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त्रेता युग मे राम अपन भाई लक्ष्मण और गुरु विश्वामित्र संगे मिथिला के यात्रा कयने छलाह| वाल्मीकि रामायण सँ ई ज्ञात होईत अछि जे अयोध्या सँ ओ पैदल मिथिला आयल छलाह |सीता सँ विवाह के बाद हुनका तथा बरियाती संगे अयोध्या घूरती काल मे रथ सँ गेल छलह| अयोध्या सँ जनकपुर जाईत काल मे बाट मे 13 रात्रि विश्राम भेल छल| अयोध्या घूरती काल मात्र 3 रात्रि विश्राम छल| राम मिथिला कोन बाट स एलाह आ कोन बाट स घुरलाह एहि पर प्रस्तुत अछि पूर्व प्रशासनिक पदाधिकारी गजानन मिश्र क इ शोधपरक आलेख – समदिया
विश्वामित्र के सिद्धाश्रम जे बक्सर लग छल, सँ विदा भ’ कोइलवर मे सोन नदी पार क’ निकटस्थ दक्षिण परेव मे 12 वी रात्रि विश्राम कयलनि| एतय सँ दिघवारा मे गंगा पार क वैशाली अयलाह तथा ओतय सँ महुआ-ढोली होईत दर्भांग( यानि वर्तमान दरभंगा) मे आबि रात्रि विश्राम कयल|
एकटा संस्कृत अभिलेख जे यामलसारोद्धार के अंश अछि और जे 15-16 वी सदी के रचना प्रतीत होईत अछि, मे ई लिखल अछि जे वैशाली सँ चलि श्री राम दर्भांग मे पहुँचि कुश-घास पर रात्रि विश्राम कयल तथा अगिला भोर दर्भांग सँ विदा भ’ गौतम आश्रम मे अहिल्या के उद्धार करैत जनकपुर पहुँचलाह| कुश-घास पर रात्रि-विश्राम कयलाह तैं दर्भांग नाम पडल| दर्भांग के अर्थ होईत छैक कुश के भूमि| दर्भांग सँ दरभंगा नाम होयब स्वाभाविक अछि|
राम के मिथिला यात्रा पर शोध कयनिहार सुन्दर कृष्णास्वामी लिखैत छथि जे राम विवाहोपरांत सीता, पिता और बरियाती संग तेसर रात्रि विश्राम डेरबा ( उत्तर प्रदेश मे सरयू कात) मे कयलनि| मुदा पहिल दु रात्रि विश्राम कतय कयलनि- तकर कोनो उल्लेख सुन्दर कृष्णास्वामी नहि करैत छथि|
जनकपुर सँ डेरबा ( उत्तर प्रदेश) 180 मील दूर अछि| जनकपुर सँ डेरबा के मार्ग मे वर्तमान मे सीतामढ़ी, शिवहर, पुरबी चंपारण, छपरा और सारण जिला पडैत अछि| एहि मार्ग मे पश्चिमी चंपारण मे पिपरा-मधुबन लग सीताकुंड अछि जे किम्बदन्ति मे सीता सँ सम्बंधित अछि| ई अनुमान कयल जा सकैत अछि जे राम पहिल रात्रि विश्राम सीताकुंड पिपरा मे कयने होयताह| एकर बाद दोसर रात्रि विश्राम सिवान मे कतहु भेल होयत- से अनुमान होईत अछि|
पंडित भवनाथ झा कहैत छथि जे राम-सीता केसरिया के बाद प्राचीन कुशीनगर के मार्ग सँ अयोध्या गेल होयताह| केसरिया-कुशीनगर-अयोध्या मार्ग निस्संदेह प्राचीन अछि| मुदा एहि मार्ग मे बस्ती,गोरखपुर और देवरिया जिला के सरयू तटीय क्षेत्र नहि पडैत छैक| एहि तिनु जिला मे व्याप्त जनश्रुति के अनुसार राम पथ ओ अछि जे अयोध्या सँ सरयू के दक्षिण काते-काते छावनी( बस्ती जिला), दोहरी घाट मे सरयू के पार क’ उत्तर स्थित बरहल्गंज सँ गुथनी( सिवान जिला) तक अछि| गुथनी सँ सिवान होईत केसरिया सेहो एक प्राचीन मार्ग अछि| सारन्य( सिवान के प्राचीन नाम) मे सिवान यानि मध्यकालीन अलीगंज संभवतः प्राचीनतम स्थल अछि| तैं हमरा जन्तवे राम-सीता केसरिया के बाद सिवान मे दोसर रात्रि विश्राम कयलनि| डेरबा( गोरखपुर) जतय राम तेसर रात्रि विश्राम कयने छलाह,सँ सिवान 57-58 मीलअछि, सिवान सँ चकिया-पिपरा सीताकुंड 66 मील अछि| तैं हमरा जन्तबे पहिल रात्रि विश्राम सीता कुंड मे भेल होयत| सीतामढ़ी सँ चकिया 51 मील अछि|
ओना केसरिया वस्तुतः अतिमहत्वपूर्ण स्थान छल| गज़ेतिअर मे एकरा राजा बेन के गढ़ कहल गेल अछि| संभवतः कंनिंघम सेहो उल्लेख कयने छथि जे केसरिया बौद्ध काल सँ पहिने सँ महत्वपूर्ण छल| केसरिया के सटले पूरब मे सम्मोहती/ मख्वा नामक एक छोटछीन धार बहैत अछि| ई धार प्राचीन कालीन प्रखर बाया नदी के एकटा स्रोत भ’ सकैत अछि| यदि इएह नदी देविका नदी छल त’ देविका नदी के कात मे श्री राम द्वारा रात्रि विश्राम के उल्लेख अछि| एहि ठाम सँ किछुएपूरब पिपरा-मधुबन मे प्रसिद्ध सीता कुंड अछि|
हमरा जनैत जैन मुनि प्रभ सूरी जे सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के दरबार मे सम्मानित छलाह, 14 वी सदी मे मिथिला भ्रमण कयने छलाह| ओ मिथिला द’ लिखैत छथि जे एहि ठाम सीता के जन्म भेल छल, राम-सीता विवाह-स्थल साकल्य-कुंड के नाम सँ जानल जाईत अछि, एहि स्थल-पर विशाल वट-विटपी अछि, एहि ग्राम के जगती के नाम सँ जानल जाईत अछि, एहि ठाम पाताल-लिंग अछि, लगहि मे राजा जनक के भाई कनक के कनकपुर अछि| विशेष बात ई जे जैन मुनि कतहु जनकपुर के चर्चा नहि करैत छथि| वस्तुतः नेपाल के केओ प्राचीन वा मध्यकालीन इतिहास के इतिहासकार कतहु जनकपुर के चर्चा नहि करैत छथि| वर्तमान मे जे जनकपुर अछि, से तैं संदेह उत्पन्न करैत अछि| जनकपुर के पहिल बेर नेपाल के राजस्व अभिलेख मे उल्लेख 1667 ई के मकवानी राजा मानिक सेन के भूमि-वृत्त दान पत्र मे अछि| वर्तमान जनकपुर के पहचान और प्रचार बद्रीनाथ (भारत) के संत महंथ चतुर्भुज गिरि द्वारा 17 वी सदी के उत्तरार्ध मे कयल गेल छल| हुनका द्वारा पहचान के आधार मात्र हुनक विश्वास और हुनक कथित स्वप्न छल| तैं वर्तमान जनकपुर के असली जनकपुर मानबा मे संदेह होयब बाजिव बुझाइत अछि| मिहिला परगंना मिथिला के अपभ्रंश बुझि पडैत अछि|
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(लेखक पूर्व भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी छथि)