कुमुद सिंह
अयोध्या जमीन मामला मे सुप्रीमकोर्ट जे फैसला देलक अछि ओकर निहितार्थ बुझब जरुरी अछि। मामला जमीन क मालिकाना हक स संबंधित छल। दूनू पक्ष उक्त जमीन पर अपन दावा क रहल छल। अदालत दूनू पक्षक दावा कए खारिज क जमीन सरकार कए सौंप देलक। ओहूना 1950 क जमींदारी हस्तानांतरण कानून क बाद जमीन क सेटलमेंट उत्तर प्रदेशक राज्यपालक नाम स अछि। जमीनक मालिक यूपी सरकार अछि। ताहि लेल अदालत जमीनक लीज ककरो नहि द सरकार लग छोडि देलक। मूल मुकदमाक फैसला इ भेल।
आब सवाल उठैत अछि जे अदालत दूनू पक्ष कए दावा किया खारिज केलक। हिंदू पक्ष इ साबित नहि क सकल जे बाबरी मस्जिद कोनो मंदिर कए तोडि कए बनाउल गेल अछि। रामजन्म भूमि क दावा धार्मिक भावना स जुडल अछि, मुदा ढांचा कोनो मंदिर कए तोडि कए बनाउल गेल या परती जमीन पर बनल छल, इ पता लगेबा लेल किछु आर्कियोलॉस्ट क गवाही कए अदालत महत्वपूर्ण मानलक। अदालत कहलक जे गवाह क बयान स इ साबित नहि भ रहल अछि जे एहि ठाम कोनो मंदिर छल, ताहि लेल हिंदू पक्ष क दावा खारिज। मुस्लिम पक्ष क इ दावा स्वीकार भेल जे एहि ठाम मस्जिद छल, जेकरा तोडल गेल आ आब एहि ठाम मस्जिद क कोनो ढांचा नहि अछि। दरअसल अदालत हाल हासिल ओकरा एकटा सरकारी परती जमीन मानलक। जाहि ठाम नहि मंदिर छल आ नहि मस्जिद अछि। अदालत परती जमीन पर मंदिर कए प्राथमिकता ताहि लेल देलक किया कि राम जन्म भूमि क धार्मिक भावना खास खाता-खेसरा स जुडल अछि, जखनकि मस्जिद लेल खास खाता-खेसरा वर्तमान परिस्थिति मे महत्वपूर्ण नहि रहल। अगर ढांचा ध्वस्त नहि भेल रहिते त दोसर गप छल।
आब त सब जमीन एक रंग। ताहि लेल अदालत कहलक जे सरकार एकटा ट्रस्ट बना कए ओहि ठाम मंदिरक निर्माण क सकैत अछि आ मुस्लिम पक्ष लेल जमीन क व्यवस्था करबाक आदेश सरकार के देलक। देश में कई ठाम सडक या अन्य काज लेल मंदिर, मस्जिद या मजार क स्थानांतरण कैल गेल अछि। एहि ठाम इ देखब जरुरी अछि जे मस्जिद निर्माण स पहिने सेहो ओहि ठाम एकटा गैर इस्लामिक ढांचा छल, जे मंदिर नहि छल, मुदा किछु जरुर छल। एहन मे जखन वर्तमान मे ओहि खाता-खेसरा पर कोनो मस्जिद क ढांचा नहि अछि त मुस्लिम लेल ओहि जमीन क बदला मे दोसर जमीन देल जा सकैत अछि। जस्टिस गांगुली क इ आशंका सही अछि जे एहि फैसला स ओहि सब ढांचाक सुरक्षा पर खतरा उत्पन्न भ गेल जाहि ढांचा पर बाबरी मस्जिद जेकां संदेह पैदा कैल जाइत रहल अछि, मुदा जस्टिस गांगुली इ बिसरी जाइत छथि जे एहि फैसला मे बेर बेर ओहि एक्ट क जिक्र अछि जाहि मे इ सुनिश्चित कैल गेल अछि जे 1950 क बाद कोनो ढांचा पर एहि तरह मुकदमा नहि भ सकैत अछि। 1992 मे बनल एहि कानून स अयोध्या मामला कए बाहर राखल गेल छल। ताहि लेल आब ओ सवाल आन ठाम उठायब संभव नहि अछि। दोसर सबस महत्वपूर्ण गप इ जे अगर मंदिर क अवशेष भेट गेल रहिते त संदेह आ आशंका कए बल आन ठामक मामला मे सेहो भेट सकैत छल, मुदा आब इ साबित भ गेल जे कोनो मस्जिद क निर्माण मंदिर कए तोडि कए नहि भेल होएत।
‘’25 सितंबर 1866 कए ‘मोहम्मद अफ़ज़ल बनाम तुलसीदास आओर अन्य बैरागी’ मामला मे अदालत मे दलील देल गेल जे बैरागी पंथ क किछु लोक बाबरी मस्जिद लग शिवालय बनेबाक इच्छुक छथि। बैरागी सब मस्जिद परिसर मे एकटा कोठली बनाकए ओहिठाम मूर्ति सेहो राखि देलक। एहि स किछु दिन पहिने किछु गोटे परिसर मे राम चबूतरा बना देलथि, जाहि कारण स दंगा भड़कल। 12 अक्टूबर, 1866 कए फ़ैज़ाबाद क डिप्टी कमिश्नर तुलसीदास आ बैरागी क ख़िलाफ़ फ़ैसला सुनेलथि।
(सुप्रीम कोर्ट जजमेंट, पेज 803, 804)’’
ताहि लेल एहि दिवानी मुकदमाक सामाजिक, एतिहासिक आ राजनीतिक पक्ष सेहो विशाल रहल अछि। एहन मे अदालतक फैसला स इतिहास, समाज आ राजनीतिक सोच मे सेहो बदलाव आयब तय छल। एक सामाजिक और एतिहासिक पक्ष देखल जाये त अदालत अपन एतिहासिक फैसला स मुस्लिम पक्ष कए मंदिर तोडबाक आरोप स पूर्णत: बरी क देलक आ हिंदू पक्ष कए मस्जिद तोडबाक लेल आरोपित बना मुकदमा जारी रखबाक व्यवस्था देलक। कोर्टक आदेशक बाद मुस्लिम समाजक माथ पर लागल कलंक मिटा गेल। अयोध्या मे कोनो मंदिर नहि तोडल गेल। बाबर कोनो मंदिर नहि तोडलथि। बाबरी मस्जिद कोनो मंदिर तोडि कए नहि बनाउल गेल अछि। मुदा जे कलंक डेढ सौ साल स बेसी समय स मुस्लिम समाजक माथ पर छल, ओ कलंक आब हिंदूक ललाट पर अदालत ठोकी देलक अछि। अदालत साफ शब्द मे कहलक जे एकटा मस्जिद मे गैर कानूनी तरीका स मूर्ति राखल गेल। बाबरी मस्जिद तोडल गेल। एहि दूनू अपराध लेल मुकदमा चलत। बाबर आ समस्त मुस्लिम समाज कए अदालत एकटा पैघ आरोप स मुक्त क देलक। विश्व मे इस्लाम पर उठैत आंगुरक बीच भारतीय सर्वोच्च न्यायालय क एहि फैसलाक एकटा राजनीतिक निहितार्थ सेहो अछि। सुप्रीम कोर्ट मुसलमान कए जाहि विध्वंशक छवि स मुक्त लेकर ओहि छवि स हिंदू कए आरोपित क देलक।
यैह कारण अछि जे फैसलाक बाद मुस्लिम पक्ष लग उपलब्ध कानूनी विकल्प पर विधि विशेषज्ञ प्रोफेसर मुस्तफा कहलथि जे उच्चतम न्यायालय क फैसलाक बाद कानूनी विकल्प पुनर्विचार क होइत छै। हमरा नहि लगैत अछि जे एहि मामला मे पुनर्विचार क याचिका दायर हेबाक चाही। हमर मानब अछि जे एहि मामला मे मुसलमान क पैघ जीत भेल अछि। हिन्दू दिस स हुनका पर जे सबसे पैघ आरोप छल, एकटा कलंक छल जे बाबरी मस्जिद राम मंदिर कए तोडि कए बनाउल गेल अछि, उच्चतम न्यायालय ओहि आरोप कए खारिज क देलक अछि। एकर मतलब अछि जे बाबर कोनो मंदिर कए तोडि कए कोनो मस्जिद नहि बनेलथि। इ मुख्य दलील छल, जेकरा अदालत खारिज क देलक।
उल्लेखनीय अछि जे सुप्रीम कोर्ट मानलक जे बाबरी मस्जिद 1528 मे बनल छल। 2002-03 क एएसआइ क रिपोर्ट क हवाला स अदालत इ सेहो कहैत अछि जे कतहु स इ साबित नहि भ सकल जे बाबरी मस्जिद कोनो मंदिर कए तोडि कए बनाउल गेल छल। सुप्रीम कोर्ट कहैत अछि जे 1934 मे मस्जिद कए क्षतिग्रस्त कैल गेल। 1949 मे मस्जिद मे किछु लोक मूर्ति रखबाक ग़ैर-क़ानूनी काज केलथि. सुप्रीम कोर्ट कहैत अछि जे 1992 मे मस्जिद कए तोडब अपराध छल आ एहि पर मुकदमा चलैत रहत।
सुप्रीम कोर्ट कहैत अछि जे 1885 मे राम चबूतरा कए असली जन्मस्थान कहल गेल छल। 1857 मे भीतर आ बाहर दूटा परिसर बना अंग्रेज़ दीवार ढार केलक। भीतर मस्जिद प्रबंधन क कब्ज़ा आ अधिकार छल। राम चबूतरा बाहर छल। सुप्रीम कोर्ट कहैत अछि जे राम चबूतरा पर मंदिर बनेबाक अनुरोध 1885 मे ब्रिटिश अदालत ख़ारिज क देने छल। ज्ञात हो जे 1992 मे मस्जिद तोड़निहार सब राम चबूतरा कए सेहो तोडि देलथि। चूकिं इलाहाबाद हाई कोर्ट भीतरी और बाहरी परिसर कए दूटा अलग-अलग यूनिट मानने छल आ सुप्रीम कोर्ट ओकरा सिंगल यूनिट मानलक ताहि लेल मस्जिद बनेबा लेल जमीन कोनो आन खाता-खेसरा क देल जायत।
28 नवंबर, 1858 कए अयोध्या क थानेदार शीतल दुबे अंग्रेज़ कए एकटा रिपोर्ट सौंपलक. रिपोर्ट मे कहल गेल अछि जे निहंग सिंह फ़क़ीर खालसा नामक एकटा सिख मस्जिद मे घुसि कए पूजा-हवन केलक अछि। गुरु गोविंद सिंह क पूजा कैल गेल। एहि दौरान 25टा सिख ‘सुरक्षा’ लेल गेट पर तैनात छलाह।
‘’ एएसआई इलाहाबाद हाई कोर्ट कए अपन रिपोर्ट सौंपने छल। जखन हाई कोर्ट मे नींव मे भेटल अवशेष पर ज़िरह भ रहल छल त कईटा दिलचस्प तथ्य सामने आयल। किछु आर्कियोलॉस्ट क कहब छल जे नींव मे भेटल अवशेष बौद्ध आओर जैन स्थलक प्रतीक होइत अछि। हाई कोर्ट अपन ऑब्जर्वेशन मे कहलक जे नींव क अवशेष बता रहल अछि जे ओहि ठाम कोनो शिवालय छल। सुप्रीम कोर्ट सेहो शिवालय कए खारिज नहि केलक ’’
(सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट, पेज 545)
एएसआइ कोर्ट कए 574 पेज क रिपोर्ट सौंपने अछि, जाहि मे राम मंदिर क कतहु जिक्र नहि अछि। आर्कियोलॉजिस्ट क बीच कहियो एहि बात पर सर्वसम्मति नहि बनल जे मस्जिद क नींव मे भेटल वस्तु आखिर कौन तरहक ढांचाक अवशेष थीक। कियो मंदिर क अवशेष त कियो ‘पुरान ईदगाह’ कहलक, किछु त बौद्ध आओर जैन प्रतीक करार द देलक। खुदाई करनिहार दू सदस्य सुप्रिया वर्मा आ जया मेनन हाई कोर्ट मे कहलथि जे किछु प्रतीक कए ‘हिंदू प्रतीक’ कहल जा रहल अछि मुदा इ बुद्धिस्ट, जैन आ इस्लामिक स्ट्रक्चर सेहो भ सकैत अछि।
सुप्रीम कोर्ट अपन फ़ैसला मे ओहि रिपोर्ट क हवाला दैत कहलक जे ज़मीन क नीचा क अवशेष ‘गैर इस्लामिक’ अछि। मुदा इ सेहो कहलक अछि जे बाबरी मस्जिद कोनो मंदिर कए तोडि कए नहि बनाउल गेल अछि। एहन कोनो सबूत नहि अछि। यानी जे ढाचा तोडल गेल ओ बाबरी मस्जिद छल। जेकरा तोडनिहार पर मुकदमा चलत।
कुल मिला कए अयोध्या मामला ‘हिंदू बनाम मुस्लिम’ क मामला नहि छल। इ एकटा टाइटल केस छल। निर्मोही अखाड़ा, राम लला विराजमान आओर सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड क बीच क मामला छल। राम चबूतरा 1850 क दशक मे बनल। राम लला क मूर्ति 1949 मे राखल गेल। अदालत एहि सबटा तथ्य कए स्वीकार करैत मुसलमान समाज कए एहि आरोप स बरी क देलक जे अयोध्या मे कोनो मंदिर कए तोडि कए कोनो मस्जिद बनाउल गेल। हां अयोध्या में हिंदू समाज जरुर एकटा मस्जिद कए तोडबाक अपराध केलथि, जेकर सजा हुनका कानून देत। मस्जिद त कोनो जमीन पर बनि जायत, मुदा जे दाग, जे कलंक एहि अदालती फैसला स मिटाउल गेल अछि ओ सचमुच इस्लाम कए दुनियाक नजरि मे एकटा शांति आ भाईचारा क प्रतीक बना देलक। हिंदू समाज लेल आब इ एकटा एहन दाग अछि जे बाबरी मस्जिद विध्वंस मामला क फैसला एलाक बाद मिटा सकत बा नहि इ कहब आजुक तारीख मे मुश्किल अछि।