गजानन मिश्र
मात्र एक सदी पहिलका गप अछि मिथिला मे माछ क भरमार छल। 1807 ई क पुरनिया रिपोर्ट मे सर्वेयर जनरल फ्रांसिस बुकानन कोसी क नाथपुर घाट जे वर्तमान मे छातापुर स पूरब, बलुआ स दक्षिण आ नरपतगंज स पश्चिम स्थित अछि, मे कुल 127 प्रकार क माछ क विवरण देने छथि। ओकरा 1877 ई मे प्रकाशित विलिअम हंटर क स्टैटिस्टिकल अकाउंट ऑफ़ बंगाल वॉल्यूम 20 मे सेहो दर्ज कैल गेल अछि। अंग्रेजी स देवनागरी करबा मे एहि माछ नाम मे किछु विकृति भ सकैत अछि मुदा प्रयास कैल अछि जे नाम शुद्ध राखि। ओहि ठाम क जे माछ उपलब्धट छल ओ निम्नांकित है.- फोक्चा, कांटवला फोकचा, करिया फोकचा, राजवाम, सुसुक कंचल, गच्छी, वाम, पटही, गुल्ला, कतरा, करिया कतरा, खेसरा ( दो प्रकार के), चेंगा, गरई, भंगरा, डरही( दो प्रकार के), कबई, ढाली, चन्ना, सूही चन्ना, केसरा चंदा ( दो प्रकार के), तका चंदा, बाघी, लता, ललका लता, कुकुरा, छोटका कुकुरा, खरिका, सावन खरिका, बलगारा ( दो प्रकार के), पेमा, मांगुर, बोआरी, बचवा, चेचरा( दो प्रकार के), छोटकी चेचरा, लाल्मुहा चेचरा, अंग्छाछेया, मंगोई, कतला, छोटकी बचवा, पतासी, थुन्हा पतासी, पंसा, अरिया, बघैर, मन्दा, कोसिया टेंगरा, टेंगरा, बज्झा, लारा टेंगरा, महुजर, तेल्चित्ता, नांगरा, पदना, गुठली नांगरा, चामर, हारा, नानगरा, गंगाजली, ढोंगा, तितुआ, खारा, हुन्दारा, घानी, गोहती, भुन्नी, फंसा, बड़ा खैर, हिलसा, करती( दो प्रकार), हलुअद, स्वर्ण खरिका, माली, कचकी, कांगरी, बिलरा, गुट्टा, मोलही, फोरकी, जया, सोली, सरुर, करसा, फकड़ा, पिहुआ, तिलुआ, तिलई, गोहा, मलंगा, रेबा, पंसुयिया, भंगना, मिरका, रोहू, बसरहा, कुरसा, सहरा, तुरिया, मांसल, गरहन, खंग्रही, डरही, कोसुअती, दुधुआ, कमरही, छंगी, खुद्दी, छोटका खुद्दी, भू, ललका भोटी, मारा, डिंगरा, कोसिया डिंगरा, जोंगरा, रिरही जोंगरा, करखा, पंसी, कोंधरी, देसरी, पोठी और अन्नई।
सहरसा मे अपन अनुमंडल पदाधिकारी क कार्यकाल क दौरान महिषी ब्लाक क कोसी तटीय बलुअहा घाट पर ओहि ठाम कार्यरत मल्लाह एहि मे स अधिकतर माछ कए उपलब्ध नहि हेबाक गप कहने छल। ओ सब वर्त्तमान मे मात्र 32 प्रकार क माछ क उपलब्धता स्वीेकार केने छलाह। ऊपर क सूची मे हिलसा क सेहो जिक्र अछि। आब हिलसा बिहार मे नहि भेटैत अछि। जयनगर तक कमला मे हिलसा भेटबाक तथ्य प्रतिवेदित अछि। बुकानन अपन रिपोर्ट मे माछ क उपलब्धता पर सेहो विवरण देने छथि। हुनकर समय मे पुरनिया जिला जाहि मे मालदह तक क क्षेत्र शामिल छल, क आबादी 29 लाख छल। ओ लिखैत छथि जे ओहन वर्ग जे जखन चाहे माछ खा सकैत अछि -तेकर आबादी 40/96 अछि;जे मात्र हाट या बाजार स प्राप्त क खा सकैत अछि – तेकर आबादी 28/96 अछि, जे स्वयं पकड़ कए खाइत अछि -ओकर आबादी 27/96अछि; जे माछ नहि खाइत अछि -ओकर संख्या 1/96 अछि। इ आंकड़े माछ क उपलब्धता क सुखद स्थिति देखबैत अछि। बुकानन इ सेहो रिपोर्ट कीैत छथि जे पुरनिया स नाव द्वारा पंद्रह दिन क यात्रा क पानी भरल बर्तन मे विभिन्न प्रकार क माछ एक बेर मे कई मन तक कलकत्ता पठाउल जाइत अछि। माछ क विकाश मूलतः नदी स आ नदी मे होइत अछि, मुदा जखन तिरहुत क नदी सब मृत प्राय भ गेल अछि तखन फेर माछ क विकाश क गप बेमानी अछि। दरभंगा, मधुबनी क हजार स बेसी संख्या मे पोखर सेहो उर्जा आ discharge नदी स प्राप्त करैत अछि। नदी क अस्मिता लेल इ जरुरी अछि जे एहि मे सालो भर एकटा न्यूनतम मात्रा मे पाइन बहैत रहए, बरसात मे एहि मे पूरा पाइन बहए आ एकर पाइन क प्रबाह मे कोनो अवरोध नहि रहए। बिहार क नदी क ecosystem क integrity आ fertility ध्वस्त भ चुकल अछि। पोखर मे पाइन क आगमन आ एहि स पाइनक निर्गम हेबाक आ पोखर क कछैर उपयुक्त हरीतिमा रहब एकर integrity आ फर्टिलिटी लेल अनिवार्य अछि। ऊपर स वर्तमान मे पोखर कए गंदगी जल क संग्रहण केंद्र बना देल, एकर नियमित उड़ाही नहि करब आ खेत स रासायनिक खाद/कीटनाशक तत्व क बहाव पोखर मे जायब पोखर क गुणवत्ता आ उत्पादकता कए भयंकर क्षति केलक अछि। एहि लेल पोखर क पाइन हरियर भ चुकल अछि, एहि मे घुलनशील ऑक्सीजन क मात्रा अत्यल्प अछि जाहि कारण स इसमे जीव जंतु क सम्यक विकाश नहि भ पाबि रहल अछि। एहिमे प्लैंकटन आ अन्य फ़्लोरा विकसित नहि भ पाबि रहल अछि जे माछ सहित अन्य जीव क भोजन अछि। कछैर क हरीतिमा क आभाव मे आवश्यक बायो मास पोखर मे नहि जा पबैत अछि जे माछ क वृद्धि आ विकाश लेल जरुरी अछि। पाइन मे गतिशीलता क अभाव क कारण जे तापमान मे भिन्नता पोखर क विभिन्न स्तर पर भ जाइत अछि, ओ माछ क विकाश मे बाधक होइत अछि। यैह eutrophication क समस्या अछि। नदी आ पोखर क स्वास्थ्य मे चौर क सेहो भूमिका होइत अछि। दूनू कए गर्मी मे जल क आपूर्ति आतंरिक रूप मे चौर करैत अछि, मुदा आइ चौर स्वयं विकृत भ चुकल अछि। एकर पानी जल जमाव क कारण विषाक्त भ चुकल अछि। खेत क रसायन एकरा सेहो बिषाक्त बना देलक अछि। नदी क बाँध चौर मे स्वच्छ जल नहि जायब सुनिश्चित क देलक अछि। चौर क बारे मे एकटा आकलन इ रिपोर्ट करैत अछि जे एक हेक्टर यानि तिरहुत मे ढाई बीघा क चौर मे ढाई क्विंटल माछ एक साल मे उत्पन्न होइत छल आ इ सिर्फ गरीब कए सुगमता स प्राप्त होइत छल। हरेक गाँम मे ओकर क्षेत्रफल क अमूमन 5% यानि 10 से 15 हेक्टेयर भूमि मे चौर होइत छल, जेकरा स हरेक साल लगभग 25 से 30 क्विंटल माछ कॉमन सार्वजानिक संपत्ति क रूप मे गरीब कए प्राप्त होइत छल। हाँ, चौर क माछ छोट होइत छल – बेसी स बेसी आधा किलो तक क, मुदा छल त माछ। संगहि चौर मे एकटा फसल धान होइत छल। एहि लेल तिरहुत क राजस्व अभिलेख मे चौर लेल धनहा चौर दर्ज होइत छल। इ धान लतरहा प्रकार क होइत छल जे पाइन क संग-संग बढैत जाइत छल आ ओकर उपरी हिस्सा प्रायः हमेशा पाइन ऊपर रे ऊपर रहैत छल। तिरहुत मे श्री पंचमी कए हल क पूजा क चौरवाला क्षेत्र मे एक संग धान, मुंग आ मकई छींटल जाइत छल। मई होइत होइत मुंग काटी लेल जाइत छल, सामान्य पाइन भेला पर अगस्त मे मकई काटल जाइत छल, अन्यथा बेसी पाइन भेला पर मकई नष्ट भ जाइत छल। नवम्बर दिसंबर मे नाव पर चढि कए धान क सिर्फ शीश छोप लेल जाइत छल। आजुक वैज्ञानिक कृषि मे परिभाषित multiple cropping आ paira cropping क इ अप्रतिम उदहारण छल।
अंत मे बचि जाइत अछि भूगर्भ जल, त आब एहि मे सेहो floride, आर्सेनिक क संघातिक उपलब्धता भेट रहल अछि। इ हमरा सबहक भविष्य कए आओर बेसी ख़राब हेबा दिस इंगित करैत अछि। इ समस्या सेहो नदी क मरनासन्नता क कारण उत्पन्न भेल अछि। नदी क पुनर्जीवन स वर्तमान बिहार आ तिरहुत क सर्वाधिक भीषण समस्या- बाढ़ क सम्यक निदान आ सुप्रबंधन होएत। इ त आब स्थापित भ चुकल अछि जे बाँध बनेला स बाढ़ क विभीषिका आ क्षेत्रफल बढि जाइत अछि। दरभंगा- मधुबनी मे कमला क 9टा धारा अछि, यदि हम कमला क पाइन कए एहि सबटा धारा मे एकरा क्रॉस सेक्शन क हिसाब स उपयुक्त hydraulik structure क सहायता स विभाजित क प्रबाहित करा दैत छी त झंझारपुर कमला, पैटघाट कमला, मनीगाछी कमला, सकरी कमला, तारसराय जीबछ, ककरौर कमला, परसौनी कमला, गौसाघाट कमला और बुच्चा धार कमला सन प्रबाहमान धारा सब कतहु बाढ़ नहि उत्पन्न हुए दैत आ सब ठाम काज लायक पाइन सेहो उपलब्ध होएत। एहि लेल आवश्यकता अछि जे हम समस्या क मूल कारण अपन नदी कए बुझबाक प्रयास करि आ ओहि मे सुधार आनी। ओकरा पुनर्जीवित करि। नदी मे पाइन क मात्र कए बढ़ेबाक प्रयास करि। नदी मे सालो पाइन बहबाक इंतेजाम करि। नदी मे पाइनक प्रबाह मे गतिरोध न्यूनतम राखि। सबटा धारा मे पाइन क बहाव सुनिश्चित भेला पर पोखर स्वयमेव दुरुस्त भ जायत। जखन तिरहुत क तीर पर स्वच्छ पानी बहेत त माछ फेर आबि जायत। केवल माछ नहि आउत – कछुआ, crab, डोका, नाना किस्म क हिमालय पार क आ स्थानीय असंख्य पक्षी आ बहुत मात्रा मे उपयोगी फ़्लोरा सेहो। अतएव समस्या क निदान हेतु symptomatic treatment क तरीका स ऊपर उठिकए diagnostic treatment क तरीका अपनेबाक जरुरत अछि।