गजानन मिश्र
‘ उं मधु! तृप्यध्वम तृप्यध्वम तृप्यध्वम’ अर्थात तृप्त होऊ तृप्त होऊ तृप्त होऊ. मिथिलाक माटि पानि इयेह मधु थिक जे तृप्ति क पर्याय अछि . हिमालयी वातावरण मे बर्फीला जल सँ पूर्ण नदी नाला सँ निर्मित माटि, गंगा सन मास्टर ड्रेन वा सालो भरि सूर्य प्रकाश क उपलब्धता मिथिला मे एक एहन इकोसिस्टम क निर्माण कयने अछि जाहि मे हरीतिमा मधु आनि कार्बोहायड्रेट क उत्पादन असीम रूप मे करैत समस्त जीवजन्तु कए तृप्त करैत अछि. मुदा एहि इकोसिस्टम मे आब जीवन्तता नहि रहि गेल अछि.
प्रशासनिक क्षेत्र– मिथिला आनि तिरहुत सदा सर्वदा गंडक सँ कोसी धरि पसरल रहल अछि. तीर सँ तीर धरि तैं तिरभुक्ति वा तिरहुत. १७६५ मे इस्ट इंडिआ कम्पनीक शासन आरंभ मे जाहि सरकार तिरहुतक पुनर्गठन कयल गेल, से बागमती सँ बीरपुर क पूरब कोसी धरि बिस्तृत छल. १७७९ ई क मेजर रेनेलक नक्शा मे सेहो तिरहुत उक्त बीरपुर बला कोसी धरि पसरल छल. बीरपुर-पुरनिआ-कटिहार-मनिहारी होईत बहैत कोसी १७ वी सदी धरि निर्विवाद मिथिलाक पुरबी प्रशासनिक सीमा छल. स्पष्तः सहरसा प्रमंडल क निशंकपुर कुढा, मल्हनी गोपाल, कबखंड, उत्तराखंड आदि तिरहुतक अंश छल. 12 वी सदीक तिरहुत कर्नाट राजा नान्यदेवक काल मे चंपारण सेहो तिरहुत मे शामिल छल. उत्तर मे हिमालय सँ दक्षिण मे गंगा मध्य वैशाली,मुजफ्फरपुर,सीतामढ़ी, शिवहर सहित दरभंगा,मधुबनी, समस्तीपुर,सहरसा, मधेपुरा, सुपौल आ अररिआ आ पुरनिआ क पश्चिमी भाग धरि तिरहुत क प्रशासनिक क्षेत्र छल. भौगोलिक विशेषता- मिथिलाक ई भूभाग दूर अतीत मे टेथिस सागर मे डुबल छल. एहि सागर मे सँ हिमालय निकलल. हिमालयक दक्षिणी भागक ड्रेनेज कए सागर धरि लैय जयबाक हेतु गंगा अयलीह. गंगा तक पहुँचयबाक हेतु मिथिला मे गंडक, बागमती, कमला वा कोसी नदी घाटीक विकास भेल. चूँकि हिमालय नवीनतम पहाड़ अछि आओर एहि क्षेत्र मे११०० सँ २००० मिलीमीटर बर्षा सालाना होईत छैक तैं मिथिलाक नदी मे बेसी सिल्ट/गाद आ मानसून काल मे जलाधिक्य रहब प्राकृतिक तथ्य थिक. पृथ्वी क सर्वोच्च वा निकटस्थ हिमालयी शिखर सँ निसृत मिथिलाक नदी मे तैं प्रवाहमान गतिशीलता अधिक होयब सेहो प्राकृतिक थिक. इयेह एकर नैसर्गिक उच्च उत्पादकता क मूल कारण थिक. मुदा ई मिथिलाक दुर्भाग्य जे गलत तकनीकी अवधारणा आओर शासकीय कुप्रबंधन क कारण ई सभ नदी आब अभिशाप बनि मिथिलाक शिथिला बना देलक अछि. एहि नदी सभक प्रकृति आओर एकर hydro-dynamism क स्वीकार कए एकर पुनरुद्धार वा एकरा आधारभूमि बनाय मिथिलाक सर्वांगीन उत्थान एकदम संभव ओ व्यब्हारिक अछि.
नदी घाटी प्रणाली– एतय चारि नदी घाटी प्रणाली अछि- पश्चिम सँ गंडक, बागमती, कमला आओर कोसी. एतय ढलान उत्तरी भाग मे उत्तर सँ दक्षिण दिस आ दक्षिणी भाग मे पश्चिम सँ पूरब दिश अछि. कोसी मे सालाना औसत डिस्चार्ज-२.५०लाख cusec, कमला मे ३५००० cusec, बागमती मे ६५००० cusec छैक. कोसी प्रणाली मे २० धारा, कमला मे 9 धारा, बागमती मे 8 धारा वा बूढी गंडक में 6 धारा छैक. मुदा बांधक कारण सम्प्रति कोसी प्रणाली मे मात्र 2 धारा, कमला मे 1 धारा, बागमती मे 1 धारा आओर बूढी गंडक मे 1 धारा प्रवाहमान अछि; शेष धारा सभ मरणासन्न भ paleo-channel क रूप मे प्रदुषण क रहल अछि जकर परिणाम बाढ़, जलजमाव, सुखाड़, जलजन्य बीमारी, भूजल प्रदुषण, कृषि उत्पादकता मे ह्रास, रासायनिक खाद/कीटनाशक मे बढ़ोत्तरी, देसी पशुपालन क विनाश, वायु प्रदुषण, मौसमी अनियमितता वा मिथिलाक नैसर्गिक मेधा मे संघातिक क्षरण आदि रूप मे प्रतिफलित भेल अछि. एतुक्का humped देसी गाय ओमेगा -3 युक्त A2 type दूध दैत छल. आई सम्पूर्ण पश्चिमी जगत देसी भारतीय गाय क पाछू पागल भेल अछि आ हमरा लोकनि जर्सी,होल्सटीन,फ्रीजियन आदि विदेशी मूल वला गाय जे रोगकारी A1 type दूध दैत छैक,क लेल बेहाल छी. एतय देसी गाय विलुप्त होयबाक कगार पर अछि. नदीक प्रवाहमान गतिशीलता – मिथिलाक हिमालयी नदी क मुख्य गुण एकर प्रवाह मे गतिशीलता अछि. इयेह नदी जलक उत्पादकताक मूल कारण थिक. मिथिलाक उत्तरी सीमा सँ सटले जे हिमालय पर्वत छैक ताहि कारण सँ एतुक्का नदी नाला मे जल
प्रवाह मे गति शीलता बहुत होयब स्वाभाविक. एहि गति शीलता क चलते हिमालय सँ गाद बहैत एतय अबैत अछि जे भूमि क उपजाऊ बनबैत अछि. तैं मिथिलाक भूमि पृथ्वी पर सर्बाधिक उपजाऊ क्षेत्र मे परिगणित होईत अछि. एहि प्रवाहमान गति शीलता क बाधित करैत अछि बांध/ बराज एवं अवैज्ञानिक रूप सँ निर्मित सड़क/रेल. चूँकि गंडक/बागमती/कमला/कोसी पर बांध बनि गेल अछि एवं यत्र तत्र अवैज्ञानिक सड़क/ रेल क निर्माण सेहो बृहत् स्तर पर कयल गेल अछि. तैं एतय आब नदी मरणासन्न भ चुकल अछि वा खेती, मत्स्य पालन,हरीतिमा विकास आदि मे उत्पादकता क्षीण अछि.
घुलनशील ऑक्सीजन – जल प्रवाहक गतिशीलता बाधित भेलाक चलतें जल मे घुलनशील ऑक्सीजन क मात्रा घटि जाईत छैक. जतेक अधिक घुलनशील ऑक्सीजन, ओतेक बेशी नदी जल उत्पादक एवं उपयुक्त होईत छैक- खेती/ मत्स्य/ अन्य जीव जन्तु बास्ते एवं मनुष्य/ मवेशी क स्वास्थ्य बास्ते.मुदा आब मिथिलाक नदी मे घुलनशील ऑक्सीजन क मात्रा मे संघातिक ह्रास भ चुकल अछि. नदी जल मे जे बक्टेरियोफेजेज अर्थात बैक्टीरिआ नाशक पाओल जाईत अछि. सेहो घुलनशील ऑक्सीजन क मात्रा पर निर्भर करैत छैक.बेशी ऑक्सीजन, बेशी बक्टेरियोफेजेज , बेशी जलीय शुद्धता,उत्पादकता एवं स्वास्थ्यबर्धकता. भूमि मे कार्बन पुनर्स्थापन – ग्रीन हॉउस गैस उत्सर्जन एवं वातावरण मे बढैत तापमान एक गंभीर समस्या भ गेल अछि. गर्मी, ठंढा, बर्षा, आदि मे अनियमितता एकरे परिणाम थिक. मिथिला मे १९९० क बाद बर्षा घटल अछि. एहि हेतु वातावरण क कार्बन क भूमि मे पुनर्स्थापित करबाक जरुरत बताओल जा रहल अछि. मिथिलाक माटि अपन नदीक सहायता सँ कुदरती खेती क क्रम मे भूमि मे कार्बन क पुनर्स्थापित करैत छल. एहि कुदरती खेती मे रासायनिक खाद/कीटनाशक क उपयोग नहि होईत छल. नदी नाला एहि प्रक्रिआ क सुनिश्चित करैत छल जखन ओ अबाध रूप मे बहैत छल एवं देसी गाय/बैल क गोबर/गोमूत्र क उपयोग खेत मे होईत छल.
चौर – मिथिला मे प्रकृति किछु एहन व्यबस्था कयने अछि जे नदी नाला सँ सटल चौर होईत छैक; चौर आनि एहन निम्न तस्तरी नुमा भूमि जाहि पर सालो भरि आ अधिकांश समय जल भरल रहैत छैक . चौर सँ सटल निम्ने मुदा चौर सँ अधिक उंचगर भूमि क श्रृंखला रहैछ जाहि मे मात्र बरसात मे जल जमा रहि पबैत अछि जखन कि चौर मे ओकर हिस्सा क न्यूनतम दसवां भाग मे चैत-बैसाख मे सेहो जल रहैत अछि. निम्न भूमि सँ लागल उच्च भूमि क श्रृंखला होईछ. ऊपर सँ बहि क आबय वला जल मे घुलल प्रदूषक पदार्थ चौर मे जमा होईत छैक वा स्वच्छ जल नदी मे चलि जाईत अछि. एहि प्रकारे चौर न सिर्फ अतिरेक जल क अपना मे जमा राखि बाढ क INTENSITY घट्बैत अछि बल्कि गर्मी मे नदी क जल आपूरित क ओकर रक्षा करैत अछि. तैं मिथिला मे चौर क नदी क भाई कहल गेल अछि. मिथिलाक जिला मे जे राजस्व अभिलेख अछि, ओहि मे चौर क धनहा चौर अभिलिखित छैक. कारण चौर मे मुख्यतः धान क संग अथवा अलग अलग मुंग, मकई, बूट, खेसारी, सामा/ कोदो/मरुआ/जनेर सन मोट अनाज, पशु चारा, अनेको प्रकार क उपयोगी फ़्लोरा/फौना क उत्पादन होईत छल. कांड,मूल. बिसंर, सौरुकी,चिचोर, घोघा,सितुआ, कांकोर, कछुआ, माछ आदि खाद्य पदार्थ चौर मे अनेरे होईत छल एवं ई सभ common property क रूप मे गरीब क निशुल्क उपलब्ध छल. योजना पत्रिका १९९९ मे प्रतिवेदित अछि जे प्रति हेक्टेयर चौर मे २५० किलो माछ क उत्पादन होईत अछि. नदी नाला चौर वा कृषि भूमि क संग एक इकोसिस्टम क निर्माण करैत अछि. एहि इकोसिस्टम मे फ़्लोरा एवं फौना क बहुत अधिक किस्म विकसित भेल अछि जकरा चलते मिथिला मे इकोलॉजिकल स्टेबिलिटी बहुत अधिक आबि गेलैक. ई प्रकृति क नियम छैक जे जतेक अधिक बायोलॉजिकल डाइवर्सिटी, ओतेक अधिक ओतेक अधिक इकोलॉजिकल स्टेबिलिटी एवं ओतबे अधिक इकनोमिक फर्टिलिटी/प्रोडक्टिविटी.
औपनिवेशिक शोषण– तैं मिथिला तत्कालीन बंगाल सूबा जाहि मे बिहार, बंगाल, ओड़िसा, आसाम, बर्मा शामिल छल, मे धान, तेलहन, दलहन, कुसिआर,तमाकू,शोरा,नील,पटुआ, मशाला,दूध, माछ,बैल क उत्पादन मे अग्रिम पंक्ति मे छल. एतुक्का औद्योगिक उत्पादन यथा चीनी,नील,शोरा,तमाकू, अफीम, पटुआ वा एहि सभक विदेश में व्यापार अंग्रेजी शासन क एक मुख्य संबल छल. १८७५ सँ १९२५ क बीच मिथिला मे जतबा रेल क प्रसार कयल गेल छल, ओतबा ओहि कालखंड मे भारत में अन्यत्र नहि भेलैक; ई अंग्रेजी शासक क मिथिलाक प्रति
कोनो दरिआदिल नहि छल अपितु मिथिलाक माटि पानि मे उत्पादित संसाधन क उपनिवेशवादी दोहन हेतु छल.
कृषि मे उच्च उत्पादकता – १८७६ क MACDONNEL क SUPPLY OF FOODGRAINS IN BENGAL REPORT मे धान क प्रति एकड़ औसत उपज ९-१० क्विंटल प्रतिवेदित अछि; प्रो रत्नेश्वर मिश्र ई द्वारा प्रकाशित Finucannes survey report 1870 जे भुतही बलान तटीय नरहिआ गामक थिक, मे धानक उपज प्रति एकड़ २० क्विंटल प्रतिवेदित अछि. कमला क क्षेत्र मे ३०-३५ क्विंटल प्रति एकड़ धान क उत्पादन पर आश्चर्य नहि होईत छलैक जे हवलदार त्रिपाठी लिखैत छथि. धुरे मन अल्हुआ क उत्पादन एतय सामान्य छल. बागमती नदीक कछेड कृषि उत्पादन वास्ते विश्व विख्यात रहल अछि. आइयो कोसी क बांध क्षेत्रक भीतर ४० क्विंटल प्रति एकड़ मकई दाना क उत्पादन सामान्य अछि. कमला कातक डोरबार मौजा(जयनगर) मे ५-६ फिट लम्बा सरिसो वा राहर जकाँ मोट बुटक गाछ हमरा अपन बाल्यावस्था मे सुनल अछि.
Indian Science and Technology in 18th century नामक ग्रन्थ में एकर लेखक धरमपाल लिखैत छथि जे कावेरी बेसिन मे प्रति हेक्टेयर 12 टन धान क उत्पादन होईत छल. ई निर्विवाद जे कावेरी बेसिन सँ अधिक उपजाऊ मानल जाईत अछि बागमती-कमला बेसिन. दरभंगा/मुजफ्फरपुर/सहरसा/पूर्णिआ क अँगरेज़ कालीन जिला गज़ेटियर, तिरहुत क १७७० सँ १८५० ई धरिक राजस्व अभिलेख अनेक ठाम कृषि मे ABUNDANT PRODUCTION क उल्लेख करैत अछि. एहि ठाम खेती मे इकनोमिक स्केल बहुत अधिक छल.ई खेती पुर्णतः कुदरती छल. एहि मे मानव एवं पशु शक्ति क पूर्ण उपयोग होईत छल. आजुक जकाँ खेती हानिकारक एवं अलाभकारी नहि छलैक. उत्तम खेती वला बात आब नहि अछि. रासायनिक खाद,कीटनाशक, हाइब्रिड बीज, ट्रेक्टर आदि क बाबजूद खेती सँ किसान क मोहभंग भ रहल छन्हि. खेती एक forced choice बनि गेल अछि. खेत मे जीवविज्ञान- गाछ पातक प्रकाश संस्लेषण क लेल भूमि क बेक्टेरिआ, फुन्जाई, अलगी, प्रोटोजोआ आदि माइक्रोब्स सँ खनिज एवं जल चाही. कृषि पराशर लिखैत अछि- ‘कृषिनां जीवनं जन्तु’ वर्तमान मे माइक्रोब्स खेत मे नहि जकाँ अछि.खेत मे चाली सेहो ख़त्म जकाँ अछि जे माइक्रोब्स क पोषण करैछ. कृत्रिम रासयनिकरण सँ खेत विषैला भ चुकल अछि. मिथिलाक खेत क detoxification क जरुरत छैक जाहि हेतु नदी नाला क प्रवाहमान जल चाही वा चाही- रासायनिक खाद/कीटनाशक पर पूर्ण प्रतिबन्ध एवं गोबर/गोमूत्र क भरपूर उपयोग. एहि सँ खेती क लागत घटत, शुद्धता बढ़त, उपज बढ़त. खेती मे अवनति- मुदा खेती क अवनति अंग्रेजी कालहि सँ होबय लागल. Indian Famine Commission Report 1874-75, वोल्कर लिखित An Improvement in Indian Agriculture १९०७, Indian Agriculture Commission Report 1927 एहि निष्कर्ष क रेखांकित करैत अछि जे भारत मे कृषि उत्पादकता घटि रहल अछि.
बाढ़ क अर्थशास्त्र – बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र मे खेती क बारे मे सहरसा गज़ेटियर १९६४ दर्ज करैत अछि जे मार्च सँ मई क बीच खेत मे धान आओर मकई
छींटल जाईत छल, अगस्त तक मकई कटि जाईत छलैक.नवेम्बर-दिसम्बर मे धान काटल जाईत छलैक- कहुखन नाव सँ सेहो. ई धान लातराहा किस्म क होईत छल जे बाढ़ क जलस्तर संग बढैत छलैक.उंच खेत मे flood-resistent धान लगाओल जाईत छलैक जे ६-७ दिन तक पानि बरदास्त क सकैत छल. कोसी मे ३ लाख cusec पानि अयला पर बाढ़ 2-३ दिन मात्र रहैत छल. मिथिला मे अगहनी धान क ७० सँ १३० आओर भदई धान क दर्जनों किस्म उपयोग मे छल.
बाढ़ क मिथ – गंडक सँ कोसी धरि पसरल तिरहुत क १७६९ सँ १८२२ तक क राजस्व अभिलेख सँ पता चलैत अछि जे एहि अवधि मे एतय भीषण बाढ़ नहि आयल छल. बाढ़ प्रायः हल्लुक होईत छलैक जाहि मे नगण्य क्षति होईत छलैक अथवा लगभग दशक क अंतराल पर गंभीर क्षति घटित होईत छल मुदा प्रत्येक स्थिति मे क्षति क भरपाई सूद समेत अगिला रबी आ भदई फसल सँ भ जाईत छल. आई जे सीतामढ़ी, शिवहर, औराई, कटरा आदि भीषण बाढ़ ग्रस्त अछि, से निकट अतीत मे एहन नहि छल जेना w w hunter क statistical account of bengal vol १३ (तिरहुत) १८७७ सँ ज्ञात होईत अछि. दरभंगा मधुबनी मे कमला वा बागमती सँ नगण्य क्षति होईत छलैक. १८५१ क कर्नल wyat क तिरहुत रिपोर्ट मे एतुक्का बाढ़ क सामान्य बताओल गेल अछि. तत्कालीन कमला एवं अधवारा किनारे स्थित बेनीपट्टी,बिस्फी,रहिका क जरैल परगना वा अधवारा-लाखंदायी क मध्य स्थित पुपरी,बथनाहा, कटरा क नानपुर परगना १९ वी सदी धरि सर्वाधिक विकसित क्षेत्र मे छल.
कोसी क दर्द – कोसी आई बिहार क शोक कहल जाईत अछि. मुदा इएह कोसी जखन पूर्णिआ मे बहैत छल, ताहि पूर्णिआ क फ्रांसिस बुकानन रिपोर्ट १८०६-७ मे कोसी बाढ़ क सामान्य बताओल गेल अछि. जाहि पूर्णिआ मे कोसी मुरलीगंज बाटे ६० बर्ष, धमदाहा बाटे १०० बर्ष एवं पूर्णिआ बाटे ३०० बर्ष सँ अधिक समय धरि स्थिर रहि बहैत रहल, से कोसी २० वी सदी मे सहरसा-मधेपुरा-सुपौल मे ५ सँ १५ बर्ष मात्र एक स्थान पर बहल. एक धारा क रूप मे कोसी स्थिर नहि रहि सकल. २० वी सदी में कोसी क इयेह अस्थिरता एकर तांडव क कारण छल. जे कोसी १९ वी सदी धरि पूर्णिआ मे सामान्य बाढ़ उत्पन्न करैत छल, से कोसी २० वी सदी मे सहरसा मे प्रलयंकारी बाढ़ उत्पन्न करय लागल. विकासात्मक कुप्रबंधन- वस्तुतः १८५० ई क बाद सम्पूर्ण उत्तर बिहार मे बाढ़ क भआबहता बढ़ब परिलक्षित होईत अछि. रेल वा सड़क क निर्माण मे न्यूनतम खर्चा हेतु जे अवैज्ञानिकता अपनाओल गेल, रेल क पटरी क नदीक HFLसँ ऊपर राखल गेल वा न्यूनतम waterways क लेल छोट सँ छोट पुल/पुलिआ क प्रावधान कयल गेल. सड़क निर्माण मे इयेह नीति अपनाओल गेलैक. ओहि सँ कोसी, कमला, बागमती, बूढी गंडक क drainage संघातिक रूप सँ दुष्प्रभावित भ गेल. कोसी पूर्णिआ सँ ससरि दरभंगा क कुशेस्वरस्थान आबि गेलीह. बागमती रोसड़ा क छोड़ क फुहिआ मे कोसी मे मिलय लगलीह. कमला गौसाघाट एवं नरारघाट क छोड़ झंझारपुर चलि गेलीह. बलान भुतही भ गेलीह. सम्पूर्ण मिथिला मे विनाशकारी बाढ़ आबय लागल.
कोसी क उत्पादकता – सहरसा मे बहैत कोसी सँ सम्बंधित दू टा रिपोर्ट अछि- मैकड़ोंनेल रिपोर्ट १८७६ वा कोसी दिआरा सर्वे रिपोर्ट १९२६.मैकड़ोंनेल रिपोर्ट क अनुसार कोसी सँ पहिने सहरसा मे ग्रॉस cropped area एकर भौगोलिक क्षेत्रफल क ७८% छल जे कोसी कालीन अवधि १९२६ ई में १२६% भ गेल.तहिना १८७६ ई मे प्रतिवेदित cropping intensity १३% सँ अधिक होईत ४०% १९२६ ई मे भ गेल. कृषि विकास क एहि दुनु मुख्य पैमाना पर कोसी विनाशकारी नहि परिलक्षित होईत छथि. ओना २० वी सदी मे कोसी सँ जे विनाश सहरसा क्षेत्र मे होबय लागल, से कोसी क प्रवाह क संघातिक रूप सँ बाधित करबाक दुष्परिणाम छल.
बांध क निष्फलता– आजादी क बाद symptomatik treatment क आधार पर बनल बांध सँ कोसी सहित कमला आओर बागमती क भौतिक स्थिति वा hydro dynamics बद सँ बदतर भ चुकल अछि. १९५१ ई मे कुल बांध-१५४ किलोमीटर क स्थान पर आई ३७०० किलोमीटर बांध अछि मुदा १९५१ में बाढ़ प्रवण क्षेत्र-२५ लाख हेक्टेयर क स्थान पर आई ६८ लाख हेक्टेयर सँ बेशी भ चुकल अछि. १९५३ -५४ मे मिथिला
मे बाढ़ जे रिकॉर्ड बनौने छल, से सभ १९७५,१९८७,२००४,२००७,२००८ मे ध्वस्त भ गेल अछि. तैं बाढ़ प्रोटेक्शन संरचना क रूप मे बांध पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लागि रहल अछि.
पटवन क मरीचिका– पटवन क क्षेत्र मे पश्चिमी कोसी नहर प्रणाली दरभंगा-मधुबनी मे नगण्य पटवन करैत अछि;हाँ, सहरसा-पूर्णिआ मे पूर्वी
कोसी नहर प्रणाली अपन मूल लक्ष्य १८ लाख एकड़ क स्थान पर ५ लाख एकर सँ कम्मे सालाना औसतन पटवन करैत अछि. गंडक क मुजफ्फरपुर-वैशाली स्थित तिरहुत नहर क स्थिति किछु बेहतर अछि मुदा ओहो इकोनोमिकल नहि. भयंकर प्रदुषण – अपन पोखरि लेल जगत बिख्यात मिथिला मे एकर दुर्दशा अवर्णनीय अछि. अधिकांश पोखरि प्रदूषित भ गेल अछि जकरा वैज्ञानिक भाषा मे eutrophication कहल जाईत छैक. जाहि मिथिला मे १२७ प्रकार क माछ क उपलब्धता १८७७ ई मे w w hunter प्रतिवेदित कयने छलाह, से मिथिला आई आंध्रप्रदेश क माछ पर निर्भर अछि. एतय भूगर्भ जल स्तर नहि मात्र घटल अछि अपितु आर्सेनिक,floride, लौह सहित टॉक्सिक रसायन सँ प्रदूषित भ गेल अछि.
पानि पर अवस्थित मिथिला क दरभंगा मे चापाकल क सुखा जायब वा टैंकर सँ जलापूर्ति खतरनाक सिग्नल अछि. मिला जुला क स्थिति एहन भ गेल अछि जे नदी नाला क उथलापन,बाढ़, जलजमाव,रासायनिक खाद,कीटनाशक,पोखर/ चौर क प्रदुषण,गाछक कटान, तेलहन/दलहन क उत्पादन मे भआनक ह्रास,A2 type देसी गायक दूध क स्थान पर A1 type हाइब्रिड गायक रोगकारी दूध क प्रचलन, ललाओंन चावल क स्थान पर white polished चावल क उपयोग, देसी/aurvedik स्वास्थ्यबर्धक ज्ञान एवं विज्ञानं क प्रति अनास्था आदि मिथिला क बीमारी क खान बना चुकल अछि. ताहि पर सँ राजनीतिक कलुषता, सामाजिक वैमनस्य, शासकीय अक्षमता एवं बौद्धिक अन्यमनस्कता- करेला पर नीम! निदान – मिथिला मे आवस्यकता अछि- आय वृद्धि एवं आयोत्पादक साधन क. जरुरत अछि एहन साधन क सर्व सुलभ बनाओल जाय. एहन साधन माटि- पानि टा भ सकैत अछि. माटि पानि क केंद्र मे राखि अग्रोनोमिक विकास वा स्थानीय पर्यावरण क अनुकूल ओकर औद्योगिक उपयोग क नीति मात्र सर्वहितकारी भ सकैत अछि. मौलिक आवश्यकता अछि जे सभ paleo-channel धारा क अपन अपन मूल धारा सँ संयुक क ओहि मे नियंत्रित रूप मे नियमित डिस्चार्ज दैत प्रवाहमान बनाओल जाय जकरा hydraulik इंजीनियरिंग भाषा मे Controlled flooding कहल जाईत छैक .एहि बास्ते एतय नदी नाला क एकर पर्यावरण क अनुकूल प्रबंधन करबाक अनिवार्यता छैक.
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लेखक बिहार सरकार मे सचिव पद पर कार्यरत छथि आ इ व्याख्यान मिथिला साहित्य संस्थान में मिथिलाक माटि पानि विषय पर देल गेल अछि।
बहुत बढिया आलेख यै,