एकटा व्यक्तिगत ओझरायल भावना क सोझरा कए सिनेमाक माध्यम स सार्वजानिक केनाई एतेक सुलभ काज नई होइत छैक।
विश्व भरि मे रंग बिरंगक सिनेमा बनल छै आ बनैत रहैत छै एक स एक काम्प्लेक्स विषय वस्तु पर निक स निक सिनेमा तैयार होइत रहल अछि।
भारतीय सिनेमा में सेहो हिंदी आ अन्य प्रांतीय भाषा में भावुक मनः स्थिति कए रजत पट पर दृश्य श्रब्य माध्यम मे रखबाक खूब प्रयास भेल अछि ।
मैथिलि सिनेमाक करीब ६० बरखक इतिहास मे एहेन प्रयास नहीं देखल गेल रहय अखन धरि । “गामक घर” मैथिली सिनेमा उपक्रम पर एकटा सांस्कृतिक आ वैचारिक मोहर लगबैत अछि आ ई स्तुत्य प्रयास मे प्रथम आ अग्रणी बनैत अछि ।
निर्जीव वस्तु कतेक जीवंत होइत अछि आ ओकर मनोदशा समय परिस्थिति आ मानव जीव संग कतेक उतार चढ़ाव के देखैत अछि यैह समयकाल कए नापि रहल अछि मैथिलि सिनेमा “गामक घर”।
सिनेमा मे नायक नहि अपितु चरित्र निकैल क बाहर होइत अछि जाहि मे एकटा घर, आंगन, दलान, दुरखा, धिया पुता अपन बदलैत समय साल संग दर्शक स सम्वाद करैत अछि आ दर्शकक भावना स अपन सम्बन्ध स्थापित करैत अछि।
तीन पीढ़ी मे घर आंगन कोना बदलि जाएत अछि एकर दस्तावेजी स्वरूप, यथासम्भव सामान्य आ मौलिक प्रस्तुति, अनावश्यक नाटकीय आडम्बर स हटिकए’ ई सिनेमा एकटा कथा कहब मात्र सँ आगू बढि दर्शकक भावना आ मनोदशा कए स्पर्श करैत अछि।
ई सिनेमाक माध्यम स अनेकों “गामक घर”आ परिवार प्रश्न करैत अछि अपन समाज सँ, अपन प्रान्त सँ अपन सरकार सँ, कि जदी आजीवका लेल घरक परिवार अन्य प्रान्त मे पलायन क जाएत त “गामक घर” आंगन शून्य किएक भ जायत अछि?
की “गामक घर”परिवार लेल एकटा सामयिक उत्सव मे मिलन क केंद्र मात्र बनि क रही गेल अछि या ओहो स निचा खसि पडल अछि?
परिवारक श्रेष्ठ बुजुर्ग क वचन मानि लेबाक मात्र लेल अपन “गामक घर” पर कोनो संस्कार उत्सव करि वा अपन विचार आ उत्साह सेहो जुडल रहय “गामक घर” आंगन आ पारम्परिक परिवेश मे संस्कार अनुष्ठान आयोजन करबाक लेल?
हम महानगर मे 2 बीएचके फ्लैट किन लेलौ त “गामक घर” क कोनो मूल्य नहि रहि गेल?
एही तरहक बहुत रास प्रश्न “गामक घर” सिनेमा स निकलैत अछि आ बिला जाएत अछि । महानगर मे बसि रहल मिथिलाक कुहरैत समाज मे जतय वन बीएचके, टू बीएचके फ्लैट किन लेनाई गौरव के पर्याय बनि चुकल अछि।
विडम्बना ई आर बेसी जे ई सिनेमा अखन महानगर क अंतर्राष्ट्रीय स्तरक फिल्म उत्सव मे देखबाक अवसर भेटल, विश्व भरि क सिनेमा संग एहि फिल्म कए वैश्विक सिनेकर्मी समाज मे खूब प्रोत्साहन, स्नेह आ सम्मान भेट रहल छैक मुदा ई सिनेमा अपन दर्शकक बीच कहिया आओर कोना पहुँचत से कहनाई बड्ड कठिन आ अनिश्चित अछि।
छठिहारक उत्सव क वातावरण स सिनेमा शुरू होइत अछि आ छइठ क उत्सव संग आगू बढैत उपनयन क उत्सव के तैयारी हेतु घरक मरम्मति होयबाक दृश्य पर घरक चारि-खपड़ा इत्यादि हटेबाक मौलिक आ मार्मिक ध्वनि विन्यास पर सिनेमा संग ओ “गामक घर” अपन अंत होइत देखैत अछि।
सिनेमा में मुख्य रूप स दादी क भूमिका स्पष्ट अछि जे गृह संचालिका के रूप मे एकटा परिवार कए समेट कए रखबाक भरिसक प्रयास करैत रहि जैत छथि । घरक कोठरी, कोना, कुर्सी, कोच, पलंग, चौकी, बर्तन-बासन, आ तुलसी चौरा धरि अपन चरित्र मे मुखर आ स्पष्ट भ बाजि रहल छथि, बहुत किछु जे हृदय क स्पर्श केने बिना अहाँक नहि छोड़त।
एकटा नाटककारक परिवार, बाप, पित्ती, भाई भातिज, दियाद सहोदर, गार्जियन, सौस पुतौह क आत्मीय सम्बन्ध, दियादनी सभक आंतरिक मनोभाव, बाध बोन, खेत पथार, पढ़ाई, लिखाई, नौकरी, चाकरी, डाक्टरी, भोज भात, गामें मे रहि गेल युवक की व्यवसाय करय, कोना जीवन चलत, आ संगहि छोटका सन कैमरा मे स्मृति शेष रखबाक लेल फोटो झिकनाई कतेको रास उपक्रम आ प्रश्न, विलक्ष्ण विवेचना शून्य स अनंत धरि करैत मात्र डेढ़ घंटा मे धीपल लोहा देह पर राखि दैत अछि ई फिल्म जे की अहाँक शीतलहरी में कठुआयल सन मोन के ऊष्मा प्रदान करैत अछि।
अद्भुत छायांकन, “गामक घर” जयबाक रस्ता मे एकटा गाछक ३० सालक यात्रा, गाछक स्वरूप कोना बदलि गेलैक, गाछक माध्यम स प्रतीकात्मक दृश्य आ विश्लेष्ण एही भाव कए आर बेसी स्पष्ट करैत अछि। लेखकीय आ निर्देशन सोच ई सिनेमा के ओतबे जटिल बनबैत अछि आ स्क्रीन पर प्रस्तुति तेहने स्पष्ट आ सोझरायल अछि।
सिनेमा देखैत अहाँ हेरा जायब आ फेर भेंट होयत अहाँक अपन गामक घर स ।
बहुत सम्भव अछि जे अहाँक नयनक कोर सँ किछ अश्रु जल बाहर निकलबाक लेल अपन मार्ग प्रश्स्त करय।
यैह कथा कहैत अछि मैथिली सिनेमा “गामक घर”
बहुत नीक अचल मिश्र निर्देशक आ टीम
अहाँ सभ पर गर्व अछि।
विकास झा : लेखक फिल्मकार छथि । हिनकर सिनेमोटोग्राफी कमाल क होएत अछि । संगे अहॉं लेखक सेहो छी । सोशल मीडिया पर अपन बेबाक टिप्पणी लेल जानल जाएत छथि ।