आब कि जखन फेसबुक पर मृत्युभोज लेल विधवा विलाप भए रहल अछि । मृत्युभोज कए अनर्गल आ अहितकारी बताओल जा रहल अछि । आ दोसर दिस किछु गोटे मृत्युभोज कए सही बतेबाक लेल कैक तरह क तर्क कुर्तक कए रहल अछि ओहि समय फेसबुकर पर धर्मशास्त्र क ज्ञाता, मैथिली आ लिपि क अनन्य विद्वान आ महवीर मंदिर पटना क रिसर्च पंडित भवनाथ झाजी विष्णुपुराण क इ दसटा श्लोकों दिस लोगक ध्यान आकृष्ट केने अछि । विष्णुपुराण क ई दसटा श्लोक आम जन कए श्राद्ध, मृत्युभोज आ ओकर पॉछां क जानकारी कए बुझबा मे मदद करत – समदिया
विष्णुपुराण (3.14.21-30), वराहपुराण (13.53-58) आ अन्य धर्मशास्त्रों मे श्राद्ध पर होए बला खर्च क विषय मे बताओल गेल अछि । इ दसो श्लोक प्रतिष्ठित विष्णुपुराण से लेल गेल अछि । ओ कहैत अछि जे ध्यान राखब जे ई निर्देश हमर पितर क अछि जिनकर सन्तुष्टि क लेल श्राद्ध कैल जाएत अछि ।
पितृगीतांस्तथैवात्र श्लोकास्तांश्च शृणुष्व मे।
श्रुत्वा तथैव भवता भाव्यं तत्रादृतात्मना।।21।।
पितरों दिस स कहल गेल पितृगीता क श्लोकों कए हमरा स सुनू आ सुनिकए आदरपूर्वक एहि प्रकार क आचरण करू ।।21।।
अपि धन्यः कुले जायेदस्माकं मतिमान्नरः।
अकुर्वत् वित्तशाठ्यो यः पिण्डान्नो निर्वपिष्यति।।22।।
कि हमरालोग क कुल मे एहन विचारबला धनमान लोग उत्पन्न अछि जे धनक घमण्ड नहि करैत होए सैह हमरा पिण्ड देत ? 22।।
रत्नं वस्त्रं महायानं सर्वभोगादिकं वसु।
विभवे सति विप्रेभ्यो योस्मानुद्दिश्य दास्यति।।23।।
सामर्थ्य भेला पर हमरा लक्ष्य कए ब्राह्मणों कए रत्न, वस्त्र, विशाल वाहन, सभ प्रकार क भोग्य सामग्री क दान करत ?।।23।।
अन्नेन वा यथाशक्त्या कालेस्मिन् भक्तिनम्रधीः।
भोजयिष्यति विप्राग्र्यांस्तन्मात्रविभवो नरः।।24।।
अथवा एहि समय, श्राद्ध काल, भक्ति से नम्र बुद्धि बला अपन सामर्थ्य क अनुसार ओतबे विभव बला व्यक्ति अन्न से ब्राह्मणश्रेष्ठ कए भोजन कराओत ।24।
असमर्थोन्नदानस्य धन्यमात्रां स्वशक्तितः।
प्रदास्यति द्रिजाग्रेभ्यः स्वल्पाल्पां वापि दक्षिणाम्।25।।
अन्नदान करबा मे सेहो जों ओ समर्थ नहि अछि त अपनी शक्ति क अनुसार ब्राह्मणश्रेष्ठ कए खाली धन दान करत, संगे, कनिकटा दक्षिणा सेहो देत ।25।
तत्राप्यसामथ्र्ययुतः कराग्राग्रस्थितांस्तिलान्।
प्रणम्य द्विजमुख्याय कस्मैचिद् भूप! दास्यति।।26।।
हे राजन्, जों एतबा मे सेहो सामर्थ्य नहि होए त आंगुर क अगिला भाग से तिल (एक चुटकी तिल) उठाकए कोनो श्रेष्ठ ब्राह्मण कए देत ।26।
तिलैः सप्ताष्टभिर्वापि समवेतं जलाञ्जलिम्।
भक्तिनम्रः समुद्दिश्य भुव्यस्माकं प्रदास्यति।।27।।
अथवा सात वा आठ तिल स युक्त जल अंजलि में लकए भक्ति से नम्र भकए हमरा लक्ष्य कए धरती पर देत ।27।
यतः कुतश्चित् सम्प्राप्य गोभ्यो वापि गवादिकम्।
अभावे प्रीणयन्नस्माञ्छ्रद्धायुक्तः प्रदास्यति ।।28।।
अथवा एकरो अभाव मे जतय कतहू से गायक एक दिनक भोजन संग्रह करि हमरा प्रसन्न करैत श्रद्धा क संग गाय कए अर्पित करत ।28।
सर्वाभावे वनं गत्वा कक्षमूलप्रदर्शकः।
सूर्यादिलोकपालानामिदमुच्चैर्वदिष्यति ।।29।।
न मेस्ति वित्तं न धनं न चान्यच्छ्राद्धोपयोग्यं स्वपितृन्नतोस्मि।
तृप्यन्तु भक्त्या पितरो मयैतौ कृतौ भुजौ वर्त्मनि मारुतस्य।।30।।
किछुओ टा नहि रहला पर वन मे जाकए अपन काँख देखाबैत अर्थात् दुनू हाथ ऊपर उठाकए सूर्य आदि लोकपाल क प्रति जोर स ई कहेगा-
हमरा लग निह त सम्पत्ति अछि, नहिए अन्न, नहिए श्राद्ध लेल उपयोगी आन कोनो वस्तू । हम अपन पितर क प्रति नतमस्तक छी हमर एहि भक्ति स हमर पितर तृप्त होए, हम वायु क रास्ता अपन दुनू हाथ ऊपर उठा नेने छी ।।29-30।
इत्येतत् पितृभिर्गीतं भावाभावप्रयोजनम्।
यः करोति कृतं तेन श्राद्धं भवति पार्थिव।।31।।
हे राजन्, एहि प्रकारक, सामर्थ्य आ अभाव दुनू गप कहनिहार पितर क एहि वाणी क अनुसार जे कर्म करैत अछि हुनके द्वारा श्राद्ध सम्पन्न मानल जाएत अछि ।31।।
यैह अंश वाराहपुराण मे सेहो अछि 13.51 से 13.61 तक अविकल उद्धृत अछि ।