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सब रूप मे कल्‍याणी छथि दुर्गा

October 16, 2012
in फीचर, समाचार
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प्रवीण नारायण चौधरी

हेमन्त ऋतु के आगमन संग मातारानी – शक्तिदात्री भवानी जननी पूजाक विशेष अवसर घर-घर दुर्गा पाठ भ रहल अछि। आइ मिथिलाक घर घर मे नवरात्र क कलश स्थापना भ गेल। नवरात्र मनुष्य क संगहि समस्त प्राणी जगत लेल शुभ फल ल कए आयल अछि। एहि साल मां भगवती क आगमन आ प्रस्थान दूनू शुभ फलदायक अछि। एहि साल मां दुर्गा क आगमन हाथी पर भ रहल अछि जखन कि मां दुर्गा प्रस्थान सेहो हाथी पर सवार भ करतथि। हाथी पर आगमन आ हाथी पर प्रस्‍थान दूनू उत्‍तम योग अछि। एहि स समाज, देश, प्रदेश मे सुख-समृद्धि आउत आ विकास क नव बाट बनत। एहन मे हमरो कर्तब्य बनैत अछि जे एहि शुभ घड़ी आध्यात्म सँ जुड़ल अति मननीय रहस्य ऊपर चर्चा करी आ सौभाग्यशाली मित्र संग समस्त मानव समुदाय – जीवमण्डल हेतु कल्याणकारी कर्म व वचन के प्रवाह करी।

सर्वप्रथम भगवती के नौ रूप – नवदुर्गाके जानकारी प्राप्त करी।

१. शैलपुत्री

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

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वृषारूढां शुलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्॥

माँ दुर्गा अपन पहिल स्वरुप में ‘शैलपुत्री’क नामसँ जानल जाइत छथि। पर्वतराज हिमालयक घर पुत्रीक रूपमें उत्पन्न होयबाक कारण हिनकर ई ‘शैलपुत्री’ नाम पड़ल छल। वृषभ-स्थिता माताजीकेर दाहिना हाथमें त्रिशूल आर बायाँ हाथमें कमल-पुष्प सुशोभित अछि। यैह नव दुर्गाओंमें प्रथम दुर्गा छथि।

 

२. ब्रह्मचारिणी

दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।

देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥

माँ दुर्गाकेर नव शक्तिकेर दोसर स्वरुप ब्रह्मचारिणी केर अछि। एतय ‘ब्रह्म’ शब्दक अर्थ तपस्या अछि। ब्रह्मचारिणी अर्थात् तपकेर चारिणी – तपकेर आचरण करयवाली। कहल गेल छैक – वेदस्तत्त्वं तपो ब्रह्म – वेद, तत्त्व आर तप ‘ब्रह्म’ शब्द के अर्थ थीक। ब्रह्मचारिणी देवीक स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य अछि। हिनक दाहिना हाथमें जपकेर माला एवं बायाँ हाथमें कमण्डलु रहैत अछि।

 

३. चन्द्रघण्टा

पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।

प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥

माँ दुर्गाजीकेर तेसर शक्तिक नाम ‘चन्द्रघण्टा’ अछि। नवरात्रि-उपासनामें तेसर दिन हिनकहि विग्रहकेर पूजन-आराधना कैल जैछ। हिनक ई स्वरूप परम शान्तिदायक आर कल्याणकारी अछि। हिनकर मस्तकमें घण्टीके आकारक अर्धचन्द्र अछि, यैह कारणसऽ हिनका चन्द्रघण्टा देवी कहल जाइत अछि। हिनक शरीरक रंग स्वर्ण-समान चमकीला अछि। हिनक दस हाथ अछि। हिनक दसो हाथमें खड्ग आदि शस्त्र व बाण आदि अस्त्र विभूषित अछि। हिनक वाहन सिंह अछि। हिनक मुद्रा युद्ध लेल उद्यत रहबाक होइत अछि। हिनक घण्टीसँ निकैल रहल भयानक चण्डध्वनिसँ अत्याचारी दानव-दैत्य-राक्षस सदैव प्रकम्पित रहैत अछि।

 

४. कुष्माण्डा

सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च,

दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभादस्तु मे॥

माँ दुर्गाजी केर चारिम स्वरुपक नाम कूष्माण्डा अछि। अपन मन्द-हलुक हँसीद्वारा अण्ड अर्थात् ब्रह्माण्डके उत्पन्न करबाक कारणे हिनका कूष्माण्डा देवीके नामसऽ अभिहित कैल गेल अछि। जखन सृष्टिक अस्तित्व नहि छल, चारू कात अन्हार परिव्याप्त छल तखन यैह देवी अपन ‘ईषत्’ हास्यसँ ब्रह्माण्डक रचना केने छलीह। अतः यैह सृष्टिक आदि-स्वरुपा, आदि शक्ति छथि। हिनका सँ पूर्व ब्रह्माण्डक अस्तित्व रहबे नहि कैल।

 

५. स्कन्दमाता

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

माँ दुर्गाजीक पाँचम स्वरुपके स्कन्दमाताक नामसऽ जानल जाइत अछि। ई भगवान्‌ स्कन्द ‘कुमार कार्तिकेय’ नाम सऽ सेहो जानल जाइत छथि। ई प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवता सभक सेनापति बनल छलाह। पुराण सभमें हिनका कुमार आर शक्तिधर कहैत हिनकर महिमाक वर्णन कैल गेल अछि। हिनकर वाहन मयूर अछि। अतः हिनका मयूरवाहनक नाम सऽ सेहो अभिहित कैल गेल अछि।

 

६. कात्यायनी

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दुलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवघातिनी॥

माँ दुर्गाक छठम स्वरूपक नाम कात्यायनी अछि। हिनका कात्यायनी नाम पड़बाक कथा एहि प्रकार अछि – कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि छलाह। हुनक पुत्र ऋषि कात्य भेल छलाह। ओ भगवती पराम्बाक उपासना करिते बहुत वर्ष धरि बड कठिन तपस्या केने छलाह। हुनकर इच्छा छलन्हि जे माँ भगवती हुनक घर पुत्रीक रूपमें जन्म लैथि। माँ भगवती हुनक एहि प्रार्थनाके स्वीकार कयने छलीह। किछु काल पश्चात् जखन दानव महिषासुर केर अत्याचार पृथ्वीपर बहुत बढि गेल तखन भगवाऩ् ब्रह्मा, विष्णु आ महेश तीनू गोटे अपन-अपन तेजक अंश दैत महिषासुरक विनाशक लेल एक देवीकेँ उत्पन्न केलाह। महर्षि कात्यायन सर्वप्रथम हिनक पूजा कयलन्हि। यैह कारण सऽ ई कात्यायनी कहेली।

 

७. कालरात्री

एकवेन्नि जपकर्णपुरा नग्न खरस्थिता,

लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णि तैलभ्याक्ताशरीरिणी,

वामपादोल्लासल्लोहलताकान्ताक्भुषणा,

वर्धनामुर्धध्वज कृष्णा कालरात्रिभयङ्करी॥

भगवती दुर्गाके सातम स्वरूप कालरात्रिकेर नाम सऽ जानल जाइत छथि। हिनक दैविक शरीरक रंग गाढा कारी जेना घनघोर अन्हरिया राइत समान अछि। हिनक केश छितरायल छन्हि। गर्दैनमें बिजलोता समान चमकैत बिजलीक माला छन्हि। हिनक तीन टा नेत्र छन्हि। एक-एक ब्रह्माण्ड समान गोल-गोल देखैत छन्हि ई तिनू आँखि। साँस लैत आ छोड़ैत आइगक ज्वाला निकैल रहल छन्हि। गदहाक वाहन पर आरूढ (सवार) छथि। दाहिना ऊपरका हाथ संसारके कल्याण हेतु आशीष देबाक मुद्रामें छन्हि, दाहिना निचुलका हाथ निर्भय शक्तिक प्रतीक बनल छन्हि; बाम भागक ऊपरका हाथमें कील-काँटी छन्हि आ निचुलकामें कुरहैर।

बहुत भयावह देखा रहल छथि मुदा हमरा लोकनिकेँ सदिखन सुन्दर फल प्रदान केनिहैर सदिखन केवल आशीर्वाद दऽ रहल छथि, एहि हेतु हिनक नाम शुभङ्करी पड़ल छन्हि। दुर्गा पूजाक सातम दिन पारंपरिक रूपसँ हिनक पूजा कैल जाइत छन्हि।

 

८. महागौरी

स्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्वरधरा शुचिः,

महागौरी शुभांग दद्यान्महादेवप्रमोदता!

भगवती दुर्गाजीके आठम शक्ति स्वरूपके महागौरी नाम सँ जानल जाइत अछि। ओ मात्र श्वेत वस्त्र धारण करैत छथि आ पूर्णतया श्वेत-स्वरूपा लगैत छथि। गौरवर्ण होयबाक कारणे महागौरी कहाइत छथि। वास्तविकता एहेन छैक जे भगवान् महादेव संग विवाह हेतु देवी एहेन घोर तपस्या केलीह जेकर परिणामस्वरूप कोयलो सऽ कारी झमास बनि गेलीह, मुदा जखन महादेव के प्रसन्न केलीह तेकर बाद देवाधिदेव हुनका गंगाजल सऽ रगड़ि-रगड़ि अपन अलौकिक प्रेमभाव सहित स्नान करेलाह आ तत्क्षण दुधिया गोराइ प्राप्त करैत माँके नाम महागौरी पड़ल।

हिनक चारि टा हाथ छन्हि आ बैलकेर सवारी प्रयोग करैत छथि। दाहिना ऊपरका हाथ कल्याण हेतु आशीर्वाद देवाक मुद्रामें छन्हि। दाहिना निचुलका हाथमें त्रिशूल छन्हि। बामा ऊपरका हाथमें डमरु छन्हि। बामा निचुलका हाथ वरदायिनी मुद्रामें छन्हि।

दुर्गा पूजाकेर आठम दिन हिनक पूजा-अर्चना कैल जैछ। हिनका सँ हमरा सभके सच्चाई आ ईमानदारिता संग सदिखन कर्म करबाक लेल उद्यत रहबाक लेल भेटैत अछि, असत्यके माता अपनहि सँ भक्तसँ दूर करैत छथि।

 

९. सिद्धिदात्री

सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि,

सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥

भगवती दुर्गाक नवम स्वरूपके सिद्धिदात्री नाम सऽ जानल जाइछ। ओ समस्त सिद्धिके देनिहैर छथि, समस्त दैवीक सम्पदा-मुद्रा के प्रदायिनी छथि। मार्कण्डेयपुराण अनुसार – अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईश्विता आ वशीत्व – ई आठ प्रकारके सिद्धि होइछ। लेकिन ब्रह्मवर्तपुराण अन्तर्गत कृष्णजन्मखण्ड अनुसार सिद्धि कुल अठारह प्रकार के होइछ: १. अणिमा, २. लघिमा, ३. प्राप्ति, ४. प्रकाम्य, ५. महिमा, ६. ईश्विता-वशीत्व, ७. सर्वकामवसयिता, ८. सर्वज्ञत्व, ९. दूरश्रवण, १०. परकायप्रवेशन, ११. वाक्‌सिद्धि, १२. कल्पवृक्षत्व, १३. सृष्टि, १४. संहारकरणसामर्थ्य, १५. अमरत्व, १६. सर्वन्यायकत्व, १७. भावना, आ १८. सिद्धि!

 

अतः, भगवती के प्रसन्न भेला सऽ भक्तकेँ उपरोक्त समस्त सिद्धिक प्राप्ति होइत छैक।

ॐ तत्सत्‌!!!!! !..

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Comments 3

  1. सुनील says:
    14 years ago

    ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते !

    Reply
  2. chandan says:
    14 years ago

    dhanybad ,puja ke thithi ke ke sandarrbh me bristit jankari samast mitra mandal me pahucheybak lel

    Reply
  3. Pravin Choudhary says:
    13 years ago

    Dhanyavaad – uparokt vachan-pravaah ke samuchit prakaashan lel. Harih Harah!

    Reply

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