मोन के कहलियै
उठु ने , किछ परिश्रम करु ने
किछ खोजि क
आनि दिय
कतेक दिन भ गेल
किछ नईँ लिखलौं..
मन लोहैछ क बाजल
भरि दिन त अहाँ
अपने में
बझैने रहैत छी
कखनो पहाड़ पर
ल जाइत छी
त कखनो फूल-पत्ती में
ठाढ़ क दैत छी
कखनो कपड़ा के दोकान में
त कखनो
मिथिला माछ मखान में ..
सोमवार सँ ल क रविवार
पर्यन्त
बजारे-बजारे
अहाँक टंडैली में
थकि जाइत छी
कोनो दिन छुट्टी दैत छी
जे कनि विश्राम करि
कनि अप्पन मोन चलावी
कतौ जाई
घूरि-फिरि आबी
सिहंते होईय ..जे
हमहूँ मनमानी करी
किन्तु से कहाँ ..
अहाँ त कखनो आंगुर पकड़ि क
नचाबे लगैत छी
कखनो अँचरा में बाँधि क
दुलराबे लगैत छी
आ कखनो
कोंचय लगैत छी
ई नईँ कैले, उ नईँ कैले..
आ तकरा ऊप्पर
अहाँक पकठोसल खबास
ओहिना चिड़चिड़ा दैईय ..
अहाँक फेरा में
टीवी सीरियल सेहो वर्जित
सखी बहिनपा सब
नागिन त सिमरन त
साझेदारी-ताझेदारी
कि दन स
देखि-देखि क
फुरफुरायेल रहैत छथि
आ हम ..
अहाँक कृपा सँ
भुखायेल-औंघायेल
घूरि-फिरि क
वैह समाचार चैनल में
ओझरायेल रहैत छी
ओई पर
अहाँक खोपसन
परिश्रम कर
किछ खोजि क आन..
क्षमा करब दाई
हमरा बूते नईँ होयेत
अहीं अप्पन हाथ-गोर चलाऊ
जत जे मिलै
खोजि क लाउ
जतवा फुजै लिखने जाउ
हमरो देखा-सुना देब
निक लागत त
हमहूँ थपड़ी पारि देब ..