कुमुद सिंह
पटना । भोजपुरीक कला साधक भिखारी ठाकुरक पुण्यतिथि पर आयोजित बिहारनामा मे भारतीय संगीत मे बिहारक योगदान पर व्याीख्यालन दैत डॉ. प्रवीण झा कहला अछि जे बिहारक संगीत परंपराक संगहि भारतक संगीत समृद्ध भेल। बिहारक चर्च केने बिना भारतीय संगीतक कथा आरंभ नहि भ सकैत अछि। संगीतक इतिहास मे बिहारक योगदान कए दर्ज नहि होएब केवल दुर्भाग्यरपूर्ण नहि अछि बल्कि भारतीय संगीत इतिहास कए अपूर्ण करैत अछि।
लोक राग, आखर आ बिहार संग्रहालयक संयुक्तण प्रयास स बिहार संग्रहालय परिसर मे बुधदिन आयोजित ‘बिहारनामा’ मे व्याख्यान, बतकही आ सुरक साज सचल। तीन सत्र मे संपन्नु भेल एहि कार्यक्रम मे मूल रूप स बिहारक रहनिहार आ नार्वे निवासी लेखक डॉ प्रवीण झा कहला जे गायन, वादन आ नृत्य तीनों शैली क गप करि त बिहार सबदिन स अग्रणी रहल। ध्रुपद, धमार, कथक, ठुमरीक बिहार केंद्र रहल। बिहारक दरभंगा, बेतिया आ डूमरांव एहन घराना रहल, जिनकर संबंध भारतीय संगीत स बहुत गहीर अछि। गया, पटना आ मुजफफरपुर गायन आ वादनक केंद्र रहल। उत्तर बिहार मे शास्त्रीय संगीत क इतिहास नुकायल अछि। एहि ठाम लोक नृत्य आ संगीत टा कए नहि बल्कि एहि ठामक अभिजात्य संगीत क परंपरा एक सेहो नहि बिसरल जा सकैत अछि। बनैली आ पंचगछिया क इतिहास कहैत अछि जे आन ठाम जेका बिहार मे गायकी कए नहि देखल गेल। एहि ठामक राजा आ जमींदार सेहो नीक गबैया छलाह। संगीत साधकक पीठ रहल अछि। एतबे नहि पखावज, सरोद क गप करि त बिहार एकर मूल मे अछि।
घराना क गप करैत डा. झा कहला जे ध्रुपद सबस पुरान गायन शैली अछि आ सबस पुरान घराना बिहारक बेतिया मे अछि। सबस खास बात इ अछि जे बेतिया घराना आइ सेहो गाबि रहल अछि। ध्रुपदक दोसर पुरान घराना दरभंगा घराना अछि। दरंभगा मे मल्लिक ध्रुपदियाक परंपरा 200 साल क अछि। राधाकृष्ण आ कर्ताराम नाम क दू भाई मिथिला नरेश माधव सिंह क शासन काल मे राजस्थान स दरंभगा आबि मिश्र टोला मे बसाउल गेलाह। डॉ झा कहला जे इ आश्च र्यक गप अछि जे पांचटा घराना मे से दूटा पुरान आ जीवंत घराना बिहार मे अछि जखनकि ध्रुपद संस्थान ग्वाघलियर मे अछि जाहि ठाम ख्यागल गाउल जाइत रहल अछि।
डॉ. झा कहला जे केवल ध्रुपद नहि बहुत हद तक ख़याल आ ठुमरीक उत्पत्ति सेहो बिहार मे या फेर बिहार स भेल। कथक नृत्यक जन्म बिहार मे भेल। डॉ झा कहला जे कथक ‘कथा’ शब्द स बनल आ इ गाम गाम मे लोकप्रिय छल। डॉ झा कहला जे एकर लोकप्रियताक अंदाजा एहि स लगैत अछि जे बिहार क कईटा गाम मे आज जखन खुदाई होइत अछि त माटी बा अन्य धातुक क पैर घुँघरू भेटैत अछि। डॉ. झा इ स्पष्ट केलथि जे लोक संगीत पहिने आयल आ शास्त्रीय संगीत बाद मे। डॉ झा कहला जे कचरी या ठुमरी कोठा पर नहि जन्मल लेलक इ सबटा आंगन आ खेत स कोठा पर गेल। डॉ झा कहला जे आन ठाम जेका बिहारक गबैया भेद नहि केलथि। सब तरहक गायन केलथि। दरभंगा घरानाक पं रामचतुर मल्लिक चारू प्रकारक गायन रूप से गबैत छलाह। एहन आन ठाम नहि भेटत। आन ठाम ख्यादल क गबैया लोकगीत या ठुमरी नहि गौउत। अपन व्याभख्या्न में दावा कए प्रमाणित करबा लेल डॉ झा करीब 100टा गबैयाक नामक आ वंशक उल्लेाख केलथि आ करीब 12टा राग क चर्च केलथि।
उल्लेखनीय अछि जे भिखारी ठाकुर (१८ दिसम्बर १८८७ – १० जुलाई सन १९७१) भोजपुरी भाषा क उत्कृष्ट लोक कलाकार, रंगकर्मी लोक जागरण क सन्देश वाहक, लोक गीत आ भजन कीर्तन कला क जादूगर मानल जाइत छथि। ओ बहु आयामी प्रतिभा क व्यक्ति छलाह आ अपन भोजपुरी गीत आ नाटक क रचना लेल प्रसिद्ध छथि।
कार्यक्रमक ‘बतकही’ सत्र मे उद्घोषक विशिष्ठ अतिथि स विमर्श केलथि। शीर्षक छल ‘भिखारी ठाकुर क रचना मे स्त्रीजक पक्ष आ स्वर’। अतिथि मे ऋषिकेश सुलभ आ तैय्यब हुसैन छलाह। ऋषिकेश एक विख्यात रंगकर्मी, कहानीकार छथि आ ओ भिखारी ठाकुर क जीवन पर आधारित एकटा नाटक सेहो लिखने छथि। जेकर शीर्षक ‘बटोही’ अछि। हुसैन साहब अपन शोध लेल प्रसिद्ध छथि। हुसैन भिखारी ठाकुर क व्यक्तित्व –कृतिक विविध पक्ष पर शोध केनिहार असगर लोक छथि। जखन उद्घोषक हुसैन साहब स इ सवाल केलथि जे शोध स पहिने ओ भिखारी ठाकुर क विषय मे की धरना रखैत छलाह त जवाब बेहद सरल रहल। “लोग आइ सेहो हुनका अलग अलग रूप मे देखैत अछि, कियो हुनकर तुलना महान विद्यापति स करैत अछि त कियो हुनका भोजपुरी नचऽनिया कहि हास्य, उडबैत अछि। भोजपुरी मे हुनकर योगदान कए विश्व बिसरि नहि सकैत अछि। इस क्रम मे ठाकुर क दूटा महत्वपूर्ण रचना, बिदेसिया आ गबर घिचोर क स्त्री पक्ष पर चर्च भेल। विमर्शक अंत मे नवीन भोजपुरिया क एकटा सवालक उत्त्र मे हुसैन कहला जे महेंद्र मिसर आ भिखारी ठाकुरक बीच कोनो संपर्क या संबंध नहि रहल। अगर किये महेंद्र मिसर कए भिखारी क गुरु क रूप मे स्थांपित क रहल छथि त ओ पूर्णत: गलत अछि।
कार्यक्रम क अंत लोक गीत गायक चंदन तिवारी क गायन क संग भेल। चंदन शुरुआत भिखारी ठाकुर क रचना “चलनी के चालल दुलहा, सूप के फटकारल हे“, “छौ गज के साड़ी पेन्हलू” स केलीह, जे सुन कए सभागारक श्रोता मंत्रमुग्ध भ गेलथि। एकर पश्च्यात चंदन बारहमासा सुनौलथि। चूंकि बारहमासा क शुरुआत आषाढ़ स होइत छै ताहि लेल इ मौसम क अनुकूल रहल। एकर बाद …ओढ़नी के चालल दूल्हा, सूप के झटकारल हो….गीत गाउल। गोपालगंज क रसूल मियां क गीत आ ओकर बाद कहिया ले करबअ गुलामी बालमा..। चरखा पर गाउल गीत सेहो सुनेलीह।.. टूटै न तार चरखा चालू रहे.. हमरी चरखा बा देश के आधार..। पत्रकार निराला मंच संचालन क दरम्यान गीत क उत्पत्ति क कहानी कहैत रहलाह। चंदन सुंदरक क सेहो सुनेलीह जेकर संगीत रचना बिस्मिल्ला ह खां केने छलाह। मिर्जापुर कइला गुलजार हो…. कचौड़ी गली सुन कइली बलमू..। महिन्दर मिसिर क गीत पटना से वैद्या बुलाई द नजरा गइली गुईयां….। कजरी.. पिया मेहदी ले आ द मोती झील से…. जाके साइकिल से ना…. अंत मे कचहरी गीत आ चटनी गीत स एहि एतिहासिक आयोजन कए विराम भेटल।