फरवरी, 1948 मे इ आलेख मिथिला मिहिर क तत्का लीन संपादक आचार्य सुरेन्द्र झा ‘सुमन’ क लिखल अछि जे इसमाद लेल डॉ ईशनाथ झा उपलब्ध करौलनि अछि। आचार्य 1977 में जनसंघ क टिकट पर दरभंगा स सांसद चुनल गेलाह। इ आलेख मिथिलाक गांधीक प्रति नजरिया कए स्थापित करैत अछि। – समदिया
अमर छलाह,मरिओ कs घर-घरमे व्याप्त छथि। अवतार छलाह, तें ने मूर्ति पूजित ओ नाम जपित होइछ। समुद्रमे पड़ैत वैदिक सभ्यताक उद्धारक, स्वराज्यक अमृतमंथनक हेतु कर्मठ कमठ, युद्धत्रस्त भूगोलक शान्तिक अवलंबन कs पुनरुद्धारक, साम्राज्यवादक हृदयविदारक, अन्त्यजक हेतु भिक्षुक वामन, विदेशी सत्ता कें निश्छत्र केनिहार, मर्यादा पुरुषोत्तम, गीतागायक, हिंसाक निरोधक ओ कलिक ध्वंसक —- कोन अंशे ओ अवतारी नहि कहल जयताह ? पैगम्बर छलाह, तेऔ ने इसाइ आ मुसलमान सभ हुनक वन्दना करैछ। बुद्धवत् अहिंसाक मंत्र देल। ईसाक समान शान्तिक हेतु मुइलाह। मुहम्मद जकाँ हुनक मत हुनका समक्षहि सर्वत्र पसरि गेलनि। पक्का हिन्दू छलाह — जे निषेकादि स्मशानान्त वैदिक विधि सँ संस्कार भेलनि। सार्थक मुसलमान, तें मुसलमानक हित-चिन्तना करैत मृत्यु अपनौलनि। ब्राह्मण जकाँ नित्य प्रति संध्या-वन्दना कयलनि। क्षत्रिय बनि सत्याग्रह-संग्राममे जीवन भरि लड़लाह। वैश्य तँ छलाहे, राष्ट्रके व्यवसाय ओ मितव्ययिताक आदर्श सिखौलनि। शूद्र, तें सेवाक धर्म ग्रहण कयलनि। अन्त्यज, तें भंगीक संग वास। सम्राट् छलाह, जनिकाँ समक्ष राजा-महाराजा माथ झुकबैत छलथिन। दरिद्रनारायण , तें अर्धनग्न ! वृद्धवत् उपदेशक, युवकवत् सदा संघर्ष लै प्रस्तुत, बालक जकाँ स्वच्छ, सरल ओ स्मितमुख ! भक्त छलाह, राम-नामक महिमा सुना गेलाह। सन्त छलाह, उपकारमे जीवन आहुत कs देलनि। नेता छलाह, पराधीन देशके स्वाधीन बना देल। त्राता छलाह, युग-युगक दलित-पतित कें पावन कs देलथिन। पुरुष नहि पुरुषोत्तम छलाह, आत्मा नहि, महात्मा छलाह। युगनिर्मित नहि, युगनिर्माता छलाह। एक शब्दमे पूछी तँ — गांधीजी की नहि छलाह ?
आन सभ अवतार आततायी सभक दमन कs शान्ति स्थापित कयलनि किन्तु गांधीजी आतातायी सभक आततायित्वके मेटाय ओकरा हृदयमे सद्भावना जागृत कs शान्ति स्थापनाक प्रयत्न कयलनि ओ सफलो भेलाह। राजसूय यज्ञमे श्रीकृष्ण भगवानक पूजा होइत देखि शिशुपाल विरोध कयने छलनि किन्तु गांधीक पूजाकें आइ धरि कियो विरोध नहि कयलक।
संसारमे जतेक पैगम्बर भेलाह से सभ अपन जातिक उन्नतिक हेतु कार्य कयलनि गांधीजी संसारक सभ जातिकें समान दृष्टिसँ देखलनि। और सभ पैगम्बर ( देवदूत) ओ गांधीजी मे बहुत अन्तर छनि। आन सभ पैगम्बर अपन जातिक रक्षाक हेतु दोसर जातिसँ लड़बामे ‘शहीद’ भेलाह परन्तु गांधीजी शहीद दोसर जातिक हित करबामे अपन जाति-भाइक हाथे !
ईसामसीह कें तँ मरबौलकनि शासक, सुकरातके विष देल गेलनि शासक द्वारा, परन्तु गांधीजी, जे अजातशत्रु छलाह, एहन लोकप्रिय नेता एहि तरहे मारल जाथि — एहन घटना इतिहास सभमे नहि देखल गेल।
बम्बईक प्रधानमंत्री श्री खेर एकबेर गांधीजीक अस्वास्थ्य पर आशंका कयलथिन जे कतहु ई घातक नहि होइनि। ताहिपर सर राधाकृष्णन बाजि उठलाह जे — ‘बापू रोगसँ नहि, की तँ उपवास सँ मरताह वा गोलीसँ !’ “इनसाइड एशिया”क लेखक गुण्टर एक ठाम लिखने छथि जे ‘भारतमे यदि सशस्त्र क्रांति हो ओ कम्यूनिस्ट राज्य स्थापित हो तँ सर्वप्रथम गांधीजी शूट कयल जेताह !’ गांधीजीक मृत्यु पर सुदूर अमेरिकाक एक आठ वर्षक नेना चिचिया उठल जे “जँ पेस्तौल-गोलीक आविष्कार नहि भेल रहैत तँ नीक होइत !”