पन्द्रह अगस्त सैंतालिस कें देश भेल छल आजाद
मध्य राति मे फहरायल तिरंगा, प्रसारित भेल भाषण
मुदा, ओइ दिन दूटा काज एम्हर मिथिला दिस सेहो भेल रहै
मधुबन्नी जेल मे मनौलनि सचिव भोगेन्द्र झाक दलबल
काला दिवस कि ई सत्तान्तरण थिक आजादी नहि,
मुदा अध्यक्ष यात्री जी ताहि सं नै सहमत
भविष्यक इजोत कें सहियारैत
तजबीज करैत राजा आ रैयतक आंखिक चमक
लिखलनि एकटा कविता मैथिली मे
कहलनि, आजादीक दिशा मे उठाओल हरेक डेग
आजादिये थिक अंतत: एक टूक आजादी
यात्री जी ताहू दिन पैघ कवि
मुदा, आजादियोक घटनाक दिन
कोनो छोट दिन नहि, ओहो पैघे
भाग्यशालिये कोनो शताब्दी देखि पबैत अछि
आजादी कें उतरैत अपन धरती पर
देखलनि यात्री जी लिखलनि कविता, धन्न भाग
हिन्दीबला सब मुदा,जिनगी भरि करैत रहलनि गंजन
देखला ओ महान घटना मुदा लिखला मैथिली मे
गद्दारी छलनि ओ हुनकर हिन्दी संग–हिन्दीबला कहनि
किए यात्री जी ओइ दिन नै लिखलनि हिन्दी
आ लिखलनि मैथिली?
किए वन्दना केलनि ओहू दिन मां मिथिले के?
ओ तं भारत माताक दिन रहै
मुदा यात्री जीक कहनामा–
देस ओ थिक जतय हम बसै छी
ओ थिक देसवासी जकरा संग रहैत लोक
देखैत अछि रंग बिरंगक स्वप्न
देश थिक ओ अन्न, फल, दूध ओ माटिक ऊर्जा
जे लोक मे भरैत अछि सुखक चेतना
चेतना स्वतंत्रताक, ओ समवाय थिक देश।
भारत माता जं प्रकट होइतथि देह ल’ क’
तं मां मिथिले कहबितथि
से जं नहि तं अमूर्त रहितथि
जेना बुर्राक देशभक्त सब लेल इंडिया
–यात्री जी जनै छला मर्म
ओहू साल सन सैंतालिस मे लड़ि रहल छला बकाश्तक युद्ध
ऐन जमींदार दरभंगाक विरुद्ध,
ओहू साल खेने छला पुष्ट मारि महराजी लठैत सं
ओहू साल लिखने छला कविता जे बांसक लाठी सं कोना मारि भगाओल जाइछ सरकारी गुंडा कें
आ कोना अपन जनताक संग-संग लड़ैत मिथिलाक कवि बनैत अछि जनकवि
ओहू साल ओ विनती केने छला
चंडी रूपधारिणी मां मिथिला सं जे
शोणित बोकरय जं ज्वैल जोंक
तं सफल तोर बरछीक नोक
आबि गेल छलै आजादी
साफ बाजि गेल छला नेहरू जे जमींदार लोकनि जेता
जाथु, मरथु मुदा शोणित सबटा बोकरि क’ मरथु
तखन भेल साफल्य, तखन सधल पुरुषार्थ
प्रतिहिंसे छलनि यात्री कविक स्थायिभाव
रैयतक पीयल शोणित रैयतेक माटि पर बोकरथु तखन मरथु
मुआबजाक ओतय दूर दूर धरि सवाल कहां छल?
मरब जखन कहै छी तं से बुझू कविता मे कहै छी
उपमा आ प्रतीक विना एहू जुग मे
कविताक काज चलनिहार नहि
जेना गांधीक कृत्य नीक दिनक बाढ़ियो मे गलनिहार नहि
वास्तव मे तं ओ लिखलनि जे अजुका महाराज सेहो काल्हि केवल कामेश्वर सिंह कहौता आ
जेना दालिभात सब क्यो खाएत
ओहो सैह दालिभात खेता।
मुदा, प्रश्न छल जे सब क्यो की ठीके खा सकत
दालिभात एक्के रंग?
सब क्यो जेना जेठरैयत सं धरकार धरि,
गुलाम सं पैकार धरि?
महराज कें संदेह, रमानाथ बाबू कें तं पूरे संदेह
मने बुझू मिथिला-मैथिल कें संदेह, मैथिली साहित्य कें संदेह
मुदा, यात्री जी कें रंचमात्र संदेह नहि
दालिये भात नहि ने, ओ तं लिखला
पढ़ता लिखता करताह पास
जूगल कामति छीतन खबास…
एक एक जातिक गनौलनि नाम
भल हिन्दू हो भल मुसलमान, खवास धरि, अछोप धरि
आ भोगारि क’ लिखलनि कविता मे
जे सरिपहुं सब क्यो मैथिले थिका।
मैथिले थिका? अछोप, कुजड़ा, दुसधा मैथिले थिका?
आजादीक आठ साल बाद धरि
मैथिल महासभा मे चलैत रहल छल घमर्थन
खसैत रहल छल प्रस्ताव जे सब मैथिले थिका
नासकार जाइत रहला जाबन्तो सभ्य लोकनि
मिथिलाक गौरव धरमनियंता
मिथिलाक सौरभ कोहा मे बंद
कोहा राखल महामहोपाध्यायक थुकदानी लग
मरि भने गेल महासभा मुदा जिबैत जी गछलक नहि,
मुदा यात्री जी लिखलनि
सरिपहुं सब क्यो मैथिले थिका….
काल कें शास्त्र मे देखने अख्यास हेतै भविष्यक
आ कि जनता मे गेने
लड़ने जनताक युद्ध अपन चश्मदीद गवाही मे?
कोना हेतै काल के अख्यास?
काल कें नपबाक कोन फीता ठीक?
अढ़ैया तराजू सं नपाएत कहियो सकलजन जनार्दनक भविष्य? आ कि भविष्य भलमानुस-दिव्यमानुसेक?
आजादी आएत नहि, मैथिल हएत नहि,
दालिभात खाएत नहि
तखन कोन भविष्य? तखन शास्त्रेक कोन भविष्य?
आ कि अढ़ैया-तराजुए के?
मुदा, सही साबित भेला यात्रिए जी
यात्री जी सही साबित भेला तं बुझू जनता सही साबित भेल
–अन्हार के गप नै करू
अन्हार कतबो अछि तं ओकर अंत अछि
जखन कि जनता के कोनो अंत नहि
अखय अमर जनता अबैत रहत, जाइत रहत
घुसकैत रहत डेगाडेगी इजोत दिस
आ एक दिन इजोत कें उघरय पड़तै
आ सैह ने कोना मैथिल? अस्सल तं मैथिल वैह
वैह, जनता…
आजादी कें एना सत्तर साल भेलै
आब तं यात्रियो जीक मुइना बीस बरस
मुदा
आब तं सबहक थारी मे दालिभात
आब तं के मैथिल आ के नै मैथिल?
आब तं पंडीजीक थुकदानिये पार
आब तं म. म.क धिया-पुता यू. एस. मे इन्टरकान्टिनेन्टल
आब तं सभ्य लोकनिक पोता-पोती
देशभक्तिक फैक्ट्री मे खटैत,
आब तं जूगलक नबका पीढ़ी
कमाइत दिल्ली-अहमदाबाद बजैत काहेकुहे
देखैत सतृष्ण आंखियें देशभक्तिक फैक्ट्री,
आब तं के मैथिल आ के नै मैथिल?