देश अपन स्वतंत्रताक 68 वर्ष पूरा केलक। एहि 68 वर्ष मे देश कतेको मामले मे सकारात्मक परिणाम देलक आ खूब प्रगति केलक अछि। सामाजिक, आर्थिक आ सांस्कृतिक प्रगतिक सं संग आन क्षेत्र मे सेहो देश उल्लेखनीय प्रगति केलक अछि। मुदा 1947 क परिपेक्ष मे देखिए त 2015 मे किछु एहनो क्षेत्र अछि जे उपेक्षित रहि गेल त किछु एहनो अछि ताहु स बदतर भ गेल। जाहि पर विचार आ मंथन समग्र विकास लेल जरूरी नहि बल्कि अनिवार्य अछि। आशावादी नजरि स निराशावादी समाजक मसला कए उठेबाक हमर सतत प्रयास रहल अछि। आजादीक 69 साल बाद हम अपन शहर, अपन राज्य, अपन देश आ अपन समाज कए कतए आ कोना देखैत छी, ओकरा केहन आ कोना बनेबाक सपना गढैत छी ताहि पर इसमाद किछु विशेष लोक क आलेख अपने लोकनिक समक्ष राखि रहल अछि। आजादीक 69 साल बाद क एहि विशेष आयोजन क आजुक आलेख प्रस्तुत अछि। – समदिया
गजानन मिश्र
प्राचीन भारत से मुग़ल काल धरि तीरभुक्ति यानि तिरहुत यानि मिथिला एकटा राजनीतिक ईकाइ छल जे गंडक नदी से कोसी नदी तक विस्तृत छल । १७६५ ई. मे ईस्ट इंडिया कम्पनी क शासनक आरम्भिक समय मे जाहि सरकार तिरहुत क विवरण अछि ओ सेहो बागमती से कोसी कछैर स्थित बीरपुर तक फैलल छल । १७७९ ई. क मेजर रेंनेल कए बंगाल मैप मे तिरहुत क यहि अंकन अछि । तिरहुत क पूर्वी सीमा कोसी 17 वी सदी तक बीरपुर-पुरनिया-कटिहार भए क मनिहारी मे गंगा मे मिल जाएत छल । एहि क उत्तर मे नेपाल क तराई आओर ओहि स सटल उत्तर हिमालय पहाड़ आ एकर दक्षिण मे गंगा सदिखने रहैत छल । एहि प्रकार तिरहुत मे मुजफ्फरपुर, वैशाली, सीतामढ़ी, शिवहर, दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, अररिया, पुरनिया, कटिहार ( अंतिम तीनो आंशिक रूप में) शामिल छल ।
तिरहुत क इ भूगोल कखनो टेथिस सागर मे छल । एहि सागर मे से हिमालय निकलल छल । हिमालय क दक्षिणी भाग Drainage कए समुद्र मे लए जेबा लेल गंगा बनल छल; गंगा तक ओकरा पहुँचेबा लेल तिरहुत मे विभिन्न नदी घाटी क विकास भेल । एहि तरह तिरहुत हिमालय आओर गंगा क बीच एकटा डेल्टा जैहन छल । हिमालय क नवीनतम पहाड़ होबाक कारण तथा एकर दक्षिणी सतह पर 2000 मिलीमीटर तक औसत बर्षा हेबाक कारण तिरहुत क नदी मे सिल्ट आओर पानिक मात्रा बेसी होएत अछि । हिमालय क ऊंचाई से निकलबा और गंगा मे मिलबा से पहिने मात्र 400-500 किलोमीटर चलबा क कारण एहि नदी मे प्रवाह गति बेसी होएत अछि ।
तिरहुत क इकोसिस्टम मे चारि टा नदी घाटी प्रणाली अछि : कोसी, कमला-बलान, बागमती आओर बूढी गंडक । एहि इकोसिस्टम क उत्तरी अर्ध भाग मे ग्रेडिएंट यानि ढलान उत्तर से दक्षिण दिशा दिस तथा दक्षिणी अर्ध भाग मे पश्चिम से पूरब दिस अछि । कोसी मे सालाना औसतन २.५० लाख क्यूसेक क प्रवाह, कमला-बलान में ३५००० क्यूसेक, बागमती में ६५००० क्यूसेक होएत अछि । एहि मे ९०% जुलाई से मध्य अक्टूबर तक भए जाएत अछि । कोसी प्रणाली मे 20 टा धारा, कमला मे ९ टा धारा, बागमती मे ८ टा धारा आ बूढी गंडक मे 6 टा धारा अछि । मुदा बांध क कारण कोसी मे खाली दू टा धारा, कमला मे एकटा धारा, बागमती मे एकटा धारा आओर बूढी गंडक मे खाली एकटा धारा प्रवाहमान अछि; बाकी सभटा आन धारा परित्यक्त आओर paleo-channel क रूप मे अछि जे जलजमाव पैदा करैत अछि, भूजल कए प्रदूषित करैत अछि, जलजन्य बीमारी पैदा करैत अछि आओर बाढ़ क समय अतिरेक जल राशि क निकासी सेहो नहि कए पबैत अछि । इ paleo-channel कए सेहो प्रवाहमान बनेबाक जरुरत अछि ताकि ई अपन अपन मूल धारा से नियंत्रित रूप मे डिस्चार्ज प्राप्त क सकय ।
एतय प्रकृति क किछु ऐहन व्यबस्था अछि कि नदी नाला से सटल चौर होएत अछि यानि एहन भूमि जेकरा पर सालो भरि या त अधिकांस समय पानि जमा रहैत अछि । चौर स सटल निम्न भूमि क श्रृंखला होएत अछि जाहि मे मात्र बरसात मे पानी जमा रहैत अछि । एहि से लगल उँच भूमि क श्रृंखला होएत अछि जाहि मे मात्र भीषण बरसाते टा मे पानि जमा होएत अछि । चौर क ऊपर से बहिकए आबय बला पानी मे घुलल प्रदूषक तत्व कए अपने मे जमा कए स्वच्छ पानि नदी मे जाए दैत अछि । नदी कए गर्मी क समय जल क आपूर्ति सेहो कए ओकर जीवन्तता बनेने रखैत अछि । एहिलेल अपन परंपरा मे चौर कए नदी क भाई सेहो कहल जाएत अछि ।
इ नदी नाला चौर/कृषि भूमि क संग मिलकए एकटा इकोसिस्टम क निर्माण केने अछि । एहिमे flora आओर fauna क रास किस्म विकसित भेल छल जाहि कारण एहि मे बहुत बेसी ecological stability विकसित भेल । इ प्रकृति क नियम अछि कि जतेक बेसी biological डाइवर्सिटी, ओते बेसी ecological stability आओर ओते बेसी economic फर्टिलिटी/प्रोडक्टिविटी ।
एहिलेल तिरहुत क तत्कालीन बंगाल सूबा जाहि मे बिहार, बंगाल, उड़ीसा, आसाम, बर्मा शामिल छल, मे धान, तेलहन, दलहन, ईख, तमाकू, शोरा, अफीम, नील, दूध, पाट, मशाला, मछली, आम, बैल, आलू आदि क उत्पादन मे अग्रणी छल । एतौका औद्योगिक उत्पाद यथा अफीम, नील, शोरा, चीनी, तम्बाकू क उत्पादन आओर विदेश मे व्यापार से ब्रिटिश शासन कए मजबूती भेटल छल । 1875 से १९२५ क बीच उत्तर बिहार मे रेलवे क जतेक प्रसार भेल ओतेक ओहि कालखंड मे सम्पूर्ण भारत मे नहि कैल गेल छल । इ अंग्रेजी शासक क तिरहुत क प्रति कोनो दरियादिली नहि छल बल्कि एतय उत्पन्न प्राकृतिक उत्पाद आओर ओहि से निर्मित औद्योगिक पदार्थ क उपनिवेशवादी दोहन हेतु कैल गेल छल । १८७४ ई के macdonnel report मे धान क उपज ८.35 क्विंटल प्रति एकड़ उल्लिखित अछि । १८७० ई क दशक मे लदनिया-खुटौना-अंधरा, ठाढ़ी- फुलपरास क आलापुर परगना क syrveyor finucannes द्वारा सम्पादित सर्वे मे भुतही बलान क किनारे स्थित नरहिया ग्राम मे धान क उपज 20 क्विंटल प्रति एकड़ तक छल । कमला क क्षेत्र मे 35 क्विंटल प्रति एकड़ धान क उत्पादन पर आश्चर्य नहि होएत छल । कोसी मे धुरे मन शकरकंद भेल करैत छल । आय सेहो कोसी बांध क क्षेत्र मे १०० क्विंटल मकई क दाना प्रति एकड़ उपज होएत छल । बागमती क उत्पादन क्षमता बिख्यात छल । एकटा महत्वपूर्ण तथ्य इ छल कि एहि खेती मे economic scale बहुत छल । इ पुर्णतः कुदरती खेती छल । एहि मे एतौका मानव आओर पशु क श्रम शक्ति क पूर्ण उपयोग होएत छल । एतौका चौर क अभिलेख मे धनहा चौर क रूप मे अभिलिखित होएत अछि । कियाकि एहिमे मुख्यतः धान आओर संगे-संग वा असगर-असगर रबी भदई फसल क रूप मे मुंग, मकई, बूट, खेसारी, मोटगर अनाज उपजेबा क प्रथा छल । पशु चारा आओर ढेर उपयोगी flora/fauna क श्रोत तथा gene-bank क रूप मे चौर अप्रतिम छल । चौर मे नाना प्रकार क आर्थिक महत्व के पदार्थ स्वयमेव जनमैत छल । कंद, मूल, बिसंर, चिचौर, सौरुकी आ घोंघा, सितुआ, कछुआ, कांकोर, मछली आदि । ये सभटा खाद्य पदार्थ अछि । इ गरीब क common property क रूप मे निःशुल्क उपलब्ध छल । योजना १९९९ लिखैत अछि कि प्रति हेक्टेयर चौर मे २५० किलो मछली होएत छल । विलियम हंटर १८७७ ई मे एतय उपलब्ध 131 प्रकार क मछली क सूचि देने छल । एतय A2 प्रकार वला omega – 3 युक्त दूध दए बला गाय छल । आय यूरोप आओर अमेरिका देसी भारतीय गाय क A2 दूध क पॉंछा पागल अछि; आओर हम छि कि ओकर जर्सी, होल्सटीन, फ्रीजियन गाय क विषाक्त A1 दूध क दीवाना बनल छी ।
बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र मे खेती क बारे मे सहरसा गजेटियर १९६४ दर्ज करैत अछि कि मार्च से मई क बीच खेत मे धान आओर मकई छींटल जाएत छल; मकई अगस्त मे काटल जाएत छल; धान नवम्बर-दिसंबर में काटल जाएत छल । इ धान लातरहा किस्म का होएत छल जे पानि क संग बढैत जाएत छल । ऊँचगर खेत मे flood-resistent धान क प्रकार लगाओल जाएत छल जे 6-7 दिन तक बाढ़ि कए बर्दास्त कए सकैत छल । कोसी में 3.00 लाख क्यूसेक पानि एबा पर बाढ़ 1 से 2 दिन रहैत छल ।
१७६९ से १८५६ ई के तिरहुत क राजस्व अभिलेख से पता चलैत छल कि एतय एहि अवधि मे भीषण ब्यापक बाढ़ नहि आयल छल । बाढ़ प्रायः हल्लुक भेल छल जाहि मे या त नगण्य क्षति होएत छल वा नम्हर अन्तराल पर कहियो कहियो बेसी क्षति होएत छल । मुदा इ क्षति क भरपाई सूद समेत अगला रबी वा भदई फसल से भए जायत छल । एहि अवधि मे १७८७ आओर १७९७ मे भीषण बाढ़ क रिपोर्ट भेटैत छल । १७८७ के बारे मे इ रिपोर्ट अछि कि जून माह मे भारी बारिश क कारण इ बाढ़ आयल छल ; स्वभावतः भदई फसल मे भारी क्षति भेल छल मुदा अगहनी फसल क सामान्य होबाक गप कहल गेल अछि । जतय तक १७९७ क बाढ़ क सवाल अछि, उ बर्ष खरीफ अगहनी फसल सामान्य भेल छल । आजुक भयानक बाढ़ ग्रस्त सीतामढ़ी, शिवहर, औराई, कटरा 19वी सदी मे सामान्य छल जेहन कि विलिअम हंटर के रिपोर्ट १८७७ से ज्ञात होएत अछि । दरभंगा मधुबनी में कमला क बाढ़ से क्षति नगण्य होएत छल । तत्कालीन कमला आओर अधवारा कात स्थित बेनीपट्टी ,बिस्फी, रहिका क जरेल परगना आओर अधवारा- लखान्दई नदी क बीच स्थित पुपरी-बथनाहा-कटरा क नानपुर परगना सर्वाधिक विकसित क्षेत्र मे छल । १८५१ ई के revenue survey क कर्नल whyat क रिपोर्ट मे तिरहुत क बाढ़ कए सामान्य बताओल गेल छल ।
बिहार क शोक कोसी लेल बुकानन क पुरनिया रिपोर्ट १८०६-७ अछि जाहि मे कहल गेल छल जे कोसी क बाढ़ कोनो समस्या नहि छल । विलियम हंटर क १८७७ क रिपोर्ट, ओ मेली क १९०७ क जिला गजेटियर मे तत्कालीन पुरनिया मे कोसी आओर महानंदा क बाढ़ कए सामान्य बताओल गेल छल । मुदा वहि कोसी १९०० से १९५० ई क मध्य तत्कालीन सहरसा जिला मे भीषण तांडव मचेने अछि । एहि अवधि मे सहरसा मे कोसी क कोनो धारा १५-२० साल से बेसी काल ध्ररि स्थिर नहि रहल छल । ओतहि पुरनिया जिला मे १९०० ई से पहिने तक एकर धारा पांच पांच सौ साल तक एक्के जगह ठमकल छल । प्रतापगंज-देवीगंज, मधेपुरा-पुरनिया, खगरिया-कटिहार, देवीगंज-पुरनिया, अंचरा- फारबिसगंज-अररिया, मानसी-सहरसा-सुपौल आदि रेलवे/सड़क जे १८७५ से १९२५ ई क मध्य बनल छल मुख्यतः कोसी क प्रवाह कए संघातिक रूप मे दुष्प्रभावित केलक आओर एहिलेल कोसी विकराल बनि गेल । दरअसल तिरहुत सहित उत्तर बिहार मे बाढ़ क भयावहता १८७५ ई क बाद बढ़ल छल ।
रेलवे क निर्माण आरम्भ भेल । दरभंगा से चमथा घाट, रेल क पटरी बाढ़िक HFL से ऊपर राखल गेल आओर खर्चा बचेबा क लेल रेल में न्यूनतम वाटर वेज़ क प्रबधन अंग्रेजों केलक । सड़क निर्माण मे सेहो ऐहने भेल । फलतः नदी क drainage संघातिक रूप से दुष्प्रभावित भए गेल । खगड़िया मे गंगा मे खसय बाली बागमती/बूढी गंडक क प्रवाह मे रेलवे दिस से अवरोध उत्पन्न हेबाक कारण दरभंगा/तिरहुत मे १९०६ ई मे भारी बाढ़ आयल आओर भीषण क्षति दरभंगा गजेटियर १९०७ मे दर्ज कैल गेल । फलतः कोसी जे 19 वी सदी तक पुरनिया मे एकटा सामान्य नदी क भांति बाढ़ उत्पन्न करैत छल, आब 20 वी सदी मे सहरसा मे प्रलयंकारी बाढ़ उत्पन्न करय लागल । चूँकि कोसी स कमला-बलान, करेह आओर बागमती क drainage दुष्प्रभावित होएत अछि एहिलेल कोसी पुरान मुजफ्फरपुर आओर दरभंगा जिला मे बाढ़िक तबाही वा सुखाड़ क समस्या लेल सेहो जिम्मेदार भए गेल । यानि कोसीये उत्तर बिहार क पुनरुद्धार क चाभी अछि । यद्यपि बांध मे कोसी कए जकैड़ कए नियंत्रित कैल गेल अछि मुदा बाँध बनेबा क बाद एकर स्थिति आओर बेसी बिगैड़ गेल अछि । किअ कि इ आशंका होबय लागल छल कि इ बाँध कए तोड़ि कए पुनः तांडव करत । कि २००८ क कुसहा कटान एकटा ट्रेलर साबित होएत?
सहरसाक कोसी क आर्थिक पक्ष पर दू टा प्रतिवेदन- macdonnel रिपोर्ट १८७४ आओर कोसी दियारा सर्वे रिपोर्ट १९२६ से जानकारी भेटैत अछि कि प्राक- कोसी कालीन सहरसा १८७४ मे ग्रॉस cropped area छल । एकर भौगोलिक क्षेत्रफल क ७८% छल जे कोसी कालीन अवधि १९२६ ई मे 126% बढ़ि गेल; cropping intensity 13% से बढ़िकए ४०% भए गेल । कृषि विकास क यहि दू टा मुख्य पैमाना होएत अछि । कोसी सहरसा जिला में कृषि विकास केने छल । कोसी क बाढ़ मे भेल भयंकर क्षति एकर प्रवाह क संघातिक रूप से दुष्प्रभावित करबाक प्रतिफल छल । इ अंग्रेज़ सरकार क गलत नीति आओर लोगक अन्यमनस्कता क परिणाम छल ।
Symptomatic treatment क आधार पर १९५० क दशक मे बनल बांध सबटा कसर पूरा कए देलक । १९५१ क कुल १५४ किलोमीटर बाँध क तुलना मे आय ३५०० किलोमीटर से बेसी बाँध अछि । तखनो नदी १९७५, १९८७, २००४, २००७, २००८ में बाढ़िक नब नब कीर्तिमान बनेने छल । १९५४ मे 25 लाख हेक्टेयर बाढ़ प्रवण क्षेत्र छल जे आब बढ़िकए 68 लाख हेक्टेयर भए गेल छल ।
जतय तक पटवन क सवाल अछि, पश्चिमी कोसी नहर प्रणाली से दरभंगा-मधुबनी मे नगण्यप्राय पटवन होएत छल, हाँ, सहरसा-पुरनिया मे पूर्वी कोसी नहर प्रणाली अपन मूल लक्ष्य 18 लाख एकड़ क स्थान पर 3-४ लाख से बेसी पटवन नहि करि पबैत छल । एहिलेल कोसी परियोजना पर आब प्रश्न चिन्ह लागय लागल अछि ।
अब स्थिति एहन भए गेल अछि कि जलजमाव, नदी-नाला क उथलापन, भीषण आओर प्रायः नियमित बाढ़, रासायनिक खाद, जहरीला छिडकाव, पोखर आओर चौर मे प्रदुषण, गाछक कटाव, तेलहन/दलहन क उत्पादन मे भयंकर कमी, A2 देसी गाय क दूध क स्थान पर A1 हाइब्रिड गाय/भैंस क रोगकारी दूध का चलन, polished चावल क उपयोग, जड़ी-बूटी क प्रति अनास्था आदि तिरहुत कए बिमारी क खान बना देने अछि । ऊपर से राजनीतिक कलुषता, सामाजिक वैमनस्य, शासकीय असमर्थता आओर बौद्धिक अन्यमनस्कता करेला पर नीम !
एतय भारी उद्योग क अनुकूलता नहि अछि । डिजिटल इंडिया क साइबर कैफ़े क सेहो भूमिका बहुत सिमित अछि । service सेक्टर से सेाहो बेसी उम्मीद नहि कियाकी आम लोगक पास पर्याप्त आमदनी नहि अछि । आमदनी आओर आयोत्पादक साधन का तो अभाव अछिये । आय आवश्यकता अछि गरीब/आम लोग कए आयोत्पादक साधन उपलब्ध करेबाक । एहन आयोत्पादक सर्व सुलभ साधन माटि/पानी/पेड़ टा भए सकैत अछि । पानि कए केन्द्र मे राखिकए अग्रोनोमिक विकास आओर ओकर औद्योगिक उपयोग क नीति टा एतय सर्वाधिक कारगर वा टिकाऊ भए सकैत अछि ।
इ अग्रोनोमिक विकास तखने संभव होएत जखन मूल संसाधन पानिक मुख्य श्रोत नदी-नाला एकर पर्यावरण क अनुकूल प्रबंधन कैल जाय । यहि तिरहुत इकोसिस्टम मे इको-निर्वाण होएत ।
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