जानकी दाय, सीतानाथ बाबू के पत्नी, अपन गृहस्थी सुखपूर्वक चला रहल छथि ।मुँह पर हरदम संतुष्टि आ सेक्शन आफिसर के पत्नी होएबा के गौरवपूर्ण चमक । आखिर कियैक ने हुए, साधारण गृहस्थ परिवारक बेटी जानकी दाय के जहिया सीतानाथ झा से विवाह भेलनि सीतानाथ बाबू मैट्रिक में पढ़ितहि छलाह।मैट्रिक पास करैत देरी तीव्र बुद्धि सीतानाथ झा के वित्त विभाग में 1929 ईस्वी में लोअर डिवीजन क्लर्क के पद पर बहाली भ गेलैन । नौकरी के बारहम बरख ,1941ईस्वी में गर्दनीबाग मे सरकारी क्वार्टर भेट गेलैन । चारि बरख पहिने प्रोमोशन पाबि के सेक्शन आफिसर भ गेल छथि । सीतानाथ बाबू के नौकरी लगला के एके बरखक बाद जानकी दाय के पहिल पुत्र नरेश क जन्म भेलनि।तेकर तीन बरखक बाद उमेशक जन्म भेलनि।चारि बरखक बेटी गीता के जन्म से घर में उत्साह आ प्रसन्नता स्वाभविक छल, लक्ष्मी जे आएल छलखिन।गीता के जन्म के छः बरखक बाद सबसे छोट बेटा दिनेशक जन्म भेलनि।
अपन गाम आ समाज में सीतानाथ बाबू के जस आ प्रतिष्ठा छनि परन्तु एहि मे जानकी दाय के स्वभावक योगदान बेशी छनि ।सर – सम्बन्धी, गाँव- समाजक जे कियो पटना अबै छथि, सीतानाथ बाबू के क्वार्टर स्वतः ठहरैले सबसे उपयुक्त । जानकी दाय प्रसन्नतापूर्वक अतिथि सभक पूरा ध्यान रखै छथि ।
देश के स्वतंत्र भेना दस मास भेल छल ।नरेश आई• ए के परीक्षा द के अपन ममा गाँव गेल छला। जानकी दाय सोचि लेनै छलीहे, आब जल्दी से जल्दी नरेश के विवाह करा देबै। राति मे भोजन के बाद एकान्त भेला पर जानकी दाय पति के अपन निर्णय सुनौलैन-“एक- दू बरख में गीता के विवाह भ जेतै, ऐ सॅ पहिने नरेश के विवाह करा दियौ। ” हं, से त हमरो इच्छा होईए मुदा पहिने नरेश के कत्तौ नौकरी लागि जाए ।” सीतानाथ बाबू के बिचार में जानकी दाय सेहो अपन मौन सहमति देलखिन।
सीतानाथ बाबू अपन विभाग में झाजी से प्रसिद्ध छला। फाईनान्स कमिश्नर, माईकल एन्डरसन,आई,सी,एस (बड़ा साहेब) झा जी के खूब मानै छथिन। ऑफिस में जोर-शोर से चर्चा छलै जे एन्डरसन साहेब बहुत जल्दी पटना आ भारत छोड़ि के अपन देश ब्रिटेन चल जेता। ऐ चर्चा से सीतानाथ बाबू अंदर से बहुत दुखी छलाह। अपन टेबुल पर फ़ाइल सब के एक कात ससारि के लंच में डेरा जेबा ले जहिना उठला कि बड़ा साहेब के चपरासी हॉल के गेट लग से आवाज देलकनि, झाजी! साहब ने आपको याद किया है।”सीतानाथ बाबू साहेब के चैम्बर मे जाके सलाम क के चुपचाप ठाढ़ भ गेला। साहेब एकटा कागज़ सीतानाथ बाबू के हाथ में दैत कहलखिन,” झा! जून के एन्ड तक हम ब्रिटेन चला जाएगा। इस लेटर को अपॉइंटमेंट को भेज दो” । सीतानाथ बाबू सरसरी नजैर से कागज़ के देखलनि आ ” “सलाम हज़ूर!”कहिके बाहर दिस विदा भेला। दू डेग आगू जा के रुकला। साहेब के किछु कहबाक इच्छा भ रहल छलैन मुदा साहस नै भेलैन्ह, फेर घूमि के गेट दिस बढ़ला आ कि साहेब के आवाज सुना पड़लनि, “झा! तुम बहोत लेबोरियस औऱ ऑनेस्ट है, कोई मैटर है तो टेल मी, हम तुम्हारा हेल्प करेगा।” सीतानाथ बाबू वापस साहेब के टेबुल लग आबि के ठाढ़ भेला, दू मिनट चुप रहला , साहस क के बजला,” हुजूर ! मेरा बेटा आई .ए पास कर गया है। हुजूर चाहेंगें तो उसकी नौकरी लग जाएगी।”
साहेब आंखि सिकोड़ी के सीतानाथ बाबू दिस तकलकनि। ई देखि के डर से सीतानाथ बाबू के पैर थरथराई लगलनि।, निश्चय साहेब गेला । लेकिन साहेब कहलखिन,” ओ.के., तुम अपना सन का डिटेल लिखकर हमको दो, मैं आई.जी मिस्टर ब्राऊन को रिकवेस्ट करेगा।” सीतानाथ बाबू खुशी से अवाक। “जी हुजूर” कहैत दरबज्जा दिश जाए लगला कि पाछाँ से फेर साहेब के आवाज सुना पड़लनि,” झा, एस. ओ मे तुमारा प्रोमोशन का फ़ाइल पुटअप करने का ऑर्डर मैं ने दे दिया है।नेक्स्ट वीक यु मे गेट योर ऑर्डर। गुड लक। यु मे गो। नाउ।”
एक्के बेर जेना खुशी सम्हरि नाइ रहल छलैन। झुकि-झुकि के कोर्निश करैत बजला,हुजूर माई- बाप हैं, अन्नदाता हैं।” ” झा! तुम आछा और कम्पीटेंट है, तुम राइज करेगा।” ” हुजूर की मेंहरबानी है” कहैत सीतानाथ बाबू बड़ा साहेब के चैम्बर से निकलि के हॉल में अपन सीट पर एला। हुंकर नोराएल आँखि देखि के सहयोगी सब जिज्ञासा केलकैन , ” क्या हुआ झाजी! साहेब ने डांटा?” अपन खुशी नुकबैत सीतानाथ बाबू बजला,” बड़ा साहेब जून में अपना देश चले जायेंगे।”ड्रावर में कागज़ राखि सीतानाथ बाबू लंच ले डेरा ले विदा भ गेला।
डेरा पहुँचि के सीतानाथ बाबू सायकिल देबाल से लगा क ठाढ़ केलनि आ पत्नी के आवाज देलनि, गीताके माय! कत’ छी?” जानकी दाय झटकि के एली आ पुछलखिन,” की बात छियै, हड़बड़ाएल छी ?” ” “नै हमर मोन आकाश में उड़ि रहल अछि।” कहि सीतानाथ बाबू अपन बड़ा साहेब संग भेल सबटा गप्प सांगोपांग कहि देलखिन। जानकी दाय झट गेली आ भगवती के आगू दीप बारि के गोर लगलनि। जल्दी- जल्दी भोजन क पान खा के सीतानाथ बाबू साईकल उठा ऑफिस चल गेला।
जाहि दिन सीतानाथ बाबू सेक्सन ऑफिसर बनला ओकर दोसर दिन नरेशक रिजल्ट एलैन। सेकेण्ड डिवीज़न से आई.ए पास केलैन।
बीस-पच्चीस दिनुका बाद, जून मासक दोसर सप्ताह छल। भिनसरे सँ घनघोर बर्षा भ रहल छल। सीतानाथ बाबू छाता ल के पैरे ऑफिस गेला। उमेश, गीता आ दिनेश सेहो स्कूल जाई ले तैयार छलाह। माय कहलखिन ,नरेश! तों छाता ल के दिनेश के स्कूल पहुंचा दहुन।उमेश आ गीता दुनू संगहिं दोसर छाता ल के स्कूल चल जाएत।
बच्चा सब स्कूल चल गेलैन।नरेश अखनि तक घुरि के नै आएल छलाह। आंगन मे जानकी दाय एसकरे। छलीह। तावत में पोस्टमैन बाहर में आवाज देलकनि। जानकी दाय गेली त पोस्टमैन एकटा रजिस्ट्री चिठ्ठी देलकनि। आधा घंटा के बाद नरेश एलाह त माय चिठ्ठी देलखिन। नरेश खोलि क पढ़लनि आ खुशी से ” माय गै” कहैत माय से लिपैट गेला। फेर चिठ्ठी हाथ मे ल के नाचय लगला। माय के किछु पूछै से पहिनहि गोर लगलनि आ कहलखिन , ” हमरा छोटा दरोगा में बहाली भ गेल।” पूर्णिया जिला में जॉइन करबाक ऐछ। लंच में सीतानाथ बाबू एला त हर्षातिरेक से मुँह से शब्द नै निकेलै छलैन। सांझ होइत-होइत अड़ोस-पड़ोस में लड्डू बाँटि जानकीदाय सबके ई खुश खबरी सुना एलीह।
1948 ईस्वी के जुलाई मे नरेश थाना- धमदाहा, ज़िला-पूर्णिया में प्रोबेशनर ए . एस. आई के पोस्ट पर ज्वाइन केलैन। दरभंगा से एक कोश पूब-उत्तर नारायणपुर गांव के पीताम्बर झा सचिवालय में पी. डब्ल्यू. डी में किरानी छथि।सीतानाथ बाबू के क्वार्टर के बादक चारिम लाइन में पहिले क्वार्टर पीताम्बर झा के छनि। दुनू मित्र आ पड़ोसी छथि। एक्के ठाम उठनाई-बैसनाई आ गप्प- ठहाका। नरेशक नौकरी लगना लगभग छ मास भ गेल छलैन। 1949 ईस्वी के जनवरी में नरेशक विवाहके दिन स्थिर भेल छनि। बीस दिन आब विवाह के रहि गेलैने। कार्तिक पूर्णिमाके छुट्टी छलैक,सीतानाथ बाबू पीताम्बर बाबू के कहलखिन ,विवाह गामे से हेतै, अहाँ विवाह से चारि दिन पहिने सपरिवार जरूर आवि जाएब। हं! हं अवस्से किने। पीताम्बर बाबू आस्वस्त केलखिन। विवाह से नौ दिन पहिने सीतानाथ बाबू सपरिवार अपन गाम चल गेला। नरेशक विवाह खूब धूमधाम से सम्पन्न भ गेलैन। ससुर मधुबनी सबडिविजन आफिस में किरानी छथिन। कनियाँ छठवां पास। सबटा नीक जकाँ सम्पन्न भेलाक बाद पुतहुक संग पटना वापस एला पर जानकी दाय निश्चिन्तताक अनुभव क रहल छली। नव कनियाँक उपस्थिति से घर सदिखन हास-परिहास आ प्रसन्नता से परिपूर्ण ।
उमेश बच्चे से पढ़ै में तेज छलाह, तैं सीतानाथ बाबू हुंकर भविष्य ले निश्चिन्त छलाह। नरेशक विवाह के चारि बरख बीत गेल छलैन। उमेश बी. एन. कॉलेज से मैथेमैटिक्स ऑनर्स के संग बी.एस. सी के परीक्षा देलाके बाद स्टेट बैंक में कैशियर – क्लर्क ले अप्लाई केने छलाह। बी. एस. सी के रिजल्ट के तेसरे दिन इंटरव्यू भेलैन आ सिलेक्शन भ गेलैने। जून,1952 ईस्वी में स्टेट बैंक पटना में पोस्टिंग सेहो भ गेलैन। बैंक गर्दनीबाग क़वार्टर से लगभग डेढ़ कोष दूर गांधी मैदान लग छलैन। सीतानाथ बाबू 1930 ईस्वी वला अपन रैले सायकिल उमेश के बैंक जाए – अवै ले द देलखिन, हमर आफिस त सटले ऐछ, पैरो चल जाएब, तोरा जरूरी छह।”
1953 ईस्वी के जनवरी के पहिल सप्ताह , रवि दिन छल। जाड़ अपन चरम पर छल। डेरा के आगू वरांडा से नीचाँ सीतानाथ बाबू पत्नी आ उमेशक संग बैस के आगि तापि रहल छलाह। सामने से पीताम्बर बाबूक संग एक अपरिचित व्यक्ति के देखि के जानकी दाय घर के अंदर चल गेली। सीतानाथ बाबू उठि के ठाढ़ भेला आ उमेश सेहो घूमे ले चल गेला ।पीताम्बर बाबू अपन संग आएल व्यक्तिक परिचय दैत कहलखिन, ई थिकाह श्री केदारनाथ झा, हमारे गांव, उत्तरवारि टोल घर छियनि।। घोघरडीहा में स्टेशन मास्टर छैथ।”
आऊ-आऊ , बैसू- बैसू, सीतानाथ बाबू केदारबाबू के स्वागत करैत कहलखिन। दुनू हाथ जोड़ि, नमस्कार करैत केदारबाबू पीताम्बर बाबूक बगल वला कुर्सी पर बैस रहला। पीताम्बर बाबू कहलखिन, ” केदार बाबू विशेष कार्य से आएल छथि”।एतबैक में अंदर से जानकी दाय के आवाज सुना पड़लनि, गई गीता! काने अपन बाबू के बजबहुन त’ ” । “हम कने अवै छी” कहैत सीतानाथ बाबू उठि के अंदर गेला।” पत्नीक संग किछु गप्प भेलैन पुनः बाहर आबि कुर्सी पर बैसैत पीताम्बर बाबू दिस मुख़ातिब होईत बजला, नरेश के त पटना अवै के फुरसतिये नै होई छै।” “हं! पुलिसके नौकरी छियै ने।'” पीताम्बर बाबू ई कहि गप के बढ़बैत बजला, आ उमेश कत’ चल गेला ? ” लगैए ओहो अपन दोस्त-महिम सबसे भेंट करै ले निकलल।”सीतानाथ बाबू कहलखिन।
” वैह लिय”, चर्चा होईत देरी आबि गेल” उमेश के सायकिल से अबैत देखि के प्रसन्नता व्यक्त केलनि। सीतानाथ बाबू केदारबाबू से मुखातिब होईत पुछलखिन, ” हं, त अपने कोन प्रयोजन से आएल छी से कहल जाए।” केदारबाबू के दिश से पीताम्बर बाबू कहलखिन, ” ई अपन लड़की के प्रसंग में आएल छथि।” आब गप्पक सूत्र पकड़ैत दुनू हाथ जोड़ि केदारबाबू बजलाह,” हमर बेटी हमर एक मात्र सन्तान अछि। नवां क्लास में पढ़ि रहल ऐछ, घरक काज सहित सिलाई-कढ़ाई में निपुण अछि। हमर बेटी के अपने अपन घर मे शरण दियै सैह विनती ल के हम आएल छी।” एतबैक में उमेश तीन तश्तरी में हलुआ आनि के रखलनि। चाय- पान आ गप-शप करैत एक घंटा के बाद कल जोड़ि केदारबाबू पीताम्बर बाबूक संग चल गेला। उमेश के नौकरी लगना लगभग छः मास भ गेल छलैन। सीतानाथ बाबू लग उमेशक विवाह के अनेक प्रस्ताव आबि रहल छलैन। दू- चारि ठाम लड़कियो देखि आएल छलाह परंतु एको टा पसिन्न नै पड़ल छलनि।
केदार झा पटना से वापस एलाह त पत्नी के सीतानाथ बाबूक परिवार आ उमेशक बारे में सबटा विस्तार से सुनौलखिन। लड़का सुंदर , ग्रैजुएट आ तै पर बैंकक नौकरी।। संगहिं केदारबाबू इहो सूचना देलखिन जे अगिला रवि के सीतानाथ बाबू सभ पूनम के देखै ले अबै जेथिन । केदारबाबू के पत्नी अगिला रवि के तैयारी में लागि गेली। जेना तय छलैन, अगिला रवि के सितनेह बाबू, पीताम्बरबाबू, उमेश आ दिनेश चारू गोटा घोघरडीहा स्टेशन पर उतरला । केदारबाबू हुनक स्वागत करैत अपन डेरा पर अनलैन।
केदार बाबू के बेटी पूनम पछिले वैशाख मे सोलहम वयस में प्रवेश केने छली। अपूर्व सुन्दरी पूनम सब के सब तरहे पसीन पड़लखिन। सीतानाथ बाबू के तीन टा शर्त्त छलैन- एगारह हजार रुपया नगद ,दस भरि सोनाक गहना आ तेसर जे उमेश के छुट्टी के कठिनाई देखैत पत्नी से विवाह हुए। अपन परिवार आ सर- संबंधी सब से विचार केला के बाद केदारबाबू सब टा शर्त मानि लेलखिन्ह।
काजीपुर में एकटा ख़ाली क़वार्टर केदारबाबू के एक मास ले सीतानाथ बाबू दिया देलखिन। 25 फरवरी, 1952 के विवाह के दिन तय भ गेलैन।
सोम दिन छलैक,उमेश बैंक में अपन काउंटर पर कस्टमर सब के निबटबै में व्यस्त छलाह। चरिमदिन बृहस्पति के हुनकर विवाह छियनि। काल्हि से ई पोर सप्ताह छुट्टी पर रहबा के छनि। एही बीच उमेशक एकटा सहयोगी, गोपाल हुनकर बगल में कैश-बॉक्स के सामने कुर्सी खींच के बैस रहलैन आ कहलकनि, ” अरे भाई! चार दिन बाद तुम्हारी शादी है, थोडा विश्राम कर लो, इतना परिश्रम मत करो।” ” बस, पंद्रह- बीस मिनट और,” बिना गोपाल दिस तकने गोपाल के उत्तर दैत अपन काज में यथावत लागल रहला।
तीन बजे के बाद उमेशक काउंटर खाली भेल त’ ओ अपन हिसाब-किताब मे लागि गेला। बेर-बेर , अनेक बेर कैश गनथि मुदा मुहँ- में -मुहँ हिसाब नै मिललनि। एना एक- सवा घंटा बीत गेलाक बाद उमेश नर्वस भ गेला। फागुन मास में घाम से लथ-पथ। साढ़े पांच बजे बैंक सेहो बन्द भ गेल। कर्मचारी सब से चल गेल छल। उमेश टेबल पर दुनू हाथे माथ पकड़ने बैसल छलाह। बैंक के एजेंट अपन चैम्बर से घर जाय ले बहरेला त उमेश के काउंटर पर बैसल देख हुनका लग आबि के पुछलकनि, क्या हुआ? अभी तक तुम बैठे हो?”
उमेश के फुरि नै रहल छलैन जे साहेब की कहथिन।साहस के के नगदी के काउंटर से पन्द्रह हजसर रुपैया नै मिलबाक समस्या कहलखिन।
“शायद गलती से किसी को ओभर-पेमेंट हो गया होगा। जिन- जिन लोगों को तुमने आज पेमेंट दिया है कल उन सभी के घर जाकर पूछो, शायद पता चल जाए। अभी बैंक बंद हो गया है, तुम घर जाओ।” साहेब सुझाव देलखिन।
अगिला दिन उमेश बेसी रुपैया भुगतान लै वाला व्यक्ति सभक लिस्ट बना के निकलला। लिस्ट के सब आदमी के घरे- घरे जा के पुछलखिन ,मुदा अंत में झमारल आ निराश राति दस बजे अपन घर पहुंचला। घर आबि के अपन बिछान पर पड़ि रहला। उमेशक मनोदशा से घरक सब लोक चिन्तित छल मुदा ककरो अपन चिंता के कारण नै कहलखिन।
अगिला दिन सँ अतिथि सभक आगमन सँ घर मे स्वतः उत्सवक वातावरण बानी गेल छल। लोक सभक समक्ष कोनो तरह उमेश अपनाके सामान्य रखै के कोशिश करैत दिन चर्या में लागल रहला। विवाहक धूम- धाम में उमेश के अपन चिंता दवि गएल छलैन। वरियाती में सब स्टाफ आएल छलैन , मात्र गोपाल नै एलैन। विवाहक तेसर दिन , शनि के उमेशक एकटा सहयोगी गौतम सिंह बैंक से छुटलाक बाद उमेश से भेंट करै ले एलैन। बिना किछ भूमिका के कहलकनि, ” काल ऑडिट वाले आये थे। उन्होंने एजेंट साहेब को निर्देश दिया है कि परसों सोमवार को बैंक खुलने के साथ तुम पंद्रह हजार रुपये जमा नहीं करोगे तो तुम्हारे खिलाफ पुलिस में गबन का मामला दर्ज करदिया जाए और हाँ, एक बात और ,मंगलवार से ही गोपाल भी बैंक नहीं आ रहा है।
गौतम के गप से उमेशक घबराहट और बढ़ि गेलैने। “पंद्रह हजार रुपैया कत्त से औत? नै जमा केला से सोम दिन पुलिस पकड़ि के ल जाएत, लोक की कहत!” उमेशक मोन मे चिंताक ज्वालामुखी धधकि रहल छलनि तथापि ऊपर से अपना के सहज रखबाक प्रयास करैत अगिला दिन कनियाँ के विदाग़री करा के अपन घर आनलनि। ऐ बीच आब की करबाक ऐछ से मोने-मोन निर्णय क चुकल छलाह।
ओहि दिन संध्या में नव कनियाँ के आगमन से घर मे उल्लास और चल- पहल छल। लगभग आठ बजे राति उमेश पेंट- शर्ट पहिरलनि , संग में दू सै टाका लेलैंन आ माय के आवाज़ देलखिन। अखैन पेंट- शर्ट पहिर के कत जाई छें? माय पुछलखिन। “हम एक-दू घंटे ले बाहर जै छियौ, देरी भ जाए त चिंता नाइ करिहें।” माय से नजैर बचबैत उमेश कहलखिन। ” आब इत्ती राति के कत्त जेबें”? माय फेर पुछलखिन। मुदा तावत उमेश घर से निकैल के बाहर आबि गेल छलाह।
जेना किछु मोन पड़लनि, चोट्टे वापस भेला आ कनियाँक कोठली के देहैर पर एला। अड़ोस- परोस आ परिवारक लड़की सब हँसी- ठट्ठा में लागल छल । उमेशक तीन बरखक भातिज पूनम के कोरा में बैसल छल। उमेश भातिज के आवाज देलनि, “बौआ”! पूनम घोघ उठा के उमेश दिस तकलखिन। पेट्रोमेक्स के इजोत में उमेश पांच मिनट तक टक-टकी लगा के देखैत रहला। ओकरबाद घुमला आ तेजी से घर से बाहर निकलि गेला।
ओई राति एगारह बजे तक उमेश घुरि के घर नै एला त नरेश सायकिल ल के हुनका तकै ले निकलला।उमेशक दोस्त- महिम ,बैंक के सहकर्मी सभक घरे-घर जा के आ पटना जंक्शन पर सेहो ताकि एला। आखिर थाकल-हताश नरेश दू बजे राति घर एला। पूरा पटना शहर एकदम शांत भ गेल छल मुदा सीतानाथ बाबू के घर मे करुण क्रन्दन मचि गेल छल। अचानक कोनो महिला चिचियेली–‘ कनियाँ बेहोश भ गेलै”।
अगिला दिनक भिनसर से। सीतानाथ बाबू के घर से हँसी आ उल्लास विला जेल छल।रहिगेल छल मात्र असहनीय पीड़ा, व्यथा।
पूनम ले ओ दिन, अबै वाला दिन,…..……मास आ…..बरख, अमावस्या के राति बनि के रहि गेलैन। राति के बारह बाजि रहल छल। सूरत के अपन कोठली में पड़ल-पड़ल उमेश मोने – मोन कल्पना क रहल छलाह जे ओई राति हुनका घर से निकलला के घंटा भरि बाद पटना के डेरा पर की दृश्य भेल हैत ।
घर मे पहुँ परहक आ अड़ोसी-पड़ोसी सभक ठसा-ठस भीड़ में माय, बाबूजी, गीता सब कनैत- कनैत बेदम भ गेल हैत। आ ………..ओ……ओ…….पूनम … सोचैत-सोचैत उमेश के लगलनि जेना हुनकर देह एकदम से संज्ञा शून्य भ गेल छनि आ अन्धकारक चक्रवातीय। भँवर में डूबैत चल जा रहल छथि। बाहर ककरो अनवारे दरबज्जा पीटै के आवाज से उमेशक नींद टुटलनि। दिन के नौ बाजि रहल छलैन आ हुनकर नौकर दरबज्जा पर ठाढ़ छलैन। उमेश के घर से चल गेलाक दोसर दिन दोपहरिया में सीतानाथ बाबू बाहर कुर्सी पर बैसल छलाह, क्लांत आ विह्वल। एक व्यक्ति एलैन आ पुछलकैन, “उमेश झा यहीँ रहते हैं?”
सीतानाथ बाबू हड़बड़ा के उठला आ पुछलखिन, आप कौन हैं? मैं बैंक का चपरासी हूं, साहब ने उमेश बाबू को तुरंत बुलाया है। ओ कहलकनि। सीतानाथ बाबू किछु बाज’ चाहैत छला मुदा मुहं से जेना स्वर निकलि नै रहल छलनि। एतबे में नरेश बाहर एला। अपरिचित व्यक्ति के देखि के पुछलखिन, ” बाबू ! ई के छियाह? सीतानाथ बाबू कोनो तरहे कहलखिन, उमेशक बैंक के चपरासी छियाह।
नरेशक पुलिसिया रौब-दाब देखि के चपरासी संक्षेप में सोम दिन उमेशक काउंटर से पंद्रह हजार रुपैया गम भ जेबाक घटनाक वर्णन करैत कहलकनि, आज अगर रूपया जमा कर देंगे तो ठीक नहीं तो उनके खिलाफ पुलिस में शाम तक गबन का मामला दायर कर दिया जाएगा। इसीलिए एजेंट साहेब ने उमेश बाबू को तुरंत बुलाया है। नरेशक मस्तिष्क में सबटा गप जेना एकाएक स्पष्ट भ गेलैन। । ” बाबू, हम हिनका संगे बैंक जा के पता लगा के अबै छी।” कहैत उमेश चपरासी के संग विदा भ गेला।
नरेश एजेन्ट साहेब से गप्प केलाक बाद उमेश के अगल-बगल बैसे वला सहयोगी सब से बड़ी काल गप्प केलैन। फेर एजेन्ट साहेब से भेंट क के गत राति उमेश के घर से भागि जएबाक सूचना देलखिन आ रुपैया जमा करबाक लेल दू दिनका मोहलति मँगलखिन। उमेश बैंक से बाहर एला त गौतम सिन्हा, उमेशक सहकर्मी झटकि के हुनका लग एलखिन आ कहलखिन,” हुजूर! उमेश तो बहुत ही अच्छे और ईमानदार व्यक्ति हैँ। वह रुपैया गबन करेंगे ऐसा हो ही नहीं सकता। हाँ, सोमवार को गोपाल बाबू उनके वगल में आधा घंटा बैठे हुए थे। चार दिन से वह भी बैंक नहीं आ रहे हैं।
घर एला के बाद नरेश अपन माय-बाबू से उमेशक काउन्टर से पंद्रह हजार रुपैयाक गबन भ जेबाक घटना आ एजेंट साहेब से भेल गप्पक वृत्तान्त कहैत बजलाह, जेना -तेना दू दिन में पंद्रह हजार जमा क देब पड़त। पुलिस के जांच अलग से चलैत रहतै।” नरेश पुनः कहलखिन, हो -ने हो, निश्चय उमेशक सहयोगी गोपाल रुपैया चोरी क लेलकैंन। अपन उमेश बदनामी के डर से घर से भागि गेल।”
अंततः सैह भेल। जेना-तेना पंद्रह हजार रुपयाक इंतज़ाम क के नरेश दू दिन के बाद बैंक में जमा क देलखिन। पुलिसक जांच में गोपाल गैछ लेलकै जे उमेश के काउंटर से रुपैय्या वैह चोरोने छलैन। गोपाल के दू बरखक जेल भ गेलै। बैंक सुदि सहित पंद्रह हजार रुपया नरेश के वापस क देलकैन। ओहि राति घर से निकलला के बाद उमेश रेलवे लाइन धेने-धेने सीधे पटना जंक्सन पर पहुंचला।
सामने दिल्ली के ट्रेन लागल छलैक। दिल्ली के टिकट कटा के तुरंत ट्रेन में बैसि रहलाह। अगिला दिन साढ़े एगारह बजे राति दिल्ली जंक्सन पर उतरला।चौबीस घंटा भ गेल छलैन किछु खेने नै छलाह । एकाएक बहुत जोड़ भूख के अनुभव भेलैन। प्लेटफॉर्म पर रेलवे कैंटीन में जा के भोजन केलैन। ताबते में एकटा गाड़ी प्लेटफार्म पर लगलै –अहमदबाद एक्सप्रेस। मोनेमोन किछु सोचलैन आ अहमदाबाद के टिकट कटा के गाड़ी में बैस रहला।
दिल्ली -अहमदाबाद एक्सप्रेस द्रुत गति सँ गंतव्य दिस भागल जा रहल छल।थर्ड क्लास में खिड़की लग बैसल उमेश के नींद टुटलनि । भोर भ गेल रहैक।एकाएक ठंढा हवा के अनुभूति भेलैन सीट पर सिकुड़ि के बैस रहला। मोन पड़लनि, पटना छोड़ना आई चारि दिन भ गेल। कनेक काल के बाद कोनो पैघ स्टेशन आबि रहल छलै।लोक सब उतरै के तैयारी क रहल छल।मूड़ी खिड़की से बाहर क के उमेश देखलैन। गाड़ी अहमदाबाद स्टेशन पर पहुँचि गेल छल। उमेश उतरि गेला आ प्लेटफार्म पर बेंच पर जा के बैस रहला। थोड़ेक काल के बाद उठि के दातमनि तकलैन , नै भेटलनि त अंगुली से रगैड़ के दांत धो लेलैन आ फेर बेंच पर जा के बैस रहला। मोन में प्रश्न उठलैन, आब कत्त जाएब,ऐ दिशाहीन यात्रा के अंतिम पड़ाव कत्त हैत। सोचैत-सोचैत पैर टिकट खिड़की दिश बढ़ोलनि। बुकिंग क्लर्क पुछलकनि, कहाँ जाना है?, अनायास मुँह से निकैल गेलैन- सूरत। ठीक है , साढ़े पांच रुपए दीजिये। टिकट ल के एकटा कूली के पुछलखिन, “सूरत के लिए गाड़ी कब आएगी”? ग्यारह बजे दो नंबर से जायेगी। ” कहैत कूली चल गेलैन ।उमेश दू नंबर प्लेटफॉर्म पर एकटा बेंच पर जा के बैस रहला। ठीक एगारह बजे दिन में गाड़ी खुजि गेलैने। कखनि नींद भ गेलैने से नै बुझलखिन। एकटा आदमी देह हिला-हिला के उमेश के उठा रहल छल। ” उतरिये जल्दी, गाड़ी यार्ड में जा रही है। हड़बड़ा के उतरला।अरे, सूरत पहुँचि गेल। प्लेट फार्म से बाहर निकलला। सांझ के पांच बाजि रहल छलैक। सामने सड़क पर एक आदमी से पुछलखिन, “यहां कोई धर्मशाला है”?
धर्मशाला के कोठली में एक टा चौकी पर मामूली गद्दी वला बिछान पर पड़लाह त अगिला दिन भिनसर नौ-साढ़े नौ बजे के लगभग निन्न टुटलनि। स्नान घर मे नल पर जा के बड़ी काल तक मुंह पर पानिक छिट्टा मारला के बाद मोन कने स्वस्थ भेलैन। देह पर जे पहिरने छलाह ओकर अलावा कोनो वस्त्र नै छलैन, तैं
इच्छा रहितहुँ नहा नै सकलाह।
धर्मशाला से बाहर आबि चारू कात नजैर दौड़ोलनि त दूर पर बाजार देखा पड़लनि। बाजार में एकटा पैंट आ एकटा कमीजक कपड़ा कीनि के अर्जेंट में तीन घंटा में सियौलनि । एकटा लूँगी आ एकटा गमछा सेहो कीनि लेलैन। धर्मशाला आबि के भरि इच्छा स्नान केलनि। धर्मशाला से कनेक दूर पर मामूली सन होटल
“पटेल होटल” देखा पड़लनि।
होटल में चारि-पांच टा टेबुल छल। एक कोन में
धोती पहिरने लगभग पैंतीस- चालीस बरखक एक आदमी अलग से एकटा टेबुल पर बैसल छल। कत्तेक दिनक बाद उमेश आई भरि पेट भोजन केलैन। कोन में बैसल व्यक्ति लग जा के पाई देलखिन ,मात्र चारि आना।
किछु दिनक बाद परिचय भेला पर ज्ञात भेलैन जे टेबल पर बैसल पाई लै वाला ओ व्यक्ति स्वयं होटल के मालिक
छी, रघू भाई पटेल। रातियो में ओत्तहि भोजन केलैन।
राति बिछान पर पड़ल-पड़ल उमेश के पछिला दस दिनक घटनाक्रम आँखिक आगू घूम” लगलनि। अंगुली पर जोडलाक़े बाद ध्यान में एलैन जे आई मार्च महीना के छः तारीख छियै। आई से ठीक दस दिन पूर्व गर्दनीबाग के क़वार्टर में हुनकर विवाह छलैन।सर-सम्बन्धी से भरल गज-गज करैत लोक सब। काजीपुर में राति डेढ़ -दू बजे विवाहक विध-विधान सम्पन्न भेलाक बाद सद्यः परिणीता पत्नी दिस तकलनि। मोनक कल्पना से बहुत सुंदर। देख के उल्लास से रोमांचित भ गेल छलाह। सोचैत- सोचैत एखनहुँ देह झुड़-झुड़ा गेलैन ।
उमेश के सूरत एना आई चारिम दिन छियनि।धर्मशाला के मनेजर भिनसरे कहनेरहनि –” हम एक बेर में तीन दिन से बेशी धर्मशाला में नै रह दे छियै। उमेशक जेबी में सत्ताईस रुपैया मात्र रहि गेल रहनि। मैनेजर के और तीन दिन रह दै ले अनुरोध केलखिन । ओ मानि गेलैन।
ओही दिन, दिन में भोजन केलाक बाद होटल के काउंटर पर ठाढ़ छला। होटल के मालिक के पाई द देलाके बाद पुछलखिन,” पटेल साहेब, एत्त पचास-सौ रुपैया के कोनो छोट मोट नौकरी हमरा भेट सकैए ?”
रघू भाई उमेश के गहिकी नजैर से एक बेर देखलकनि आ पुछलकनि, अहाँ कत्त से आएल छी ?” उमेश संक्षेप में ओकरा बुझा देलखिन जे ओ बी.एस.सी पास छैथ आ घरेलू कारण से झगड़ा क के अपन घर , पटना से
पड़ाएल छथि। आब हुनक लग पाई नै रहि जेल छनि, तैं नौकरी केनाई जरूरी छनि।
रघू भाई पटेल मूलतः सूरत शहर से बीस-पचीस मील दूर एकटा गांव के निवासी छलाह। देश के स्वतंत्र भेना साढ़े चारि साल भ गेल छलैक। गाम में कपास के खेती खूब होई छलैन। ऐ बीच कपास आ सूती कपड़ा के व्यापार में सूरत आगू बढ़ि रहल छल आ धीरे-धीरे शहर के सेहो विस्तार भ रहल छल। परिवार के महिला सब अचार आ अन्य नमकीन खाद्य सामग्री सभ बना-बना के बेचै छलैन। रघू भाई अपन होटल चलबै छला। कोनो तरहे
परिवारक गुजर भ रहल छलनि। दूरदर्शी रघूभाई के मन सूत के व्यापार में उतरै ले छटपटा रहल छलनि मुदा घरक एस्कर रहबाक कारण से होटल छोड़ि के व्यापार करबाक साहस नै भ रहल छलनि। एहेन समय मे उमेशक अनुरोध हुनका जेना अपन भाग्यक कोनो इंगित बुझा पड़लनि।
किछुकाल चुप रहलाक बाद रघूभाई उमेश के भरोस देलखिन ,” ठीक छै, पता लगा के काल्हि कहब।
दोसर दिन उमेश भोजन करै ले गेला त रघू भाई काउंटर से उठि के कोन में ख़ाली टेबल पर उमेश के बजौलनि आ बैसे ले कहलखिन। रघुभाई अपन पारिवारिक स्थिति आ सूत के व्यवसाय में भाग्य अजमबैक अपन इच्छा व्यक्त करैत कहलखिन, ” अहाँ हमर संग रहू। ऐ होटल के अहाँ चलाऊ, हम अहाँ के ऐ होटल में रहै के आ भोजन के मुफ्त व्यवस्था के अलावा पचास रुपैया महीना अलग से देब। मंजूर हुए त काल्हिए से अहाँ अपन काज पर लागि जाऊ। रघूभाई के प्रस्ताव उमेशक अनुमान से बेशी छलैन।। अपन प्रसन्नता व्यक्त करैत उमेश कहलखिन,” अहाँ हमरा हमर अनुमान से बेशी द रहल छी। अहाँक ई उपकार हम जीबन भरि नै विसरब।”
होटलक मैनेजरी उमेश के सौंपि के रघुभाई अगिला दिन अप्पन गाम चल गेला। सप्ताह बीतल, मास बीतल, जेना रघूभाई सूरत के बिसरिये गेल छलाह।उमेश दुविधा
में छलाह जे आमदनी के हिसाब रघूभाई केना देबैन।
दू मासक बाद रघूभाई राति के नौ बजे अचानक होटल पहुँचलाह। भीतर घुसैत देरी थकमका गेला। लोक से खचाखच भरल टेबुल सब, झक-झक इजोत आ एक्के रंग के कपड़ा पहिरने बैरा सब। शंका भेलैन जे कोनो आन होटल में त ने घुसि गेलाह। ताबते में रघूभाई के देखि के उमेश हड़बड़ा के हुनका लग पहुंचला आ एक्के सांसे अनेक प्रश्न क देलखिन,”रघूभाई, हम त घबरा गेल रही। अहाँ त होटल एनाईए छोड़ि देलहुँ। अहाँ केना छी ?
आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता से रघूभाई कहलखिन,
” उमेश ! अहाँ त दूमास में होटल के कायाकल्प क देलौं।” उमेश अपन प्रसन्नता व्यक्त करैत दू मास के हिसाब रघूभाई के सुनौलखिन, सब खर्च के बाद दू मास के आमदनी साढ़े तीन हजार रुपैया हमर लग जमा अछि । अहाँ ओ ल लिय।”
रघूभाई के आँखि आश्चर्य से फाटल जा रहल छलैन।”दू मास में साढ़े तीन हजार रुपैया मुनाफा?” पुनः कहलखिन, “भाई , हम काल्हि भिनसर बम्बई जा रहल छी। कपास के निर्यात के लाइसेंस लेब’ चाहैत छी। आठ- दस दिन लागत। घूड़ि के आएब तखें गप करब। ऐ पाई में से अहनपन ले नीक -नीक कपड़ा बनबा लेब। ऐलाके बाद हिसाब-किताब क लेब।”
रघूभाई फेर एक मास एक मास पर सूरत एला। घर पर सामान राखि दिन में दस बजे के करीब होटल एला। उमेश अपन काउंटर पर रजिस्टर सब देखि रहल छलाह। होटल में दू- चारि टा ग्राहक छलनि। रघूभाई सामने ठाढ़ छलखिन ,मुदा उमेश अपन काज में तत्तेक मगन छला जे हुनका देखि नै सकलखिन।
एकटा बैरा “सेठजी, नमस्ते” कहैत कुर्सी पोछि के बैसेले कहलकनि त उमेशक ध्यान भंग भेलैन।। “नमस्ते”केलाक़े
बाद उमेश आ रघूभाई दुनूगोटा कात में एकटा टेबल पर बैसला।
रघूभाई कहलखिन ,” हमरा मास में बीस टन कपास निर्यात करबाक लाइसेंस भेट गेल। उमेश खुशी से उछलि पड़ला, ,” वाह, ई त बहुत पैघ अवसर भेटल।” हँ, तकदीर संग देलक त बुझू जे साल भरि में काम से कम दू लाख मुनाफ़ा त तय अछि, रघूभाई कहलखिन।” सब ऊपर बला के कृपा रघू भाई।” कहि उमेश बैरा के दू कप चाह अनै ले कहलखिन। “रघूभाई, अपन होटल के बगल वाला खाली जमीन अहाँ कीन लिय,भविष्य मे ऐ होटल के विस्तार करै में नीक हैत।” उमेश प्रस्ताव देलखिन।
रघूभाई कनेक चुप रहलाक बाद उमेश के अपन निर्णय सुनौलखिन,” अहाँ के वेतन अही मास से पाँच सै रुपैया भेल । अपन दरमाहा के बाद जे पाई बचे तै से होटल के आगाँ बढ़बैत जाऊ।”
दू साल बीतैत-बीतैत होटल के आमदनी में कै गुना बृद्धि भ गेलैन। रघूभाई के कपासक निर्यात के काज बहुत बढ़ि गेल छलैन व्यापार में बृद्धि आ व्यस्तता के कारण होटल के पूरा के पूरा दायित्व उमेश पर छलैन। रघू भाई अधिककाल बम्बईये में रहै छलाह। रघूभाई उमेश के अलग से सूरत से ट्रक से कपास के गाँठ बम्बई पठबै के काज द देलखिन।
उमेश के सूरत एना सात बरख भ गेल छलैन। ऐ बीच दुनियां बहुत बदैल गेल छल।सूरत में सूती कपड़ा के कई एकटा मिल खुजि गेल छल। पटेल होटल आब शहर के माध्यम कोटि के प्रसिद्ध होटल छल। स्टेशन के निकट चारि तल्ला पटेल होटल सूरत अबै बला के स्वत: आकृष्ट करैत छल।
उमेश अपन नाम से जमीन खरीद के होटल के नजदीक आलीशान मकान बना लेने छथि। जँ-जँ समय बीतल जेल रघूभाई आ उमेशक मित्रता और मजबूत भेल गेलैने।
ओई दिन उमेशक ड्राइंग रूम में उमेश आ रघुभाई के बीच मे बड़ी काल तक पछिला सात बरखक घटनाक्रम पर चर्चा चलि रहल छल। अचानक रघूभाई कहलखिन, ” उमेश ! आब अहाँ विवाह क लिय।
उमेश के एकाएक जेना बिजली के करेंट लागि गेलैने। चेहरा विवर्ण भ गेलैन। रघूभाई उमेशक मनोदशा से अनभिज्ञ ” स्थिर से सोचि के निर्णय लेब” कहैत उठि के विदा भ गेला।
रघूभाई के गेलाक बाद उमेश दिनभरि विचलित रहला। जीबन क्रम में जे अतीतक समृति निस्पन्द पड़ल छलैन, अचानक ज्वालामुखी जकाँ शरीर आ मोन दुनू के झकझोरि देलकैन।
गर्दनीबागक क़वार्टर के एक-एक चित्र बंद आंखि में
नाचि रहल छलनि। बाबूजी… बाबूजी त आब रिटायर क गेल हेता। दिनेश, ओहो आब पूरा जबान भ गेल हैत।आ आ आ आ…… पूनम …..पता नै अपन नैहर मे हैत आ कि………। मोन में जेना आवाज सुना पड़लनि… ” अन्हार कुप्प जीबन में हमरा धकेल के कियै चल गेलहुँ…………
………..? हमर की दोष?
आँखि से अनवरत नोर जाइत रहलैन आ भरि राति सन्निपातक रोगी जकाँ प्रलाप करैत रहला–सबटा अस्फुर स्वर …पूनम–पूनम..पूनम
दोसर दिन अपन निर्धारित समय से तीन-चारि घंटा बाद तक जखैन उमेश होटल नै गेला त दू टा बैरा हुनका देखै ले आएल।दरबज्जा बहुत बेर पिटलाक़े बाद नींद खुजलैन। दरबाजा खोललनि त दू टा बैरा ठाढ़। दिन के एक बाजि रहल छलैक।उमेश के ठाढ़ हेबा में कष्ट भ रहल छलैन। कोनो तरहे बिछान पर एला आ फेर बेहोश भ गेला।
डॉक्टर बजौल गेल। स्वस्थ होई में एक सप्ताह लगलनि।
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साढ़े दस बरखक बाद
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दुर्गापूजा-दिवाली आ छठि के डेढ़ मासक अवकाश के बाद आई पटना विश्वविद्यालय के कैम्पस छात्र सभक गहमागहमी से गुलजार छल।हमर दू टा खास मित्र, उपेंद्र चौधरी अपन गाम हसनपुर से आ असगर भागलपुर से काल्हिए आबि गेल छल। हमर तीनू के रूम सटले-सटल छल, पांच साल से एक संग रहैत रहैत होस्टल से ल के कॉलेज तक हम तीनू मित्र ” तिकड़ी” के नाम से प्रसिद्ध रही।। रिक्शा से भिनसर सात बजे होस्टल
के गेट पर जहिना उतरलहुँ त उपेंद्र आ असगर वरामदा पर ठाढ़ छल। देखैत देरी असगर कहलक,”हम आ उपेंद्र काल्हिए आबि गेलहुं आ नबाब साहेब आई आबि रहल छथि।”
खैर, क्लास खत्म भेला के बादसंध्या काल उपेन्द्रक रूम में आकर घर से आएल खाई-पियैक सामग्री सभक इंस्पेक्शन में व्यस्त रही ।
बीच उपेन्द्रक मामा राजेन्द्र चौधरी पहुंचला। राजेन्द्र चौधरी तेघरा के रहै वला छला। तेघरा बाज़ार में हुनकर कपड़ा के होलसेल दुकान छलैन। कोनो काज से पटना अबै छला त उपेंद्रक रूम में ठहरैत छला।
राति में हम तीनू मित्र उपेन्द्रक रूम में पढ़ाई में व्यस्त रही। अही बीच उपेन्द्रक मामा आबि गेलाह। हम आ असगर अपन-अपन रूम जाई ले उठलहुँ की अचानक हमरा दिस मुख़ातिब होइत कहलनि,”अरे प्रदीप, तोहर घर त दरभंगा लग छौ?” हँ, “से कियैक?” हम पुछलियनि।
मामा कहलनि,” हम दुकान ले कपड़ा अनै ले गुजरात के सूरत शहर जाईत रहै छी। ओत्त पटेल होटल में ठहरे छी। होटल के मालिक झा जी छैथ, उमेश झा, बड़ नीक लोक। हम जखैन जाई छी , हमरा से घंटा-के-घंटा गैप करै छथि।” मामाजी! अहाँक ऐ गप से हमर कोन संबंध? हम पुछलियनि।
” तोरा से नै कोनो संबंध, मुदा पछिला बेर जे हम गेल रही त गप्पक रौ में झाजी अपनै कहलनि जे हुनकर गाम दरभंगा से दू कोश दूर पर छैन। हुनकर पिता सेक्रेटेरिएट में छलखिन आ ओ सब गर्दनीबाग में रहै छलाह। दस साल पहिने झाजी पटना से भागि के सूरत चल गेला से आई तक घूरि के नै एलाह।
उपेन्द्रक मामाक गप में व्यवधान करैत कहलियनि, “आब हम सब सूतै छिय मामा, काल्हि फेर गप करब।'”
ममा भिनसर छ बजे तेघरा ले प्रस्थान क गेल छला। हुनकर गप आएल-गेल भ गेल।
पटना में हमर एकटा काका , हमर पिता के ममियौत भाई, रहै छलाह। श्री नवीन चंद्र मिश्र , पी.एच.ई. डी में एग्जीक्युटिव इंजीनियर। मास में एक दिन कोनो छुट्टी, रवि अथवा पावैन -तिहाड़ पर हैम नवीन काका के ओत्त जाइत रहैत छलहुँ। ओई दिन तिल संक्रांति छलै। हम नवीन काका के ओत्त गेलहुँ। वरामदा से नीचाँ लॉन में काका आ आ आठ दस आदमी बैस के गप क रहल छलाह। हमरा देख के कहलनि, आवह प्रदीप, ऊपर से कुर्सी ल लैह। कुर्सी ल के हमहूँ बैस रहलहुं। एक गोटा पुछलखिन , ई के छियाह? काका कहलखिन , हमर भातिज, नबादा वाला हमर पिसियौत भाई के बेटा। एतै एम.एस. सी फिजिक्स में पढ़ै छथि।”
किछु कालक बाद ” काकी के भेंट केने अबै छी कहैत हम उठलहुँ। गुलाबके फुलवारी दिस नजैर गेल त रुकि फूलक सौंदर्य देख लगलहुँ।गप्पक क्रम में बुझना गेल जेना कक्काक बड़का बेटा, मन्नू के विवाहक चर्चा भ रहल छै।
अचानक गप्पक अंश सुना पड़ल….” आब त एगारह बरख भ रहल छै, आई तक उमेशक कत्तौ पता नै लागल……..। सुनैत देरी हमर कान ठाढ़ भ गेल। हैम फेर कुर्सी पर आबि के बैस रहलहुं आ पुछलियनि, ” काका! जेना कोनो उमेश नामक व्यक्तिक चर्चा होई छलैन, के कहैत छलाह?”
काका सहज भाव से कहलनि,” ई छियाह श्री नरेश झा, पूर्णिया सदर में दरोगा छैथ। हिनके भाई के नाम छियनि उमेश। एत्तहि स्टेटबैंक में कैशियर छलाह। विवाह भेलैन आ तेकर चारिमे-पाचम दिन घर से जे भगला से आई तक पता नै चललैन। एगारह साल भ गेलैने।
विचित्र। ईश्वर की संयोग लगबै छथिन! हम स्तब्ध भ गेलहुं। तीन मास पूर्व उपेन्द्रक मामा घर से पड़ाएल उमेश झस नामक व्यक्तिक चर्चा हमरा से केने छलाह। तेकर सम्पूर्ण परिचय अखैन हमरा समक्ष छल।
हम कने सहज होइत उपेन्द्रक मामा जे-जे कहने छलाह, से। अक्षरसः दरोगाजी के कहलियनि। आब आश्चर्यचकित दरोगाजी आँखिफाड़ने एक टक हमरा दिश ताकि रहल छला। एकाएक दुनू हाथ जोड़ि के हमरा कहलनि, अहाँ तुरत हमर घर मीठापुर चलू। फेर काका के कहलखिन,” अहाँक भातिज हमरा ले आई भगवान बनी के आएल छथि।आशीर्वाद दिय।
हम अवाक, दारोगजीक उत्तेजना आ मनःस्थिति देखैत काका कहलनि, ” एत्तेक पैघ खुशी के गप कहलहुँन अछि तों, चल जाहुन।” तुंरत दरोगाजी के संग हुनके मोटरसाइकिल पर विदा भेलहुँ। काका पाछू से जोड़ से कहलनि, ” फेर एत्ताही अबिहें, संगहि भोजन करब।
मीठापुर में दरोगाजी के घर पर पहुँचलहुँ त बाहर ओसारा पर हमरा कुर्सी पर बैसे के इशारा करैत तेजी से घर के अंदर गेला आ , माय के आवाज देलखिन, माय, कत्त छें जल्दी आ “।
दू मिनट के अंदर घरक सब सदस्य ओसारा पर हमरा घेर के ठाढ़। हुनक माय कनैत , बेर-बेर एतबै कहैत- एक बेर हमर बेटा के मुँह देखा दिय। सभक चेहरा पर अतिरेक आ आकस्मिक प्रसन्नताक उत्तेजना।
हम मात्र ऐ स्थितिक अनुभव क सकै छलहुं।
ऐ बीच हमर आगू में भरि तश्तरी मिठाई आबि गेल।
हम कहलियनि,” आब आगू की कएल जाए से सोचनाई आवश्यक अछि।
” ई ठीक कहै छथुन, तों सब अंदर चल, हम सब बैस के सोचै छी।” दरोगाजी के कहलापर सब अंदर चल गेल, हुनक माय आ छोट भाई ओत्तहि बैसल रहला। विचार-विमर्श के बाद निर्णय भेलैन जे उपेंद्र के मामा , राजेन्द्रबाबू से गप क के नरेश बाबू आ दिनेश बाबू , दुनूभाई हुनकर संग सूरत जाईथ।
हम वापस काका के डेरा पर अएलहुँ। काका, काकी, भाई, बहिन सब व्यग्रता से हमर प्रतीक्षा क रहल छलथि। गप्प बुझै ले सब उत्सुक छलथि। सबटा गप कहलियनि।
भोजन केलाक बाद हम होस्टल वापस आबिगेलौं। होस्टल मे जखैन हम उपेंद्र आ असगर के घटना-क्रम कहलियैक त ओहो सब आश्चर्यचकित रहि गेल।
ओही दिन उपेंद्र अपन मामा के चिट्ठी लिखलकै।
मामा के जबाब एलैन जे सातम दिन सांझ ओ औता, ओकर अगिला दिन सूरत चलैथ। हम आ उपेंद्र तुरंत दरोगाजी के घर पर पहुँचलहुँ आ हुनकर भाई दिनेश झा,जे पटना कॉलेज में प्रोफेसर छलाह, के मामा राजेन्द्र बाबूके कार्यक्रम के जानकारी द देलियनी।
ठीक सातम दिन राजेन्द्र बाबू साँझ में होस्टल पहुँचलाह। मामा राजेन्द्रबाबू के संग हम तीनू मित्र दिनेशजी के घर पर गेलहुँ। अगिला दिन राजेन्द्र बाबू के संग नरेश झा आ दिनेश झा दुनू भाई के सूरत जेबाक योजना बनि गेलैने।
सूरत पहुँचि के तीनू गोटा पटेल होटल में ठहरला। राति में भोजन के समय राजेन्द्र बाबू आ दिनेश बाबू एक्के टेबल पर बैसला। नरेश बाबू बाहर सड़क पर बेचैन टहैल रहल छलाह। राजेन्द्र बाबू बैरा के झा साहेब के बारे मे पुछलखिन” कहलकनि , आ ही रहे होंगे। ठीके पांच-सात मिनट में उमेश बाबू होटल आबि गेलाह आ नमस्कार-पाती के बाद राजेन्द्रबाबू के सामने वाला कुर्सी पर बैस गेला। दिनेश के देखि के उमेश राजेन्द्र बाबूकेँ पुछलखिन, ” ई के छियाह ? राजेन्द्रबाबू कहलखिन, ई बेगूसराय के छियाह, बिज़नेस के सिलसिला में हमरा संग एलाहे।”
गप्पक क्रम में राजेंद्र बाबू पुछलखिन, ” झा साहेब! अहाँ के कहियो अपन माय-बाप, भाई-बहिन मोन नै
परैये? उमेश व्यथित स्वरे दीर्घ सांस लैत कहलखिन, ” मई-बाप, भाई-बहिन और…….. से दूर रहबाक पीड़ा हमर से अधिक के बूझि सकैए। हमर भाग्य में एकाकी जीबन लिखल छल।खैर छोड़ू ई सब गप। दिनेश एगारह बरखक बाद सहोदर अग्रज के देखि के हर्षातिरेक से उद्वेलित छलाह, मुदा कठोर प्रयास से अपन भावना के प्रगट होयबा से रोकने छलाह।
उमेश बीच-बीच मे दिनेश दिस ताकि रहल छलाह। राजेन्द्र बाबू आ दिनेश दुनू भोजन क रहल छलाह। अचानक दिनेश दिस तकैत उमेश बजलाह,” लगैए जेना अहाँ के हम देखने छी”
आब दिनेश के नै रहल गेलैने, कहलखिन, हँ, सहोदर अप्पन खून के चिन्ह जाइतई छै।” उमेशक कलेजा धक्क से केलकैंन, अस्पष्ट शब्द मुंह से निकललनि,” तों …दिनेश रौ….” कहैत उमेश ठाढ़ भ गेला। दिनेश और राजेंद्र सेहो ठाढ़ भ गेलाह।
ताबते में नरेश, जे नुका के होटल के एक कोंन में टेबल पर वैसल छलाह,सेहो ओत्त आबि गेलाह। नरेश के देखैत ” भैया तोहूँ, ” कहैत उमेश हुनकर पैर पर खसि पड़लाह। उठला आ नरेशक छाती से लागि के कान’लगला। तीनू भाईक अश्रुपूर्ण मिलान देखिके राजेन्द्र बाबूक आँखि सेहो डबडबा गेलैन।
उमेश कहलखिन, चलू घर पर, ओत्तहि जा के गप्प करब।आलीशान दुमहला मकान छलैन। उमेशक आग्रह पर राजेन्द्रबाबू सेहो आई होटल में अपन कमरा में नै जा के हुनके घर पर रहला।
तीनू भाई भरि राति गप्प करैत रहला। उमेश के घर से भागि गेलाक बाद बैंक मे गबन से संबंधित घटनाक्रम सविस्तर सुनला के बाद उमेश उत्साहित होईत पुछलखिन, ” त’ हमरा पर गबन के आरोप नै ऐछ?” ” एकदम नै ,गोपाल स्वयं स्वीकार केलक जे तोहर ड्रॉअर से पंद्रह हजार रुपैया वैह चोरी क लेने रहे।
उमेश के लगलनि जेना हुनकर माथ पर से बदनामी आ अप्रतिष्ठा के पहाड़ एकाएक ढहि गेलैन। पटना जएबाक ले उमेश किन्नहुँ तैयार नै छलाह। दुनूभाई के कत्ते बुझेलाक बाद अन्ततः अगिला दिन साँझ वाली ट्रेन से दिल्ली होईत पटना जयबाक निर्णय सँ सहमत भेला।
अगिला दिन भिनसर उमेश अपन दुनू भाई के रघूभाई सँ भेंट करौलखिन। रघूभाई के सेहो खुशी से आंखि में नोर भरि गेलैन।
रघूभाई उमेशक बारे में हुनकर भाई सब के कहि रहल छलखिन, “नरेशजी ,सभ खेल ओ मुरलीवला के रचाएल होई छैक। उमेश जाहि दिन हमर होटल में पैर रखलनि हमर भाग्योदय भेल। एगारह वर्ष पूर्व हमर पूंजी हजार में छल । आई हम करोड़पति छी । हिनकर सूझबूझ आ परिश्रम के फल छी जे जहिया हमर से पहिल वेर भेंट भेलनि त’ हिनका लग खयबाक पाई नै रहनि। आई ई ई होटल आ दू टा ट्रक के मालिक छथि।
हमर एक्सपोर्ट के कारबार करोड़ से ऊपर अछि, जाहि में झाजी तीस प्रतिशत के हिस्सेदार छथि। ” जाऊ उमेश, अहाँ के देख के परिवारक लोक के जे खुशी हेतै से वर्णन नै कएल जा सकैये। लेकिन हँ। अहाँ एत’ घुरि के जरूर आएब से वचन दिय।
……. हम सभ प्रतीक्षा करब । ” कहैत-कहैत रघुभाई एकदम विह्वल भ’ गेला ।
संध्या काल तीनू भाइ आ राजेन्द्र बाबू अहमदाबाद एक्सप्रेस में बैसल छलाह । तावत रघूभाई पहुँचलाह, हुनका संग होटलक चारिटा बेयरा, तीन अटैची आ एक टा पैघ टोकरी में खाई-पीबाक समान सभ ल’ के । पाछाँ सँ रघुभाईक पत्नी सेहो अपन बारह वर्षक बेटीक संग अइली।रघूभाई अपन पत्नी सँ उमेशक भाई सबहक परिचय करौलखिन । समय भ’ गेल छलैक । गाड़ी सीटी देलक आ विदा भ’ गेल। राति एगारह बजे अहमदाबाद पहुँचलाह सभ गोटा।
सूरत से विदा होई सँ पूर्व नरेश बाबू पटना अपन घर पर तार द’ देने छलखनि जे ओ सभ परसू साँझ में पटना स्टेशन पर उतरता ।
हम, उपेंद्र आ असगर होस्टल के लॉन में बैसल रहीं। अखैन सूर्यास्त होई में किछु देरी छलैक । ताबत हमर होस्टल के पिऊन के संग सतीश हमर भाई ,इनजीनियर साहेब,के बेटा हमरे सभ दिश आबि रहल छलाह । हम ओकरा अपना लग बैसा पुछलियै जे की हाल-चाल, केम्हर एलेहें? ओ नरेश बाबू जे तार अपन घर पर देने छलखिन से देखबैत कहलक जे अहाँ सब तीनू मित्र काल्हि संध्या स्टेशन पर जरूर आबी । नरेश बाबू अहूं सब के बजौलैने।
पटना जंक्शन पर दिल्ली एक्सप्रेस के अबैक उद्धोषणा भ’ गेल छल । उमेशक माय, बहन-बहिनोई, भातिज-भतीजी ,भागिन , उमेशक भाऊज , दिनेशक पत्नी, उमेशक सासु- ससुर , पीताम्बर बाबू सपरिवार आ उमेशक पत्नी पूनम सभ स्टेशन पर उपस्थित छलखनि । हम, उपेंद्र आ असगर सेहो पहुँचि गेल रही।
गाड़ी प्लेटफार्म पर लागि गेल। सबसे पहिने उपेन्द्रक मामा उतरला, तेकर बाद दिनेश आ उमेश, पाछाँ सँ नरेश । नरेश कूली के बजा के सामान सभ उतरबा रहल छलाह । उमेशक हाथ पकड़ने दिनेश माय सभ जत’ ठाढ़ छलखिन तेमहर बढ़ला । विधवाक वेश में उज्जर साड़ी पहिरने महिला दिश इशारा करैत दिनेश पुछलखिन “ओ के छथि , कहू त भैया ।”
“नानी” उमेश तुरंत कहलखिन । मुदा जहिना दस डेग आगू बढ़ला की ठमकि के बजला, “नै! ई त’ माँ छियै ।” मायक पैर पर खसैत हुचुकि-हिचुकि के कान’ लगला । माय बेटा के अपन कलेजा सँ लगा के निःशब्द कनैत रहली जावत दिनेश हाथ पकड़ि के उमेश के नहिं खींच लेलखिन्ह, तावत तक । बाबूजी दुनियाँ में नै रहला से स्वतः बुझि गेला ।
बहिनक विवाह भ’ गेल छलनि, मुदा चिन्हवा मे कनिको धोखा नै भेलनि । माय के ठीक पाछाँ में तीन टा महिला ठाढ़ छलीह । तीनू में से एकटा महिला जे आंखि तक घोघ केने हलुक लाल रंगक साड़ी पहिरने छलीह तिनका दिश इशारा करैत दिनेश पुछल खिन,
“भैया , कहू त’ ओ के छथि?”
उमेश चिन्हवाक प्रयास क’ रहल छलाह । कहीं दिनेशक कनियाँ ने होई । मोन में आशंका छलैन, पूनम त नैहर में रहैत हेती।
तावत माथ पर साड़ी कने ऊपर ससारि के आँखिक कोर से ओ महिला उमेश दिश तकलखिन। डोका सन-सन पैघ-पैघ डबडबाएल आंखि । उमेश फुसफुसेला…………”पूनम” आ एकटक हुनका अनिमेष देखैत रहला।
दिनेश माय के कहलखिन , चल माय, घर चल। सब से पाँछा गीता , उमेश आ पूनम गाड़ी में बैसलीह।
हमहूँ सब अपन होस्टल ले विदा भ गेलहुं।
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समाप्त