यौ महापराक्रमी पांडव
गदाधारी भीम !
सखी -समुदाय पूछैए
जे हम इंद्रप्रस्थक राजप्रासाद मे
कियै नै रहै छी,
कियै बौआइत छी रने-बने
द्वितीय पांडवक अर्धांगिनी बनियो कें ?
स्पष्ट दृश्य देखा रहल अछि
द्रौपदी महाराज्ञी बनि बैसल छथि मठोमाठ
आ’ हम छिछिया रहल छी जंगलक
फूल-पात, गाछ-वृक्ष आ जंतु-जीवक बीच
पाञ्चालीक अग्नि-रथ मे
हमर बलशाली भीम
जोतल छथि अनमन कोनो अश्व जकाँ
जकर स्वर्णाभ-रक्तिम वल्गा
दमकि रहल छनि हुनकर हाथमे
हे वृकोदर महाकाय ,
एतय सँ गेलहु जहिया
उद्दाम प्रेमक परिचय दैत
पुछलहु नहि कहियो
जे हम कतय छी, केना छी
आ’ हम छी जे अहाँकें
बिसरैत नहि छी !
मानैत छी जे
हमहीं केने रही प्रणय-निवेदन
नहि छल कौलिक अभिजात्यताक लेशो भरि अंश
निर्लज्ज, पतित जकाँ भ’ गेल रही समर्पित
तैं की ?
हम नहि रही सजीव स्त्री जातिक प्रतिनिधि ?
हिडिम्ब, हमर भाइ
भले रहल हो दुष्ट, क्रूड़, अमानवीय आ पाशविक
प्रवृत्ति संँ भरल दैत्य
मुदा छल हमर सहोदर
जकर वध कयलाक बाद
भेटल रही अहाँकें हम उपहारस्वरूप !
आब की ?
आब ने हमरा हिडिम्ब अछि ने महाबलशाली भीम
खोंता नष्ट केलहु अपने
आ चिड़ै जकाँ उड़ि गेलहु अहाँ !
बुझै छियै हम जे
द्रौपदी नहि करतथि
हमरा अंगीकार
सुभद्रा तँ मात्र श्रीकृष्णक बहिन
हेबाक कारणें हुनका छथि स्वीकार
मुदा, हे हमर प्रियवर !
माता कुन्ती पर छल विश्वास
सहनशीलताक सद्यः प्रतिमूर्ति
माय कुन्ती सेहो
कहियो इच्छा व्यक्त नहि केलनि
हमरा हस्तिनापुर वासिनी बनेबाक
तकर होइत अछि दुख जे
नारी स्वयं नारीक व्यथा नहि बुझैछ
वा निर्दयी बनि अपन स्वार्थ सधैछ।
ओतय राजसूय यज्ञक धूम मचल अछि
आ हमर कामना, हमर अपेक्षा
उपेक्षित रहल अछि
हमर कल्पनाक उड़ान
कियो नहि जनैत अछि
हमरो भ’ सकैए सौख-सेहन्ता
कियो नहि बुझैत अछि
वासुदेव कृष्ण तँ कहलक सब जे
योगीश्वर छथि, परब्रह्मक अवतार छथि
हुनकहि सँ कहाँ कियो पुछैत अछि ?
सखी-प्रश्न संँ उद्वेलित
अहाँक हिडिम्बा
सब बेर एहि उत्तर सँ बचि जाइत छी
जे कृष्ण-भगिनीक अतिरिक्त तँ
आओर कोनो रानी-पटरानी
नहि रहैत अछि हस्तिनापुर
आ’ हम चलिए जायब ओतय
तँ लागब केहन
राक्षसी काया कें नुकायब केना
नीको तँ नहि लागब अपन बनैया परिधान मे
आ हमर जंगली फूल सन
सुंदर पर विशाल
घटोत्कच केहेन लागत
राजसी वस्त्राभूषण सँ सुसज्जित
राजपुत्रक बीच !
परंतु हे हमर प्राणवल्लभ,
रूप-सौंदर्य-देहयष्टि भले
हमरा नहि हो द्रौपदी सन
हृदय तँ हमर ठीके अछि
कोमल, सरल, निश्छल
सरोवर मे फुलायल पुष्प सनक !