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मिथिलाक ग्राम-ज्ञान परंपरा

September 24, 2017
in विचार
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सविता झा खान

आय हमसभ शिक्षा क संदर्भ मे जखन चिंतनशील होएत छी, त सबसे पैघ बिंदु शिक्षा आओर शैक्षणिक संस्थान क स्वायत्तता होएत अछि । शिक्षा क जिम्मेदारी आओर गुणवत्ता क नाम पर औपनिवेशिक काल मे जखन राज्य तमाम किसिम क सरंचना कए ठाड़ करब शुरू केलक, त सबसे पहि‍ल आघात नहि खाली भारतीय भाषा क पहुंचल, बल्कि पाठ्यक्रम मे शामिल कैल गेल विषय आओर ओकर रूपरेखा भारतीय सामुदायिक आओर सभ्यतामूलक संदर्भ स नहि छल । एतय क लोकप्रचलित ज्ञान परंपरा कए, ओकर समाज आओर ओहि स उपजल दर्शन परंपरा कए भीषण आघात पहुँचाएल गेल । सवाल ई अछि जे आब एकरा कोन ज्ञान-परंपरा मे राखल जाए आओर ओकर भौतिक-सांस्कृतिक कर्म-स्थल कतय होए ?

एहिक उत्तर कतहूँ न कतहूँ हमर गाम मे नुकायल अछि, हमर दृष्टि स गुजरल भारत क आन गाम जेंका संभवतः मिथिला क गाम मे पिछला सदी तक फल-फूल रहल, स्वायत्त ज्ञान परंपरा (जे कि‍छु खास गाम मे कम-से-कम संसाधन मे नैयायिक और मीमांसक घर स चलैत छल), जाहिमे राज्य आ कोनो आन सत्ता नहि त पाठ्यक्रम तय कए रहल छल नहिए डिग्री आाओर परीक्षा क ई विकृत, जानलेवा, बाजारोन्मुखी, भौतिकवादी  स्वरूप कतहूँ स ग्रामीण लोकक समाज पर ई कदर हावी छल जे आजुक सबसे पैघ समस्या बेरोजगारी कए महामारी बना दैत । अपेक्षा ज्ञान संकलन आओर आत्मविद्या स परिमार्जन क छल, महज रोजगार क नहि‍ । मनुष्य कए, युवा कए महज रोजगार क माध्यम नहि‍ बुझल जा रहल छल, एहि ज्ञान परंपरा क ह्रास स संभवतः राज्य,रोजगार आओर शिक्षा कए आवंटन करयबला प्रबल शक्ति बनैत चलि गेल आओर लोकक, गामक स्वायत्तत्ता अपन आत्मविद्या क बल पर एकटा पुख्ता रिस्पांस नहि ठाड़ कए सकल, जे राज्याश्रय क बिना सेहो अपनी ज्ञान-परंपरा कए अक्षुण्ण रखि‍ सकैत छल आओर आजुक हालत ई अछि जे हम दान नहि‍,बल्कि अनुदान क कुचक्र मे अपनी स्वायत्तता कए खोजबाक भागीरथ आओर असफल प्रयास कए रहल छी ।

ओतय मिथिला क कलेक्टिव विजडम, विपन्नता क विलास आओर कॉमन रिसोर्सेज क स्वतःस्फूर्त लोकक उत्पत्ति क बड्ड रोचक नमूना छल, ई किस्सा दरभंगा क दग्धरि/चमैनिया पोखरि क उत्त्पति क छल, कैक परत और प्रतीक से गुजरैत ई किस्सा (अयाची मिश्र, शंकर मिश्र, चमैन, दान) अंततः जल क श्रोत पर ठहरि‍ गेल कि केना एकटा चमैन बड्ड रास धन भेटबा पर अपन मूल गुण (स्किल) स च्युत होनाए नहि चाहैत अछि, ओ पोखर खुन्‍हवाए कए अंततः एकटा सर्वसामान्य क हित मे निर्णय लैत अछि ।

आखिरकार दर्शन क एहि स उजागर चरित्र हम कतय ताकि सकब, जतय जनसामान्य क जीवन एकटा दर्शन, नीति स चलैत होए ? संभवतः एतबा स्वायत्तता बिरले आय कोनो विवि वा शैक्षणिक संस्था सीखा पाबए । मुद्दा ई अछि जे ई लेयर्ड विजडम गेल कतय ? तालाब कतय गेल आओर जातिगत प्रपंच कए ई जैसन प्रकरण किएक नहि‍ दिशा दिखा पाओल ?

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एहि परिस्थिती मे मिथिला क एकटा गांव सरिसब-पाही आओर ओकर संस्था अयाची डीह विकास समिति मे कि‍छु ग्रामीण, नैयायिक विद्वान आओर ओतय क आम लोग अपन ज्ञान-परंपरा क मूल कए लकए एकटा भागीरथ प्रयास करबाक लेल अग्रसर अछि, जाहिमे ओ भारतभर स न्यायशाष्त्र क प्रकांड विद्वान कए इकठ्ठा कए रहल अछि ।

चौदहवीं-पंद्रहवीं शताब्दी क सुप्रसिद्ध मैथिल विद्वान अयाची (भवनाथ मिश्र) आओर शंकर मिश्र क चौपाड़ी (गांव सरिसब क बीच एकटा खाली जगह) टा एहिक ज्ञानक केंद्र छल । कोनो भवन, राजभवन आओर राज्य क इंफ्रास्ट्रक्चर पर आश्रित भए हिनकर ज्ञान परंपरा दम नहि‍ तोड़लक, बल्कि गामक खुला परिवेश मे बिना कुनू बंधन, भेदभाव क बाध्यता क बगैर हुनकर ज्ञान क विमर्श चलैत रहल । आब ओ परिचर्चा आओर चमैनिया डाबर (तालाब) पर एहि महीना विमर्श कए ई साबित कए देलक जे भारत क गाम मरत नहि, नहिए ओकर लोक ऊर्जा कम होएत और नहिए ओतय क ज्ञान-परंपरा क आत्मविद्या तत्त्व क प्रति विश्व क रुझान कहियो कम होएत । किएक गांधी क भारत वैह साकार अछि और एहि ज्ञान-परंपरा कए ओ ‘सुंदर वृक्ष’ कहने छल, जाहि मे उपनिवेश क प्रतिरोध क भरपूर बीज छुपा छल आओर जे आजुक सेहो नव उपनिवेशवाद क एकटा व्यापक रिस्पांस(प्रत्युत्तर) देबाक माद्दा रखैत अछि, बशर्ते कि ज्ञान परंपरा कए ओहिक मूल ग्राम्य परिवेश से जोड़ि‍कए कोनो विकास क मॉडल तैयार होए । सवाल इहो अछि जे पंद्रहवीं सद क शंकर मिश्र क चौपाड़ी जेहन ज्ञान-परंपरा,शिक्षा क प्रारूप पर अखनो तक विमर्श किएक नहि भए रहल अछि ।  किएक आजुक राज्य और लोक एहन ओपन स्पेस क स्वायत्तता कए मूल्य नहि दए रहल अछि ? आखिरकार एकटा गाम ओकर ग्रामीणक कलेक्टिव विजडम एतबा पैघ बीड़ा उठाकए ई साबित कए देलक जे गाम अखैन धरि मरल नहि अछि आओर शंकर मिश्र क चौपाड़ि अपन स्वरूप बदलिए कए फेर से ज्ञान-परंपरा क केंद्र बनबाक क्षमता रखैत अछि।

(लेखि‍का मैथि‍ली क वरिष्‍ट लेखक, विचारक आ जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज, डीयू मे प्राध्यापिका छथि‍ ।)

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