सौमित्र रॉय
देशक लोकतंत्र क सबसे करिया अध्याय यानी इमरजेंसी कए आय 44 साल भए गेल । 25 जून 1975 क आधा राति कए देश भरि मे अभिव्यक्ति क आज़ादी छीन लेल गेल छल । हमरा पता नहि, केतबा क इ गप याद होएत, मुदा हमरा अपन पिताजी क उदास चेहरा आइयो याद अछि, जखन अगिला 5 दिन ओ अखबार क दफ्तर नहि गेल छथि ।
इलाहाबाद हाईकोर्ट चुनाव मे सरकारी संसाधन क इस्तेमाल आओर सरकारी कर्मचारी क मदद लेबय जेहन 14टा आरोप मे से 2टा पर इंदिरा गांधी कए अयोग्य ठहरा देने छल । रायबरेली से हुनकर निर्वाचन अवैध ठहराओल गेल ।
बीजेपी क अखैन 303टा सांसद अछि और NDA क 353टा, मुदा इंदिरा 352टा सांसद क बहुमत से चुनिकए आएल छलीह । तखनो इलाहाबाद हाईकोर्ट चुनाव आयोग क पाले मे गेंद डलबाक बजाय अपन फैसला सुना देलक । मोदी पर सेहो बनारस क रैली मे जरूरत से बेसी खर्च करबाक आरोप लागल छल । मुदा भेल की ? कोर्ट कोनो कार्रवाई केलक ? मोन राखब ।
अभिव्यक्ति क आज़ादी पर खतरा आइयो धरि ओतबे अछि, बल्कि ओहि से आर बेसी । खाली अभिव्यक्तिये टा नहि, खानपान, पहनावा आओर विचारधारा क लकए सेहो बंदिश बढ़ि रहल अछि । अभिव्यक्ति क आज़ादी कए लोकतांत्रिक दर्जा देबाक देबय लेल मारिते रास संस्था सत्ता क संग अछि । त सत्ता कए ऐना देखाबय वला आवाज़ कए दबेबा क लेल आब खुलिकए राजनीतिक विरोध नहि होएत, किएक आब लोकतंत्र मे विपक्ष बचले नहि अछि ।
इमरजेंसी कए इंदिरा अनुशासन पर्व कहने छलीह । आब सरकारक मनमाफिक एहि कथित अनुशासन कए देशक सुरक्षा से जोड़िकए देखल जा रहल अछि ।
सरकारक सभटा अंधेरगर्दी कए कतहुँ देश, सम्प्रदाय, सुरक्षा आओर कतहुँ धर्मक नाम पर न्यायोचित ठहरा देल जा रहल अछि ।
देशक 130+ करोड़ अवाम आब एकरा बर्दाश्त करब सीख लेने अछि । किछु छुटपुट आवाज़ सोशल मीडिया पर सेहो उठैत अछि आओर हेराय जाएत अछि ।
इंदिरा गांधी से लकए 2019 तक किछु नहि बदलल । जों बदलल अछि त उ मूल्य अछि, जाहि पर देशक लोकतंत्र कए ठाढ़ हेबाक चाही छल । एहि बदलाव कए समाज सेहो स्वीकार कए लेने अछि । नहि त दागी आओर आपराधिक पृष्ठभूमि क नेता जीतिकए नहि आबतिए । फेर कोन मुँह से हम रेप आओर भ्रष्टाचार पर रोक लगेबाक बात करैत छी ?
आब सत्ता, यानी ताक़त जे कहत वैह दुहराबए पड़त, नहि त उधर या इधर क गप होएत । राम आओर वंदे मातरम त एकटा बहाना अछि । सरकार कए आंगुर देखाएब यानी सत्ता कए ललकारब ।
ई सबसे सुविधाजनक स्थिति अछि । अहाँ सत्ताक संग भए जाएब त फेर अहांक सभटा फायदा भेटय लागत ।
भक्तों कए यैह नीक लगैत अछि । खुद कए बहुसंख्यक मानिकए ताक़तवर बननाय सेहो सत्ते त अछि ।
इमरजेंसी से पहिने इंदिरा कए दुर्गा कहल गयल छल । 71क जंग जीतबा क बाद । मोदी त खाली एयर स्ट्राइके केने छलथि । मुदा तखन ज़मीनी मुद्द छल आओर एहि पर जेपी क संग संघ सेहो ठाढ़ छल ।
आय ज़मीनी मुद्दा गायब अछि । आओर संघ केकर साथ ठाढ़ अछि ? सोचिकए देखब ।
फेर विकल्प की अछि ? आब त समूचा विपक्ष लकवाग्रस्त भकए अन्हार मे अछि । केकरो पास कोनो विजन नहि । लिहाज़ा जमीन पर कोनो आंदोलन सेहो नहि देखाबैत अछि । किछु संगठन क आवाज़ नक्कारखाने मे तूती जेहन गुँजैत अछि ।
ई 1975 क आपातकाल से सेहो पैघ स्थिति अछि, जखन कतहूँ त विरोध छल । चाहे ओ जेपी ही किएक नहि होए । अवाम कए ई त पता छल जे कांग्रेस कए ओकर गलती क सज़ा देनिहार नेता अछि, फेर चाहे ओ जेले मे किएक नहि होए ।
आब सबकए पेट भरल अछि । सड़क पर उतरबा लेल कियो तैयार नहि अछि । केकरो फिक्र नहि । उधर सत्ता बेफिक्र अछि । ओकरा कोनो डर नहि, किएक तमाम संस्था ओकर संग अछि । मुदा जों सत्ता कए आँगा कोनो खतरा आनि पड़ल त विरोध क बगैर तखन क इमरजेंसी क साया आओर गहिर होएत ।
इ लेखक अपन निजी राय अछि ।