भाई-बहिन क पवित्र प्रेम क प्रतीक पर्व सामा-चकेवा आइ अपन वजूदक लेल संघर्ष कए रहल अछि। ओना मिथिलाक किछु भाग मे एखनो लोकगीत स गुंजायमान एहि पर्वक महत्व कायम अछि। छठिक राति स कार्तिक पूर्णिमा तक बहिन क कंठ स निकलैत स्वर लहरी कान मे मधु टपकाबैत अछि। राति कए बहिन सामा-चकेवा क मूर्ति क संग-संग वृंदावन, चुगला आदि स भरल डाला ले कए सामूहिक रूप स जोतल खेत, खलिहान, चौक-चौराहा पर जुटय लगैत छथि। छोट-छोट नैना क संग-संग बूढिय़ा बहिन तक एहि मे हिस्सा लैत छथि। एहि दौरान बहिन ‘गाम कए अधिकारी तोहें बड़का भैया हो, हाथ दस पोखरि खुना दिए, चंपा फुल लगा दिए हे…Ó आदि गीत क संग सामा-चकेवा क मूर्ति एक-दूसर क हाथ मे दकए पहिने अपन-अपन भाईक दीर्घ आयुक कामना करैत छथि। एहि पर्वक खास गप ई सेहो अछि जे एकर गीत मे पर्यावरण संरक्षण क संदेश सेहो देल जाइत अछि। कार्तिक पूर्णिमाक राति बहिन सामा-चकेवा क मूर्ति क संग-संग वृंदावन, चुगला आदि स भरल डाला ले कए जोतल खेत मे जमा होइत छथि। ओहि ठाम सबस पहिने शिरिक आदान-प्रदान होइत अछि। एहि प्रक्रियाक संबंध मे कहल जाइत अछि जे जतेक बहिन स शिरिक आदान-प्रदान करब भाइक बैस ओतेक बढ़त। ताहि लेल बहिन सब टोल-मोहल्लाक एकोटा मौगि स शिरिक आदन-प्रदान करब नहि बिसरैत छथि। एहि दौरान साउस-पुतहु व ननदि-भाउज एक-दोसरा स शिरिक आदान-प्रदान करैत गाउल गीत मे अपन सबटा भाईक नाम एक-एक कए लइत जाइत छथि। फेर प्रतीक रूप म वृंदावन मे आगि लगा कए ओहि मे चुगला कए जड़ा कए गबैत छथि,’वृंदावन मे आगि लागल कियो नहि मिझाबे हे, हमर बड़का-छोटका भईया मिलकए मिझाउत हे।Óबहिन चूड़कक पुतला क मुंह झुलसा कए खराब चरित्र क प्रति विरोध दर्ज कैत ओकरा लेल अपशकुन क कामना करैत छथि। फेर पिछला 15 दिन मे बनाउल एक-एक टा सामा-चकेवा क मूर्ति कए लग कए घर दिस विदा भ जाइत छथि। मुदा भाग्य चक्र स बिमुख दू टा मैना, जेकरा बाटो-बहिन कहल जाइत अछि, तेकरा बाट पर छोडि़ दैत छथि। घर पहुंचला पर भाई स सामा-चकेवा क सबटा मूर्ति तुड़वा लैत छथि। एना खत्म होइत अछि सामा-चकेबाक शापित काल।
के छलीह सामा
ई लोकपर्व पद्म पुराण मे वर्णित भगवान श्रीकृष्ण क पुत्री साम्बवती व पुत्र साम्ब क पवित्र प्रेम पर आधारित अछि। चुड़क नामक एकटा चुगला श्रीकृष्ण लग चुगलि करैत अछि जे हुनक पुत्री साम्बवती वृंदावन जाइत काल ऋ षि क संग रमण मे लागल छथि। चूड़कक मुख सई सुन क्रोधित भ श्रीकृष्ण पुत्री आ ऋषि दूनू के मैना बनि जेबाक शाप द देलथि। साम्बवती क वियोग मे ओकर वर चक्रवाक (चकेबा)सेहो मैनाक रूप धारण करि लैत अछि। साम्बवतीक भाई साम्ब जखन इ सुनलक त तपस्या करि पिता श्रीकृष्ण कए प्रसन्न करैत अछि आ बहिन-बहनोई कए शाप स मुक्त करैत अछि। ओहि दिन स मिथिला मे सामा-चकेवा पर्व छठिक पारण क राति स कार्तिक पूर्णिमा तक मनाउल जाइत अछि।
बड्ड नीक प्रस्तुति। मोन प्रसन्न भए गेल।
समाद मैथिलीक ऑनलाइन समाचारपत्रक रूप मे जे सेवा कए रहल अछि से
लोकक मोनमे अंकित भए गेल अछि।
bahut sundar ,naya kalewar me dek chakit rahi gelau,sama chakeba ke photo nai dekhal ! aasha achi dekhwa le bhetat
एहि टिप्पणी लेल धन्यवाद । अपनें ठीकें कहलियैक जे सामा चकेबा अपन बजूदक लेल संघर्ष क रहल अछि । हम तं कहै छी हम सभ अपन बहुतों लोक संस्कृतिकें बिसरि रहल छी । कियाक नहि जानि । किन्तु एहि लोक संस्कृति सभकें जिएबाक जरुरी छैक जाहि लेल एकटा जागरण चाहि , जेकर निर्वाह अपने क रहल छी ।
मिथिला के “मैथिल और मैथिली” कल्पना से भी पड़े हैं ?” विधाता ने सृष्टि की अनमोल रचना की | उस अनमोल रचना में मिथिला {मिथिलांचल }अर्थात आदि शक्ति की भूमि की गाथा एक उपहार स्वरुप है , जो शायद कल्पना से भी पड़े है | कभी इस भूभाग पर भष्म का मंथन से राजा-मिथी,विदेह ,मिथिलेश न जाने कितने नामों से विख्यात हुए | जिस प्रकार से मिथिला कल्पना से भी पड़े है ,ठीक इसी प्रकार से -यहाँ के राजा अर्थात -जनक भी कल्पना से पड़े थे | राज्य को चलाने के लिए ,किसी भी राजा को शस्त्र उठाने पड़ते हैं ,किन्तु -महराजा जनक ने शस्त्र नहीं शास्त्रों से राज्य को चलाया | इस “मिथिला और मैथिल ” की विशेषता की बात करें -विद्या- अर्थात जन -जन के मन में और विचार में माँ शारदा का निरंतर निवास रहता है | इसी कारण से एक छोटी सी नगरी के लोग विश्व में विद्या के बल पर छा जाते हैं | वैभव -मिथिला के लोग -वैभव को सर्वोपरि मानते हैं -जब तो पुत्र से भी अधिक दामाद को मानते हैं |संसार में -बेटी और दामाद का जो सम्मान मिथिला में होता है ,शायद यह अलोकिक ही है |वैभव -रहन -सहन के साथ -साथ प्रकृति के साथ चलना ,मान सम्मान के लिए ही जीते हैं | शांति के पुजारी -आज अगर विश्व में छाये हैं तो -शांति का स्वरुप ही इनकी शान होती है ,क्योकि जो ज्ञानी होते हैं ,वो विवेक के पथ पर ही चलते हैं ,इस लिए ये अडिग रहते हैं | पर सेवा =विश्व में -सेवा भाव से ही समर्पित रहना परम लक्ष होता है | मैथिल के अभिभावक -यद्यपि -धन विहीन होते हैं ,किन्तु ,कान्ति,चमक ,संस्कार ,मान सम्मान के सबसे धनी होते हैं -यही कारण है -मैथिल -मिथिला से दूर होकर भी -अपनी छाप बरकरार रखते हैं | मिथिला -की नारी -भी संस्कार के अग्रगणी होती हैं -अपनी संस्कृति और संस्कारों को सात समुन्दर पार ले जाने में हिचकती नहीं हैं | धन्य हैं मिथिला के अभिभावक -जो किसी जन्म के पुन्य के प्रताप से निर्धन होते हुए भी अपनी संतानों के द्वरा सर्वगुण संपन्न होते हैं | साथ ही धन्य हैं मिथिला के मैथिल जो -अपने संस्कारों के बल पर निर्धन होते हुए भी आसमान को छू लेते हैं || भवदीय निवेदक “ज्योतिष सेवा सदन “झा शास्त्री “{मेरठ उत्तर प्रदेश } निःशुल्क ज्योतिष सेवा रात्रि ८ से९ मित्र बनकर कोई भी प्राप्त कर सकते हैं | संपर्क सूत्र -०९८९७७०१६३६,०९३५८८८५६१६,