भैरव लाल दास
मिथिला मे मातृभाषा मे शिक्षाक इतिहास प्राचीन समय सँ भेटैत अछि। राजा जनकक दरबार मे प्रकाण्ड पंडित सभ केँ स्थान एहि लेल भेटैत रहन्हि जे ओ आम जन केँ शिक्षित करबामे समर्पित रहैत छलाह। चन्द्रगुप्तक राजकाल मे ग्रीक राजनयिक ‘मेगास्थनीज’ (300 ईसा पूर्व) आयल छलाह ओ एहि ठामक शिक्षा व्यवस्था विशेष क’ देवभाषा संस्कृतक संबंध मे विशद वर्णन कएलन्हि अछि। बादक अवधि मे चीनी यात्री सब मिथिलाक भ्रमण केलन्हि आ एहिठामक देशी शिक्षा व्यवस्था सँ प्रभावित भेलाह। पन्द्रहम् शताब्दी मे मिथिलाक शिक्षाक व्यवस्था पुन: विश्व प्रसिद्ध भेल जखन पक्षधर आ वाचस्पति मिश्र सनक विद्वानक लेखनी सँ मानव सभ्यता आलोकित भेल। महामहोपाध्याय गोकुलनाथ उपाध्याय (1650-1740) क पश्चात् मिथिलाक शिक्षा व्यवस्था ससरि क’ नवद्वीप (बंगाल) चलि गेलैक। ओत’ भौर अथवा मंगरौनी सँ वेशी छात्र जुड़ल आ मिथिलाक छात्र शिक्षाक लेल नादिया (नवद्वीप) आ बनारस जाए लगलाह। पिलखवार, महेशपुर, अथरी, ननौर, रुद्रपुर आ चकौती मे विद्वान शिक्षक सभ रहथि जिनका सँ पढ़बाक सेहन्ता कोनो विद्यार्थी केँ होइत रहन्हि। ताहि समय मे संस्कृत शिक्षाक प्रसार वेशी रहैक आ पाठ्यक्रम मे व्याकरण, धर्मशास्त्र, न्याय आ ज्योतिष विषय छल। एकर अतिरिक्त वेद एवं तंत्रक अध्ययन सेहो होइत छल।
बादक राजकाल मे सेहो मिथिला शिक्षाक केन्द्र बनल रहल आ ई क्रम खण्डवला वंश धरि चललैक। 1844 मे ‘कलकत्ता रिव्यू’ नामक पत्र मे मिथिलाक शिक्षा पद्धति खास क’ ‘टोल’ पद्धतिक विशेषता पर आश्चर्य प्रकट कएल गेलैक जे शिक्षक लोकनि सुख-सुविधा वा धन उपार्जन सँ कोनो सरोकार नहि रखैत छथि। हिनक घर एवं रहन सहन देख क’ विद्याक प्रति अनुराग श्रद्धा उत्पन्न करैत अछि। ब्रिटिश अधिकारी द्वारा सेहो चारि तरहक शिक्षा व्यवस्थाक उल्लेख कएल गेल अछि- संस्कृत चतुष्पथि अथवा टोल, पाठशाला, मदरसा आ मकतब। टोल आ मदरसा उच्च वर्गीय शिक्षाक लेल छल आ पाठशाला आ मकतब निम्न वर्गीयक लेल।
वर्ष 1813 सँ पहिने सरकारक प्रशासनिक अंगमे शिक्षा नहि आयल छल। एहि वर्ष चार्टर एक्ट आयल आ सरकार द्वारा निर्णय लेल गेल जे शिक्षा व्यवस्था पर कम सँ एक लाख टाका खर्च कएल जाए। परंच एहि अवधि धरि कोनो विभागक स्थापना वा कोनो अधिकारीक नियुक्तिक प्रावधान नहि भेलैक। तिरहुत मे पहिल महाविद्यालयक स्थापनाक निर्णय त’ लेल गेलैक मुदा एकर पर्यवेक्षणक भार स्थानीय समिति केँ देल गेलैक। 1823 मे सरकार द्वारा शिक्षा समितिक स्थापना कएल गेलैक आ एहन व्यवस्था 1842 धरि रहल जखन शिक्षा परिषद्क स्थापना भेलैक। दिसम्बर,1844 मे ‘वर्नाकुलर स्कूल स्कीम’ आयल जे ‘हार्डिंग स्कूल’क नाम सँ सेहो प्रसिद्ध अछि। बिहार (झारखंड सहित) मे ईसाई मिशनरीज आगमन एहि अवधि मे आरंभ होइत अछि जकरा मातृभाषाक महत्व सबसँ वेशी बुझबा मे एलैक आ मैथिली मे पवित्र ‘बाईबिल’क अनुवाद सेहो एहि अवधि मे भेलैक। बापटिस्ट, गोसनर, क्रिश्चियन मिशनरी सोसाइटी आ सोसाइटी फॉर दी प्रोपेगेशन ऑफ दी गॉस्पेल द्वारा मातृभाषा मे धर्म ग्रंथक छपाई एहि लेल भेलैक जे ओ वेशी सँ वेशी लोक धरि अपन आशय पहुंचा सकय।
औपनिवेशिक काल मे संस्कृत शिक्षा सँ फराक जन शिक्षाक प्रसार भेलैक। गाम मे पाठशालाक स्थापनाक रेवाज बढ़लैक। एहि पाठशाला मे शिक्षक स्थानीय रहैत छलाह आ शिक्षाक खर्च जन समुदाय द्वारा वहन कएल जाइत रहैक जाहि मे गामक धनी-मनी अथवा जमींदार कनेक वेशी मदद करैत छलखिन्ह। एहि मे शिक्षाक माध्यम मातृभाषा अथवा जनभाषा रहैत छलैक। बच्चा केँ अक्षरारंभ करौलाक बाद शब्द विन्यास सिखाओल जाइत छल आ तकरा बाद कृषि एवं व्यापार सँ संबंधित विषय सँ अवगत कराओल जाइत छल। विभिन्न तरहक पत्र लेखन, जमीनक नाप-जोख, वजन आदि पाठ्यक्रमक हिस्सा छल आ प्रत्येक दिन वर्गक अंत सामूहिक रूप सँ, जोर-जोर सँ ‘दोनाई’ (पहाड़ा) आ ‘बिटगरहा’ पढ़ाओल जाइत छलैक जे बच्चा सभक मन-मस्तिष्क मे बैस जाइत छलैक। पढ़ेबाक क्रम मे गुरुजी अथवा मौलवी साहेब (मियांजी) द्वारा बच्चा केँ कतेको तरहक शारीरिक दण्ड सेहो देल जाइत छलैक। एकर आलोचना विभिन्न तरहक प्रतिवेदन मे आयल अछि। 1876-77क बेंगाल एडमिनिस्ट्रेटिव रिपोर्ट में कहल गेल जे एहि पद्धति केँ शिक्षाक नाम नहि देबाक चाही। मातृभाषा मे देल गेल एहि शिक्षा पद्धतिक लाभ विद्यार्थी केँ बहुत भेटैत रहैक। स्थानीय जीवन प्रक्रियाक सब चरणक प्रशिक्षण विद्यार्थी केँ द’ देल जाइत छलैक। उल्लेखनीय जे एहि अवधि मे पोथीक उपलब्धता नगण्य छल। मातृभाषा मे शिक्षा ग्रहण क’ भाषा आ गणित मे बच्चा खूब प्रवीण भ’ जाइत छलाह।
शिक्षा पद्धति मे परिवर्तनक आरंभ चार्ल्स ग्रांट नामक अधिकारी द्वारा 1792 मे तैयार कएल गेल प्रतिवेदन सँ भेल। ग्रांट ईसाई मिशनरीजक कार्यकलाप सँ प्रभावित छलाह आ ‘क्लैफ्म स्कूल’ क सदस्य छलाह जाहि सँ विलबरफोर्स आ मैकाले सेहो संबद्ध छलाह। वस्तुत: ई लोकनि तत्कालीन सरकार मे अपन प्रभावक व्यवहार सँ लॉर्ड मिन्टोक प्रतिवेदन मे शिक्षाक स्थान दियौलन्हि जे 6 मार्च, 1811 क’ प्रकाशित भेलैक और तदुपरान्त चार्टर एक्ट 1813 मे शिक्षा सरकारक जिम्मेवारी बनलैक। एकर बाद भारत मे ब्रिटिश शासन द्वारा शिक्षा व्यवस्था मे परिवर्तन आरंभ भ’ गेलैक। एखन धरि ई शोधक विषय अछि जे ईसाई मिशनरीज, मैकॉले सहित अन्य अंग्रेज अधिकारी, स्थानीय शासक एवं जमींदार एवं आम जनता मे मातृभाषा मे शिक्षा विषय पर कतेक समन्वय एवं कतेक मतभिन्नता रहलैक आ एकर कारण की छलैक। एक दिस सब केओ मातृभाषा मे शिक्षाक पैरवी करैत छथि आ दोसर दिस सब केँ एहि सँ विरक्ति सेहो छनि। स्वतंत्रताक बाद सेहो एहने सन क्रम रहल।
पत्र संख्या- 5189/400 दिनांक 22 मार्च, 1950 द्वारा निदेशक, जन शिक्षा, बिहार सरकार द्वारा आदेश निर्गत भेल। एहि आदेश द्वारा जिला परिषद्क अध्यक्ष महोदय लोकनि केँ निदेशित कएल गेलन्हि जे सरकार द्वारा निश्चय कएल गेल अछि जे मैथिली भाषी क्षेत्र मे प्राथमिक शिक्षा मैथिली मे देल जाए आ मैथिली मे शिक्षा व्यवस्था केँ मंजूरी सेहो देल जाए। उल्लेखनीय जे आजादीक संघर्ष मे मातृभाषा मे शिक्षा विषय पर पूरा देश मे एकटा पैघ बहस भेल छलैक आ नीति निर्माता सब एहि विषय पर एकमत रहथि। मुदा व्यवहार मे मैथिली मे प्राथमिक शिक्षा आरंभ नहि भेलैक। मैथिली भाषी बुद्धिजीवी सब एहि हेतु संघर्ष आरंभ केलन्हि। 16 नवंबर, 1966 क’ सरकारक उप सचिव द्वारा डॉ0 जयकान्त मिश्र केँ पत्र लिखल गेलन्हि जे पत्र संख्या- 883 दिनांक 28-3-1966 और पत्र संख्या 1356 दिनांक 27-5-1966 भारत सरकार केँ पठा देल गेलन्हि अछि जकर संबंध मैथिली भाषा मे प्राथमिक शिक्षा सँ अछि। बिहार सरकार द्वारा उपर्युक्त पत्र डॉ0 एस. नागप्पा, सहायक शैक्षिक सलाहकार, शिक्षा विभाग, भारत सरकार, नई दिल्ली केँ लिखल गेलैक जाहि मे उल्लेख रहैक जे मैथिली केँ मातृभाषा मानि लेल गेलैक अछि। मुदा कोनो बच्चा केँ मातृभाषा मे शिक्षा प्राप्त करबाक लेल बाध्य नहि कएल जा सकैत छैक। कोनो बच्चाक मातृभाषा की छैक, एकर उल्लेख विद्यालय मे नामांकन करेबाक काल सिर्फ ओकर अभिभावक स्पष्ट क’ सकैत छथिन्ह। आगॉं स्पष्ट कएल गेलैक जे एहि जनतबक आधार पर मैथिलीक शिक्षक संख्या निर्धारित कएल जाएत। प्रत्येक विद्यालय मे एकटा रजिस्टर रहैत छैक जाहि मे भाषाई आधार पर अल्पसंख्यक बच्चाक संख्याक उल्लेख रहैत छैक। एहि रजिस्टर सँ स्पष्ट होइत छैक जे कतेक बच्चा अगिला वर्ष कोन भाषा सँ शिक्षा ग्रहण करबाक इच्छुक छथि आ एहि संख्याक आधार पर शिक्षकक व्यवस्था कएल जएबाक प्रावधान अछि। एहि रजिस्टरक आधार पर 25389 बच्चा मातृभाषा मैथिली मे शिक्षा प्राप्त करबाक इच्छा रखैत छथि। मैथिली भाषी क्षेत्र मे पर्याप्त मात्रा मे मैथिली जननिहार शिक्षक सब छथि आ मैथिली मे शिक्षा देबा मे ओ पूर्ण रूपेण समर्थ छथि। राज्य सरकार कोनो बच्चा केँ कोनो खास भाषा मे शिक्षा ग्रहण करबाक लेल जबर्दस्ती प्रेरित नहि क’ सकैत अछि। मैथिली मे पाठ्यपुस्तक उपलब्ध हेबाक प्रश्न पर राज्य सरकार द्वारा स्पष्ट रूप सँ स्वीकार कएल गेल जे एखन धरि ई संभव नहि भ’ सकल अछि किएक तँ एखन धरि सरकार सँ एहन मांग नहि कएल गेलैक अछि। जेना-जेना एकर मांग आओत, राज्य सरकार एकर आपूर्त्ति करत।
शिक्षा निदेशक, प्राथमिक शिक्षा, बिहार सरकार द्वारा अपन पत्र संख्या-7 एम 7-0147-170 शि. दिनांक 13 सितम्बर, 1973 क’ जिला पदाधिकारी, दरभंगा केँ एकटा पत्र प्रेषित कएल गेलैक मैथिली केँ एकटा क्षेत्रीय भाषा मानल गेल अछि आ एहि भाषाक माध्यम सँ मैथिली क्षेत्र मे पढ़ाईक प्रबन्ध अछि। एहि संबंध मे निदेशालय द्वारा समय-समय पर पत्र निर्गत कएल गेल अछि। प्रथम वर्ग सँ सप्तम वर्ग धरि साहित्य मे मैथिलीक किताब सेहो विहित अछि। मैथिली क्षेत्रक शिक्षक प्राय: मैथिली जनैत छथि आ आवश्यकतानुसार मैथिली पुस्तक आपूर्त्ति सेहो कएल जाइत अछि। किन्तु शिक्षकक उदासीनताक कारण आदेश नीक ढंग सँ कार्यान्वित नहि भ’ पाबि रहल अछि। ऑहॉं सँ अपेक्षित अछि जे अधीनस्थ अधिकारीक एकटा बैसार आयोजित करी जाहिमे एहि विषय पर विचार-विमर्श होए जे एखन धरि राजकीय आदेशक कार्यान्वयन किएक नहि भ’ रहल अछि। मैथिली भाषा मे कतेक पोथीक आवश्यकता होएत, सरकार केँ सूचित करी। सरकारक अवर सचिव द्वारा 21-2-1975 क’ एकटा आदेश निर्गत भेल जाहि मे मैथिली के विषय मे स्पष्ट निदेश छल। एहि पत्रक अनुसार जाहि अभिभावक केँ अपन पाल्य केँ मैथिली भाषा सँ शिक्षा देबाक छनि ओ विद्यालय रजिस्टर मे स्पष्ट रूप सँ लिखवा देथुन्ह आ तदनुसार मैथिली शिक्षकक व्यवस्था कएल जाएत। सरकारक लेल मैथिली शिक्षकक व्यवस्था करब कोनो कठिन काज नहि अछि। आगॉं स्पष्ट कएल गेल जे प्राथमिक विद्यालय मे कोनो ‘विषय शिक्षक’ नहि होइत छैक। जे शिक्षक छथि हुनका हिन्दी आ दोसर अल्प भाषाक जानकारी राखब आवश्यक होइत छन्हि। जाहि विद्यालय मे कम सँ कम चालीस छात्र आ एक वर्ग मे कम सँ कम 10 छात्र मैथिली पढ़ चाहत, ओत’ मैथिली पढ़बाक व्यवस्था कएल जा सकैत छैक। एहिमे आर स्पष्ट कएल गेलैक जे नया पाठ्यक्रम बनाओल जा रहल अछि आ सभ अल्पसंख्यक भाषाक लेल पाठ्य पुस्तक प्रकाशित होएत।
बिहार सरकारक अपर सचिव श्री ए. बनर्जी द्वारा अपन पत्र संख्या स्टेट/एल.25/73.3739/C (विशेष शाखा) दिनांक 29-7-1975 द्वारा भाषागत अल्पसंख्यक सहायक आयुक्त, इलाहाबाद के जे पत्र लिखल गेल ताहि मे प्राथमिक शिक्षा मे मैथिलीक स्थितिक वर्णन अछि। एहि मे स्पष्ट कएल गेल जे बिहार सरकार द्वारा जे नीति अंगीकार कएल गेल अछि तदनुसार मध्य विद्यालय मे 7वां वर्ग तक आ बुनियादी विद्यालय मे 8वां वर्ग तथा भाषेतर विषयक लेल शिक्षाक माध्यम छात्रक मातृभाषा अछि। एहि राज्य मे मैथिली मातृभाषाक रूप मे स्वीकृत अछि। जाहि विद्यालय मे चालीस छात्र अथवा एक वर्ग मे दस छात्र मातृभाषा मे शिक्षा ग्रहण कर’ चाहता त’ हुनका लेल शिक्षकक व्यवस्था कएल जेतैन्ह। एतबहि नहि, राज्य सरकारक उप सचिव द्वारा एकटा चिट्ठी पत्रांक- स्टेट/एल.एम.-7/69-3547 सी. दिनांक 10 जुलाई, 1975 डॉ0 जयकान्त मिश्र, प्रयाग एवं भाषागत अल्पसंख्यक उप आयुक्त के पठाओल गेल छल एहि मे स्पष्ट कएल गेल जे सरकार मैथिली भाषा मे प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध करेबाक लेल प्रतिबद्ध अछि।
श्री भवेश मिश्र, महामंत्री, मैथिली भाषा संगठन, सहरसा द्वारा जिला शिक्षा अधीक्षक, सहरसा केँ ज्ञापन देल गेलन्हि जे सहरसा जिला मे मैथिली मे प्राथमिक शिक्षाक व्यवस्था नहि भ’ रहल अछि। तत्कालीन जिला शिक्षा अधीक्षक, बी.एस.वैश्यक द्वारा 24 दिसम्बर, 1986 क’ सहरसा जिलाक सभ प्रखण्ड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी एवं विद्यालय उप निरीक्षक केँ चिट्ठी पठाओल गेल आ एकर आशय छल जे 1950 मे बिहार सरकार द्वारा निर्णय लेल गेल जे मैथिली भाषा क्षेत्र मे बच्चाक पढ़ाई मैथिली भाषा मे हो। आगॉं पत्र मे निदेशित कएल गेल जे जनवरी, 1987 सँ सहरसा जिलाक सभ विद्यालय मे मैथिली भाषा मे पढ़ाई हेबाक व्यवस्था सुनिश्चित कएल जाए।
27 अगस्त, 1988 क’ बिहार सरकारक मानव संसाधन विकास विभाग द्वारा अधिसूचना निर्गत कएल गेल जे राज्यक प्रस्वीकृत प्राथमिक विद्यालय मे शैक्षिक सत्र 1989 सँ अध्यापन हेतु संलग्न सूची मे अंकित बिहार राज्य पाठ्यपुस्तक प्रकाशन निगम लिमिटेड, पटना तथा निजी प्रकाशक द्वारा प्रकाशित पाठ्यपुस्तक स्वीकृत कएल जा रहल अछि। एहि आदेश मे स्पष्ट स्वीकृत कएल गेल जे आई धरि मैथिली मे पाठ्यपुस्तक तैयार नहि भेल अछि।
एहि तरहें वर्ष 1950 स’ आई धरि सरकारक परिपत्र मैथिली भाषा मे प्राथमिक शिक्षा देबाक पक्ष मे देखना जाइछ। वस्तुत: विचारणीय अछि जे सरकारक लेल मातृभाषा मे प्राथमिक शिक्षाक व्यवस्था करबाक कानूनी बाध्यता कोना की छैक। संविधानक 12म भाग मे अनुच्छेद 343 मे संघक राजभाषाक चर्च कएल गेल अछि। 343(1) एवं (2) क अध्ययन सँ स्पष्ट अछि जे संघक राजभाषा हिन्दी आ लिपि देवनागरी होयत। संविधानक आरंभ सँ पन्द्रह वर्ष धरि शासकीय प्रयोजनक लेल अंग्रेजी भाषाक उपयोग कएल जा सकैत अछि आ एकर बाद राष्ट्रपति निर्णय लेताह जे कोना की व्यवस्था कएल जाएत। 350 मे स्पष्ट अछि जे अपन व्यथाक निवारणक लेल राज्य मे प्रयोग होमयवला कोनो भाषा मे अभ्यावेदन देल जा सकैत छैक। मातृभाषाक संबंध में 350(क) में उल्लिखित अछि जे प्रत्येक राज्य ओ राज्यक भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी भाषाजन्य अल्पसंख्यक वर्गसब बालकसब के शिक्षाक प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा मे शिक्षाक पर्याप्त सुविधा सबहक व्यवस्था करबाक प्रयास करत ओ राष्ट्रपति कोनो राज्य के एहन निदेश द’ सकत जे ओ एहन सुविधा सबहक उपबंध करयवाक लेल आवश्यक ओ उचित बुझैत अछि। 351 मे संविधानक आठम अनुसूची मे विनिर्दिष्ट भारतक अन्य भाषा एवं हिन्दीक विषय मे चर्च कएल गेल अछि।
भारतक संविधान मातृभाषा मे शिक्षाक व्यवस्था करबाक लेल बाध्यकारी उपबंध कएने अछि। एतबहि नहि, भारतक कोनो भाषा, चाहे एकर उपबंध आठम अनुसूची मे अछि अथवा नहि, एहि सँ व्यक्तिक भाषागत अधिकार पर कोनो प्रतिकूल असर नहि पडि़ सकैत अछि। मुदा शासक वर्ग पर संविधानक उपबन्धक आदर नहि करबाक आरोप समय-समय पर लगाओल गेल। अनेकानेक आवेदन सरकार केँ समर्पित कएल गेलन्हि, धरना-प्रदर्शन-आंदोलन भेल। राजनीतिक कार्यकर्त्ता पर मैथिल समाजक दबाव पड़ल। विधान मंडल स’ ल’क’ संसद धरि, एहि प्रश्न पर आवाज उठाओल गेल। मुदा यथार्थत: समस्या 1950 मे जत’ छल, मोटामोटी ओतहि ठमकल अछि। राजनेता एवं सरकारी अधिकारी एहि विषय पर अपन जिद छोड़बाक लेल तैयार नहि छथि। जनताक दबाव त’ बढ़लैक मुदा अपना रोजी-रोटीक चिन्ता मे व्यस्त जनता केँ एहि विषय पर सरकार केँ बाध्य करबाक लेल कोनो बाट ताकि नहि सकल।
मिथिला क्षेत्र मे मैथिल राजनेता सभ मैथिली मे भाषण करैत छथि। एतबहि नहि मगध, भोजपुर, हिन्दी क्षेत्र या गुजरात सँ आबि क’ राजनेता सब अपन भाषण मे कम सँ एक पंक्ति मैथिली मे अवश्य सुनबैत छथि। स्पष्ट रूप सँ हुनका मैथिली भाषी जनताक वोट चाहियन्हि। मैथिल सभ वोट देबो करैत छथिन्ह। हिनकर वोट सँ नेता सब विधान मंडल आ संसद मे बैसैत जाइत छथि मुदा एखन धरि मातृभाषा मैथिली मे प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध नहि कराओल जा रहल अछि। पाठ्यपुस्तक मैथिली मे नहि छपैत छैक। विद्यालय मे मैथिली विषयक शिक्षकक नियुक्ति नहि कएल जाइत अछि। एहि सँ मिथिलाक संस्कृतिक लोप होयबाक प्रबल संभावना उत्पन्न भ’ रहल अछि। तिरहुता लिपिक अस्तित्व पर संकट त’ पहिनहि सँ छल, मैथिली भाषा पर कुठाराघात कएल जा रहल अछि।
संविधानिक व्यवस्था रहितो, सरकारक स्पष्ट आदेश रहितो आखिर मैथिली मे प्राथमिक शिक्षाक व्यवस्था किएक नहि भ’ रहल अछि? आखिर नेता आ अधिकारी एकरा एतेक हल्लुक ढंग सँ किएक ल’ रहल छथि? मिथिला मे मैथिली भाषा कतेक आदरणीय अछि? एहि भाषा सँ सामान्य जन जुड़ल अछि अथवा एखन धरि ई अभिजात्य वर्गक भाषा बनले अछि? मिथिला मे मैथिलीक अतिरिक्त अन्य भाषा सिखबाक प्रवृत्तिक कारण की सब अछि? मैथिली रोजगारपरक भाषा अछि अथवा नहि? देशक अन्य राज्य मे मातृभाषा मे प्राथमिक शिक्षाक की स्थिति अछि? एहन तरहक अनेक बिन्दु अछि जाहि पर विश्लेषण करब आवश्यक अछि। एहि ठाम मात्र दू-तीन टा बिन्दुक विश्लेषण अछि।
आजादीक 68 वर्षक बादो सरकारी अधिकारीक मनोवृत्ति मे कोनो खास परिवर्तन नहि भेल अछि। जखन देश मुगल शासनक अधीन छल, एहि देश पर फारसी भाषा लादल गेलैक, कारण फारसी शासकक भाषा छलैक। अफगान शासक शेरशाह के छोडि़ क’ आन कोनो शासक केँ मातृभाषाक महत्व नहि बुझना गेलन्हि। जखन औपनिवेशिक सरकार आयल, एहि देश पर अंग्रेजी लादल गेलैक। आजादीक बाद हिन्दी भाषाक मनोवृत्ति सँ अधिकारीगण अपना केँ अलग नहि क’ सकलैथ अछि।
1947 मे देश आजाद भेल आ आम जनता मे ई विश्वास उत्पन्न भेलैक जे आब हमरा अभिव्यक्तिक स्वतंत्रता भेटत। हम अपना भाषा मे लिखि-पढि़ सकब। हमर संस्कृतिक रक्षा होयत। मुदा सरकारक नीति निर्धारक केँ आम जनताक आनन्द सँ चिढ़ रहैत छन्हि। ओ हमेशा एहि ताक मे रहैत छथि जे जनता केँ जे चीज सामान्य ढंग सँ उपलब्ध भ’ रहल छैक, तकरा मे पेंच लगा देल जाए। जनता सरकारक शरण मे जाई आ तखन सरकार एकर श्रेय लिअ जे हमर उदारताक कारण ऑहॉं के ई सब चीज भेटल। मैथिलीक नाम पर वोट त’ सात दशक सँ भेटि रहल छैक, मुदा मैथिली एखन धरि उपेक्षित छथि। नेता आ अधिकारी, दुनू वर्गक सम्मुख अनेकानेक बहाना अछि।
सरकारक सम्मुख फरियादक कोनो असर जखन नहि भेलैक त’ न्यायालयक शरण लेल गेल।
मैथिली साहित्य समिति, इलाहाबाद के अध्यक्ष जय कान्त मिश्र द्वारा उच्च न्यायालय मे सी.डब्ल्यू.जे.सी. संख्या 7505/1998 दायर कएल गेल आ एकर न्याय निर्णय 29-9-2002 क’ आयल। एहि न्याय निर्णयक अनुसार राज्य सरकार के निदेशित कएल गेलैक जे जत’ एक वर्ग मे दस टा बच्चा और एक विद्यालय मे 40 टा बच्चा मातृभाषा मैथिली मे शिक्षा प्राप्त करबाक इच्छुक छथि ओत’ मैथिली शिक्षकक व्यवस्था कएल जाए। उच्च न्यायालयक एहि न्याय निर्णयक विरुद्ध बिहार सरकार सर्वोच्च न्यायालय मे सिविल अपील संख्या 7266/2004 दायर केलक मुदा राज्य सरकार मोकदमा हारि गेल। माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 30-9-2010 क’ अपील के खारिज क’ देल गेलैक।
एहि बीच, डॉ0 जयकान्त मिश्र स्वर्गवासी भ’ गेलाह। पश्चात्,सतीश चन्द्र झा, अध्यक्ष, नव मिथिला विकास समिति द्वारा दिनांक 14-1-2011 द्वारा सरकार केँ आवेदन देल गेलैक जे प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा मे देबाक लेल, माननीय उच्च न्यायालय द्वारा 7505/1998 एवं सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 7266/2004 मे पारित न्याय निर्णयक अनुपालन हेतु सरकार उचित व्यवस्था करए। सरकार किछु नहि केलक। सतीश चन्द्र झाजी एहि विषयक शिकायत उच्च न्यायालय मे एम.जे.सी. संख्या 3380/2011 मे केलथि। उच्च न्यायालय एहि एम.जे.सी. क निष्पादन करैत 19-9-2011 क’ आवेदक के कहलकन्हि जे ऑहॉं उचित बुझी त’ एकरा लेल उच्च न्यायालय मे नया मोकदमा दायर क’ सकैत छी। डॉ0 इन्द्रनाथ झा, अध्यक्ष, अंतर्राष्ट्रीय मैथिली परिषद् (रजिस्ट्रेशन संख्या- 262/01-6-2000) मुजफ्फरपुर द्वारा तदनुसार सी.डब्ल्यू.जे.सी. 18798/2012 दायर कएल गेल। एहि मोकदमा मे बिहार सरकारक प्रधान सचिव, शिक्षा विभाग द्वारा प्रतिशपथ पत्र देल गेल अछि। सतीश चन्द्र झा आवेदकक वकील छथिन्ह। एहि मोकदमा मे माननीय मुख्य न्यायाधीश, पटना उच्च न्यायालय एल. नरसिम्हा रेड्डी आ माननीय न्यायाधीश विकास जैनक खंडपीठ द्वारा 17-2-2015 क’ अंतरिम न्याय निर्णय पारित कएल गेल अछि। न्याय निर्णयक अनुसार मैथिली संविधानक अष्टम अनुसूची मे वर्णित भाषा अछि। सरकारक प्रति शपथ पत्र मे मैथिली भाषा केँ मान्यता देबा एवं एकर प्रचार-प्रसारक तथ्य स्वीकार कएल गेल अछि। राज्य सरकार केँ निदेशित कएल जा रहल अछि जे अगिला शैक्षणिक सत्र सँ मैथिली भाषी क्षेत्र मे मैथिली भाषा (ऐच्छिक विषयक रूप मे) क पढ़ाई हेबाक लेल पाठ्यपुस्तक एवं पाठ्यक्रम तैयार करथि। एहि मोकदमा पर अगिला सुनवाई चारि सप्ताह बाद होयत। एहि न्याय निर्णय सँ सरकारी अधिकारी केँ आर बल भेटतन्हि।
एकटा महत्वपूर्ण विषय अछि जे सरकारी अधिकारीगण एना जिद्द किएक क’ रहल छथि? आखिर मैथिली भाषा सँ एतेक विद्वेषक भावना किएक छनि? वस्तुत: अधिकारी लोकनि केँ राष्ट्रभाषा, राजभाषा, मातृभाषा आ लोक भाषा मे अंतर स्पष्ट नहि भ’ पबैत छन्हि आ एहि लेल ने ओ स्पष्ट निर्णय ल’ पबैत छथि आ ने सरकारक एवं उच्च/सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित न्यायादेश के ओ कार्यान्वित क’ पबैत छथि।
भारतीय संविधान मे राष्ट्रभाषाक शब्दक कतहु चर्च नहि छैक। राजभाषाक रूप मे हिन्दी केँ स्वीकार कएल गेल छैक आ तात्कालिक रूप मे अंग्रेजी सँ काम चलेबाक व्यवस्था कएल गेल छैक। कोनो व्यक्तिक मातृभाषा की हेतैक, एहि लेल कोनो नियम, कानून आ सरकारी आदेशक खगता ककरो, कोनहु देश मे नहि होइत छैक। अपितु, सरकारक कतेको आदेश मे मैथिली केँ मातृभाषा मानल गेल अछि। मैथिली संविधानक अष्टम अनुसूची मे वर्णित भाषा अछि। वस्तुत: अधिकारी लोकनि मन-मस्तिष्क मे ई फरिछोट नहि भेलन्हि जे हिन्दी आ मैथिली मे कोनो टकराहट नहि छैक।
ग्रियर्सन द्वारा मैथिली भाषी क्षेत्रक रूप मे सीतामढ़ी, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, सुपौल, मधेपुरा, सहरसा, वैशाली, समस्तीपुर, बेगूसराय, खगडि़या, अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार, भागलपुर, बांका, गोड्डा, देवघर आदि जिला केँ प्रदर्शित कएल गेल अछि। संविधानक आठम अनुसूची मे संविधान संशोधन विधेयक, 2003 द्वारा 7-1-2004 क’ मैथिली के शामिल कएल गेल। सम्प्रति पटना, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, मगध, मिथिला,बी.एन.मंडल, रांची, त्रिभुवन विश्वविद्यालय, काठमांडु मे मैथिली विषयक पढ़ाई भ’ रहल अछि। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा मैथिली भाषा मे शोध करबाक हेतु छात्रवृत्ति देल जा रहल छैक। 1965 सँ साहित्य अकादेमी द्वारा मैथिली भाषा मे पुरस्कार देल जाइत छैक। 1972 सँ बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा मैथिली भाषा मे परीक्षा आयोजित (अधिसूचना संख्या- 10222, दिनांक 31-5-1972, 15342, दिनांक 26-8-1972) आ तदनुसार पाठ्यक्रम तैयार कएल गेल। भारतक प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा मैथिली भाषाक विकासक लेल सरकारक प्रतिबद्धताक घोषणा दिसम्बर, 1980 मे कएल गेल। मैथिली बजनिहारक संख्या 30.3 प्रतिशत छल आ उर्दू बजनिहारक संख्या 8.9 प्रतिशत छल। मुदा मैथिली के छोडि़ क’ उर्दू केँ द्वितीय राजभाषाक दर्जा देल गेल।1990 मे राज्य सरकार द्वारा निर्णय लेल गेल जे उच्च विद्यालयक छात्र मैथिली भाषा मे अपन उत्तर लिखि सकैत छथि।
एतेक भेलाक बादो अधिकारीगण केँ मैथिलीक प्रति विद्वेषक भवना छनि। वस्तुत: मैथिलीक विकास भेला सँ हिन्दीक विकास अवरुद्ध नहि भ’ सकैत अछि। प्रत्येक बच्चा राष्ट्रभाषाक रूप मे हिन्दीक शिक्षा ग्रहण करैत अछि आ ई व्यवस्था सौंसे देश मे छैक। किछु दिन पूर्व धरि अपना बच्चा केँ अंग्रेजीक शिक्षा देब गर्वक विषय बुझल जाइत छल किएक त’ बच्चाक भविष्य निर्माणक विषय अंग्रेजी बनि गेल छलैक। आब अंग्रेजी संगे एकटा विदेशी भाषा सिखबाक आकर्षण बढि़ रहल छैक आ बच्चा सब फ्रेंच, जर्मन, जापानी, अरबिक, चीनी या अन्य कोनो भाषा सिखैत अछि। बच्चा सब जतेक भाषा सिखए, ततेक नीक। जतेक विकास करए’ ततेक नीक। मुदा ओकर कोनो अपराध नहि छैक जे ओकरा मातृभाषा मे आरंभिक शिक्षा लेबा सँ वंचित कएल जाए। कतेको शोधपत्र एलैक जे जँ मातृभाषा मे शिक्षा प्रदान कएल जाए त’ बच्चा स्पष्ट रूपेण आ तेजी सँ विषयक ज्ञान अर्जित करैत अछि। वस्तुत: बच्चाक सिखबाक एहि प्रवृत्ति सँ अधिकारीगण सशंकित भ’ जाइत छथि। हुनका नजरि मे शिक्षा व्यवस्था सिर्फ औपचारिकताक विषय अछि आ बच्चा केँ साक्षर बनाओल जाए नहि की शिक्षित। शिक्षित बनबाक अधिकार ओहि बच्चा सब केँ छैक जे नीति-निर्धारकक परिवार मे जन्म लैत अछि आ तथाकथित रूप सँ भविष्य मे देशक बागडोर सम्हारता। मिथिला सनक पिछड़ल प्रदेश मे जँ केओ एहन नीति निर्धारक बनि जेताह त’ हुनकर स्थान छीनल जेतन्हि। अतएव एहि धरती पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व्यवस्था करबाक प्रपंच प्रदर्शित हो, मुदा यथार्थ नहि।
मिथिलाक धरतीक वर्तमान भाग्य विधाता सब शासक वर्गक एहि महीनी सँ एखन धरि विमुख छथि। आम जन सब सेहो तेना भ’ क’ एहि लेल सचेष्ट नहि छथि। मातृभाषाक प्रति अनुराग मे कमी आबि रहल अछि। मिथिलासँ युवा वर्गक पलायन सबसँ वेशी भेलैक अछि। हुनका लेल पेट भरब पहिल विषय अछि। देशक आन भाग सँ कमा-खटा क’ ओ कहियो मिथिला आपस अबैत छथि त’ ओहि भागक भाषा बाजि गौरवान्वित होइत छथि। एहन स्थिति भ’ गेल जे आब मैथिली मातृभाषा नहि ‘दादीभाषा’ बनि रहल अछि। एखनहु मैथिली जाति, पाति, धनिक-गरीब, सहरसा-मधुबनी आदि मे बंटल अछि। नेता लोकनि सब किछु देखि रहल छथि। हुनका वोट चाहियन्हि, आर कोनो चीज सँ कोनो प्रयोजन नहि। हुनका बुझल छन्हि, मैथिलीकेँ कोना हराओल जा सकैत अछि। मैथिली आईयो हारि रहल छथि। मातृभाषा मे प्राथमिक शिक्षा आइयो सपना अछि। सरकारक परिपत्र, न्यायालयक आदेश, नेता सबहक आश्वासन, धारा सभाक परिचर्चा सब किछु छिडि़आयल अछि। मिथिला संस्कृति पर कुठाराघात भ’ रहल अछि आ भाग्य विधाता पर सुतल छथि।
भैरव लाल दास
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