डॉ कैलाश कुमार मिश्र
जे अहि धरती पर आयल अछि ओकर जेनाइ सेहो निश्चित छैक। एहि विधान के कियोक नहि टालि सकैत अछि। आई मैथिलीपुत्र प्रदीप अनन्त यात्रा मे चल गेलाह। मैथिलीपुत्र प्रदीपक जन्म 30 अप्रैल 1936 दरभंगा जिलाक कथवार गाम मे एक सामान्य परिवार मे भेलनि। हिनकर मूल नाम श्री प्रभु नारायण झा छलनि। साहित्य प्रदीप नाम सँ लिखय लगलाह। बाद मे अपन गीत आ कवित्त सँ अतेक ख्यातिप्राप्त केलनि जे मैथिलीपुत्र प्रदीप भ’ गेलाह। प्रदीप जी 30 मई 2020 के दरभंगाक बेलवागंज आवास पर अहि नश्वर शरीर के छोड़ि अनंत यात्रा हेतु विदा भ’ गेलाह। हुनक मृत्यु सँ मैथिली साहित्यक भक्ति परम्पराक एक बहुत मजबूत ठाढ़ि खत्म भ’ गेल।
प्रदीपजी भक्तिभाव, जनसरोकार आ अध्यात्म मे रमल साहित्यकार छलाह। हिनक नाम लैत लोकक मोन आ ह्रदय मे एक एहेन साधकक छवि स्वतः बनय लगैत छैक जे कोनो मंदिर मे बैसल गेरुआ वस्त्र धारण केने, उन्नत भाल पर पीयर आ लाल चानण केने निर्विकार भाव सँ जन-जन के कल्याण हेतु संगहि मैथिली भाषा-संस्कृतिक उचित सम्मान आ उत्थान लेल अपन भगवान सँ सङ्गीतमय वार्तालाप क’ रहल हो। हठी भक्त जकाँ ज़िद क’ रहल हो। निहौरा क’ रहल हो। भगवान आ भक्तक भाव स्पष्ट देखल जा सकैत छल हुनक गीत मे आ एक भक्तक रूप मे हुनकर समर्पण मे। मैथिलीपुत्र प्रदीप ओ नाम अछि जकर चर्च होइते देरी लोकक भक्ति पक्ष तुरत द्रुतगति सँ जाग्रत भ’ उठैत छैक आ ठोर स्वतः “जगदम्ब अहीं अबलम्ब हमर” गाबय लगैत छैक। जे अपन रचनाक नाम मैथिलीपुत्र प्रदीप के नाम सँ जन-जन मे उपस्थित छथि।
प्रदीप जनकवि छलाह। भक्त कवि छलाह। ई अपन साहित्य यात्रा 1954-55 ईसवी सँ प्रारम्भ केलनि आ 1955 मे हिनक प्रथम पोथी गुलाबक बहार प्रकाशित भेलनि। ओ १९६० सँ १९८० ईस्वी धरि समस्त मिथिलाक जन-जन मे व्याप्त कवि-गीतकार छलाह। ओना त’ जे सब हुनका सँ परिचित छथि तिनका सबसँ काने-काने ज्ञात भ’ रहल अछि जे प्रदीप लगभग 36 पोथिक रचना केलनि। हमरा लग जे जानकारी उपलब्ध अछि ताहि ज्ञाने 29 पोथी छपल छनि तकर प्रमाण भेटैत अछि आ किछु पोथी एखनो छपबाक बाट जोहि रहल छनि। हिनक रचना देखला सँ इहो स्पष्ट होइत अछि जे गोटेक रचना ई हिंदी मे सेहो लिखने छथि।
हिनक प्रकाशित पोथी सब छनि:
- गुलाबक बहार (1955)
- अमोल बोल (1957)
- टुन्नी दाईक सोहाग {गीत} (1959-60)
- सोहाग – नाटक (1962)
- गीत प्रदीप (1964)
- उगल नव चान (1965)
- कुहुकल कोइलिया (1967)
- क्रांति गीत (1967)
- नागेश्वर भक्तिमाला (1969)
- अष्टदल – भक्ति गीत (1977)
- जगदम्ब अहीं अवलम्ब (1978)
- एक घाट तीन बाट (1985)
- स्वयंप्रभा -कथाकाव्य (1985)
- श्रीरामहृदय – काव्य (1988)
- श्रीकामाख्या परिभ्रमण – हिंदी (1993)
- साधना -प्रार्थना (1993)
- भक्तिगीत “प्रदीप” (1994)
- आरती संग्रह (सावित्री सत्र) (2001)
- श्रीमद्भागवत गीता (2001)
- द्वादश स्तोत्र (2002)
- अन्हारसँ इजोतमे आउ (2004)
- श्रीराघवलीला महाकथा (2006)
- श्रीनटवरलीला महाकाव्य (2007)
- श्रीत्रिशूलिनी आरती संग्रह (2007)
- कामाख्या परिभ्रमण आ जीवनगीत (2008)
- नामपट्ट (अनुराधा) उपन्यास (2008)
- श्रीसीतावतरण काव्य (2009)
- श्रीसीतावतरण महाकाव्य (2010)
- श्रीसीतावतरण सम्पूर्ण महाकाव्य (2011)
हिनका पढला सँ ज्ञात होइत अछि जे आरंभ मे ई प्रेम, विरह सब तरहक कविता रचैत छलाह। मुदा बाद मे भक्ति भावक गीत रचनाई शुरू केलाह। जहिना महाकवि विद्यापति ठाकुर आ ‘जय जय भैरबि’ एक दोसरक पूरक अछि आ अहि गीतक नाम लैत विद्यापति लोकक मानस पटल पर आबि जाइत छथि तहिना प्रदीपक ‘जगदंब अहीं अवलम्ब हमर’ गीतक मेल छनि। मिथिला चाहे भारतक हो अथवा नेपालक , कियोक मैथिल एहेन नहि भेटताह जे अहि गीत के बारे मे आ एकर कवि मैथिलीपुत्र प्रदीप के नहि जनैत होथि। ई छलनि हुनक USP ।
ओना त’ प्रदीप लोकक कवि छलाह आ लोक सदैव हुनका अत्यधिक सिनेह दैत रहलनि। लोकक सँग हुनक प्रेम भविष्य मे चलैत रहतनि मुदा हुनका कोनो तरहक सरकारी अथवा सांस्थानिक सम्मान अथवा सहायता नहि भेटलनि। ई प्रमाणित करैत अछि जे मैथिली साहित्य मे गैंग कतेक जड़ि धरि घुसल अछि। कवि अथवा साहित्यकार के जनक सँग कतेक सम्बन्ध छैक, नारी पर ओकर की सोच छैक, माटिक इतिहास आ संस्कार सँ कतेक अपना आपके जोड़ैत अछि, भाषा के पति ओकर कतेक समर्पण छैक, सामान्य वर्ग लेल कोना सोचैत अछि, प्रेमक विवेचन कोना करैत अछि, ई सब किछु मूल बिंदु छैक जाहि पर हमरा जनैत एक साहित्यकार के रचनात्मक गंभीरता देखबाक चाही। अगर ओ अहि सब बात पर प्रखर अछि। शब्द विन्यास दिस जाग्रत अछि त ओ एक शाश्वत साहित्यकार अछि। आ ई सब गुण प्रदीप मे छलनि। ओ शुरू प्रेम सँ केलनि। जे प्रेमक शब्द नहि गढ़त ओ भक्तिक अनुराग की लिखत? कालिदास सँ तुलसीदास सब अपन प्रेमक हेतु प्रसिद्ध छथि। विदेसियाक पत्नी अथवा नायिका के भाव ओ “परदेसिया के चिट्ठी लिखै छै बहुरिया” के माध्यम सँ व्यक्त करैत छथि। ओकर प्रेम सँग आर्थिक विपन्नता एवं कष्टक रेखा सेहो खिचेत छथि।
प्रदीप जी अपन साहित्यकार हृदय केँ समाज सँ , महिला पात्र सँ , दलित सँ जोड़ैत छथि। अदर्स के भाव अपना मे अनैत छथि। यैह कारण छैक जे ओ “पहिर लाल साड़ी, उपारै खेसारी” मे गरीबी आ प्रेम दुनूक वर्णन करैत छथि। दलित विमर्शक ई अनुपम संदर्भ अछि हिनक युगक मैथिली गीत मे। ई गीत हुनका एकाएक जन-बोनिहारक साहित्यकार बना दैत छनि। अहि पर मैथिली साहित्यक आलोचक कतेक काज केलाह ई अलग प्रश्न भ सकैत अछि।
आब बात करैत छी सीता पर। प्रदीप जी सीताक व्यक्तित्व अपना हिसाबे ठाढ़ करैत छथि। गढ़ैत छथि। सीता बेटी, बहिन आ देवी तीनू रूप मे हिनक रचना मे अबैत छथि। अपन नाटक मे गीत आ कविताक विलक्षण मिश्रण करबा मे निपुण छलाह प्रदीपजी। जखन सब गुण देखब आ जनता मे हुनक छाप आ जन समुदाय अर्थात लोक मे हुनक छवि देखब त’ लागत जे सांस्थानिक कर्ता धर्ता कतहुँ ने कतहुँ कोनो कुचक्र चला हुनका सङ्गे किछु ने किछु अन्याय जरूर केलनि! खैर! लोकक स्वीकृति आ प्रेम साहित्यकार के अमर बनबैत छैक। ओ लोकक कंठहार बनल रहल छथि, बनल छथि आ बनल रहता। वैह हुनक सबसँ पैघ पुरस्कार छनि।
मैथिली साहित्य मे मैथिलीपुत्र प्रदीप पर एक क्रिएटिव विजुअल बॉयोग्राफी बनक चाही। हुनक किशोर प्रेम सँ अध्यात्म प्रेमक यात्रा कियोक त’ देखाबय संसार के! एहेन साहित्यकार बेर बेर अहि धरा पर नहि अबैत छथि। आई मिथिलाक माटि, गाछ, बृक्ष सब कनैत अछि, मुदा स्वर्गक देवता अवश्य अति प्रसन्न हेताह कारण हुनक सर्वगुणी भक्त जे हुनका लग जा रहल छनि। मिथिलारत्न मैथिलीपुत्र प्रदीप के विनम्र श्रद्धांजलि।