समटल प्रकाश
देखू भेल उदय नभ पर
सूर्य नेने नब तेज ,
ऊँच गर्दन क हर डाली,
हर दूभि चाहि रहल
प्रकाश स करि भेंट ;
वृक्ष , पक्षी , मनुष्य आओर पशु,
सूर्य करई छै नई ककरो स भेद ,
फेर किया रहि जाई छै
ई प्रकाश समटल
किछ- एक-ए धिया -पुता क लेल ?
जों झमकैत बरखा
नहा दई छै सौंसे संसार
बिना पूछने हमर -अहाँ के देस ,
ऊ बरखा के पानि किया
रहि जाई छै समंटल
किछेक गोटा के हाथ में शेष ?
दीपा झा
(दीपा झा साहित्यक क्षेत्र मे उतरल नव कवियत्रि छथि । नव वर्षक अवसर पर ओ अपन ई कविता इसमाद लेल लिखने छलीह ।)