बिहारक सौ सालक यात्रा कए ज्यों स्त्रीक नजरिया स देखल जाय त की बिहारक इतिहास मुक्तलिफ होएत? की इ दू अलग प्रक्रियाएं अछि? की एकरा अलग क कए देखबाक क कोनो औचित्य अछि? एहन हजार टा सवाल अछि, जेकरा हल केने बिना स्त्री क मुद्दा पर समग्रता स गप नहि भ सकत।
स्त्रीक अपन परंपरा, अपन संघर्ष आओर अपन भागीदारी क इतिहास खुद लिखए पड़त। स्त्री जानैत अछि जे भिन्न-भिन्न वर्ग, वर्ण आ जाति क बीच नब-नब समीकरण क संग ओकरा अपना लेल लड़ए पड़त। पूंजीवादी पितृसत्ता ऊपर स चाहे जतेक उदार आओर सरल लागय मुदा भीतर स जटिल अछि। दोष ओकर संरचना मे अछि। जों ऐहन नहि रहिते त आजादी क आंदोलन से ल कए अखैन धरि क स्त्री संघर्षक कए इतिहास मे कतोउ त जगह भेटल रहिते। आजादी क इतिहास पर अनेक ग्रंथ अछि, मुदा स्त्री क सामान्य भागीदारी पर अलग स खोज करबा लेल निकलब, त कतहूँ किछु नहि भेटत। स्त्री क सभ पंरपरा हुनकर इतिहास हुनकर संघर्ष सब दफन क देल गेल अछि।
आशारानी व्होरा जखन ‘महिलाएं और स्वराज’ किताब लिखब प्रारंभ कैलथि ते हुनका तथ्य जुटेबा मे 12 वर्ष लागल। ओ एक जगह लिखलथि जे आजादी क आंदोलन मे स्त्री क भूमिका पर लिखबा लेल जखन ओ सामग्री जुटा रहल छलथि त हुनका घोर निराशा भेल। सच त इ अछि जे सब दलित आ वंचित वर्ग कए अपन अतीत दर्ज करेबा क उद्यम अपने करै पडैत अछि। जानल-मानल नारी चिंतक प्रभा खेतान एक ठाम लिखलथि अछि, ‘हम स्त्रीसब लग एकर सिवा विकल्पे की अछि! हम अपना आप कए उघाडिये कए यथास्थिति क खिलाफ विद्रोह कए पाबि सकैत छी। हमर अपन अतंरग अनुभवे हमर पहिल अस्त्र अछि। जे आगाँ जाए क अपन प्रमाणिकता क जरिया स इतिहास बनबैत अछि’।
इतिहास मे औरत क भूमिका हरदम स अदृश्य रहल अछि। एकर एकटा कारण इ अछि जे औरत इतिहास चेतन नहि रहल। इतिहासकार सेहो प्रतीक, लोक गाथा, गीत आ आन स्त्रोत कए कहियो समेटबा क कोशिश नहि केलक। व्यवस्थित रूप स इतिहास रचय क मंजिल पर पहुंचय स पहिने एहन सब समुदाय क पहिल चरण मे आत्मगत ब्योरा क इस्तेमाल करैत अछि ताकि हुनकर बुनियाद स इतिहास लिखय क इमारत ढार कैल जा सकए। वर्जीनिया वुत्फ एक ठाम लिखने छथि, ‘इतिहास मे जे किछु अनाम अछि ओ स्त्रीक नाम अछि’। मानल जाएत अछि जे उन्नीसवीं सदी क अंत आओर बीसवीं सदी क शुरुआत मे अनेक महिला आंदोलन भेल। मुदा ओ आंदोलन क कोनो इतिहास नहि भेटल। यैह ओ क्षण अछि जखन स्त्री आंदोलन क पुनर्मूल्यांकन जरुरी अछि ताकि मुक्ति क सामाजिक परंपरा मे एकटा नब अध्याय जोड़ल जा सकैत अछि।
“नारीवादी आंदोलन क सबसे पैघ जीत छल स्त्री क देह स आगाँ जाए क देखब। सेक्स आ जेंडर दू अलग-अलग शब्द अछि, ई बुझेबा मे लंबा समय लागल। लिंग क आधार पर स्त्री एकटा विशिष्ट प्रकार क हिंसा झेलैति अछि, नारीवाद एहि दमन क विरुद्ध स्त्री मुक्ति आ हुनकर सामूहिक चेतना क विकास क लेल संघर्ष क रहल अछि। मुदा गप एतहि खत्म नहि होयत। हुनकर लड़ाई दुनिया मे स्त्री क मनुख क दर्जा दियेबाक लेल अछि। स्त्री आंदोलन क पहिल पक्ष अछि वर्चस्वविहीन समाज क स्थापना।”
भारतीय स्त्री आंदोलन कए स्वतंत्रता आंदोलन क इतिहास स जोडि कए देखए पडत। जेकर शुरुआत सन्यासी विद्रोह स भेल अछि। सन्यासी विद्रोह क सूत्रधार देवी चैधरानी क अंग्रेज इतिहासकार दस्यु रानी क संज्ञा देलैथि । ओहि समय क लेफ्टिनेंट ब्रेननक एकटा रिपोर्ट स पता चलैत अछि जे भवानी पाठक कए विद्रोही गतिविधि क पाछाँ देवी चौधरानी क प्रमुख हाथ छलथि। भवानी पाठक क ह्त्या क बादो देवी चैधरानी कहियो हार नहि मानलथि। ओ बराबर लड़ति रहलीह आओर अंत धरि अंग्रेज क हाथ नहि एलेथि।
20 वर्ष तक चलैत रहल आजादी क लड़ाई क एहि प्राथमिक संघर्ष मे सन्यासी विद्रोह क एकमात्र सशक्त महिलाक रूप मे हुनकर नाम अमर अछि। 1857 स ल कए 1942 तक आजादीक आंदोलन मे महिला क संघर्ष क ऐहन हजार स बेसी गाथा अछि जेकरा समेटबा मे नहि जानि कतेक साल लागि जाएत। ओहि नाम मे स एकटा नाम दुर्गा भाभी क छल। दुर्गा भाभी, प्रसिद्ध क्रांतिकारी भगवतीचरण वोहरा क कनिया आ सरदार भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु जेहन क्रांतिकारि क भाभी छलीह। आओर आजादी क आंदोलन मे सबहक़ साझीदार। दुर्गा भाभी अगर नहि रहतिथि त शायद इतिहास मे इ क्रांतिकारि सबहक एतेक जगह नहि भेटतीए।
आजादी क लेल लड़निहारि महिला क समक्ष सबस पैघ चुनौती छल समाज मे स्त्री-पुरुष क बीच क विभेद क खिलाफ आगू एनाय। एहि विभेद क पाँछा मूल रूप स सत्ता क संघर्ष छल आओर अछि। मानव सभ्यता क इतिहास बताबैत अछि जे राजनीतिक, धार्मिक आ सामाजिक, एतबा धरि जे व्यक्तिगत स्तर पर सेहो सत्ता क ई खेल प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप स आइ धरि जारी अछि। उन्नीसवीं सदी मे 1890 क आस-पास चलाओल गेल समाज सुधार आंदोलन क दौरान महाराष्ट्र मे काशीबाई कनिकतर आओर आनंदीबाई जोशी पहिल बेर जूता पहिर कए आओर छाता ल कए निकलल छलीह। तखन यैह कहि कए हुनका पर पाथर बरसाएल गेल जे ओ पुरुष क अधिकार वला प्रतीक कए अपना कए पुरुष क अपमान केलैथि अछि। ओहि दौर मे ताराबाई शिंदे द्वारा लिखल किताब ‘स्त्री-पुरुष तुलना’ पर जमिकए बबाल भेल। एहि मसला पर कृष्णराव भालेकर आओर ज्योतिबा फूले क बीच गरम बहस भेल छल। पुस्तक मे स्त्री-पुरुष क तुलना करैत कहल गेल छल जे धोखेबाजी, मक्कारी, संदिग्ध चरित्र आ असहिष्णुता जेहन अवगुण जेकरा खाली स्त्री चरित्र क हिस्सा मानल जाएत अछि, ओ समान रुप स पुरुष मे मौजूद अछि। इ बहस साबित करैत अछि कि दशक पहिने वर्चस्वविहीन समाज क खिलाफ आंदोलन क बीज रोपल जाएत रहल छल।
देश भर मे जखन महिला अपन अधिकार क लेल आंदोलन करि रहल छलीह तखन बिहार सेहो ओ आंदोलन स अछूता नहि छल। परंपरा क अनेक धारा क विरुद्ध बिहार क महिला सेहो मोर्चा खोललथि। बिहार कए जखन बंगाल प्रेसिडेंसी स अलग कैल गेल ओहि समय बिहार क स्कूल मे पढ़निहारि यवती क संख्या काफी कम छल। ओहि दौरान शुरु भेल सुधार आंदोलन मे बिहार क महिला सेहो भूमिका निभेलैथि । शिक्षा एकटा मुद्दा बनल। पटना मे राममोहन राय सेमिनरी मे आयोजित सम्मेलन मे महिला सब शिक्षा क संग-संग बाल विवाह क खिलाफ सेहो प्रस्ताव पारित केलैथि। श्रीमती मधोलकर एकर अध्यक्षता केलैथि आओर बाल विवाह क खिलाफ समिति बनेबाक का सुझाव देलैथि। बिहार संग दोसर राज्य मे सेहो सुधार आंदोलन चलि रहल छल। जल, जंगल जमीन क संग-संग महिला अपन वोट देबाक अधिकार लेल सेहो संघर्ष कए रहल छलीह।
1910 मे बंगाल मे सरला देवी भारत स्त्री मंड़ल क स्थापना केलैथि। 1917 मे सरोजनी नायडू क नेतृत्व मे एकटा प्रतिनिधिमंडल स्त्री क रक्षा आओर मताधिकार लेल मांटेग्यू चेम्स फोर्ड स भेट केलक। अप्रैल 1918 मे पटना मे भेल एकटा आयोजन मे एनी बेसेंट कहलथि जे जखन तक औरत कए अधिकार नहि भेटत ‘मोर्ले मिन्टो सुधार’ स कोनो लाभ नहि होयत। महिला क मताधिकार क मांग क लेल साउथ बोरो कमेटी क स्थापना कैल गेल।1919 क जनवरी मे पटना मे अखिल भारतीय महिला सम्मेलन भेल। बिहार क महिला बाल विवाह, दहेज प्रथा आओर मताधिकार क मुद्दा पर अपन आवाज बुलंद केलथि। ओहि साल राजकिशोरी देवी मझवेलिया, लहेरियासराय मे बिहार महिला पीठ क स्थापना केलैथि। 1921 कए राष्ट्रीय कांग्रेस क अधिवेशन मे बिहार स आठ टा महिला हिस्सा लेलैथि।
इतिहास गवाह अछि जे देश भरि मे चलल असहयोग आंदोलन मे बिहार क महिला जमिकए हिस्सा लेने छथि। बिहार मे महिला अपन मताधिकार क मांग लेल सेहो लंबा संघर्ष केलैथि । बिहार क कौंसिल मे महिला क वोट देबाक प्रस्ताव त खसि गेल अछि मुदा महिलाक संघर्ष जारी रहल आओर 1929 मे बिहार आ उड़ीसा क महिला कए वोट देबाक अधिकार भेटल। इ एकटा एहन अधिकार छल जाहि स महिला क लेल राजनीतिक केबार खुजल। बिहार मे प्रांतीय सभा क चुनाव दुनु सदन क लेल एक्के संग भेल। राज्य क चारि टा महिला सीट क लेल कांग्रेस दिस स कामख्या देवी कए प्रत्याशी बनाएल गेल। कामख्या देवी वा सरस्वती देवी बहुमत स जीतलथि। आजादी भेटलाक क बाद महिला कए बालिग मताधिकार क आधार पर वोट देबा आ चुनाव मे प्रत्याशी बनय क अधिकार त भेटल मुदा आधी आबादी कए हुनकर अनुपात मे प्रतिनिधित्व नहि भेटल।
आजादी क बाद भेल 1952 स 2000 तक क बिहार विधान सभा चुनाव मे 180 महिला विधान सभा पहुंचलथि। एहि दौरान लोकसभा मे 52 महिला चुनल गेलीह। बिहार क राजनीति मे ओ समय नब मोड आएल जखन1989 मे केन्द्र मे विश्वनाथ प्रताप सिंह क सरकार बनल। बिहार क सत्ताक समीकरण बदलल। मंड़ल आओर कमंडल क राजनीति शुरु भेल। एहि क बाद आएल लालू-राबड़ी क दौर। जाहि मे महिला क अपन मताधिकार क जमिकए प्रयोग भेल। पिछड़ा क गोलबंदी क इ दौर नीतीश क नब दौर स पिछडि गेल। एक बेर फेर महिला अपन भागीदारी निभेलैथि। मुदा हरेक दौर मे हुनकर मताधिकार क प्रयोगक ग्राफ कम रहल। राजनीति मे सोंझ भागीदारी स ल कए वोटक लड़ाई मे राजनीतिक दल सब महिला कए हाशिश पर रखलक।
21वीं सदी आबैत -आबैत महिला आंदोलन मे कईकटा उतार चढ़ाव आयल । बाजारवाद आओर खुजल अर्थव्यवस्था सेहो स्त्री-पुरुष संबंध क समीकरण कए प्रभावित केनाए शुरू केलक। सामाजिक आओर आर्थिक मुद्दा पर पहिल बेर महिला खुलकए अपनी भागीदारी क सवाल उठेलथि। देश भरि मे जखन संसद मे 33 प्रतिशत आरक्षण क सवाल पर आंदोलन चलि रहल छल तखन बिहार क महिला क संसद क संग-संग पंचायत मे सेहो 50 प्रतिशत आरक्षण लेल आंदोलन केलैथि। इतिहास गवाह अछि जे पंचायत मे महिला कए भेटल 50 प्रतिशत आरक्षण महिला आंदोलन क देन अछि। राजनीति मे अनुभवहीन होबाक बावजूद ओ इ चुनौती स्वीकार केलैथि। एहि आंदोलन राजनीतिक दल कए इ बुझेबा लेल मजबूर केलक जे महिला क भागीदारी क बिना समाज क पूरा विकास संभव नहि अछि।
(निवेदिता झा। वरिष्ठ पत्रकार। सामाजिक कार्यकर्ता। कई साल तक राष्ट्रीय सहारा आ नई दुनिया स जुडल रहलथि। महिला क मुद्दा पर बेहतरीन पत्रकारिता लेल हिनका 2010-2011 क लाडली मीडिया अवार्ड भेटल। हिनका कईटा फेलोशिप सेहो भेट चुकल अछि। पटना निवासी निवेदिता स niveditashakeel@gmail.com पर संपर्क करि।) जॉइंट वेंचर – मोहल्ला लाइव
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