लगभग 33 प्रतिशत क हिस्सेदारी रखैत अछि, जाहि मे लगभग 2 प्रतिशत कलर आ 31 प्रतिशत श्वेत श्याम होइत अछि।

अखबार मे प्रकाशित विज्ञापन क आयतन क लिहाज स बिहार सरकार 26 स 33 प्रतिशत क हिस्सेदारी रखैत अछि। मुदा विज्ञापन क दर ओकर रंग , पन्ना , आ प्लेसमेंट अखबार क सर्कुलेशन, एडिशन क संग-संग कईटा अन्य कारक पर निर्भर करैत अछि। सरकार क विज्ञापन क दर डीएवीपी तय करैत अछि। विज्ञापन विशेषज्ञ क अकलन अछि जे डीएवीपी आ कामर्शियल विज्ञापन क दर मे 25: 75 क अनुपात क अंतर होइत अछि। दर क लिहाज रूपया-पैसा क भाषा मे बमुशकिल स 15 स 18 प्रतिशत क हिस्सेदारी बनैत देखाइत अछि। सरकार क हिस्सेदारी कारपोरेट क तुलना मे बहुत कम अछि मुदा सराकर एकमुश्त राशि विज्ञापन मद मे अखबार सब कए प्रदान करैत अछि। जे विज्ञापन क अर्थशास्त्र क अहम पहलू अछि। कहैत चलि जे इ सर्वेक्षण प्रभात खबर , दैनिक जागरण आ हिंदुस्तान क क्रमशः जनवरी 2013, फरवरी 2013 आ दिसंबर 2012 कए चारि दिन क पटना संस्करण क आधार पर कैल गेल अछि। एहि छोट सन अध्‍ययन स विज्ञापन क जे रूझान भेट रहल अछि ओहि स प्रेस कांउसिल क सिद्धांत घ्वस्त होइत प्रतीत भ रहल अछि।

वर्तमान पटना मे लगभग 4 दर्जन विज्ञापन एजेंसी कार्य क रहल अछि। कहैत चलि जे विज्ञापन एजेसी क कारोबार क जडि कए सींचबा मे बिहार सरकार क कोनो भूमिका नहि अछि। तखनो एकर कारोबार दिनानुदिन फल-फूल रहल अछि। विज्ञापन विशेषज्ञ क मान्यता अछि जे बिहार मे विज्ञापन क कुल कारोबार लगभग 125-150 क अछि । जाहि मे राज्य सरकार पिछला वितीय वर्ष तक 45 करोड क हिस्सेदारी देने छल। एहि गणित क अनुसार सरकारी विज्ञापन क हिस्सेदारी महज 30-36 प्रतिशत क आसपास होइत अछि। ज्ञात हो जे सरकार अपन योजना क प्रचार -प्रसार लेल क्षेत्रीय आ राष्टीय चैनल क संग संग हिन्दी उर्दू अंग्रेजी आ अन्य स्थानीय भाषा मे प्रकाशितभ रहल पत्र-पत्रिका आ अन्य माध्यम कए विज्ञापन प्रदान करैत अछि।

विज्ञापन क एहि अर्थशास्त्र स इ स्पष्ट होइत अछि जे पैघ कारपोरेट घराना द्वारा संचालित भ रहल अखबार क निर्भरता बिहार सरकार पर नहि अछि। छोट आ मध्‍यम स्तर क अखबार लेल सरकारी विज्ञापन संजीवनी क काज अवश्य करैत अछि। नीतिश कुमार क शासन काल मे विज्ञापन क हिस्‍सा सेहो कम कैल गेल अछि। राजद काल मे 2हजार करोड क योजना आकर मे विज्ञापन कुल 4 करोड क छल, जखन कि 28 हजार करोड क योजना आकार मे विज्ञापन महज 32 से 34 करोड क अछि। दोसर गप इ जे नीतीश क कार्यकाल मे विज्ञापनक केन्द्रीकरण भेला स छोट स्तर पर प्रकाशित भ रहल पत्र-पत्रिका क अस्तित्व संकट मे अछि। मुदा प्रभात खबर, दैनिक जागरण आ हिन्दुस्तान पर विज्ञापन लेल  सरकार क भाषा बजबाक आरोप लागब बेमानी लगैत अछि। बीबीसी, ईनाडु, आ टाइम्स तक मे काज क चुकल वरीय पत्रकार इन्द्रजीत सिंह कहैत छथि जे  पत्रकारिता लेल विज्ञापन कोनो मसला नहि अछि आ  इ समस्‍या केवल बिहारक सेहो नहि अछि। सिंह कहैत छथि जे  जस्टिस काटजू  केवल बिहार क मीडिया पर जांच कमेटी क गठन किया केलथि इ बुझब कठिन अछि। ओ इ सेहो कहैत छथि जे राजनैतिक कारण स गठित जांच कमेटी क जांच रिपोर्ट सेहो राजनीति स प्रेरित लगैत अछि। पत्रकारिता लेल आइ सबस पैघ समस्या पेड न्यूज अछि। कहैत चलि जे अगर ईमानदारी स पेड न्यूज क पड़ताल कैल जाए त एकर काफी उत्साहजनक परिणाम सामने आबि सकैत अछि। कई टा खुलासा एहन भ सकैत अछि जे अहां कए चौंका दैत । भ सकैत अछि जे लालू-राबड़ी क शासन काल मे अपराधी आ सरगना क अधिकतर खबर पेड होइत हुए। इ सच सेहो सामने आउत जे अपराधी -सरगना आ पत्रकार क संबंध केतबा मधुर छल ।

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Comments 1

  1. dr dhanakar thakur says:
    10 years ago

    जे सर्वेक्षण केवल चारि दिन क एकमेव पटना संस्करण क आधार पर कैल गेल अछि ओकर विश्वसनीयता अनहि अछि – एही लेल साल भारिक बिहार सरकार क एही मद पर खर्चक आंकड़ा चाही जे जुतायब कठिन जरूर अछि मुदा रंदम सैंपल क आधार पर विश्वाश केनाइल कठिन- तखन विज्ञापन ने सही खाब्रिक सर्वे के ली- कतेक सरकार समर्थक -कोण पेज पर कतेक विरोधी कोण पेज पर?

    Reply

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