फैज अहमद फैजक इ रचना पिछला किछु दिन स बहुत चर्चा मे अछि। एहि रचना कए करीब करीब सब भारतीय भाषा मे अनुवाद भ रहल अछि। एहन मे मैथिली भाषा मे कैल गेल एहि अनुवाद कए एखन धरिक सबस नीक अनुवाद मानल जा रहल अछि।
प्रस्तुत अछि अशोक झाक कलम स अनुदित फैज साहेब क इ रचना। समदिया
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हमहूँ देखबै !
देखबे करबै !
एकटा सप्पत छल सभ स’
अछि बिधिनाक बनायल जे
हमहूँ देखबै!
जुलुमक ई दुष्कर पहाड़
रुइया जेना उड़ि जायत
आ दुखिया जनता के तरबा तर
ई धरती जखन धड़-धड़ धड़कत
सत्ता क मद में चूर जे छथि
हुनका माथा ठनका बजरत
हमहूँ देखबै!
गोसाईं बनल जे बैसल छथि
गरदनियाँ द’ फेकल जयताह
भलमानुष जे सदा उपेक्षित
तोशक पर बैसाओल जयताह
मुकुट हवा में उछलि खसत
आ सिंघासन खंडित होयत
हमहूँ देखबै!
रहि जेतै नाम त’ ओकरे टा
जे सगुण आ निर्गुण दुनू अछि
जे नजरिक संग नजारो अछि
लागत ‘हमहीं ब्रह्म’क जयकारा
जे हमहूँ छी आ अहूँ छी
जनता जनार्दन करत राज
जे हमहूँ छी आ अहूँ छी
हमहूँ देखबै!
देखबे करबै !