कोनो पत्रकार लेल नरसंहार क बाद ओहि इलाका क यात्रा खास होइत अछि। इ तखन आओर खास भ जाइत अछि जखन ओ इलाका ओकर अपन गाम होई। बिहार क कोरासी क आसपास क लोक क बदलल जिनगी पर युवा पत्रकार अमरेंद्र कुमार क समाद लेल लिखल गेल खास रिपोर्टाज
तारीख 27 फरवरी, समय साढ़े छह बजे, स्थान सबलबीघा (हमर गाम)।
हम आई दिल्ली स पटना होइत अपन घर पहुंचलहु अछि। माइ आधा घंटा स राति क भोजन खेबा लेल हाक लगा रहल अछि। दिल्ली मे राति करीब दू बजे खेबाकआदत कए त्याग कए आखिरकार हम तैयार भ जाइत छी। एहि बीच माइ क इशारा पर छोटकी बहिन मुख्य गेट मे ताला लगेबा लेल चलि गेल। माजरा हमर बुझबा मे आबि गेल। माइ हमरा घर स बाहर जेबा स रोकबा लेल इ सब करि रहल छल। आधा घंटा मे लउट एबाक वादा करबाक बाद आखिरकार माइ मानि गेल। अपन सामर्थ स बेसी अनहार उठाने सुनसान गली अपने गाम मे हमरा अनचिन्हार सन लागि रहल छल। कुत्ता क भूकबाक अलावा कोनो आवाज कोनो कात स नहि आबि रहल छल। हमर गला इ गप नहि उतरि रहल छल जे आखिर गाम पहिने स बेसी डराइल किया अछि। जखनकि हम इ जनैत छी जे हमर गाम ओहि कोरासी स महज एक कोस क दूरी पर अछि, जतय पांच दिन पहिने एमसीसी क सदस्य हमला करि पूरा गाम कए तबाह करि देने छलाह। दर्जन भरि लोक मारल गेल आ दर्जन भरि कए ओ अपना संग ल गेलथि। एहि घटना क बाद स कोरासी क संग-संग 11टा गाम क शांति भंग भ गेल अछि। सांझ होइते लोक अपन घर मे दुबकबा लेल मजबूर भ गेल अछि। होलिका दहन क एक दिन पूर्व गाम क इ सन्नाटा हमरा बिहार मे कानून आ व्यवस्था क हालात पर फेर स सोचबा लेल विवश करि देलक। पिछला साल तक होली क एक सप्ताह पहिने स ढोल-झाल लकए राति भरि गामक लोक काली मंदिर मे जागरण करैत छल। एकरा लेल कोई न कोई माला उठबैत छल ( एकर मतलब अछि चाय-बिस्कुट, तंबाकू-बीड़ी क व्यवस्था करब), मुदा एहि बेर त सांझे राति पर भारी देखा रहल अछि। देर राति तक खुलल रहैत छल रोहिणी वाली भौजी क घर क गेट, मुदा आइ बंद भ चुकल अछि। प्रदीप भइया क घर क दरवाजा सेहो बंद अछि। हम आवाज दैत छी, त भीतर स तिरो काका (त्रिपुरारी काका) क उत्तर भेटल – भोजन करि रहल छी, जा घर जाकए सुइत जा। आगू बिभाष क घर क दरवाजा खटखटेलहुं। बिभाष दरवाजा खोललक। बैसबाक संगहि काकी कहली- जा अपन घर जा। जमाना आब ओ नहि रहलह। हमरा याद आइज हम 11 बजे राति तक एहि ठाम बैसल रहैत छलहुं आ कियो हमरा स इ नहि कहैत छल जे राति बहुत भ गेल आब घर जाउ। हम पांच मिनट मे ओहि ठाम स निकलि गेलहुं। इ देखिकए राहत भेटल जे बंटी क दुकान खुलल छल। कहियो एहि ठाम हम सब बैठकी करैत रही । समाज कए बदलि देबाकसपना देखिनिहार क एहि ठाम भीड़ रहैत छल। मुदा आइ बंटी असगर अछि। हमरा देखलक , त बाजल- एहि होली मे बाहर स गाम अबनिहार लगैत अछि अहां असगर छी, ताहि लेल एतबा राति कए घूमि रहल छी। हमर नजरि घड़ी पर गेल, देखलहुं राति पौने आठ बाजल छल। इ ओ समय छी जखन हमसब बंटी क दुकान पर जमा होइत रही। एकटा खैनी क पाउच उठबैत हम बंटी स गाम मे आएल एहि बदलाव क संबंध मे जेना पूछलहुं, ओ एकटा लंबा सांस लैत कहलक-छह बजे क बाद आब कियो नहि दुकान पर अबैत अछि। डर बैस गेल छैक । ककरो स नहि डरनिहार आदमी सेहो आब कोठलीक कोन मे दुबकिकए सूतैत अछि। हम निराश भकए घर लौट अबैत छी। देखैत छी दरवाजा क बाहर हाथ मे टॉर्च लेने चिंतित मुद्रा मे बाबूजी टहलि रहल छथि। माइ बिछान पर बैसल छथि आ बहिन अंदर-बाहर करि रहल अछि। हमरा देखैत देरी तीनू कए सुकून भेटल। हम सीधा माइ क लग मे जा बैसलहुं आओर माहौल कए बेहतर बनेबा लेल गपशप शुरू केलहुं । हम माहौल कए बेहतर करबा क प्रयास मे दिल्ली क सच्च, झूठ कहानी सुनेबाक क्रम जारी रखने रही, जेकरा सुनिकए माइ आ बहिन त ठहाका लगा रहल छल, मुदा बाबूजी कए त जेना किछु सुनाई नहि द रहल छल। हुनका पर हमर गपक कोनो असर नहि भेल। फेर हम माइ कए बुझेबाक कोशिश मे लागि गेलहुं जे एमसीसी कए हमर गाम स कोन दुश्मनी छैक जे हम सब डरी। फेर भला ओ हमरा नुकसान किया करताह। माइ-बाबूजी खामोशी स हमरा दिस देखए लगलाह, मानू हमर विचार मे दिल्ली क प्रभाव तलाश रहल होइथि। बहिन कहलक जे पिताजी घटना क दिन स एखनधरि राति मे सूइत नहि सकलाह अछि। ओहि राति हम पिताजी क बगल मे सूति गेलहुं। हमरा नींद कखन आबि गेल पता नहि, मुदा अचानक स पिताजीक आवाज नींद तोडि़ देलक। देखैत छी पिताजी नींद मे भागो-भागो चिचिया रहल छथि। हम हुनका जगबैत छी। ओ कांपि रहल छलाह। शरीर पसीना स तर-बतर छल। आवाज सुनिकए माइ आ बहिन सेहो जागि गेल छल आ दौडि़कए हमर कोठली मे आबि गेल छल। हमर नजरि घड़ी पर पड़ैत अछि। 12 बाजल छल। इ ओ समय अछि जखन हम दिल्ली मे दफ्तर स घर लौटैत छी। पिछला एक सप्ताह स बिताउल अन्य राति क जेकां आइ सेहो पिताजी सूइत नहि सकलाह। मुदा भोर हेबा स पहिने हमर आंखि लागि गेल। नींद भोरे नौ बजे खुलल।
शहरीपन ओढऩे दहशत बदलि देलक देहातक होली
माइ आ बहिन पकवान बनेबा मे जुटल छलीह। आइ अगजा (होलिकादहन) छै। हम जागि दतवन लेलहुं आ चौक दिस निकल गेलहुं। अफवाह अलग-अलग। तरीका अलग-अलग। हर गली क कोने पर एकटा चौपाल लागल अछि। हम सुनैत जा रहल छी। राति मे माओवादी क 200 लोक गाम स भकए गुजरल। कोई कहैत- 50 लोक गाम कए घूिम-घूमिकए देखि रहल छल। कोई किछु त कोई किछु। जेतबा मुंह ओतबे गप। हम सुनैत रहलहुं। एहन मे किछु लोक सरकार कए कोइस रहल छल, तो किछु पुलिसिया तंत्र कए। कहैत छथि- पहिने स सूूचना भेटक बावजूद भागि गले छल पुलिसक जवान। सरकार तमाशा देखैत रहल। हमहंू बिना कोनो प्रतिकार कए सुनैत रहलहुं। सांझखन हमर पैघ भाई जे दरभंगा मे रहैत छथि ओ पहुंचलाह। सब होलिकादहन क बाट ताकि रहल छल। एहि बेर त 10 बजे राति तक क शुभ समय पंडित जी कहने छथि गए, मुदा सब कए जल्दी पड़ल छल। सात बजे चलि देलक टोली। बाट मे गाम स बाहर सड़क पर लोक क नजर जाइत अछि। सचेत भ उठैत अछि। हमर नजरि सेहो ठहरि जाइत अछि। तेज चलैत कईटा गाड़ी कतारबद्ध भकए गाम कए क्रास करि रहल छल । हम बुझि जाइत छी। इ गाड़ी त लछुआड़ जा रहल अछि। ओहि ठाम जैनधर्म क विशाल मंदिर अछि। राज्य मे पर्यटक क आवाजाही बढ़ी गेल अछि। आब खूब लोक एहि ठाम अबैत अछि। मुदा चौराहा पर अफवाह। पुलिस क गाड़ी छल। जरूर ओतहि (कोरासी) जा रहल छल। खैर जेना-तेना होलिकादहन करि साढ़े आठ बजे घर आबि जाइत छी। हां, एकटा गप खास रहल एहि बेर चौराहा पर बेसी लोक नहि जमा भेल, अधिकतर लोक अपन घरक छत पर स होलिका कए जरैत देखलक। राति मे इ सोचैत-सोचैत नींद भ गेल जे आखिर दहशतक मे डूबल समाज लेल होली केहन पर्व भ गेल।
आइ होली छी। बाहर जोर-जोर से ढोल बाजि रहल अछि। बच्चा एक-दोसरा कए धूल मे लपेट रहल अछि। हम सेहो शामिल भ जाइत छी। धूरखेल (जे राति मे होलिका दहनक राख स खेलाइल जाइत अछि) से शुरू भेल होली धीरे-धीरे थाल आ फेर रंग क आनंद तक पहुंच गेल। मुदा आ रौनक ओ उल्लास नहि भेटल। किछु लोक त रंग स दूर रहलथि किछु लोक अपन आंगन तक सिमटल रहलथि। बाहर गली मे सेहो धड़-पकड़ नहि, कोनो लड़ाई नहि । सब अनुशासित । जे किशोर बुरा न मानो होली है कहिकए ककरो रंग देबा स नहि चुकैत छल, ओ एहि बेर मुंह देखि कए रंग फेंकैत छल। आश्चर्यजनक। एतबा बदलि गेल होलीक अर्थ। पिछला साल मिंटू क घर होली क टोली जुटल छल। किछु लोक ढोल-झाल क संग बिरज मे आज होरी गाबि रहल छल। बाहर किशोर आ युवा क टोली हंगामा मचा रहल छल। खूब मस्ती। राकेश, विक्की, बिट्ट, प्रवीण, रोशन, राहुल, चंदन, बंटी, सोनू राहगीर कए रंग लगा रहल छलथि। बिना जाति, धर्म आ गाम पूछने। ककरो नहि छोड़ल गेल छल। इदरीस भाई स लकए बगल क गाम क श्यामसुंदर तक कए रंग लगा देल गेल छल। लड़ाई-झगड़ा क कोनो परवाह नहि। मुदा एहि बेर बुजुर्ग बाहर ठार छथि जे बच्चा ककरो स मारिपीट न करि लए। एहि बेर सबकिछु बदल गेल अछि। मने मन सोचै लगलहुं इ अनुशासन, इ चिंता, इ बदलाव, हमर पुरान परंपरा कए खत्म त नहि करि रहल अछि। शहरीपन ओढऩे दहशत हमरा अपना स अलग त नहि करि रहल अछि। की सचमुच लोक बदलि रहल अछि, गाम बदलि रहल अछि आओर बदलि गेल अछि होली क ओ हुड़दंग। या फेर इ ओ बदलाव छी, जे दिल्ली मे बैसकए हम नहि देखि पाबि रहल छी। अखबार आ टीवी पर बिहार क बदलैत छवि क बारे मे जे सुनलहुं ओ अगर एहन देखा रहल अछि, त आखिर इ बदलाव केकरा नीक लागत…..
सरकार कए नीक कहूं या अधलाह
होली क अगिला दिन हमरा सिकंदरा जेबाक छल। सिकंदरा-जमुई क बीच चलैवाला बस आब हमर गाम द कए जाइत अछि। इ हमरा लेल अजीब सन खुशी क गप छल। हम सड़क पर बस क इंतजार करि रहल छलहुं, बस तय समय पर आयल। बस क सीट पर बैसैत अनायास मुंह स नीतीश सरकार क नाम वाह निकलि आयल। जखन स गाम आयल छी पहिल बेर विकास कए इतबा लग स देखि रहल छी। दिल्ली क सड़क आ हमर गामक सड़क मे आब कोनो अंतर नहि अछि। एक दम चिक्कन। हां, अंतर अछि त मात्र ट्रैफिक क। गाम क सड़क पर गाड़ी बिना रुकावट कए 100 किमी प्रति घंटा क हिसाब स चलि रहल छल, जाम क नाम नहि। सड़क नीक भेला पर घंट क सफर मिनट मे बदलि गेल अछि। सड़क बनलाह स एहि इलाका मे गाड़ीक संख्या सेहो बढ़ल अछि। सड़क क दूनू दिस बहुत नव दुकान सेहो खुलि गेल अछि। टायर पंक्चर ठीक करबा स ल कए पेप्सी-कोला तक क दुकान। पान क दुकान। किराना क दुकान। सिंघाड़ा (समोसा) क दुकान। सबटा पिछला दू-चारि साल मे खुलल अछि। नीक लागल, इ सोचि आ देखिकए जे गाम मे रोजगार करबाक माहौल आ अवसर भेट गेल अछि। बस मे बैसल लोक न पहिने जेका राजनीति आ क्रिकेट पर गन करैत भेटल आ न जातिवाद आ माओवाद क कोनो बोझ उठाने कियो देखाइल। बस सब जल्द स जल्द अपन मंजिल पर पहुंचबा लेल बेताब छल। बस क हॉर्न बजैत अछि आ स्टैंड मे जा लगैत अछि । हम घड़ी देखैत छी, सात मिनट मे सिकंदरा पहुंचल छी। हमरा लेल इ एकटा सपना क सच हेबा जोकर अछि। मुदा आगूक जाहि चीज पर हमर नजरि पड़ल ओ त सपनो मे नहि सोचल छल। सिकंदरा चौक पर सड़क क ढलाई भ चुकल अछि। हमरा स्मरण अछि पहिने एहि ठाम जांघ भरि गड्ढा होइत छल। हमरा लेल इ सेहो कम चौंका देनिहार तसवीर नहि छल जे आइ एहि बाजार मे सप्लाई क पाइन अबैत अछि, ठीक दिल्ली क जेकां। चापानल क जगह नल, वाह! बरबस मुंह स निकलि पड़ल। आगू बढि़ नल खोलि, पाइन स प्यास बुझैलहुं आ बैंक दिस विदा भेलहुं। बैंक मे उम्मीद स कई गुना बेसी भीड़ छल। मुदा लोक कतार मे छल, हम सेहो पहिल बेर एहि बैंक मे कतार मे लागि गेलहुं। हमर आगू ठार नौवीं कक्षा क छात्रा कहलक जे ओ सरकारी योजना स भेटि रहल साइकिल आ स्कूल ड्रेस क लेल बैंक मे खाता खुलेबा लेल आइल अछि। एकटा सवाल मन मे आयल। पूछबा पर जवाब सेहो भेटल। पिछड़ी जाति क कतार मे ठार एकटा अन्य छात्रा कहलथि,पहिने मुखिया-सरपंच क ड्योढ़ी पर नाक रगड़बाक बाद कोनो काज होइत छल। ड्रेस आ साइकिल क टका मे कटौती भ जाइत छल। समय स एक-दू मास बाद टका हाथ मे अबैत छल। मुदा आब एहन नहि भ सकत। माजरा बुझबा मे आबि गेल। एहि ठाम सेहो कमिशन। भ्रष्टïाचार। मुदा सरकार सचेत। ओ व्यवस्था बदलि देलक। सीधा छात्रा क खाता मे टका पहुंचत। होली क थकावट क वजह स हम कतार मे बेसी काल ठार नहि भ सकलहु आ बाहर आबि गेलहुं। पहिने जेकां कतार तोड़बा हिम्मत नहि भेल, एहि बदली व्यवस्था पर तामस सेहो नहि भेल। सच पूछू त व्यस्था नहि बदलल अछि, लोक बदलि रहल अछि। बैंक मे भीड़ बढि़ गेल अछि, मुदा काउंटर ओतबे अछि, जेतबा पहिने छल। कर्मचारी क किल्लत झेल रहल एहि बैंक क मजबूरी सेहो बुझबा मे आबि गेल। हम बिना टका निकालने बैंक स लौट एलहुं। काज नहि भेल, मुदा मन कए इ सुकून भेटल जे हमर गाम-शहर आब बदलि रहल अछि। छात्रा खुद कतार मे ठार भ कए खाता खुलवा रहल छथि। हम इ बदलाव आओर देखबा लेल आतुर रही, मुदा हमरा पटना जेबाक छल। सांझ चारि बजे। माइ हमर यात्रा कए ल कए एहि बेर किछु नहि बाजि रहल छल। आइ एक बेर फेर हम ओकर सामने दिल्ली चलबाकप्रस्ताव रखलहुं। ओ फेर वैह गप दोहरेलक। माइ कहलक- मरि जाएब दू कोठलीक मकान मे। कोई हमरा कहत- पाइन खर्च कम करू। कोनो आवाज नहि हुए। इ सब हमरा स नहि हाएत। गाम मे अपन मन क मालिक छी। कोई हुक्म चलेनिहार नहि अछि। मन लागल त घर मे नहि त गाम घूम अबैत छी। फेर ओ अजीब सन चुप भ गेल। हमर माथ पर हाथ रखैत धीरे स कहलक-बेटा देवघर मे जमीन देख ले। पसंद एला पर ल ले। दू कोठली बना दे। हमर माइ क उम्र 60 पार अछि। आइ सेहो ओकर आदत अनेरे ककरो घर जेबाक नहि अछि। मुदा आइ अपन आंगन से बाहर निकलबाक इच्छा ओकरा देवघर तक ल जाइत अछि। दू टा कोठली सही ओकरा मंजूर अछि। एक सप्ताह मे सबकिछु बदलि गेल। आइ हमरा बजबाक जरूरत नहि। हमरा पता अछि, दू कोठली मे माइ क दम घुट जाएत। सिकंदरा स पटना क यात्रा मे बस एतबा सोचैत रहलहुं। खिड़की स बाहर खेत आ मकान हमर नजरि क सामने स गुजरैत रहल। लोक क खौफ क संबंध मे हमर चिंता खत्म नहि भ रहल छल। होली क बदलल रंग, बाबूजी क राति जग्गा। माइ क गाम छोड़बाक इच्छा…। गाड़ी मे ब्रेक लागल, धक स ध्यान टूटल। खलासी क हाक भेटल- जमुई आ गया है। मोबाइल देखैत छी। एतबा जल्दी जमुई पहुंच गेलहुं। 35 मिनट लागल। आश्चर्य सेहो भेल। बस स उतरिकए ऑटो ल पहुंच गेलहुं जमुई स्टेशन। ट्रेन लेट छल। पता नहि किया दुविधा बढ़ल जा रहल अछि । पहिने सिकंदरा क बाद ऑटो रिजर्व करि गाम पहुंचैत छलहुं। समय क संग टका सेहो अलेल खर्च होइत छल। आइ गाम मे गाड़ी भेट जाइत अछि। बमुश्किल एक घंटे मे रेलवे स्टेशन पहुंच जाइत छी। हिचकौला खेबा स सेहो मुक्ति भेट गेल। टका सेहो कम खर्च होइत अछि। मुदा एक सप्ताह पहिने जे घटना घटल ओ नहि होइते त हम होली खेलक मचा ल दिल्ली लौटतहुं। विकास क गप चौराहा पर करितहुं। कोई विरोध नहि करि सकितए। सबहक सुर मिल कए कहितए – सरकार नीककाज केलक अछि। एतबा मे हमर ट्रेन आबि गेल। हम पटना क लेल विदा भ गेलहुं। मन मे तुलना करै लगैत छी। इ सरकार कए नीक कहूं या अधलाह। …..
दिल्ली एखनो दूर अछि
जेहन सुनल छल, पढ़ल छल, ओहने पटना देखबा मे भेटल। फ्लाईओवर स शहर सुंदर बनि गेल अछि। कईटा मॉल खुलि गेल अछि। पहिने चीं-पीं करैत रेंगैत गाड़ी आइ बिना हॉर्न बजेने सरपट दौडि़ रहल अछि। पटना हाईकोर्ट क सामने फुट ओवरब्रिज बनि गेल अछि। बेली रोड आब असगर नहि अछि। ओहन पटना क अधिकतर सड़क भ चुकल अछि। पहिने डर छल, अन्य सड़क क भांति कहीं बेली रोड सेहो न बनि जाए। आइ देखि कए नीक लागि रहल अछि जे अन्य सड़क बेली रोड क भांति चिकन भ गेल अछि। बिहार क राजनीति मे समानता क एहन प्रयोग दलित आ पिछड़ा क लेल सेहो हेबाक चाही। हुनका सेहो बेहतर आ ऊंच बना कए सभ्रांत आ विकसित समाज क बराबर अनबाकपहल हेबाक चाही। हमर रिक्शा बोरिंग केनाल रोड क दिस मुड़ैत अछि। एहि ठाम नाला स बदबू गायब अछि। आब नगर निगम पटना मे अछि, इ पता चलैत अछि। काज देखाइत अछि। केनाल पर खूबसूरत सन कार पार्किंग अछि। गाड़ी आब पार्किंग मे ठार होइत अछि। पहिने रोड पर रहैत छल। आब सबकिछु बदलि गेल अछि। नहि बदलल अछि त मात्र ओ मकान जतए हम पटना मे नौकरी क दौरान भाड़ा पर रहैत छलहुं। अपन पुरान विस्तर (जाहि पर आब हमर मित्र सुतैत छथि) पर एकटा नींद मारि हम दिल्ली क लेल संपूर्णक्रांति पकड़बा लेल स्टेशन निकलि गेलहुं। रिक्शा पर पटना कए निहारैत हमरा गाम क चौपाल पर भेल बहसक स्मरण आबि रहल छल। देखू केतबा नीक सड़क अछि। विभिन्न कंपनीक मोबाइल सेवा घर क कोनो कोने मे पहुंच गेल अछि। बिजली दिन मे सही मोबाइल चार्ज करबा लेल आ इन्वर्टर चार्ज करबा लेल पर्याप्त समय त भेटि रहल अछि। गाम मे सब घर मे जेनरेटर क कनेक्शन जा चुकल अछि। सांझ छह बजे स राति दस बजे तक अनहार त नहि होइत अछि। हमरा लोक क सोच बदलबाक ख्याल आएल। विकास क पहल स लोक क सोच बदलल अछि। मुदा पटना स्टेशन पर ट्रेन मे बैसैत देरी सोचैए लगलहुं । माइ की करैत होएत। कखन धरि बाबूजी जगैत रहताह। गाम स खौफ कहिया दूर होएत। आवेश मे मुठ्ठी बंधी जाइत अछि। पुलिस प्रशासन आ सरकार क खिलाफ तामस भड़कि उठैत अछि। किछु नहि केलक। बाद मे सुरक्षा दकए लोकक मन स खौफ त भगा सकैत छल। कम-स-कम रोज-रोज त उठि रहल अफवाह त खत्म करि सकैत छल। माओवादी गाम मे आए छल राति मे, पुलिस कम स कम दिन मे त अपन उपस्थिति दर्ज करा सकैत छल। ट्रेन धीरे-धीरे दिल्ली क दिस विदा भ गेल छल, ठीक ओहिना जेना बिहार धीरे-धीरे आगू बढि़ रहल अछि। अपने अपना स कहलहुं-दिल्ली एखन दूर अछि।…