आशीष झा/ कुमुद सिंह
अगर हम उत्तर बिहार मे शास्त्रीय संगीत क इतिहास पर गौर करि त इ साबित होइत अछि जे इ इलाका बिहार कए सामाजिक आओर संस्कृतिक जीवन मे महत्वपूर्ण भूमिका अदा केने अछि। लोक नृत्य संगीत टा नहि, बल्कि अभिजात्य संगीत क परंपरा सेहो बिसरल नहि जा सकैत अछि। एहि ठामक लोक संगीत कए जीवन क अभिन्न अंग मानिकए ओकरा विकसित करैत रहलथि अछि। यैह कारण अछि जे मिथिला क लोक गीत मे सेहो शास्त्रीयता क गहीर छाप देखबा मे भेटैत अछि। कखनो ख्याल आ ध्रुपद क उत्तर बिहार खासकए मिथिला मे तूती बजैत छल, आइ ओ रसधार सूख चुकल अछि। आम लोक क गप दूर ओहि घराना सबहक दलान पर सेहो सन्नाटा पसरल अछि। कतहु संगीत क प्रति ओ पागलपन देखबा मे नहि भेटैत अछि। कहबा लेल आइ सेहो एहि घराना क नव पीढी रोज रियाज करैत रहैत अछि, मुदा तखनो उत्तर बिहार मे शास्त्रीय संगीत क प्रति लोक मे वो जिज्ञासा नहि देखल जा रहल अछि, जे देखबाक चाही। आइ ध्रुपद क अपेक्षा ख्याल गायकी क प्रति युवा मे इच्छा देखल जा रहल अछि। मुदा ख्याल गायकक रियाज मे सेहो ओ अनुशासन नहि देखा रहल अछि, जे हिनकर पूर्वज मे पाउल जाइत छल।
संरक्षकक अभाव या फेर जमीन स टूटैत संबंध, कारण जे हुए, मुदा आइ एहि घरानाक किछु युवा गायक उत्तर बिहार स सुदूर आन राज्य मे ध्रुपद आ घराना क गौरवशाली इतिहास कए दोहरेबा लेल छटपटा रहल छथि। निश्चित रूप स एहि घराना मे पुरुष गायकक बर्चस्व रहल अछि, मुदा आइ प्रियंका मल्लिक क रूप मे महिला गायिका क एकटा एहन सूची तैयार भेल अछि जे आगू आर लंबा होएत। कुल मिला कए इ कहल जा सकैत अछि जे 200 साल स बेसी पुरानी उत्तर बिहार क शास्त्रीय गायकी क धारा अगर सूखाइल नहि अछि, त ओहि मे वो बहाव सेहो नहि रहल।
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कर्नाट वंश क देन अछि शास्त्रीय संगीत
मिथिला मे संगीत क इतिहास 11वी सदी स भेटैत अछि। ओहि दौरान एहि क्षेत्र पर सिंहराव क कर्णाट वंश क शासन छल। ओहि समय एहि वंश क शासक न्यायदेव (1097-1134) शास्त्रीय संगीत कए स्थापित करबा मे अहम भूमिका निभेलथि। मिथिलेश न्यायदेव उच्च कोटि क कला जोहरी छलथि संगहि ओ अपनो महान संगीतज्ञ छलाह। ओ राग क सम्यक विश्लेषण आ वर्गीकरण करि राग संगीत कए नव दिशा प्रदान केलथि। हुनकर लिखल किताब सरस्वती ह़यदालंकार क पांडुलिपि पुणे मे सुरक्षित अछि। ओना एहि पुस्तक कए भारत भाष्य क नाम स सेहो पहचान अछि। हुनकर समकालीन मिथिला क भोज, सामश्वर, परमर्दी, शारंगदेव आदि भारतीय संगीत क महान शास्त्रकार भेलाह। खडोरे वंश क मिथिला नरेश शुभंकर (1516-1607) कए किछु विद्वान बंगाल निवासी मानैत छथि, मुदा अधिकतर लोकक मानब अछि जे ओ मिथिलावासी छलाह। ल्वेयन सेहो अपन रागतिरंगनी मे हिनका एकटा मैथिल क रूप मे जिक्र करैत छथि। शुभंकर संपूर्ण संगीत कए एकटा नव उंचाई प्रदान केलथि। श्रीहस्तमुक्तावली क संग संग ओ संगीत दामोदर क रचना केलथि। संगीत दामोदर मे पहिल बेर मैथिल राग शुभग क उल्लेख भेटैत अछि। एहि ग्रंथ मे पहिल बेर 101 ताल क चर्च कैल गेल अछि। शुभंकर एहि ग्रंथ मे इ सेहो साबित करबाक कोशिश केलथि जे बीना क 29टा प्रकार अछि। मार्गी संगीत कए मिथिला मे केवल मान्यता नहि बल्कि भरपूर आनंद सेहो भेटैत अछि। कर्नाट वंश क अंतिम राजा मिथिलेश हरि सिंह देव क दरबारी मैथिल विद्वान आ कुशल संगीतज्ञ ज्योतिश्वर ठाकुर 14वी सदी क कलावंत क उल्लेख विद्वावंत क रूप मे केलथि अछि। ज्योतिश्वर पहिल बेर 18 जाति, 22 श्रुति आ 21 मुर्च्छना क खोज केलथि। चूंकि न्यायदेव कर्नाट स आयल छलाह ताहि जाहिर अछि जे ओ अपना संग कर्नाटीय पद्धति सेहो अनने हेताह। एहि संबंध मे कला विद्वान गजेंद्र सिंह कहैत छथि जे बहुत संभव अछि जे मिथिला क प्रथम विख्यात राग तिरहुत मूलत: कर्नाट पद्धति क देन हुए। मिथिला क विख्यात संगीतका, शास्त्रकार आओर राग तिरंगीनी क प्रणेता लोचन कवि (1650-1725) मिथिला मे राग क उत्पत्ति नाद-तिरुपण आ तिरहुत देस मे प्रचलित राग गीत, छंद, ताल आदि क सविस्तार चर्चा केने छथि। एहन कईटा राग क जन्म ओ एहि ग्रंथ क माध्यम स देलथि जे मिथिला क संगीत कए बुलंदी पर आनि ठार कए देलक। एहि ग्रंथ मे कईटा एहन राग मौजूद अछि। लोचन आडाना सन राग कए रचि कए मिथिला क शास्त्रीय संगीत परंपरा कए एकटा ठोस आधार प्रदान केलथि। समस्त भारत एहि गप पर एक मत अछि जे मध्य काल मे रागतरंगिनी उत्तर भारतीय संगीत क मानक ग्रंथ अछि। मध्य काल मे मैथिल संगीतज्ञ क पूरा भारत मे धूम रहल। एहि कालखंड मे मिथिला क संगीतज्ञ बंगाल आ उत्तरप्रदेश मे काफी ख्याति अर्जित केलथि। पीसी बागची क रचना ‘भारत और चीन’ क अनुसार 7वीं स 10वीं सदी मे हिनकर धूम चीन मे सेहो काफी छल। मिथिला क बुधन मिश्र 12वीं सदी क महान कवि जयदेव क समकालीन छलाह। उत्तर प्रदेश स त्रिपुरा तक अपन संगीत क जोहर देखेनिहार इ संगीतज्ञ एक बेर जयदेव कए सेहो ललकारलथि। अपन समय क ओहि सबस पैघ संगीत प्रतियोगिता मे बुधन मिश्र विजय प्राप्त करि मिथिला क परचम पूरा देश मे लहरा देलथि। कर्नाट वंश क मिथिला नरेश मे न्यायदेव स लकए हरिसिंह देव (1303-26) तक छहटा पुश्त मे संगीत क परंपरा प्रबल रहल। मुस्लिम आक्रमण क कारण 1326 मे हरिसिंह देव नेपाल जाकए बसि गेलाह।
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एहि ठाम निर्मित किछु राग
उत्तर बिहार क जमीन पर कईटा राग रचल गेल। एहि ठाम रचल अधिकतर राग या त राग निर्माता क संग खत्म भ गेल या फेर किछु टा घराना मे पीढी लग सुरक्षित अछि। बेतिया क संगीतप्रेमी नरेश आनंद किशोर द्वारा निर्मित ध्रुपद संगीत क ग्रंथ आनंद सागर मे कईटा एहन रागक जिक्र भेटैत अछि जेकर जिक्र आर कतहु नहि उपलब्ध अछि। एहि राग सब मे राग सुरह, राग शंख, राग सिंदुरा मल्हार आदि महत्वपूर्ण कहल जा सकैत अछि। लोचन सेहो कईटा एहन रागक निर्माण या रचना केलथि जे केवल तिरहुत मे गाउल जाइत रहल। लोचन द्वारा रचित राग मे गोपी बल्लब, बिकासी, धनछी, तिरोथ, तिरहुत आदि प्रमुख कहल जा सकैत अछि। दरभंगा क महाराजा रामेश्वर सिंह क नाम पर रामेश्वर राग क सेहो निर्माण भेल छल। एहि प्रकार क जिक्र ओहि पुस्तक मे भेटैत अछि। मिथिला मे रचित अन्य राग मे राग मंगल, राग देस, राग स्वेत मल्हार, रत्नाकर आ भक्त विनोद आदि प्रमुख अछि।
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ध्रुपद : संगीत क एकटा ध्रुव
शारंदेव 13वीं सदी मे प्रबंध क लगभग 300 प्रकार क वर्णन केने छथि। ओहि मे स एकटा प्रबंध सालगसूड क अवयब मे ध्रुव क जिक्र भेटैत अछि। मानल जाइत अछि जे ध्रुव स बाद मे ध्रुपद क प्रदुभाव भेल। स्थाई अंतरा संचारी आ अभोग मे शब्द स्वर आओर लय क जेहन सुंदर संमवित स्परूप ध्रुपद मे देखबा मे भेटैत अछि ओहन अन्य दोसर कोनो गेय विधा मे नहि भेटैत अछि। एहि लेल ध्रुपद कए हिंस्दुस्तानी संगीत क ब्राहमण सेहो कहल जाइत अछि। प्राचीन काल मे ध्रुपद एकटा समूह गायन छल, एकर एकल प्रस्तुति क चलन मूगल काल मे शुरू भेल। दरअसल ध्रुपद गायकी गंभीर आ प्राचीन हेबाक संगहि अध्यात्मिक भक्ति क सृजन करैत अछि। जेकरा साधक शांत भाव स आओर धीर गंभीर गमक आदि द्वारा ध्रुपद गायन कए व्यक्त करैत अछि। उत्तर बिहार मे ध्रुपद क दूटा परंपराएं विकसित भेल जे बेतिया आओर दरभंगा राज्य क संरक्षण मे फलैत-फूलैत रहल। एहि दूनू घराना मे बेतिया घराना प्राचीन अछि। एहि घराना क उदभव 17वीं सदी क आसपास भेल अछि। एहि दूनू राजवारा क शासक केवल एहि दूनू घराना कए संरक्षण नहि देलथि बल्कि एहि राजवाराक राजा स्वयं उच्च कोटिक संगीतज्ञ सेहो छलाह। उत्तर बिहार मे ध्रुपद गायन आओर धराना कए स्थापित करबाक श्रेय बेतिया क राजा गज सिंह कए जाइत अछि।
दरभंगा घराना लगभग 250 साल पुरान अछि। प्रख्यात लोक गायिका जयंती देवी क अनुसार राधाकृष्ण आओर कर्ताराम नामक दू भाई मिथिला नरेश माधव सिंह( 1775-1807) क शासन काल मे पश्चिम भारत शायद राजस्थान स दरभंगा एलथि। प्रख्यात ख्याल गायक रामजी मिश्र क मानि त नींव कियो रखने हुए मुदा दरभंगा घराना क प्रथम नायक छितिपाल मल्लिक कए कहल जा सकैत अछि। ओना इ घराना अपन स्वर्ण काल 20वीं सदी मे देखलक। 1936 मे मुजफ़फरपुर क संगीत मर्मज्ञ बाबू उमाशंकर प्रसाद द्वारा आयोजित अखिल भारतीय संगीत सम्मेलन मे दरभंगा घराना क महावीर आ रामचतुर मल्लिक बंधु द्वारा एहन युगल गायन प्रस्तुति कैल गेल जे ओहि ठाम आयन सबटा गुणीजन एक मत स हुनका संगीताचार्य क उपाधि स विभूषित केलथि। बाद मे भारत सरकार एहि घरानाक दूटा रत्न रामचतुर मल्लिक आओर सियानाम तिवारी कए पद़मश्री स सम्मानित केलक।
आइ ध्रुपद मिथिला क लेल अंजान बनल अछि। एकर संबंध मे बतेनिहार सेहो कम भ गेल अछि। दरभंगा स्थित ध्रुपद विद्यालय सेहो कहबा मात्र लेल अछि। संगीत क कोनो पैघ आयोजन पिछला 22 साल स नहि भेल अछि। नीक कलाकार क्षेत्र छोडि चुकल छथि। पंडित राम कुमार मल्लिक असगर भैयारी छथि जे दरभंगा मे रहैत छथि आ घराना क दलान पर सुर क आराधना जारी रखने छथि। ओना इ कई बेर विदेश जा चुकल छथि मुदा दरभंगा स कटबाक इच्छा हिनका कहियो नहि भेल। दरभंगाक अन्हार शास्त्रीय परंपरा मे राम कुमार जी एकटा रोशनदान जेकां छथि। ओना राम कुमार जी कए सेहो कोलकाता क एकटा संस्थान गुरु-शिष्य परंपरा योजनाक तहत ध्रुपद गुरु नियुक्त केने अछि।
आइ युवा मे ध्रुपद क अपेक्षा ख्याल गायकी क प्रति रूझान देखबा मे भेट रहल अछि। एकर कारण ख्याल क लोकप्रियता आ आर्थिक पक्ष मानल जा सकैत अछि। उत्तर बिहार मे एहि रुझान कए बढावा देबाक काज रामजी मिश्र केलथि। कहियो ध्रुपद लेल विख्यात मधुबनी घराना क वारिस रामजी मिश्र क ख्याति ध्रुपद स बेसी ख्याल गायन स भेल। मिश्र अपन पिता आद्या मिश्र स ध्रुपद क शिक्षा लेलथि, मुदा बाद मे हिनकर रुझान ख्याल दिस भेल आ इ ख्याल क विधिवत शिक्षा ग्रहण करि राष्ट्रपति स स्वर्ण पदक प्रप्त केलथि। मिश्र क लग मे जतए घराना स भेटल ध्रुपद गेबाक क्षमता छल ओतहि ओ ख्याल गायकी क प्रति व्यक्तिगत रुझान क कारण ख्याल गायक मे अपन एकटा अलग पहचान देश मे बना लेलथि। रामजी मिश्र दरभंगा स्थित मिथिला विश्वविद्यालय मे संगीत विभाग खुलेबा मे सेहो अहम भूमिका निभेलथि। रामजी मिश्र जेकां बेतिया घरानाक पं रामनाथ मिश्र सेहो समय क मांग कए देखैत ध्रुपद छोडि कए ख्याल दिस चल गेलाह। दरभंगा आ बेतिया घराना अपन स्वर्ण काल मे नहि अछि, मुदा इ सुखद आश्चर्य अछि जे 200 साल पहिने बेतिया नरेश द्वारा लगाउल गेल एहि संगीत बगिया क किछु फूल मुडझेलाक बावजूद अपन खूशबू बिखेरबा मे एखनो संक्षम छथि। तखनो एतबा त मानब उचित रहत जे फूल मुडझा चुकल अछि।
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बेतिया घराना : फेर खिस्सा अप्पन लिखब हम
बेतिया घराना उत्तर बिहार क पहिल संगीत घराना अछि। एहि घराना क उदभव 17वीं सदी क आसपास मानल जाइत अछि। उत्तर बिहार मे ध्रुपद गायन आ एहि घराने कए स्थापित करबाक श्रेय बेतिया क राजा गजसिंह कए जाइत अछि। दिल्ली दरबार क अंत क संगहि ओहि ठामक गवैया सब कए छोट छोट राजा क जरूरत महसूस भेल । एहि क्रम मे राजा गजसिंह कुरूक्षेत्र लगक एकटा गाम क गवैया चमारी मल्लिक (गायक) आ कंगाली मल्लिक (बीनकार) कए अपना संग बेतिया आनि कए दरबार क प्रमुख संगीतज्ञ नियुक्त केलथि। एहि ठाम स एहि घराना क शुभारंभ मानल जा सकैत अछि। बेतिया घराना क ध्रुपदिय गायक अपन गायन मे संक्षिप्त अलाप आ बेलबाट वर्जित रखैत छथि। इ संपूर्ण गायन कए लय मे कोनो बदलाव नहि करैत छथि। एहि घराना क गायक क गायन मे ख्याल क भांति विस्तार सेहो वर्जित अछि। बंदिशया रचना मे फेरबदल केने बिना रागानुकुल गायन हिनकर सबस प्रमुख विशेषता अछि। अंतिम सोनिया उस्ताद अली खां स प्राप्त ध्रुपद क बंदिश केवल बेतिया घराना मे उपलब्ध छल। बेतिया घराना क दिग्गज ध्रुपदी क वंश परंपरा कए महंत मिश्र अपन आगू बढेला। बेतिया घराने में 1956 में जन्में संगीत कुमार नाहर एक कुशल संगीत रचनाकार के रूप में भी समस्त भारत में ख्याति प्राप्त की।
पं रामनाथ मिश्र क अनुसार बनारस घराना मे सेहो ध्रुपद गायकी बेतिया स गेल अछि। बड़े रामदास बेतिया घराना क शिष्य छलाह, जे रामदासी मल्हार क रचना केने छथि। मुदा बनारस घराना तानसेन क ध्रुपद शैली अपना लेलक जखन कि बेतिया घराना हरिदास स्वामी क शैली पर अडिग रहल।
तानसेन शैली क ध्रुपद गायन मे लयकारी पर बेसी ध्यान देल जाइत अछि। गायक आलाप आओर तरह-तरह क चमत्कार स अपन कला क लोहा मनबैत छथि। जखकि बेतिया घराना क शैली मे पद मे समाउल भाव कए गायन क द्वारा सजीव कैल जाइत अछि। हरिदास स्वामी एहि शैली मे गबैत छलाह, मुदा लोकप्रियता तानसेन शैली कए हासिल भेल।एहि लेल आइ बेतिया घराना कए कम लोक जानैत अछि।
बेतिया घराना क वर्तमान दशा क एकटा इ पैघ कारण रहल जे एहि घराना क ध्रुपद गायक अपन कला कए शिष्य परंपरा क बजाए वंश परंपरा स जीवित रखबाक कोशिश केलथि। पंडित फाल्गुनी मित्र क बाद अगर बेतिया घराना मे कियो तानसेन क गुरु हरिदास स्वामी क ध्रुपद गायकी कए ओकर मौलिक रूप मे जीवीत रखने अछि त ओ केवल पं इंद्रकिशोर मिश्र छथि। बेतिया घराना मे आर्थिक बदहाली क बावजूद किछु बंशज किछु एहन बंदिश बचा रखने छथि जे आओर कतहु नहि सुनबा मे भेटैत अछि। एहि घराना मे गायकक घोर अभाव अछि मुदा भविष्य अंधकार नहि अछि, उम्मीदक एकटा दीया पंडित जीक आंगन मे देखा रहल अछि। पं इंद्रकिशोर मिश्र क बालिका शिष्या अपन नैनपन मे जेना बंदिश क रियाज मे लागल छथि ओ बता रहल अछि जे हरिदास स्वामी क एहि अनमोल विरासत कए जीवित रखबा लेल एक समर्पित प्रतिभा तैयार भ रहल अछि।
अनमोल रत्न : गोपाल मल्लिक, कांके मल्लिक, फजल हुसैन, काले खां, श्यामा मल्लिक, उमाचरण मल्लिक, गोरख मल्लिक, राजकिशोर मल्लिक, महंत मल्लिक, शंकरलाल मल्लिक, संगीत कुमार नाहर बद्रीनाथ मिश्र, प्रह़लाद मिश्र आदि प्रमुख छथि।
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दरभंगा घराना : गौरवशाली इतिहास, उज्जवल भविष्य
दरभंगा क मल्लिक ध्रुपदी परंपरा सेहो करीब 200 साल क अछि । राधाकृष्ण आओर कर्ताराम नामक दू भाई मिथिला नरेश माधव सिंह (1775-1807) क शासन काल मे पश्चिम भारत शायद राजस्थान स दरभंगा एलाह। इ सब पहिने दरभंगा क मिश्रटोला मे बसलाह । बाद मे महाराज हिनका सब कए अमता नामक गाम लग गंगदह चौर मे जमीन द बसा देलथि। कहल जाइत अछि जे एहि दूनू भाई दरभंगा घरानाक नींव रखलथि। दरभंगा क मल्लिक ध्रुपदीय गौडबानी ध्रुपद गबैत छथि । गौडबानी ध्रुपद मे स्वर विस्तार क जे संयोजन करैत छथि, ओ रंजकता स परिपूर्ण अछि आओर उदभुत होइत अछि । एहि कारण स हिनकर पंडित्यपूर्ण गायकी क आओर संबल परंपरा देखाइत अछि । दरभंगा घराना क गायन क विशेषता एहि ठामक गायकक नोम-तोम क अलापचारी मे अछि। दरभंगा घराना क छाप मिथिला समाज पर एतबा धरि देखाइत अछि जे मिथिला क अधिकतर परंपरागत लोक गीत क बंदिश ख्याल मे नहि भ कए ध्रुपद मे अछि । दरभंगा घराना क दूटा गायक कए भारत सरकार पद़मश्री स सम्मानित केने अछि । सबस पहिने इ सम्मान पंडित रामचतुर मल्लिक कए देल गेल। बाद मे दरभंगा घरानाक महान गायक सियाराम तिवारी कए सेहो एहि सम्मान स सम्मानित कैल गेल। इ दुर्भाग्य रहल जे तिवारीक परिवार आइ गायन मे नहि अछि। हुनक भाई वायलिन वादक छथि, जखन कि हुनक सातो पुत्री अपन गला मे संगीत नहि बसा सकलथि। मल्लिक परिवार क अधिकतर प्रतिनिधि सेहो मिथिला कए छोडि अन्य प्रदेश मे जा बसलाह अछि । एहि मामला मे दरभंगा कए सबस पैघ झटका तखन लागल जखन विदुर मल्लिक आओर अभयनाराण मल्लिक दरभंगा कए छोडबाक फैसला लेलथि। विदुर मल्लिक रामचुतुर मल्लिक क बाद सबस कुशल गायक छलाह। मिथिला क लोक गायिका जयंती देवी क कहब अछि जे विदुर क दरभंगा छोडब एक प्रकार स दरभंगा स ध्रुपद क विदाई रहल । ओ आगू कहैत छथि जे विदुर कए अभय क समान रामचतुर जी प्रमोट नहि केलथि, तखनो विदुर जे स्थान ध्रुपद क क्षेत्र मे बनेलाह ओ दरभंगा घराना क माइट मे बसल संगीत कए साबित करैत अछि । विदुर जरूर मिथिला कए छोडि वृदांवन मे जा बसलाह, मुदा ओ कहियो दरभंगा स अलग नहि भ सकलाह । एहि प्रकार अभय नारायण मल्लिक खैडागढ, जबखकि विदुर मल्लिक क पुत्र प्रेमकुमार मल्लिक इलाहाबाद मे रहि रहल छथि। एहि कारण स आइ दरभंगा अपने अपन एहि घराना क प्रति अंजान भ चुकल अछि । ओनाओ दरभंगा मे घ्रुपद क आखरी पैघ आयोजन करीब 20 साल पहिने भेल छल। आइ एहि घराना क पूरा दारोमदार अभयनारायण मल्लिक, राम कुमार मल्लिक आ प्रेम कुमार मल्लिक क ऊपर अछि।
दरभंगा घरानाक एहि वरिष्ठतम गायक अभयनारायण मल्लिक क जन्म 1938 मे दरभंगा मे भेल। अभय नाराण ध्रुपद क महान गायक रामचतुर मल्लिक क शिष्य छथि। दरभंगा क संगीत प्रेमी राजबहादुर विश्वेश्वर सिंह क हिनका आशिष प्राप्त छल। इ अपन कका क जेकां ध्रुपद क संग-संग ठुमरी सेहो आसानी स गाबि लैत छथि । केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी फलोशिप प्राप्त एहि अभय नारायण मल्लिक मिथिला क गौरवशाली ध्रुपद परंपरा कए सुदूर देश रोम आओर जर्मनी तक पहुंचेलथि। अभय नारायण क एचएमभी कईटा रिकार्ड आओर कैसेट सेहो निकालने अछि ।
एहिना विदुर मल्लिक क पुत्र प्रेमकुमार मल्लिक आइ एहि परंपरा कए बचेबा लेल सबस बेसी संघर्षरत छथि। देश मे आइ ध्रुपद गायक सब मे प्रेम कुमार क विशेष स्थान अछि। प्रेम कुमार 1983 मे यूरोपीय श्रौता कए मोहित करि अपन दादा रामचतुर मल्लिक क बाद विदेश मे सबस बेसी ख्याति प्राप्त केलथि। प्रेम कुमार मल्लिक कए 1980 मे राष्ट्रपति स स्वर्ण पदक सेहो भेटल अछि। आइ हिनकर पुत्र प्रशांत-निशांत आओर पुत्री प्रियंका मल्लिक एहि घरानाक विशाल परंपरा कए अपन गला मे उतारबा मे सफल भ चुकल अछि। ओना राम कुमार मल्लिक क संतान सेहो संगीत परंपरा कए आगू बढेबा मे लागल छथि। हुनक पुत्र सुमित मल्लिक, साहित्य मल्लिक आ संगीत मल्लिक क संग संग पुत्री रूबी मल्लिक सेहो देश भरि मे अपन कार्यक्रम प्रस्तुत क चुकल छथि। साहित्य आ संगीत मल्लिक जुडवां भाई छथि आ एहि चारू भाई बहिन कए सेहो गायन मे स्वर्ण पदक महामहिम क हाथ स भेट चुकल अछि। मल्लिक परिवार क 13म पीढी मे कुल आठ टा गायक तैयार अछि जे एहि घराना कए एक बेर फेर स्वर्णकाल मे लौटेबा लेल संघर्षरत अछि।
अनमोल रत्न : कर्ताराम मल्लिक, कन्हैया मल्लिक, निहाल मल्लिक, रंजीतराम मल्लिक, गुरुसेवक मल्लिक, कनक मल्लिक, फकीरचंद मल्लिक, भीम मल्लिक, पद़मश्री सियाराम तिवारी आदि।
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मिथिला क ख्याल मे जा बसल ख्याल
ख्याल क अर्थ होइत अछि कल्पना या अपन कल्पना स सृजन करब। अर्थात ख्याल गायक अपन साधना मे गंभीरता क संगहि चंचल प्रकृति कए सेहो देखबैत छथि। एकरा देखेबा लेल गायक अपन गला मे बेसी तैयारी मुरछना, तान आ लय क विभिन्न प्रकार कए आकर्षक ढंग स श्रोता क समक्ष प्रस्तुति करैत छथि। अभिजात्य संगीत क अंतर्गत नहि केवल ध्रुपद बल्कि ख्याल विशेष करि ठुमरी क समृद्ध परंपरा मिथिला मे रहल अछि । यद्यपि ध्रुपद क समान मिथिला मे ख्याल क कोनो पैघ घराना नहि अछि । मुदा किछु एकटा छोट घराना आ किछु महान कलाकार एकरा मिथिला मे स्थापित टा नहि केलथि बल्कि अपन गायन स दुनिया कए सम्मोहित केलथि। ख्याल गायक मे सबस उल्लेखनीय स्थान पूर्व मिथिला क बनैली राज्य क कुमार श्यामानंद सिंह क अछि । हिनका ख्याल क विभिन्न घराना क पुरान गुणिजन स मार्गदर्शन प्राप्त छल । कुमार साहब पेशेवर गायक नहि छलाह, मुदा हिनकर ख्याति क प्रमाण एहि स लगाउल जा सकैत अछि जे उस्ताद बिलायत हुसैन हिनका उत्तर भारत क सबस पैघ ख्याल गायक मानैत छलाह । गजेंद्र नारायण सिंह क पोथि मे मिथिला क एकटा आओर महान ख्याल गायक क चर्च अछि । पंचगछिया (सहरसा) क रायबहादुर लक्ष्मीनारायण सिंह क टहलू खबास (नौकर) मांगन अपन समय क महान ख्याल गायक छलाह। हुनकर ख्याति दूर देश तक छल । ओ ओंकारनाथ ठाकुर कए सेहो अपन गायन स प्रभावित केने छलथि । रसभरी ठुमरी गायन मे हुनकर कोनो जोर नहि छल । कहल जाइत अछि जे ओ जखन मेघ सन वर्षाकालीन राग गबैत छलाह त आसमान मे बादल छा जाइत छल । 1936 क आसपास मंगन बंगाल आ पूर्वी प्रदेश मे अपन गायन क तहलका मचेने छलथि । एहि दौरान मंगन पंचगछिया स दरभंगा आबि गेलाह । ओ दरभंगा क संगीत प्रेमी राजबहादुर विशेश्वर सिंह क खास गायक नियुक्त भेलाह । संगीत जगत लेल इ अभिशाप कहल जाए जे एहि अदभुत गायक क न कोनो रिकार्ड बनि सकल आ न कोनो तसवीर खींचल गेल । मंगन सन उदाहरण शायद विश्व मे कतहू नहि भेटत जे एकटा चाकर जे एकटा महान गायक बनि दुनिया स चल गेल।
ख्याल गायकी मे पनिचोभ (मधुबनी) क गायक सेहो महत्वपूर्ण स्थान मानल जाइत अछि । एहि धराना क सबस विलक्ष्ण गायक अबोध झा (1840-1890) क पुत्र रामचंद्र झा (1885) छलाह। ओना ओ बनैली राज घराना मे गाबैत छलाह, मुदा हिनकर गायन दरभंगा राज दरबार मे सेहो होइत छल। ख्याल गायकी घरानाक अभाव मे जीबैत त रहल मुदा अपन पहचान नहि बना सकल। आइ किछु गायक एकरा अपन व्यक्तिगत उपलब्धि संग बचा रखने छथि। जाहि मे बिहारी क नाम उल्लेखनीय अछि। बिहारी जी क जन्म 1966 मे बनैली क राज परिवार मे भेल। अपन पिता कुमार श्यामानंद सिंह क भांति हिनको ख्याल गायकी मे नीक पकड हासिल अछि। पिता क समान बिहारी सेहो पेशेवर गायक नहि छथि । मुदा जमींदारी नहि रहबाक कारण पिता क समान ओ निजी तौर पर महफिल क आयोजन नहि कए पाबि रहल छथि । ओना डागर बंधु हिनकर गायन मे पिता क झलक देखबाक का दावा करि चुकल छथि। ख्याल गायकी क बगिया आइ निश्चित रूप स अपन बागवान क बाट ताकि रहल अछि।
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: स्मरण :
ए रामचतुरबा तू का गैवेदरभंगा राज क दरबार हॉल श्रोता स भरल छल । महाराज आओर हुनकर छोट भाई कजनी बाई क ठुमरी क आनंद ल रहल छलाह । कजनी बाई क ठुमरी खत्म भेला पर राजाबहादुर रामचतुर मल्लिक कए गैबा लेल आमंत्रित केलथि । ध्रुपद क एहि गायक कए ठुमरी गेबाक निमंत्रण सुनि कजनी बाई स रहल नहि गेल । ओ मुस्कुरा कहलथि- ए रामचतुरबा तू का गैवे। रामचतुर मल्लिक बिना किछु बजने ठुमरी क बंदिश शुरू करि देलथि । किछु पल बाद कजनी बाई एकटा आओर बंदिश सुनबाक ख्वाइश जाहिर केलथि। ध्रुपद क एहि महान गायक क मानब छल जे ध्रुपद जे गाबि लैत अछि ओ सब किछु गाबि सकैत अछि । दरभंगा घराना क एहि रत्न क जन्म 1902 स 1907 क बीच बताउल जाइत अछि । मुदा अधिकतर लोकक कहब अछि जे हिनकर जन्म 1907 मे दरभंगा मे भेल छल। पंडित जी क पडोसी हेबाक नाते हमरा हुनका देखबाक आ सुनबाक मौका भेटल। मुदा नैनपन क मस्ती कहियो बैसकए या थमि कए हुनका सुनए नहि देलक । जखन कखनो हमार मित्र हमरा हकलेबा पर चिढबैत छल, पंडित बाबा कहैत छलाह गाबि कए गप कर नहि हकलेबए। पंडित जी क लोहा डागर बंधु सेहो मानैत छलाह। हुनका केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी अवार्ड आओर भारत सरकार द्वारा पद़मश्री स सम्मानित कैल गेल। खैरागढ विश्वविद्यालय हुनका डॉक्टर क उपाधि देलक । रामचतुर मल्लिक मिथिला क संगीत परंपरा कए पहिल बेर सुदूर यूरोपीय देश तक ल गेलाह। हुनका लग प्रचीन बंदिशक खजाना छह। उस्ताद फैयाज खां क बाद पंडित जी एक मात्र गायक छलाह जे चारू पट कुशलतापूर्व गाबि सकैत छलाह । बिहार सरकार क बेरुखी आ बीमारी एहि महान गायक कए खामोश करि देलक । जनवरी 1990 मे हिनकर निधन स मिथिला क रसधार सूखि गेल । रामचतुर मल्लिक क बाद मिथिला मे ध्रुपद क एक प्रकार स अंत भ गेल। आइ मिथिला मे ध्रुपद कए बचा हुनका श्रद्धांजलि देल जा सकैत अछि।
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व्यायवसायिकता स दूर एकटा कला साधक
कुमार श्यामानंद सिंह क भतीजी क विवाह मे खास तौर पर पंडित जसराज कए बनैली बजाउल गेल छल। भोर मे जसराज मंदिर मे ककरो भजन गबैत सुनलाह । मंदिर गेला पर देखलाह जे भजन कियो आओर नहि बल्कि कुमार साहब अपने गाबि रहल छलाह । भजन सुनैत-सुनैत जसराज क आंखि नोरा गेल । पूछबा पर कहला जे भजन जे एहन गाबि सकैत अछि ओ ख्याल केहन गाउत । राति क महफिल मे जसराज कुमार साहब स कईटा ख्याल क बंदिश सुनलाह। कुमार श्यामानंद सिंह क जन्म पूर्व मिथिला क बनैली राज घराना मे भेल। कुमार साहब पेशेवर गायक नहि दलाह । एहि कारण स बहुत लोक हिनकर संबंध मे कम जनैत अछि । मुदा कुमार साहब क संगीत मे जे ख्याति छल ओ देश भरि क पैघ गायक कए हिनका लग एबा लेल मजबूर केलक । कुमार साहब कईटा पैघ गबैया कए अपन कायल बना चुकल दलाह । प्रख्यात केसर बाई केरकर क संग घटल एकटा घटना क जिक्र गजेंद्र नारायण सिंह अपन पुस्तक मे सेहो केने छथि । 1946 क एकटा महफिल मे केसर बाई कुमार साहब क बंदिश सुनि कए हुनका स गंडा बांधबेबा लेल तैयार भ गेलीह। एहि बंदिश क स्थाई त केसर बाई अपन गला मे उतारि लेलथि, मुदा अंतरा हुनका स नहि उतरि सकल । एहि गप क हुनका मरैत काल धरि दुख रहल। एहि प्रकारक एकटा आर घटनाक चर्च ओहि पोथी मे अछि । कहरवे अवध नामक एकटा बंदिश मे कुमार साहब क संग संगत करि रहल मशहूर तबला वादक लतीफा क हाथ तबला पर धरल रहि गेल। कुमार साहब क एकटा संबंधी क कहब अछि जे कुमार साहब क मानब छल जे तान अलंकार अछि आ अलंकार धारण करबा लेल आधार यानि शरीर चाही। आओर बंदिश वैह शरीर छी।
1986 मे दरभंगा मे आयोजित ध्रुपद समारोह मे कुमार साहब सेहो भाग लेने छलाह । तखने हमरो हुनका सुनबाक सौभाग्य भेल । संयोग स ओ हमर नाना क घर पर ठहरल छलाह । कुमार साहब जखन रियाज करैत छलाह, त संगीत नहि जनिनिहार सेहो ठहरि जाइत छल। हुनका सुनब एकटा सकून दैत छल । ख्याल गायकी क जे कल्पना क्षमता हुनका मे छल शायद एहन क्षमता मिथिला मे फेर देखबा लेल भेटत । कुमार साहब आइ हमर सबहक बीच नहि छथि । हुनकर निधन 1995 मे भ गेल।
वाह, वाह, वाह, पूरा सोध छपी गेल छल….बहुत बहुत धन्यवाद एहन सुन्दर आलेख क लेल
वाउ… अद्भुत काज केलहुँ अछि अहाँ दुनू गोटे. बहुत सुन्दर अछि आ विस्तृत सेहो. हम त’ एकर प्रिंट लैत छी. राति मे नीक जेना पढ़ब. बल्कि अध्यन करब. एहन तरहक संस्कृतिक शोधक घोर अभाव अछि अपन मिथिली मे. जँ हम सब किछु काज क’ सकी एहि बिधाक लेल त’ अपना आप के भाग्यशाली बूझब. एक बेर फेर स’ धन्यवाद.
शास्त्रीय संगीत क व्याकरण हमरा बड जटिल बुझाएत अछि, ओहिना जना गणित क कोनो सूत्र। मुदा शास्त्रीय संगीत क खयाल गायिकी सं लगाव अछि, एकर अलाप हमार सबसं नीक लगैत अछि.मन सं करीब। आइ भोरे-भोर समाद पर इ विस्तृत लेख पढि क मन गदगद भ गेल। शुक्रिया
बहुत नीक आलेख मिथिलाक में शाश्त्रीय संगीत के ऊपर ।जहा तक कुमार श्यामानंद सिंह के
सम्बन्ध में बात कयल गेल अछि,हम हुनका लाइव त नै सुनने छी लेकिन हुनकर गायल
बहुत राग सब हम सुनने छी।एही मामला में मिथिला के मान बढ़ल जे
हुनक सदृश्य शाश्त्रीय गायक मिथिला में भेला।
सामग्री बहुत सूचनाप्रद लगी। लेकिन कुमार श्यामानंद सिंह के पुत्र बिहारीजी को मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ, उनका जन्म 1966 में नहीं हुआ था। एक और चीज़ जानना चाहता हूँ कि बिहारीजी को कहाँ और कब डागर बंधुओं ने गाते सुना, कि उनके बारे में ये बात आपने प्रकाशित की? संभव हो तो कृपया बतलाएं! इसमें कोई विवाद नहीं कि बिहारीजी के गायन में अपने पिता की छाप है,लेकिन डागर-बंधुओं वाली जानकारी आपको कहाँ से मिली? और हाँ , मिथिला में या बिहार में शास्त्रीय संगीत की बात हो और रामाश्रय झा ‘रामरंग’ तथा ऋत्विक सान्याल की चर्चा भी ना हो …ये बात ज़रा अन्याय जैसी हो जाती है।