या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यो नमस्तस्यो नमस्तस्यो नमो नम:
शारदीय नवरात्र क शुरू भेला क संगहि हिंद़ू समुदाय क लोग एहि मंत्र क जप करय लगैत अछि । हालांकि एहि मंत्रक अवधारणा महादेवी दुर्गा क स्तुति अछि, मुदा वास्तव मे एहि मंत्र क मूल अछि शक्ति क उपासना । दुर्गा यानी कि शक्ति, शाक्त चिंतन क मूल तत्व अछि । संगहि सृष्टि क सृजन क प्रतीक सेहो । हिंदू धर्म क शाक्त संप्रदाय मे भगवती दुर्गा कए दुनिया क परमशक्ति आओर सर्वोच्च मानल जाएत अछि । दुर्गा स्वरूपक रचना स पता चलैत अछि जे असत्य आओर अनीति पर विजय क परिकल्पना मे हुनका स्थापित कैल गेल अछि । कहल जएत अछि जे जखन तीनू लोक मे असुर क जुल्म, असत्य, अनीति, अत्याचार आओर अनाचार अपन चरम पर छल । एहि दौरान देवी दुर्गा अवतार लेलथि आओर असुर क संहार क तीनू लोकक मनुष्य क उत्थान केलथि। हुनकर तेज स शुंभ – निशुंभ वा महिषासुर जेहन दानव मारल गेल । लोक कथा मे कहल जाएत अछि जे जखन देवी दुर्गा गोस्सा मे आबिकए दानव क उपर दहाड़ लगेलखिन, तखन दसो दिशा हुनकर गर्जना स गूंजिउठल छल । दुर्गा आदि शक्ति आओर महादेवी क उपर पत्रकार सुनील कुमार झा आ अतुल रंजन क इ आलेख निश्चित रूप स अहाँक ज्ञान मे वृद्धि करत ।
ग्रंथ मे दुर्गा
जों ग्रंथ मे झांकि त पता चलत कि उपनिषद, पुराण क अलावा आन दोसर ग्रंथ मे सेहो दुर्गा यानी शक्ति क कल्पना सृजक क रूपे भेटैत अछि । हालांकि वेद मे दुर्गा क जिक्र नहि भेटत, मुदा उपनिषद मे ‘उमा, हैमवती’ क वर्णन भेटैत अछि । इ हिमालय क पुत्री सेहो छथि । पुराण मे देवी दुर्गा कए आशक्ति मानल गेल अछि । दुर्गा कए युद्ध क देवी सेहो कहल जाएत अछि । एकर उद्भव दुनिया से अन्याय कए मेटेबा क लेल भेल छल । किया त हुनकर बिना संसार मे स्फुरण क कल्पना तक नहि कैल जा सकैत अछि, एहि लेल संसार हुनकरे आकृति छल । सृजन, संहार आओर पालन हुनकरे काज अछि ।
पौराणिक कथा मे दुर्गा
शक्ति यानी देवी दुर्गा क एतय पार्वती क रूप मानल गेल अछि । पौराणिक कथा क अनुसार, राजा दक्ष क पुत्री सती स्वंयवर मे भगवान शिव कए अपन पति क रूप मे वरण केलथि । दक्ष कए शिव क लेल नीक धारणा नहि छल, एहिलेल ओ कुपित भए गेल आओर ओ शिव कए अपमानित करबा क मंशा स अपन घर एकटा यज्ञ क आयोजन केलथि । एहि आयोजन मे सती क त बजाओल गेल, मुदा शिव कए नौत नहि भेटल. कहल जाएत अछि कि सती जखन यज्ञ मे शामिल होए क लेल पिता क घर जाए लागल, तखन शिव हुनका ओहिठाम जेबा स मना केलथि । शिव सती स पूछलथि कि अहाँ ओतय पति क निंदा सुनि सकब ? ऐना मे अमंगल होएत । मुदा सती नहि मानलखिन आओर यज्ञ मे शामिल भेलथि । ओ अपन ऐश्वर्य कए देखेबा लेल दशमहाविद्या क रूप धारण कए अपन पिता क घर गेलथि । मुदा पिता क घर वहि भेल जेकर की पहिने स संभावना छल । अपन पति क निंदा ओ नहि सुनि सकलथि । ओ एकर प्रतिकार क बाट खोजलथि, मुदा हुनकर महाविद्या क रूप सेहो काज नहि आएल । एहि स दुखी सती क्षोभ मे अपन देह त्याग देलथि । सती क देह त्यागबाक सूचना जखन शिव कए भेटल, तखन ओ सतीक मृत शरीर कए कंधा पर उठाकए यज्ञभूमि मे तांडव मचा देलथि । यज्ञ कए तहस – नहस कए देलथि । एहि तांडव कए देखि देवता मे चिंता होए लागल । ओ इ तांडव स ब्रह्मांड कए बचेबाक क लेल विष्णु क शरण मे गेलथि । एहि क बाद भगवान विष्णु ओतय आबिकए सती क लहाश क टुकड़ा – टुकड़ा क चारू दिशा मे फेंक देलथि । आगां क किस्सा मे महारूपी असुर क राजा तारकासुर क अत्याचार क वर्णन भेटैत अछि, जेकर विनास क लेल हिमालय क बेटी क रूप मे शक्तिक अवतरण भेल । तारका सुर क वध शक्ति पुत्र स्कंद क हाथ भेल, एहिलेल दुर्गा स्कंदमाता क नाम से सेहो जानल जाएत अछि ।
दुर्गा क प्रतिमा
सभटा कण क मूल मे शक्ति अछि । इ शक्तिमान यानी शिव संग एकाकार अछि । अगम ग्रंथ क मानित शक्ति ओ प्रदीप्ति अछि जे तीनू काल मे हर दृष्टि से सभ पदार्थों मे मौजूद अछि । सबटा कर्म क अधिष्ठात्री अछि । सबटा पदार्थ क आत्मा अछि । चेतना अछि । निर्गुन अछि । सृजन क तीन आयाम महाकाली (प्रलय आओर संहार), महालक्ष्मी (सृजन आओर पालन) और महासरस्वती (मुक्ति दई वाली) हिनकरे प्रतीक अछि । महाकाली कृष्ण वर्ण क अछि, महालक्ष्मी रक्त वर्ण क आओर महासरस्वती श्वेत वर्ण क. सृजन विद्या क महाविद्या मानल गेल अछि । एहि क दस टा पड़ाव अछि – काली – काली यानी काल ( समय क शक्ति ) काली क गर्भ मे सबटा जीव क भूत, भविष्य आओर वर्तमान नुकाएल अछि । काली विश्व क बीजधार अछि । जीव कए पास काल क प्रवाह से त्राण का कोनो उपाय नहि।
तारा – असीम आकाश क वक्ष पर जेना असंख्य नक्षत्र स्थित अछि, ओनाहि काल क वक्ष पर असंख्य जीव – जगत । काल एहि तारा क प्रभाव स वार, तिथि आओर नक्षत्र क रूप मे बांटल गेल अछि । तारा दिग्वसना नहि, ओ आवृता आओर सृष्टिमुखी अछि ।
षोड़शी – व्यष्टि भाव मे स्फुटन क आकांक्षा क संग शक्ति तारा रूप मे बदलिगलथि। फेर इ आकांक्षा सृष्टि, स्थिति आओर लय क रूप मे प्रकट भेलथि। एहिक बाद पांच ज्ञानेंद्रिय क उद्भव भेलथि। एहिकाल शक्ति क इ स्वरूप कोए षोड़शी कहल गेल ।
भुवनेश्वरी – भुवनेश्वरी इ पंचतन्मात्रिक जगत क अधीश्वरी अछि। नाम क रूप मे स्थूल क जे परिणाम होएत, हुनकर रचना भुवनेश्वरीये करैत अछि ।
भैरवी – त्रिपुटी भाव क प्रतीक क रूप मे भैरवी क हाथ मे त्रिशूल देखाबैत अछि । एहि जीवन क ऊर्ध्व आओर अधोगति द्वंद्व भूमि अछि । भैरवी क लेल माथ पर जटा आओर जूट, ऊर्ध्व और अधोगति क प्रतीक अछि ।
छिन्नमस्ता – छिन्नमस्ता क प्रभाव मे मनुष्य अपन कामना क गुलाम भए जाएत अछि। एहिलेल देवी क पाइर क नीचा कामना क मूर्त रूप काज आओर रति कए देखाओल जाएत अछि ।
धूमावती – विधवा वेश, कंकाल शरीर आ रूक्ष केश. भोग क आकांक्षा क नाम पर रूप क पांछा अन्हरा दौड़ क परिणति यहि होएत अछि । महामारी, रोग, शोक आओर दरिद्रता जेहन भयावनी शक्ति हुनका कंकाल मे बदैल दैत अछि ।
बगलामुखी – हिनका पीतांबर कहिकए सेहो बजाओल जाएत अछि । धूमावती क विकाराल रूप त्याग कर शत्रु क जीह खीच हाथ मे मुगदर लेल प्रकट होएत अछि सौम्य बगलामुखी । एहि क्रम मे अधोगति से छुटकारा दिएबा क लेल मातंगी क आबए पड़ैत अछि ।
मातंगी – हालांकि जीव क भोग लालसा खत्म होएबा क नाम नहिलैत अछि, आओर यहि वजह से ओ क्रूर भए जाएत अछि । श्याम वर्ण, माथ पर चांद, तीनटा आंखि आओर चारिटा हाथ वाली देवी मातंगी क्रूर क लेल भयंकर अछि ।
कमला – कमला कमल क दिव्य आसान पर विराजमान होएत अछि । चारू कात चारिटा हाथी हुनका अभिषेक कए रहल होएत अछि । काम, क्रोध, लोभ आ मद रूपी चारिटा हाथी मोहग्रस्त कए हुनका उन्मुक्त कए दैत अछि ।
गप जों कमला आ धूमावती क करी त दूनू एक दोसर क साफ उलट अछि । इ दिव्या अछि, ओ आसुरी. इ लक्ष्मी अछि, ओ दरिद्र ।
नवदुर्गा
मोक्षमुखी शक्ति कए नौ रूप मे बांटल गेल अछि । हिनके नवदुर्गा क नाम स जानल जाएत अछि । हिनका क्रमश: शैलीपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कत्यायनी, कालरात्रि, महागौरी आओर सिद्धीरात्रि क समावेश होएत अछि ।
१. शैलपुत्री
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शुलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्॥
माँ दुर्गा अपन पहिल स्वरुप में ‘शैलपुत्री’क नामसँ जानल जाइत छथि। पर्वतराज हिमालयक घर पुत्रीक रूपमें उत्पन्न होयबाक कारण हिनकर ई ‘शैलपुत्री’ नाम पड़ल छल। वृषभ-स्थिता माताजीकेर दाहिना हाथमें त्रिशूल आर बायाँ हाथमें कमल-पुष्प सुशोभित अछि। यैह नव दुर्गाओंमें प्रथम दुर्गा छथि।
२. ब्रह्मचारिणी
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
माँ दुर्गाकेर नव शक्तिकेर दोसर स्वरुप ब्रह्मचारिणी केर अछि। एतय ‘ब्रह्म’ शब्दक अर्थ तपस्या अछि। ब्रह्मचारिणी अर्थात् तपकेर चारिणी – तपकेर आचरण करयवाली। कहल गेल छैक – वेदस्तत्त्वं तपो ब्रह्म – वेद, तत्त्व आर तप ‘ब्रह्म’ शब्द के अर्थ थीक। ब्रह्मचारिणी देवीक स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य अछि। हिनक दाहिना हाथमें जपकेर माला एवं बायाँ हाथमें कमण्डलु रहैत अछि।
३. चन्द्रघण्टा
पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
माँ दुर्गाजीकेर -तेसर शक्तिक नाम ‘चन्द्रघण्टा’ अछि। नवरात्रि-उपासनामें तेसर दिन हिनकहि विग्रहकेर पूजन-आराधना कैल जैछ। हिनक ई स्वरूप परम शान्तिदायक आर कल्याणकारी अछि। हिनकर मस्तकमें घण्टीके आकारक अर्धचन्द्र अछि, यैह कारणसऽ हिनका चन्द्रघण्टा देवी कहल जाइत अछि। हिनक शरीरक रंग स्वर्ण-समान चमकीला अछि। हिनक दस हाथ अछि। हिनक दसो हाथमें खड्ग आदि शस्त्र व बाण आदि अस्त्र विभूषित अछि। हिनक वाहन सिंह अछि। हिनक मुद्रा युद्ध लेल उद्यत रहबाक होइत अछि। हिनक घण्टीसँ निकैल रहल भयानक चण्डध्वनिसँ अत्याचारी दानव-दैत्य-राक्षस सदैव प्रकम्पित रहैत अछि।
४. कुष्माण्डा
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च,
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभादस्तु मे॥
माँ दुर्गाजी केर चारिम स्वरुपक नाम कूष्माण्डा अछि। अपन मन्द-हलुक हँसीद्वारा अण्ड अर्थात् ब्रह्माण्डके उत्पन्न करबाक कारणे हिनका कूष्माण्डा देवीके नामसऽ अभिहित कैल गेल अछि। जखन सृष्टिक अस्तित्व नहि छल, चारू कात अन्हार परिव्याप्त छल तखन यैह देवी अपन ‘ईषत्’ हास्यसँ ब्रह्माण्डक रचना केने छलीह। अतः यैह सृष्टिक आदि-स्वरुपा, आदि शक्ति छथि। हिनका सँ पूर्व ब्रह्माण्डक अस्तित्व रहबे नहि कैल।
५. स्कन्दमाता
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
माँ दुर्गाजीक पाँचम स्वरुपके स्कन्दमाताक नामसऽ जानल जाइत अछि। ई भगवान्स्कन्द ‘कुमार कार्तिकेय’ नाम सऽ सेहो जानल जाइत छथि। ई प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवता सभक सेनापति बनल छलाह। पुराण सभमें हिनका कुमार आर शक्तिधर कहैत हिनकर महिमाक वर्णन कैल गेल अछि। हिनकर वाहन मयूर अछि। अतः हिनका मयूरवाहनक नाम सऽ सेहो अभिहित कैल गेल अछि।
६. कात्यायनी
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दुलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवघातिनी॥
माँ दुर्गाक छठम स्वरूपक नाम कात्यायनी अछि। हिनका कात्यायनी नाम पड़बाक कथा एहि प्रकार अछि – कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि छलाह। हुनक पुत्र ऋषि कात्य भेल छलाह। ओ भगवती पराम्बाक उपासना करिते बहुत वर्ष धरि बड कठिन तपस्या केने छलाह। हुनकर इच्छा छलन्हि जे माँ भगवती हुनक घर पुत्रीक रूपमें जन्म लैथि। माँ भगवती हुनक एहि प्रार्थनाके स्वीकार कयने छलीह। किछु काल पश्चात् जखन दानव महिषासुर केर अत्याचार पृथ्वीपर बहुत बढि गेल तखन भगवाऩ् ब्रह्मा, विष्णु आ महेश तीनू गोटे अपन-अपन तेजक अंश दैत महिषासुरक विनाशक लेल एक देवीकेँ उत्पन्न केलाह। महर्षि कात्यायन सर्वप्रथम हिनक पूजा कयलन्हि। यैह कारण सऽ ई कात्यायनी कहेली।
७. कालरात्री
एकवेन्नि जपकर्णपुरा नग्न खरस्थिता,
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णि तैलभ्याक्ताशरीरिणी,
वामपादोल्लासल्लोहलताकान्ताक्भुषणा,
वर्धनामुर्धध्वज कृष्णा कालरात्रिभयङ्करी॥
भगवती दुर्गाके सातम स्वरूप कालरात्रिकेर नाम सऽ जानल जाइत छथि। हिनक दैविक शरीरक रंग गाढा कारी जेना घनघोर अन्हरिया राइत समान अछि। हिनक केश छितरायल छन्हि। गर्दैनमें बिजलोता समान चमकैत बिजलीक माला छन्हि। हिनक तीन टा नेत्र छन्हि। एक-एक ब्रह्माण्ड समान गोल-गोल देखैत छन्हि ई तिनू आँखि। साँस लैत आ छोड़ैत आइगक ज्वाला निकैल रहल छन्हि। गदहाक वाहन पर आरूढ (सवार) छथि। दाहिना ऊपरका हाथ संसारके कल्याण हेतु आशीष देबाक मुद्रामें छन्हि, दाहिना निचुलका हाथ निर्भय शक्तिक प्रतीक बनल छन्हि; बाम भागक ऊपरका हाथमें कील-काँटी छन्हि आ निचुलकामें कुरहैर। बहुत भयावह देखा रहल छथि मुदा हमरा लोकनिकेँ सदिखन सुन्दर फल प्रदान केनिहैर सदिखन केवल आशीर्वाद दऽ रहल छथि, एहि हेतु हिनक नाम शुभङ्करी पड़ल छन्हि। दुर्गा पूजाक सातम दिन पारंपरिक रूपसँ हिनक पूजा कैल जाइत छन्हि।
८. महागौरी
स्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्वरधरा शुचिः,
महागौरी शुभांग दद्यान्महादेवप्रमोदता!
भगवती दुर्गाजीके आठम शक्ति स्वरूपके महागौरी नाम सँ जानल जाइत अछि। ओ मात्र श्वेत वस्त्र धारण करैत छथि आ पूर्णतया श्वेत-स्वरूपा लगैत छथि। गौरवर्ण होयबाक कारणे महागौरी कहाइत छथि। वास्तविकता एहेन छैक जे भगवान्म हादेव संग विवाह हेतु देवी एहेन घोर तपस्या केलीह जेकर परिणामस्वरूप कोयलो सऽ कारी झमास बनि गेलीह, मुदा जखन महादेव के प्रसन्न केलीह तेकर बाद देवाधिदेव हुनका गंगाजल सऽ रगड़ि-रगड़ि अपन लौकिक प्रेमभाव सहित स्नान करेलाह आ तत्क्षण दुधिया गोराइ प्राप्त करैत माँके नाम महागौरी पड़ल। हिनक चारि टा हाथ छन्हि आ बैलकेर सवारी प्रयोग करैत छथि। दाहिना ऊपरका हाथ कल्याण हेतु आशीर्वाद देवाक मुद्रामें छन्हि। दाहिना निचुलका हाथमें त्रिशूल छन्हि। बामा ऊपरका हाथमें डमरु छन्हि। बामा निचुलका हाथ वरदायिनी मुद्रामें छन्हि। दुर्गा पूजाकेर आठम दिन हिनक पूजा-अर्चना कैल जैछ। हिनका सँ हमरा सभके सच्चाई आ ईमानदारिता संग सदिखन कर्म करबाक लेल उद्यत रहबाक लेल भेटैत अछि, असत्यके माता अपनहि सँ भक्तसँ दूर करैत छथि।
९. सिद्धिदात्री
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि,
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
भगवती दुर्गाक नवम स्वरूपके सिद्धिदात्री नाम सऽ जानल जाइछ। ओ समस्त सिद्धिके देनिहैर छथि, समस्त दैवीक सम्पदा-मुद्रा के प्रदायिनी छथि। मार्कण्डेयपुराण अनुसार – अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईश्विता आ वशीत्व – ई आठ प्रकारके सिद्धि होइछ। लेकिन ब्रह्मवर्तपुराण अन्तर्गत कृष्णजन्मखण्ड अनुसार सिद्धि कुल अठारह प्रकार के होइछ: १. अणिमा, २. लघिमा, ३. प्राप्ति, ४. प्रकाम्य, ५. महिमा, ६. ईश्विता-वशीत्व, ७. सर्वकामवसयिता, ८. सर्वज्ञत्व, ९. दूरश्रवण, १०. परकायप्रवेशन, ११. वाक्सिद्धि, १२. कल्पवृक्षत्व, १३. सृष्टि, १४. संहारकरणसामर्थ्य, १५. अमरत्व, १६. सर्वन्यायकत्व, १७. भावना, आ १८. सिद्धि!
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